Author: Apoorva
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वक्र दृष्टि पर पूर्णविराम
शाश्वत है जाग में वाद-विवाद अब आज़ादी के इतनी बाद किंकर्तव्यविमूढ अक़ड़े ना हों क्षमता पर प्रश्न खड़े ना हों क्षमता से प्रभावित कण-कण हो ऐसा अपना प्रक्षेपण हो गाण्डीव सुसज्जित पार्थ रहें शर तरकश मे पर्याप्त रहे जो निर्णय हो, प्रभावी हो पौरुष प्रारब्ध पे हावी हो अब ठान लिया तो ठान लिया पीछे…