Gaurav Gatha 2012 - Private View

Gaurav Gatha 2012 – Private View

Posted by
|

Poem ID: 2

Poem Title: बहुत फ़र्क है तुम्हारे और मेरे भारत में
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: March 15, 2012
Poem Submission Date: July 1, 2012 at 5:27 pm

Poem:

बहुत फ़र्क है तुम्हारे और मेरे भारत में / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
तुम्हारा भारत-
एक डंडे की नोक पर फड़फड़ाता हुआ तीन रंगों का चिथड़ा है
जो किसी दिन अपने ही पहिए के नीचे आकर
तोड़ देगा अपना दम
तुम्हारे दम भरने से पहले।
मेरा भारत-
चेतना की वह जागृत अवस्था है
जिसे किसी भी चीज़ (शरीर) की परवाह नहीं
जो अनंत है, असीम है
और बह रही है निरंतर।
तुम्हारा भारत-
सफ़ेद काग़ज़ के टुकड़े पर
महज कुछ लकीरों का समन्वय है
जो एक दूसरे के ऊपर से गुज़रती हुईं
आपस में ही उलझ कर मर जाएँगी एक दिन।
मेरा भारत-
एक स्वर विहीन स्वर है
एक आकार विहीन आकार है
जो सिमटा हुआ है ख़ुद में
और फैला हुआ है सारे अस्तित्व पर।
तुम्हारा भारत-
सरहदों में सिमटा हुआ ज़मीन का एक टुकड़ा है
जिसे तुम ‘माँ’ शब्द की आड़ में छुपाते रहे
और करते रहे बलात्कार हर एक लम्हा
लाँघकर निर्लज्जता की सारी सीमाओं को।
मेरा भारत-
शर्म के साए में पलती हुई एक युवती है
जो सुहागरात में उठा देती है अपना घुँघट
प्रेमी की आगोश में बुनती है एक समंदर
एक नए जीवन को जन्म देने के लिए।
तुम्हारा भारत-
राजनेताओं और तथा-कथित धर्म के ठेकेदारों
दोनों की मिली-जुली साज़िश है
जो टूटकर बिखर जाएगी किसी दिन
अपने ही तिलिस्म के बोझ से दब कर।
मेरा भारत-
कई मोतियों के बीच से गुज़रता हुआ
माला की शक्ल में वह धागा है
जो मोतियों के बग़ैर भी अपना वजूद रखता है।
बहुत फ़र्क है तुम्हारे और मेरे भारत में!

Poem ID: 3

Poem Title: जो भी मिट गए, तेरी आन पर, वो सदा मिलेंगे यहीं कहीं
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: January 1, 2012
Poem Submission Date: July 2, 2012 at 2:42 pm

Poem:

जो भी मिट गए, तेरी आन पर, वो सदा मिलेंगे यहीं कहीं
तेरी धूल में वो ही फूल बन के खिला करेंगे यहीं कहीं

ऐ वतन मेरे, नहीं कर सके, कभी काल भी, ये जुदा हमें
मैं मरा तो क्या, मैं जला तो क्या, मेरे अणु रहेंगे यहीं कहीं

तू ही घोसला, तू ही है शजर, तू चमन मेरा, तू ही आसमाँ
तुझे छोड़ के, जो कभी उड़ा, मेरे पर गिरेंगे यहीं कहीं

मुझे मेघ नभ का बना दिया कभी धूप ने तो है वायदा
मेरे अंश लौट के आएँगें औ’ बरस पड़ेंगे यहीं कहीं

कोई दोजखों में जला करे कोई जन्नतों में घुटा करे
जिन्हें प्यार है मेरे देश से वो सदा उगेंगे यहीं कहीं

Poem ID: 4

Poem Title: हमारा तिरंगा
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: February 17, 2010
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 5:44 pm

Poem:

भारतीय अस्मिता का शुभ प्रतीक यह तिरंग ,

शक्ति शौर्य वीरता का शुभ प्रतीक यह तिरंग |

उर्ध्व रंग केसरी कह रहा हमे पुकार ,
उत्सर्ग कर दो देश पर सर्वस्व प्राण भी निसार |
एकता अखंडता का शुभ प्रतीक यह तिरंग ,
शक्ति शौर्य वीरता का शुभ प्रतीक यह तिरंग |

श्वेत रंग मध्य में दे रहा यही संदेश ,
सत्य से भरें हृदय शांतिमय हमारा देश |
शुचिता और सहिष्णुता का शुभ प्रतीक यह तिरंग ,
शक्ति शौर्य वीरता का शुभ प्रतीक यह तिरंग |

मध्य ही सजा हुआ गहरा नीला धर्मचक्र ,
चतुर्विंशति अराओं से निरत सजाये नव दिवस |
ऋत नियम नित्यता का शुभ प्रतीक यह तिरंग ,
शक्ति शौर्य वीरता का शुभ प्रतीक यह तिरंग |

हरित रंग अध भरे हरा भरा हमारा देश ,
आह्लाद से भरे कृषक लहलहाते अपने खेत |
सम्रद्धि सम्पन्नता का शुभ प्रतीक यह तिरंग ,
शक्ति शौर्य वीरता का शुभ प्रतीक यह तिरंग |

Poem ID: 5

Poem Title: मैं, मेरा देश और हम आइ.आइ.आइ. टीयन्स
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: January 9, 2010
Poem Submission Date: July 8, 2012 at 1:11 pm

Poem:

यह देश है मेरा ,मैं इसका वासी हूँ,
जो कुछ इसने मुझे दिया है मैं इसका आभारी हूँ |
अब है मेरी बारी ,मुझे कुछ कर दिखाना है,
इंजीनियरिंग की राह पे चल कर देश का सर ऊँचा कराना है |
आज, भले ही मेरा देश एक प्रगतिशील देश है,
पर वोह हम ही हैं जिन्हें इसे विकसित बनाना है ।

हम्मे से कुछ भ्रष्टाचार का बहाना दे, कर्तव्य से पीछे हट जाते हैं,
पर असल में वोह हम्मे से ही हैं जो भ्रष्टाचार को फैलाते हैं |
आज के नौजवान देश की ऐसी इस्थिथि देख विदेश चले जाते हैं,
पर अपने ही देश की गन्दगी साफ़ करने से कतरातें हैं।

हम सबका उद्देश्य अपने को एक अच्छा इंजिनियर बनाना है,
पर असल में आधों को तो सिर्फ़ पैसा कमाना है |
पैसे से बड़ी होती है इज्ज़त, ये कौन इन्हे समझाए ?
…पैसे से बड़ी होती है इज्ज़त, ये कौन इन्हे समझाए ?
अगर सच्चे हिन्दुस्तानी हैं तो देश में रहकर उसे उचाइयों पर ले जाएँ ।

इसलिए आज ही प्रन लो, की हम सब नौजावान मिलकर इस देश को वर्ल्ड पावर बनाएँगे ,
कम से कम ‘सूचना प्रोद्योगी’ के छेत्र में तो इसे अव्‍वल नम्बर पर ले जायेंगे |
अगर इसी तरह हर व्यक्ति, देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाएगा,
तो देखना मेरे दोस्त, हमारा देश सोने की चिडिया फिर से बन जाएगा |

जय हिंद!!

Poem ID: 6

Poem Title: पीले पत्ते …
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: May 10, 2007
Poem Submission Date: July 13, 2012 at 8:04 pm

Poem:

छू धरा को पीले पत्तों ने
कुछ यूं आक्रोश जताया था ||
होकर छिन्न-भिन्न मचलती शाखों से
अश्कों का मतलब समझाया था ||

मंडराते श्वेत मेघों को, कर जल-विहीन
निरा श्यामल-रंग पहनाया था ||
बेडी कसे बरगद की रक्तहीन शिराओं में
बन तरुण अमर रक्त, नव-प्रवाह जगाया था ||

जलकर सबने, एक समां में
घर-घर समर-दीप जलाया था ||
बिखरे-बिखरे भारत को
कर तम-विहीन, जीवन नया सिखाया था ||

किया शंखनाद जो सबने मिलकर
विस्तीर्ण नभ का ज़र्रा-ज़र्रा थर्राया था ||
क्या दीवाने थे, वे पत्ते भी
एक-एक कोंपल में रंग नया छलकाया था ||

Poem ID: 7

Poem Title: हम.. आज़ाद भारतीय..
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: July 16, 2012
Poem Submission Date: July 16, 2012 at 7:27 pm

Poem:

हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और अपनों की आजादी के आड़े भी आये..

कभी नारी है हारी गोहार लगाये,
अपनी वो इज्ज़त वा लाज बचाए..
कभी बच्चे भटकते दर दर हो बेबस,
सड़को पे लोगो की दुत्कार खाए..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और भारत की इज्ज़त की धज्जिया उडाये..

रोज़ है सुनते ढेरों कथाये,
सद्बुधी फिर भी किसी को न आये..
योन शोषण हो या हो कन्या भ्रूण हत्या,
आज भी अपराध होते है आये..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और पापो की गिनती बढ़ाते ही जाए..

भगवान को पूजे.. बुजुर्गो को कोसे,
सम्पति, ज़ेदात ही हमको भाये..
वृद्ध तो होना सभी को है एक दिन,
किस्सा वही फिर इतिहास दोहोराये..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और बुजुर्गो को बंधी बनाना हम चाहे..

भेद भाव, छुआ छुत के चलते,
ऊँच नीच के भाव पनपते..
उस बेचारे के भाग ही फूटे,
जो दलित वर्ग के घर में जन्मे..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और भिन्नता के तुच्छ दायरे में हम पलते..

राजनीती बनी हउवा सबके लिए,
पल्ले किसी के न कोई दावपेच आये..
मेहेंगाई भी मारे.. और दोखे भी खा रे,
सरकार के हाथो बने कठपुतली सारे..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और सरकार हमारी हमपर शासन चलाये..

बरोजगारी जो मारे तमाचे,
युवाओं के आत्मविश्वास टूटे..
भ्रष्टाचार.. घूसख़ोरी के चलते,
भारतवासी एक दूजे से भटके..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
अपनी इक्छाओ के दम पर दूसरो को निगलते..

सुरक्षा कर्मचारी या डाकू लूटेरे,
बहू बेटी के दामन पे डाके ये डाले..
सरकार ने पाले है खुद के संरक्षक,
आम नागरिक की मुश्किल ये क्या सुलझाए..?
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
पर फ़रियाद अपनी न कोई सुन पाए..

सहेमत है हम सब है कितनी बुराई,
आजादी को पाकर समझदारी न आई..
उत्पन्न हो जोश जब बुराई को देखे,
पर अगले ही पल सुस्ती विचारों को आये..
जो कहलाना चाहे हम आज़ाद भारतीय,
अपनी सोच को पहले हम आजादी दिलाये..

हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और अपनों की आजादी के आड़े भी आये…

Poem ID: 8

Poem Title: परिवर्तन मुझे खुद में ही लाना होगा
Genre: Other
Poem Creation Date: August 15, 2011
Poem Submission Date: July 17, 2012 at 10:49 am

Poem:

परिवर्तन मुझे खुद में ही लाना होगा

भाव के अतिरेक में,
बह रहा अशांत मन मेरा,
देख उसे आहत होता तन मेरा,
चोटे कितनी सहेगा वो जर्जर

देख रहा,
चौसठ वर्ष का वृद्ध लंगड़ाता चल रहा
अत्याचार,भ्रष्टाचार से ग्रसित
चार-चार होते उसके वस्त्र अव्यवस्थित,

दर्द अतीत का दबाये
है वो सोच रहा
कंहा गयी वो परम्पराएँ,
अतीत की मर्यादित कथाएं

पुरषोत्तम राम की मर्यादा
कृष्ण का कर्मयोग मनन
नानक का चिंतन
बुद्ध के वचन

महावीर की अहिंसा
गीता का ज्ञान
शहीदों का बलिदान
शिवा की शान
मीरा की तान
पुरखो का अभिमान

सुरदास के भाव
बिहारी के दोहों की शक्ति
कबीर की पंक्ति,
तुलसी की भक्ति

मेरे शैशव में तो देश प्रेम महान था
युवा हुआ तो कर रहा निर्माण था
इस अवस्था में क्यूँ घात है
क्यों न उनको पश्चाताप है,

मेरे बच्चे मुझसे क्यूँ बिछड़ रहे
भ्रस्टाचार और अनाचार में क्यूँ बिगड़है

चिकित्सक कौन ऐसा आयेगा
दूर बिमारिया कर जायेगा
क्या अपाहिज शारीर को फिर से स्वस्थ कर पायेगा

लड़ना मुझको ही है अपनी बिमारियों से
गर संतान मेरी दूषित हो रही
सुधारना मुझे ही है उन्हें प्यार से

परिवर्तन मुझे खुद में ही लाना होगा
मै भारत हूँ,
भारत कहलाना होगा

Poem ID: 9

Poem Title: प्रियतमा दीपक जलाए रखना
Genre: Other
Poem Creation Date: January 6, 2012
Poem Submission Date: July 18, 2012 at 11:09 am

Poem:

प्रियतमा दीपक जलाए रखना
मैं लौटकर के आऊंगा
आशा बनाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना

झूठ कैसे बोल दू की याद सब आते नहीं
पर बात पहुँचाने के लिए शब्द मिल पाते नहीं
जानता हू तुम सबके लिए मेरे कुछ फ़र्ज़ हैं
पर मातृभूमि का भी मेरे ऊपर बड़ा क़र्ज़ है
जीतकर के आऊंगा रणक्षेत्र से जल्दी प्रिया
तुम रौशनी को जगमगाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना

माँ को कहना आँख के आंसू ज़रा से रोक ले
रण की खबरें कम सुने मन को ना इतना शोक दे
जल्दी ही गोद में सर रखकर सोने को मै आऊंगा
उसके हाथों से बनी मक्का की रोटी खाऊंगा
तुम माँ को ज़रा ढाढस बंधाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना

बाबा को कहना शत्रु के सर मै काटकर के लाऊंगा
पीठ कभी ना दिखेगी सीने पे गोली खाऊंगा
आज ही सबसे कहे बेटा गया रण क्षेत्र में
मैं जान दे दूंगा मगर देश का सर नहीं झुकाऊँगा
वो गमछे में छुपकर रोएंगे
तुम हिम्मत दिलाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना

बच्चो से कहना उनके पिता को उनसे बहुत सा प्यार है
झोले में मेरे मुनिया की गुडिया रखी तैयार है
आऊंगा अबकी बार तो ढेरों खिलोने लाऊंगा
कुछ दिन अपने बच्चो के संग गाँव में बिताऊंगा
कहना पापा इस बार रण के किस्से सुनाएगे
वीरगाथाएं सुनकर वीर उन्हें बनाएँगे
वो याद जब मुझको करे
उन्हें प्रेम से समझाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना

तुमसे कहू क्या? तुममे बसते मेरे प्राण है
तुम प्रेयसी हो मेरी इस बात पर अभिमान है
जब तक जियूँगा मन में तुम्हारे प्रेम का राज होगा
मन के हर गीत में तेरे प्रेम का विश्वास होगा
गर लौटकर ना आऊं तो मेरी याद में रोना नहीं
शहीद की विधवा रहोगी ये मान तुम खोना नहीं
मांग का सिंदूर ना पोछना मेरे बाद में
मैं सदा जिन्दा रहूँगा तुम्हारी हर इक याद में
उम्मीद की राहें सजाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना …….

Poem ID: 11

Poem Title: क्या देश है मेरा
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: March 8, 2012
Poem Submission Date: July 19, 2012 at 11:36 am

Poem:

वाह क्या देश है मेरा,
और क्या खूब हैं इसके नेता,
जिसने खेला नहीं आज तक गिल्ली-डंडा,
वो है यहाँ खेल मंत्री,
जिसने घिस घिस के की अपनी पढाई,
और वो है रेल मंत्री|

संतरी बनने को मांगे पोस्ट ग्रेजुएट
और मंत्री की पूरी नहीं यहाँ ग्रेजुएट,
जो दिन रात कमाता है,
उसका खून चूस लेते हैं टैक्स से,
और जो आराम से खाता है,
वो आलसी हो जाता है रिलेक्स से |

काम करने का मन तो इनता तब होता है,
जब उस काम के लिए इनका कोई अपना रोता है,
भूल जाते हैं ये की ये हमारी बात सुनने के लिए आता हैं,
और हम भी जानते हुए हर बार बस इन्हें ही बुलाते हैं,

यहाँ साथ देने को कोई राज़ी नहीं,
और लड़ने के लिए पकड़ लेते हैं जाति-धर्मं का छोर,
हम भी करते हैं गलती,
पर सामने वाले को कहते हैं चोर,
वाह क्या देश है मेरा |

Poem ID: 12

Poem Title: “सबसे प्यारा-न्यारा हिंद है”
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 20, 2012
Poem Submission Date: August 16, 2012 at 5:37 pm

Poem:

“सबसे प्यारा-न्यारा हिंद है”

इस अंजुमन में गुलजार जिस्म का हर चिराग हिंद है ,
रूह पे ओढे हुए वतनपरस्ती का हर लिबास हिंद है !
बहती है वतनफरोशी इबादत की तरह यंहा हर लहू में ,
दिलों पर लिखी पावन इबारतों का कलाम हिंद है !

है हमारे खून का कतरा-कतरा रंग तिरंगा,
और जिस्म का अंश -अंश हिंद है !
बारोह माह देशप्रेम का मौसम यंहा एक सा,
धरती पर खुदा का बेमिसाल कमाल हिंद है !

है तिरंगा अहद हमारी आन के स्वर्णिम गौरवगाथा की,
पारवानावार देशभक्त यंहा हर आग का नाम हिंद है !
मकिने दिल शाने-भारत ,क्रांतिवीरो की मिट्टी ,
इस गुलिस्तान की आबोहवा का श्रंगार हिंद है !

पढ़ती है शहीदों की चिताएं भी हिंद्प्रेम के गीत यंहा,
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई कौम का हर सिंह हिंद है !
पैदा होता है हर हिन्दुस्तानी सरफरोशी की तमन्ना लिए,
वतन पर मर मिटने वाले सीनों का फौलाद हिंद है !

मिलती है इस चमन की खुशबुएँ भी गले अमलन,
इस मुल्क की मिट्टी-तरु-फूल-प्रस्तर तक हिंद है !
इसकी हिफाजत में शौक से कट जाते है लाखो सर यंहा,
आजादी के रंगरेज मतवालों का पैगाम हिंद हैं !

डोला मुगलों-अंग्रेजों का सिहासन जब हमने हुंकार भरी ,
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मर्दानी सिह्नाद हिंद है !
लिखा टीपू की बेखौफ तलवार ने स्वर्णिम अध्याय ,
छत्रपति शिवाजी और महराणा प्रताप का अमुल्य बलिदान हिंद है

पाशमुक्त भारत मस्ताने मंगल पांडे के बलिदानों की अमर कहानी है ,
वीर भगतसिंह के अमूल्य त्याग की अमरज्योति का प्रकाश हिंद है !
लाल-बाल-पाल ने दिया हमे स्वराज्य का मौलिक अधिकार ,
लौहपुरुष बल्लभभाई की लौह दृढ़ता का अंजाम हिंद है !

कर गए परिपाक गांधी-नेहरु-अम्बेडकर संविधान की जड़े,
अनगिनत हाथों की लकीरों में लिखी भाग्यलिपि हिंद है !
हिंदफौज के पुरोधा युगांतरवीर बोस बाबू फक्र है इसका ,
अथक अमरवीर चंद्रशेखर की अमर आजाद उड़ान हिंद है !

महाकवि गुरुदेव ने राष्ट्रगान से उलगुलानों में फूंका प्राण,
बंकिम जी के कालजयी राष्ट्रगीत का अतुल्य योगदान हिंद है !
किया बिस्मिल ने अखंड सरफरोशी से घात हिंद के दुश्मनों पर ,
जन-गण-मन, वन्देमातरम की अभ्यर्थना का इन्कलाब हिंद है !

विद्यापीठ तक्षशिला-नालंदा से ज्ञानगुरु हिंद ने दिया विश्व को ज्ञान,
आर्यभट्ट का विश्व को जीरो का अमूल्य दान हिंद है !
भाषाई सम्राट संस्कृत से लिया एटम ने अणु का नाम,
अलजेब्रा त्रिकोणमिति,केलकुलस का जन्मस्थान हिंद है !

आयुर्वेद के जनक भारत ने किया विश्व कल्याण ,
पृथ्वी की रवि परिक्रमा का खगोलीय अनुमान हिंद है !
पाई के मूल्यांकन का गणितशास्त्र का इतिहास है विश्व प्रसिद्ध ,
मार्यादा ,परम्परा ,संस्कृति की भव्यता का धाम हिंद है !

है गिरिराज हिमालय प्रहरी और माँ गंगा इसकी प्राण है,
कश्मीर से कन्याकुमारी का स्वर्गीय विस्तार हिंद है !
ऋषि-मुनिओं की तपोभूमि ,देव-देविओं की जन्भूमि भारत ,
देवल-दरगाह-चर्च-गुरुद्वारों के मुव्वहिद का उदगार हिंद है !

हल जोतता हलधर इस मातृभूमि की शान है ,
सरहद पर तैनात वीर जवानों का स्वाभिमान हिंद है !
खेल के मैदानों पर उठाते है इसे अपने शानो पर खिलाड़ी ,
होली-ईद-दीवाली-रमजान त्योहारों का सौहाद्र हिंद है !

लोकतंत्र है राष्ट्रधर्म यँहा हर हिन्दुस्तानी का ,
बहु धर्मी-भाषा-जाती-अनेकता में एकता की मिशाल हिंद है
है सत्यमेव जयते मूल मन्त्र हमारी न्याय व्यवस्था का,
जम्बूद्वीप,अजानभदेश,सोने की चिड़िया सब नाम हिंद है

नेस्तानाबूद कर दे अरि मंसूबों को, तरेरे जो तुझ पर नजरे भारत,
हवादिस आतंक से लड़े मिल के निसिबासर, हम बेखौफ हिंद है !
गर है दहशतगर्दो के पास असलाह-गोला-धोखा-बारूद,
तो हमारी जिरहंबख्तर के अंगार का उबाल हिंद है !

खौफजदा लाडो की आँखे ,बेनूर हो रहा नन्हा बचपन
कैसे हम इस मुर्दापन सी निष्ठुरता में जीवित हिंद है
वह कौन निशाचर जला रहा जो दंगों की भट्टी पर भारत
उसे रौंदने को फड़क रही भुजाएं और हिय में भूचाल हिंद है

भ्रष्टासुर लील रहा धीरे-धीरे नोच-नोच माँ भारती को
क्यों शमशानी चुप्पी से तू जडवत खामोश हिंद है
न बना वफादारी को किसी धर्म-रंग-जात-वर्ग-पार्टी का टट्टू
तेरे देशप्रेम और कुर्बानी का आज इम्तिहान हिंद है

अब वक्त नहीं रहा बन्दे चुप्पी बन सहने का
तेरे सत्याग्रह की आहुति के महाव्रत को बेताब हिंद है !
कितने काले सूरज और उगेंगे, कितने मटमैले डूबेंगे चाँद
तुझसे एक नई उजियारी सुबह के आमद को पूछ रहा हिंद है !

अकीदत रहे हर भारतवासी को अर्जमंद आर्यवत इतिहास की,
मातृभूमि की रक्षा को उठने वाली हर प्रतिकार हिंद है !
आओ खत्म करे सरहदे बैर-भाव,मजहबों की दीवार की ,
बजसिन्हा नव भारत के स्वपन को,मेरा मुश्ताक हिंद है

अब घायल इंडिया बेटी-भ्रूण ह्त्या -बलात्कार-कुपोषण-घोटालों के घावों से,
जगा जमीर के तेरे मेहनतकश हाथों में अब इंतजाम हिंद है !
सिमट न रह जाए भारतप्रेम पंद्रह अगस्त-छब्बीस जनवरी की तारीखों तक,
सौगंध तुम्हे नव भारत निर्माण की, कह्कशों में लिखो लहू से “सबसे प्यारा-न्यारा हिंद है” !

Poem ID: 13

Poem Title: गा गौरव गान देश का
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: April 1, 2013
Poem Submission Date: July 24, 2012 at 9:08 am

Poem:

गा गौरव गान देश का,
दे आहुति प्राणो की, कर रक्षा
बड़ा मान देश का,
गा गौरव गान देश का|

आँखो मे हो अंगार
शोले भरे हो दिल मे,
ऐसा कुछ हो प्रहार
दुश्मन जा छिपे बिल मे,
प्राण तेरे खुद के लिए नही
दे! उधारा सामान देश का,
गा गौरव गान देश का|

करो याद उन्हे,
जो देश तुम्हारे हवाले कर गये थे
तुम करो हिफ़ाजत इसकी,
ऐसा दम भर गये थे
मिली जो पोशाक प्रहरी की
पूरा कर कर्म वेश का
गा गौरव गान देश का |

पवित्र गंगा-यमुना ने,
तुझको सींचा है
तेरे लालन पालन को,
विशाल धरातल खींचा है
वो आँचल मा का
समेटे दुख घनेरए है
हो खड़ा, बन सहारा
कर निपटारा उसके क्लेश का
गा गौरव गान देश का|

तू चंचल, तू चिंतित क्यूँ है,
खड़ा तेरे सात सारा देश,
तू वीर सपूत, वीर पुरुष,
सबल-सुफल तेरा वेश,तू
रक्षक है तिरंगे का
खा कसम,
ये बने ना कभी निशाना किसी द्वेष का,
गा गौरव गान देश का,
दे आहुति प्राणो की, कर रक्षा
बड़ा मान देश का,
गा गौरव गान देश का|

Poem ID: 14

Poem Title: कविता को बुनने का आधार कैसे दूं
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 13, 2011
Poem Submission Date: July 24, 2012 at 1:07 pm

Poem:

“ कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ? ”

दिल की संवेदनाओ को मैं मार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?
पथ भ्रष्ट हो गया, पथिक भ्रष्ट हो गया,
गाँधी और सुभाष का ये राष्ट्र भ्रष्ट हो गया,
चंद रुपयों को भाई भाई भ्रष्ट हो गया,
जगदगुरु- सा मेरा देश भ्रष्ट हो गया..
राम राज्य लाने वाली सरकार कैसे दूं?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

भ्रष्टाचार की खातिर शत्रु सीमा से सट जाते हैं ,
बुनियादी आरोपों से अब संसद तक पट जाते हैं ,
मानचित्र में हर साल राज्य बट जाते हैं,
भारत माता के कोमल अंग कट जाते हैं..
इस अखंड राष्ट्र को आकर कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

आरक्षण विधान कर नेता यूँ सो जाते हैं,
मेहनतकश बच्चे खून के आंसू रो जाते हैं,
कर्म करते -करते कई युग हो जाते हैं,
कलयुग के कर्मयोगी पन्नो में खो जाते हैं,
कृष्ण ने जो दे दिया वो सार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

माँ अपने बच्चे को ममता से सींच देती है,
मंहगाई की मार गर्दनें खीच देती है,
रोटी के अभाव में माँ बच्चा फेंक देती है,
फिर भी पेट ना भरा तो जिस्म बेच देती है,
इस पापी पेट को आहार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

एक लाठी वाला पूरी दुनिया पे छा गया,
दूजा सत्ताधारी तो चारा तक खा गया,
चम्बल के डाकुओं को संसद भी भा गया,
शायद जीत जायेगा लो चुनाव आ गया,
ऐसे भ्रष्ट नेता को विजय हार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

तिब्बत चला गया अब कश्मीर चला जायेगा ,
यदुवंशी रजवाड़ों में जब बाबर घुस आएगा ,
देश का सिंघासन चंद सिक्कों में बँट जायेगा ,
तब बोलो भारतवालो तुम पर क्या रह जायेगा ?
आती हुई गुलामी का समाचार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

सीमा के खतों में हिंसा तांडव करती है,
सूनी राखी देख कर बहिन रोज़ डरती है,
नयी दुल्हन सेज पर रोज़ मरती है,
और बूढी माँ की आँखें रोज़ जल भरती है,
माँ को बेटे की लाश का उपहार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

आज के भी दशरथ चार पुत्रों को पढ़ाते है,
फिर भी चार पुत्रों पर वो बोझ बन जाते है,
कलयुग में राम कैसे मर्यादा निभाते है ?
राम घर मौज ले और दशरथ वन जाते है,
ऐसे राम को दीपों की कतार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

मानव अंगों का व्यापार यहाँ खिलता है,
शहीदों के ताबूतों में कमीशन भी मिलता है,
बेरोज़गारों का झुण्ड चौराहों पे दिखता है,
“फील गुड” कहने से सत्य नहीं छिपता है,
देश की प्रगति को रफ़्तार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?

सादर: अनन्त भारद्वाज

Poem ID: 15

Poem Title: Wonderful nation
Genre: Other
Poem Creation Date: July 26, 2012
Poem Submission Date: July 26, 2012 at 6:57 am

Poem:

I ponder, that I know;
those borders are’nt lines
on a map tucked aside.
It has meaning, it’s a mark.
Into the nation, we are told,
we fall in as a loyal one.
We are bound to come to
make this land proud.
How could I fail
to understand the trail
where no one was namesake
and the substance was real.
Those colors on the flag
aren’t just art of hands
but a symbol of what for
this nation stands.
So varied, so unique,
the world had so much
to learn from this land,
like a stream flowing grand.
With a culture to feel
that it dawns, it reveals,
and the people fortunate
they were fed from this plate.
This is my homeland,
my dear motherland.
For every reason to say
my great fortune today.

Poem ID: 17

Poem Title: ऐसी होली
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 27, 2012
Poem Submission Date: July 29, 2012 at 8:25 am

Poem:

“ऐसी होली खेलो लाल, ऐसी होली,
लेकर कराल करवाल , सुख का मंगल तिलक करो लाल|
ऐसी होली खेलो लाल, ऐसी होली |

जन्मभूमि का ऋण चुकाने को , सुख का मंगल तिलक करने को,
माता की आरती पुकारती , तेरे खड़ग उस दीप की बाती,
तुम स्वतन्त्रता के रक्षक हो, मुक्ति विरोधी के भक्षक हो,
लेकर कराल करवाल , माता का मंगल करने को लाल |
ऐसी होली खेलो लाल, ऐसी होली |

राष्ट्र हित में युद्ध करने को, धर्मराज को लाने को,
लाल, माँ तुझको पुकारती ,करवाल पकवान तुझको लाती|
लेकर कराल करवाल ,सुखदायी प्रलय को लाओ लाल |
ऐसी होली खेलो लाल, ऐसी होली |

खेलेगी माँ सिन्दूरी होली, नारी तेरी ही सिन्दूर की होली,
गूंजेगी माँ तेरे अमरत्व की बोली, सजने दे माँ हमरे प्राणों की डोली,
लेकर कराल करवाल , रक्त होली में हो जाओ निहाल |
ऐसी होली खेलो लाल, ऐसी होली |

फिर ना आयेगी लाल ऐसी होली, खेलेगी संग दुश्मन की टोली,
हंस पड़ेगी माँ देख सूरत भोली, ” हमरे प्यारे सुत हो तू “माता बोली |
ऐसी होली खेलो लाल, ऐसी होली |”

“परदेसी भी खेलो तुम ऐसी होली, तेरे आत्मा की बेड़ी ऐसे खोली,
आएगी माँ देख अब ऐसी होली,माँ अब तक तूने बहुत है रोली,
लेकर कृपाण पिचकारी आज, स्वाभिमान का लायेंगे ताज|

ऐसी होली खेलेंगे , हम ऐसी होली,
तेरे दुखों को हम हरने को, तेरी मंगल हम करने को,
लेकर कराल करवाल , शोभित करेंगे माँ तेरी दिव्य भाल |
ऐसी होली , हाँ माँ ऐसी होली |”

Poem ID: 18

Poem Title: आज़ादी
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 30, 2012
Poem Submission Date: July 30, 2012 at 7:15 pm

Poem:

एक पाती
भीग गया हूँ नेह मेह से , तेरे धागे के स्नेह से
सजा हुआ है ये कलाई पर , स्म्रतियां कर गयी अंतर तर
नन्ही गुडिया सी तू मन में , वही छवि जो थी बचपन में
तू मेरी बहना है प्यारी ,अब तो तेरे कन्धों पर ही छोड़ चला हूँ ज़िम्मेदारी
मोर्चे से उठ रही पुकार , दुश्मन रहा हमें ललकार
क़र्ज़ दूध का चला चुकाने , आज़ादी के गा तराने
ठान लिया है में सीमा से ,दुश्मन को मार भगाऊंगा
सफल नहीं हो सका यदि ,सीने पर गोली खाऊंगा
आंच न आने दूंगा में ,भारत माँ की आन पर
हँसते -हँसते ओढ़ तिरंगा , खेल जाऊँगा जान पर

Poem ID: 19

Poem Title: आखिर…कब…?
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 31, 2012
Poem Submission Date: July 31, 2012 at 11:16 am

Poem:

आखिर…कब…?
कब करवट लेंगे हिंद पुत्र, कब भारत माता बोलेगी ,
कब छोड़ रूप धरती का वह, शिव बन त्रिनेत्र को खोलेगी ?
कब गूंजेगा फिर अट्टहास, अम्बर में क्रोधित भारत का ,
कब चमकेगा फिर से फरसा, नभ में अरिदल संहारक का ?
क्या इसी तरह से छले हुए, बस शांति गीत ही गाएँगे,
या फिर अर्जुन की भांति नया, करतब कोई दिखलाएँगे ?
क्या तेरे कर्णों से अछूत है, माता की दारुण पुकार,
या देख न पाया तू भारत के, मस्तक पर शोणित की धार ?
फिर क्यों ब्रह्मा बन संबंधों का, सृजन कर रहा बार-बार,
बन रूद्र, आज, अरि की भू पर, तू उगल हलाहल एक बार |
जो ग्रीवा ग्रास हो खड्गों का, उसको न शोभती मालाएँ,
फिर कैसी सोच,कृपाण चला, तब सब मिल जन गण मन गाएं |
कर निश्चय मन में पुनः वीर, हम चन्द्रगुप्त बन जाएंगे,
पश्चिम में फिर अफगान तलक, भारत का ध्वज फहराएंगे |
कवि –
ज्ञानेश चन्द्र त्रिपाठी
विश्वशांति गुरुकुल वर्ल्ड स्कूल
राजबाग , लोनी कालभोर
पुणे (महाराष्ट्र) – 412201

Poem ID: 21

Poem Title: प्यारा भारत
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 22, 2012
Poem Submission Date: August 29, 2012 at 2:47 pm

Poem:

भारत ही है जान हमारी
भारत से है शान हमारी
क्यूँ ना हो ये हमको प्यारी
यही तो है माँ हमारी

हमारे रग राग मे है
सुंदर सौम्य भारतीय संस्कार
जिसकी मिसाल देती
पूरी दुनिया बारंबार

Poem ID: 22

Poem Title: “मिली नहीं है आज़ादी हमको यूँ ही दान”
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 1, 2012
Poem Submission Date: August 3, 2012 at 4:44 pm

Poem:

“मिली नहीं है आज़ादी हमको यूँ ही दान”

मिली नहीं है आज़ादी हमको यूँ ही दान
इसके लिए लुटा दिए लोगों ने प्राण
सबके अन्दर गूंज रहा था मुक्ति का जयघोष
लाजपत,गोखले ,तिलक व् सुभाष चन्द्र बोस
तब जाकर पाया हमने सुखमय ये परिणाम
इसके लिए लुटा दिए लोगों ने प्राण .
भटके वन -वन प्रताप पर मांगी नहीं दुहाई
नन्हें से बालक ने उनके घास की रोटी खाई
शिवाजी ने मराठों को एक डोर से बांधा
पाया लक्ष्य उन्होंने,जो था मन में साधा
बड़ी कठिनाई से पाया देश ने खोया मान
इसके लिए लुटा दिए लोगों ने प्राण.
आज़ादी की नींव में दबे बड़े हैं मोती
दुर्गावती ,लक्ष्मीबाई ,चेनम्मा हैं सोती
बनाई योजना क्रांति की कर दिया आगाज़
गूंजी नाना ,तात्या टोपे ,कुंवर की आवाज़
आन्दोलन नेत्रत्व हेतु शाह जफर का नाम
इसके लिए लुटा दिए लोगों ने प्राण
रोटी फूल कमल का विद्रोह का निशान बना
संघर्ष के लिए ३१ मई सन .७५ का दिन चुना ,
आज़ादी की ज्वाला ने सबको लिया लपेट
बैरकपुर ,मेरठ ,दिल्ली ,कानपूर समेट
की नहीं परवाहअपनी जला दिए अरमान
इसके लिए लुटा दिए लोगों ने प्राण .
आज़ादी की बलिवेदी पर करोड़ों हैं शीश चढ़े
माला में इसकी राम ,अशफाक ,भगत जड़े
स्वतन्त्रता संग्राम में साथ लड़े नर-नारी
दुर्गा भाभी ,भिकाजी कामा,अरुणा आसफ अली
बापू ,टैगोर ,बंकिम चंद लम्बी है दास्तान
इसके लिए लुटा दिए लोगों ने प्राण .

Poem ID: 23

Poem Title: ठहरा हुआ है वक्त सदियों से अब तो बदलना होगा ….
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 25, 2012
Poem Submission Date: August 4, 2012 at 6:24 pm

Poem:

ठहरा हुआ है जो वक्त सदियों से, अब तो बदलना होगा

जल पड़ी चिंगारी को और सुलगना होगा………………
बुझती राख के ढेरों को शोलों में बदलना होगा……….
उबालो ज़रा लहू बदन का, थामों मशालें हाथों में
ठहरा हुआ है जो वक्त सदियों से, अब तो बदलना होगा

फिर किसी गाँधी की आँखों में ख्वाबों को पलना होगा
फिर किसी दधिची की हड्डियों को गलना होगा……
वक्त नहीं श्रृंगारों का, पथ है अंगारों का……………..
चलना होगा जलना होगा, जलना होगा चलना होगा

जब तक प्राण रहे शरीर में, ये ज्योत जलानी है…………………
बहुत हुई मनमानी, लिखनी अब नयी कहानी है………………..
जम गया लहू तुम्हारी नसों का या अब भी इसमें रवानी है…….
आओ देखें ज़रा इन ज़वान जिस्मों में, कितना खून है, कितना पानी है

प्राण रहे जिस्म में या इस दहलीज़ पे माथा फूटे……
देश हित की रक्षा में निज हित छूटे तो छूटे
हाथ रहे हाथों में प्रेयसी का या वादा टूटे
वृक्ष हुआ पुराना अब जरा इसमें नव अंकुर फूटे
बुनियादें तो हिली है कई बार, अब जरा ये दीवार टूटे
अब न कोई गद्दार बचे, अब ना ये वतन लूटे……….
साँसों से चाहे नाता टूटे, हाथो से ना तिरंगा छूटे….

अँधेरे कितना भी ताण्डव कर ले, सूरज को निकलना होगा
कितना भी शोर मचा ले तूफाँ, मौसमों को बदलना होगा
दौर नहीं मयखानों का, साकी का, जामों का, पैमानों का
वक्त है पुकारों का, गीत गूँजे जयकारों का
काँप उठे जर्रा जर्रा, देश के गद्दारों का
दौर नहीं फनकारों का, वक्त नहीं श्रृंगारों का
गीत गुँजे जयकारों का, शोर उठे ललकारों का
ठंडी पड़ी शिराओं का लहू उबलना होगा
फिर किसी भगत राजगुरु आज़ाद को घर से निकलना होगा
ठहरा हुआ है जो वक्त सदियों से, अब तो बदलना होगा

हो रहा चीरहरण अपने ही मौलिक अधिकारों का
बेमोल बिकते व्यर्थ शब्दों के व्यापारों का
अनगिनत सपने, अगणित इच्छाएँ,
असीमित आकांक्षाएँ, असंख्य महत्वाकांक्षाएँ
राष्ट्रप्रेम की ज्वाला में अरमाँ सब दलना होगा
वक्त नहीं श्रृंगारों का, पथ है अंगारों का………
चलना होगा जलना होगा, जलना होगा चलना होगा
ठहरा हुआ है जो वक्त सदियों से, अब तो बदलना होगा

बहुत हुआ अपना अपना घर बार, माँ का प्यार दुलार
देश के बेटों अब तो घर से निकलना होगा
जल पड़ी चिंगारी को और सुलगना होगा
बुझती राख के ढेरों को शोलों में बदलना होगा……….
ठहरा हुआ है वक्त सदियों से, अब तो बदलना होगा

दिनेश गुप्ता ‘दिन’

Poem ID: 24

Poem Title: मिट्टी की महक
Genre: Shant (peaceful)
Poem Creation Date: August 9, 2012
Poem Submission Date: August 25, 2012 at 1:18 am

Poem:

धर्म-ग्रन्थ, मन्त्र-यंत्र, लोक-तंत्र में सदा निहित रहे…
दान-पुण्य, धन-चमन इस भुवन में सदा फलित रहे |
देश-भक्त की जन-हित आशा, भू पर सदा तपित रहे,
मात्री-भूमि की शौर्य-विलासा, मन में सदा गठित रहे !

विराट जन जो शास्त्र को सर्वदा नकारते,
विज्ञान के प्रकाश में धर्म-ज्ञान ताड़ते !
राम-कृष्ण के कथा क्या काल्पनिक हैं ?
आवें! आर्यावर्त के इतिहास को पुकारते…

ग्रन्थ हो कुरान का या हो ये बाइबल…
इतिहास है गवाह इनके आस्तित्व की
फिर क्यों न शोध हो रहे वेद-ज्ञान की
गीता और रामायण-सी महा-काव्य की !

हर पौराणिक काव्य की कुछ तो जड़ें हैं
राम की साम्राज्य की हर तथ्य गड़े है…
आवो कोई विज्ञान की तलवार से कुरेदें
जो सत्य शिव है, तो नग्न अक्ष से देखें !

महाभारत का संग्राम के तथ्य आकार विहीन
वेदों में वर्णित दृष्टी के वेग के आयाम विलीन
गीता के आध्यात्म वाण के सारे गान निर्बोध,
धरती अपनी महक रही पर अंग रहे सब थोथ !!

हर प्राथमिक कक्षा की पुस्तक में यह बतलाओ,
अगर कृष्ण के वंसज हैं, तो हमको ज्ञात करा दो,
इस हिंदुस्तान की भूमि पर हुए अवतार अनेको,
हमें राम, कृष्ण की नगरी का इतिहास बता दो !!

मस्जिद, गिरजे सबको हमने खूब संवारा है,
परमहंस और साईं जी को दिल में उतारा है…|
मदर टरेसा, राष्ट्रपिता का विश्व में काया है,
फिर क्यों? आखिर क्यों??
मिट्टी की महक को हमने भांफ न पाया है !

आओ शोध करें हम देश की सुखी जर्जर मिट्टी में
हर सच्ची खोजों को डालें इतिहासों की गुच्छी में…!
विज्ञानों की पुस्तक में कुछ धर्म की बातें भी होती,
तो बचपन से ही राम-रहीम की शंका मन में न होती !!

— प्रभात कुमार (Prabhat Kumar)

Poem ID: 25

Poem Title: भारत देश है अपना
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 8, 2012
Poem Submission Date: August 11, 2012 at 9:38 am

Poem:

हम भारतीय और भारत देश है अपना
स्वतंत्र रहना हर भारत वासी का सपना
भारत देश है जन्नत अपना
जहाँ धरा हरी और नीला अम्बर है अपना

वीरों से भरा ये भारत देश है अपना
जो हो जाते हैं कुर्बान पूरा करने में माँ का सपना

आये बाधा कितना हूँ पूरा करने में माँ का सपना
पर करते हैं वीर वो पूरा माँ का हर एक सपना

भगत सिंह और बोस आजाद ने दिया बलिदान है अपना
तब हुआ है स्वर्ग सवतंत्र भारत देश ये अपना

भूले नहीं हैं अभी भी हम सब कर्तब्य ये अपना
भ्रष्टता की जंजीरों से भारत माँ को है आजाद कराना

कहने को आजाद हैं हम पर कुछ होता नहीं अधिकार है अपना
क्योंकि भ्रष्टता के जाल में जो फँस गया है देश ये अपना

आओ अब से भी जग जाएँ कही बिक न जाये देश ये अपना
जिसे गर्व से कहते हैं हम सब सोने की चिड़िया देश है अपना

Poem ID: 26

Poem Title: ‘देश के नौजवानों के लिए’
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 6, 2012
Poem Submission Date: August 11, 2012 at 3:00 pm

Poem:

आन, बान,अस्मिता लिए लड़ीं लड़ाईयां,
नौनिहालों शौर्य की सुन लो वो कहानियाँ,
जय भारती जय वीरभूमि जय –2 |
ललकारी थीं माँएं बहने अपनी आँख के तारों को,
सौंपके स्वर्नाभूषण चाँदी मंगल गले के हारों को,
स्वाभिमान का समर ढहाएं कटुता की दीवारों को,
कर में तिलक लगा पकडायीं दुधारी तलवारों को.
मातृभूमि के लिए होम हर कौम ने दीं जवानियाँ,
नौनिहालों शौर्य ……….जयभारती…….|
मुल्क मराठा जूझा था मुगलों के अत्याचारों से,
वतन परस्ती का जज्बा भर मतवाली हूँकारों से,
सत्ता छीन हुकूमत की गोरी शुरमेदारों से,
हिला दीं चूलें शूरवीरों ने इन्कलाव के नारों से,
शेर शिवाजी राणा प्रताप ने दीं अपनी कुर्बानियाँ,
नौनिहालों शौर्य …………जय भारती…….|
मनमानी की थीं अंग्रेजों ने जलियाँ वाले वाग में,
हल्दी घटी में राजपुताना आयुद्ध था उन्माद में,
कूदीं हजारों पद्द्मिनियाँ जौहर होने को आग में,
कई मिसालें गौरव की इस माटी की नाभि में,
वफादार चेतक की रण में चौकड़ी कलाबाजियाँ,
नौनिहालों शौर्य ……….जय भारत ………|
सर पे बांध तिरंगा सेहरा जाबांजी दिखलाई थी,
सीने पे जाने कितनी गोली दीवानों ने खाई थीं,
देख दीवानगी वीरों की ये धरती भी थर्राई थी,
प्राण दुलारों की आहुति पे ये आज़ादी पाई थी,
खेल खून की होली तोड़ी परतंत्रता की बेड़ियाँ,
नौनिहालों शौर्य……..जय भारती……,,|
लहर-लहर लहराये केसरिया शान से अभिमान की,
महाप्रसाद ये स्वतंत्रता का वीरों के बलिदान की,
ऋण तभी चुका पायेगा भारत होठों के मुस्कान की,
छाती से लगाये रखना थाती पुरखों के सम्मान की,
चैन की बंशी बजा के सोती आज़ादी चादर तानियाँ,
नौनिहालों शौर्य ……..जय भारती ……|

Poem ID: 27

Poem Title: आओ मिलकर राष्ट्र बनाए………………..
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 25, 2012
Poem Submission Date: August 12, 2012 at 7:23 am

Poem:

आओ जीवन अर्पण कर हर क्लिष्ट पथ सरल बनाए
उत्तर हिम को दक्षिण सिन्धु से मिलाये
चाहे पथ अति दीर्घ हो हर क्षण आगे बढ़ते जाये
पश्चिम बालु को पूरब वन से सजाये
हर जन कण को एक ही मंत्र में पिरोये
अप्रतिम सुरम्य राष्ट्र के सपने संजोये
समग्र भूतल व्योम को एक घर बनाए
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए………………..

२. प्रबल शौर्य भाव से आगे बढ आये
ह्रदय पीड़ा को घोल कर पि जाये
जब- जब धरती पर अधर्म का वास जड़ बनाए
नर नारायण बन कर उसे सम्पूर्ण मिटाए
आओ डील -डोल को सुगठित धड बनाए
प्राचीन विद्या पुंज के तेज को फिर बढ़ाये
सिंह के गर्जन की भाँति गाज गिराए
राष्ट्र के हर शत्रु को धुल चटाए
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए……………….

३. जब तक देह में प्राण लहु संचार बनाए
हर लहु बूंद को राष्ट्र पर बलि चढ़ाये
जब तक स्वयं अभिमान प्रेरणा स्त्रोत बनाए
ज्वाला को भी नीर की शीतलता से मिटाए
जब तक जननी की हर दुआ काम आये
अचल वीर हो राष्ट्र के लिए मिट जाये
जब तक गंगा निर्मल जल पाप कुकर्म मिटाए
अविरल अविराम हो राष्ट्रहित मर जाये
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए…………………

४. नाद ब्रह्म को कण तन में अनुभूत कराये
आतंक संत्रास भाव को प्रेम गरल पिलाये
चन्द्र तारत दीप्ति को श्रद्धा सार बनाए
द्वेष मालिन्य डाह को प्रणय राग सुनाये
इक ओंमकार सूत्र से जीवन अलंकृत कराये
उन्माद कट्टरपन को प्रीति द्दश्य दिखाए
यग्न अग्नि तपिश से ह्रदय मन तपाये
नीतिविस्र्द्ध अधर्म से वात्सल्य गान गवाए
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए……………………
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए……………………

Poem ID: 28

Poem Title: कौन रखेगा याद मुझे
Genre: Other
Poem Creation Date: August 13, 2000
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 12:22 am

Poem:

कैसे मनाऊं मैं आजादी,
अभी आजाद होना बाकी है
अभी आजाद होना बाकी है।

रूठने को तैयार पूर्वांचल,
कटने को तैयार कश्मीर।
हर तरफ है मुंह फैलाया,
सांपों का जंजाल यहां।
कितने हैं अभी भूखे नंगे,
उसे पूरा करना बाकी है।

लूटती है हर रोज,
यहां सैकड़ों पायल।
कितने ही दुल्हन की चूड़ियां,
होती हैं घायल।
गिरते पड़ते लोगों को,
सुरक्षा देना बाकी है।

फैल गया है समाज में,
धर्म और मजहब की बात।
राजनीति में भी आ गया,
जाति और वंशवाद।
इन सभी को अभी,
उखाड़ फेंकना बाकी है।

दोस्ताने व्यवहार ने दी,
कारगिर की चढ़ाईयां।
झेली है हमने,
एक दशक में तीन लड़ाइयां।
कितनी लड़ाइयां,
अभी और झेलना बाकी है।

कारवां गुजर गया,
साथ हो के विदेशी।
साथ लेकर अब चलें,
हर चीज स्वदेशी।
काम करना है अभी सभी,
जो करना बाकी है।
फिर मनाऊंगा मैं आजादी,
पूर्ण आजादी बाकी है।
पूर्ण आजादी बाकी है॥

Poem ID: 29

Poem Title: हिंदुस्तान
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: August 15, 2011
Poem Submission Date: August 13, 2012 at 1:43 pm

Poem:

हिंदुस्तान
हमने कब तुमसे तख़्त ताज,
और सम्मान माँगा था |
हम सबके सपनो में बसने वाला ,
एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था|
नाही तो हिन्दू और नाही,
मुस्लमान माँगा था |
हमारी सरहदों पर मिटने वाला,
बस एक सच्चा जवान माँगा था |
इंसानियत को रुसवा कर दे,
कब ऐसा इंसान माँगा था |
हमने तो केवल भगत सिंह जैसा,
एक सच्चा सपूत महान माँगा था |
तुम्हारे सियासी दंगों से बनने वाला,
कब वो मनहूस कब्रिस्तान माँगा था |
हम सबके सपनो में बसने वाला ,
एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था|
सबको भोजन, मुफ्त शिच्छा,तन पर कपड़े,
और चेहरों पर मुस्कान माँगा था |
हमने बस तुमसे भ्रस्टाचार मुक्त,

एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था |
पले सत्य बढे विश्वास,
नित – नित जीवन हो आसान |
सबको लेकर चलने वाला,
वह तरुण नौजवान माँगा था|
सबके हाँथो से गढ़ने वाला,

एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था|
शायद तुम कभी समझ भी न सको,
की हमने तुमसे कैसा इमान माँगा था |
क्या यही है वह देश जैसा तुमसे,
हमने अपने सपनो का हिंदुस्तान माँगा था|

प्रस्तुति-
संजय सिंह “भारतीय”

Add a comment