Mindblown: a blog about philosophy.
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जानवरों का इंसानो से सवाल
वो कहते हैं कि जानवर ही तो है, जानवर हैं तो क्या हम में जान नहीं, क्या हमारी कोई पहचान नहीं, शायद हमारे दर्द का तुमको कोई भान नहीं, हमको भी दर्द सताता है, हमको भी रोना आता है, और तुम कहते हो हमको कोई ज्ञान नही, हम जानवर हैं तो क्या हम में जान…
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सबसे न्यारा भारत, हेआतंकी
[6/19, 5:59 PM] Madhu: बगिया का माली एक पिता ही होता है अपने बच्चों की बगिया का माली कठिन परिश्रम से सींच सींच पौधों को मजबूत बनाता है आनंद विभोर हो जाता है पौधा जब वृक्ष बन इठलाकर सबके सम्मुख आता है सीना चौड़ा हो जाता है सुख सपनों में खो जाता है बच्चों…
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शिलाएं इतिहास की
कलम कह रही लिख दूं गाथा स्वर्णिम हिंदुस्तान की भूतकाल से वर्तमान तक नारी के स्वाभिमान की जी चाहता है लिखूं कथा मैं राजनीति, विज्ञान की जी कहता है लिखूं कहानी इंदिरा , कल्पना की शान की शौर्य लिखूं लक्ष्मीबाई का विद्रोह की पहचान थी और गार्गी का ज्ञान लिखूं विद्वानों की विद्वान थी भक्ति…
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वर्दी की जुबानी, उस आशिक की कहानी।
वो तिरंगा में लिपटी वर्दी भी, देखना चाहती थी उसके माथे पर सिंदूर, सुनना चाहती थी, उन चूड़ियों की खनखनाहट, पैरों में पायल की झंकार, चूमना चाहती थी, उन हाथों की मेहंदी, सूँघना चाहती थी, उन गजरों की खुशबू, छूना चाहती थी, वो रेशम से बाल, बताना चाहती थी, वो दर्द भरी अकेली रातों की…
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वर्दी की जुबानी, उस आशिक की कहानी।
वो तिरंगा में लिपटी वर्दी भी, देखना चाहती थी उसके माथे पर सिंदूर, सुनना चाहती थी, उन चूड़ियों की खनखनाहट, पैरों में पायल की झंकार, चूमना चाहती थी, उन हाथों की मेहंदी, सूँघना चाहती थी, उन गजरों की खुशबू, छूना चाहती थी, वो रेशम से बाल, बताना चाहती थी, वो दर्द भरी अकेली रातों की…
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” ब्रह्माण्ड का संदेश”
ब्रह्माण्ड ने अब कुछ रुख सा बदला है, जिस के चलते हवाओं ने भी अपनी चाल को मोड़ा है। किसी को तो आज मैनें अपने आस पास पाया है, इस ब्रह्माण्ड ने कुछ तो संदेश मुझे बताया है। प्रकृति में भी आज उथल-पुथल सी दिखाई पड़ती है, क्योकिं लोगों ने अपने स्वार्थ के लिय प्रक्रति…
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1857, mere mitra ,sarhad ke sipahi
कवी-श्री शिवनारायण जौहरी विमल) मेरे मित्र कोई तो देश के खातिर कूद कर मैदान में झंडे में लपिटवा कर अपना बदन शहीद होकर मर गया कोई हर घड़ी मरता रहा डरता रहा छ्क्का लगाने से विकेट पर बने रहना चाहता था यह नहीं सोचा तुम्हारा भी विकेट गिर जायगा इक दिन संकल्प जिस दिन लिया…
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ऐ मातृ भूमी तेरी जय हो …..
जे माँ शारदे
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Cloud’s heavy
Cloud’s heavy Wee hours , my cognisant zone Freeze thoughts , nothing’s my own Time’s lining me all unknown Beneath my skull , endless groans Flesh and bone , just moonlight alone Wings keep tight , don’t want hopes to be flown.
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कदम बढ़ाओ , चलते जाओ
अभी तो चलना है हमने सीखा सफर बाकी, चलते जाओ , चलते जाओ जाओ जाओ सूरज है डूबा , रात है काली तमनाओं को लिए चलते जाओ कंधे मिलाकर अब चलना होगा कदम बढ़ाओ , चलते जाओ , चलते जाओ जाओ जाओ दुश्मन की ख्वाहिश , आंधी या बारिश सत्य को थाम , यही गीता…
Got any book recommendations?