Mindblown: a blog about philosophy.

  • रिश्तों का खेल

    रिश्तों का खेल

    शीतल सी हवा है मुस्कुराहट भी आज खफा है | जीतेजी लोग सोचते रहे ….. दुःख में रहे तो अच्छा है | तू आज भी रिश्तो के खेल में उतना ही कच्चा है | जो सोचा वो मिला ही नही था….. और जो पाया कही खो सा गया था | चलो, दुश्मनी भुला कर नया…

  • जब घ्यान अतीत का धरता हूँ

    जब घ्यान अतीत का धरता हूँ

    जब घ्यान अतीत का धरता हूँ मैं नित्य यही सोचा करता हूँ क्या था वो जिसे मैं पा ही लिया कुछ छोड़ दिया या छूट गया अब तृप्त हो ही गया खुद से मैं गैर हो ही गया जग से खुद को ही मैं अपना कर बैर हो ही गया सब से क्या करना था…

  • जब घ्यान अतीत का धरता हूँ

    जब घ्यान अतीत का धरता हूँ

    जब घ्यान अतीत का धरता हूँ मैं नित्य यही सोचा करता हूँ क्या था वो जिसे मैं पा ही लिया कुछ छोड़ दिया या छूट गया अब तृप्त हो ही गया खुद से मैं गैर हो ही गया जग से खुद को ही मैं अपना कर बैर हो ही गया सब से क्या करना था…

  • जब घ्यान अतीत का धरता हूँ

    जब घ्यान अतीत का धरता हूँ

    जब घ्यान अतीत का धरता हूँ मैं नित्य यही सोचा करता हूँ क्या था वो जिसे मैं पा ही लिया कुछ छोड़ दिया या छूट गया अब तृप्त हो ही गया खुद से मैं गैर हो ही गया जग से खुद को ही मैं अपना कर बैर हो ही गया सब से क्या करना था…

  • जब घ्यान अतीत का धरता हूँ

    जब घ्यान अतीत का धरता हूँ

    जब घ्यान अतीत का धरता हूँ मैं नित्य यही सोचा करता हूँ क्या था वो जिसे मैं पा ही लिया कुछ छोड़ दिया या छूट गया अब तृप्त हो ही गया खुद से मैं गैर हो ही गया जग से खुद को ही मैं अपना कर बैर हो ही गया सब से क्या करना था…

  • मैं निकला खुद को खोजने

    मैं निकला खुद को खोजने जिदंगी ही जंग है , बस अपनो से ही रंज है। वो काली रात स्याह में क्यों भटक रहा मनुष्य है।। मैं निकला खुद को खोजने अतीत मुझे मिल गया। देख स्वर्ण भविष्य को मैं अदंर से ही हिल गया।। वक्त मुझ से कह गया अब तू खुद को जान…

  • मैं आज भी तुम्हारी इबादत करती हूँ।

    इसमें लिखते हो.. इस मुफ़लिस की अकीदत भी तुम हो, और मज़हर-ए-उलफत भी तुम ही हो, फर्क सिर्फ इतना है ,अभी सिर्फ मैं ये सोचता हूँ, पर तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करूँगा मैं। अब किसे जवाब दूँ मैं? तुम्हारी इस तिरंगे में लिपटी वर्दी को? अभी तो मुझे तुमसे घंटों बातें करनी थीं, तुम्हारी उन…

  • मातृ-भू का मान रखने के लिए

    मातृ-भू का मान रखने के लिए

    मातृ-भू का मान रखने के लिए (१) मित्रता की आड़ में वैरी कोई- विश्वास की दुल्हिन सदा छलता रहे। ज्वालामुखी-सा, तब धधकता देह में- संधि का सूरज अगर ढलता रहे।। (२) सभ्यता के आचरण मैले बनें, अन्याय का दुर्भाव पलता ही रहे। तब असंभव है कि दीपक शान्ति का- अनवरत्, निर्बाध जलता ही रहे।। (३)…

  • Quarantine

    Quarantine

    By Samarth Kalanke Quarantine poem: We sit in the house bored, Every room we have explored. Thinking about what happened last, On March 13th in the past. SARS Cov-2 keeps us in our houses, Boring us and the mouses. Back when Covid wasn’t a threat, People thought that they had nothing to fret. Now we…

  • अमीरी का सच

    अमीरी का सच

    ख़्वाहिशो के भोज में हर अमीर दबा है| उस ग़रीब से जाकर पुछ ख़्वाहिश होती क्या है| किसी को ख़ुशियाँ सब पाकर भी नहीं मिलती कोई अपनी ख़ुशियाँ एक हँसी में धूँड लेता है| अमीर अपनी दौलत ,उसकी शोहरत से अपनी अमीरी का दिखावा करता हैं | यह ग़रीब चुप रहकर अपना दर्द छुपा लेता…

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