Author: Himanshu

  • क्रांति की आशा…

    कोयल की मधुर वाणी न मैं श्रृंगार लिखता हूँ कलम को खून से भरकर ग़ज़ल अंगार लिखता हूँ वीरों का यहाँ रुसवा रोज़ बलिदान होता है वतन की आन पर आघात यहाँ नादान होता है कोई सौ क़त्ल करके भी चैन की नींद सोता है कोई मासूमियत का कर फ़ना हो कर के देता है…