Month: November 2013
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क्रांति की भीख
हे अर्जुन अब तू जाग-जाग हाथों में ले कर आग-आग उस कुरुक्षेत्र ने दी पुकार सुना गांडीव की वही हुंकार दुर्योधन बहुत इस देश में दुस्शाशन फिर उसी वेश में अब की न फिर तो सोच बहुत कधों पर है ये बोझ बहुत जो होगा तो मौन फिर गीता कहेगा कौन फिर हैं कृष्ण नहीं…
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धरती का स्वर्ग
धरती का स्वर्ग मुकुट हिमालय का गंग हार शोभता है सागर चरण इसकी सभ्यता महान है, हरे-भरे खेतों से सजा है इसका परिधान विश्व मे अनोखी इसकी आन-बान-शान है I वीरों ऋषि मुनियों की धरा ये सदा से रही ज्ञान सीखने को आया सारा ही जहान है धन्य है वो नर नारी बसते जो इस…
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स्वर सारे गुंजित हो ………।
१ भारत को कहते थे सोने की चिड़िया सुख से हम रहते थे। २ गोरों को भाया था माता का आंचल वह ठगने आया था ३ याद हमें कुर्बानी वीरो की गाथा वो जोश भरी बानी ४ कैसी आजादी थी भू का बँटवारा माँ की बरबादी थी ५ ये प्रेम भरी बोली वैरी क्या जाने…
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पनडुब्बी वाले प्रहरी
पनडुब्बी वाले प्रहरी (14 अगस्त,2003 को भारतीय पनडुब्बी सिंधुरक्षक में हुई दुर्घटना में शहीद होने वालों को श्रद्धांजलि) – डॉ.रश्मि वार्ष्णेय देश की रक्षा के लिए तैनात, हे पनडुब्बी वाले प्रहरी ! जिस निष्ठा और लगन से, करते हो देश की चौकसी।। बुलंद हौसलों को हमारा सलाम। हे पनडुब्बी … … जल में पसरी हुई…
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में सिर्फ एक भारतीय
दोस्तों, पेश है आपकी खिदमत में , एक और हमारी लिखी हुई ताज़ा तरीन , मूल रचना. इसका शीर्षक है “में सिर्फ एक भारतीय” आशा करते है आपको पसंद आएगी…… तुम बेड tea , में सुबह का खाली पेट दो ग्लास पानी तुम बासा burger , में गरम कचोरी तुम bankok , में आगरा का…
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सपनो का भारत
चलो बनाएं आज से अपना देश “महान” नही महज एक शब्द हो सच में हो जो महान, अमन चैन सुख शांति जहां हो सच्चाई भरपूर ह्मी नही दुनिया में जिसका सभी करें गुणगान | चलो चढ़ायें सबसे पहले कुछ श्रद्धा के फूल जो शहीद हो गये देश पर उन्हे ना जाना भूल, सरहद के वीरो…
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वक्र दृष्टि पर पूर्णविराम
शाश्वत है जाग में वाद-विवाद अब आज़ादी के इतनी बाद किंकर्तव्यविमूढ अक़ड़े ना हों क्षमता पर प्रश्न खड़े ना हों क्षमता से प्रभावित कण-कण हो ऐसा अपना प्रक्षेपण हो गाण्डीव सुसज्जित पार्थ रहें शर तरकश मे पर्याप्त रहे जो निर्णय हो, प्रभावी हो पौरुष प्रारब्ध पे हावी हो अब ठान लिया तो ठान लिया पीछे…
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असुविधाएं
असुविधाएं हमारे हिस्से आयी कितनी ही खतरनाक अनाम असुविधाएं हैं जो घुन की तरह धीरे-धीरे खोखला कर रही हैं हमे हम बाथरूम के कोने में लोटे से मारी छींटों में बहा देते हैं जिनका होना एक खतरनाक रोग की महामारी कि तरह दाखिल हैं असुविधाएं हमारे समाज के भीतर पर हम सुकून भरी चादरे तान…
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एक नयी भारत गाथा
एक नयी भारत गाथा रात्रि स्वप्न में शंख बज उठे, आरती सजाये गगन खड़ा एक मूर्ति दिखी अति परिचित सी , जिसके आगे जग नत हो पड़ा मैं पूछ उठा फिर सृष्टि से , ये किसका वंदन होता है सृष्टि बोली हे मानव सुन, भारत का अर्चन होता है वार्ता चली फिर भारत की, सृष्टि…
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क्यूँ लिखता है श्रृंगार का ये कवि शब्दों से अंगार
क्यूँ लिखता है श्रृंगार का ये कवि शब्दों से अंगार जब शीश कटता है सीमा पर मेरे देश के जवान का… लहू उबलता है जब पूरे हिंदुस्तान का……………… मेरी भी रगों का तब खून खोलता है………………. कतरा-कतरा मेरे जिस्म का तब शब्द बनकर बोलता है जब अमन का ख्वाब आँखों में, आँसुओं में गल जाता…