Poem ID: 167
Poem Title: Sainik ki Atam Katha
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 28, 2012
Poem Submission Date: October 6, 2012 at 1:53 pm
I have no devnagiri font but sir ihave attached my Poem with PDF, Pls accept it
Thanks
Poem ID: 168
Poem Title: वो मेरे सपनो का भारत . . .
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: October 6, 2012
Poem Submission Date: October 6, 2012 at 5:57 pm
जो विश्व शांति की ज्योत जलाये
इस दुनिया को एक देश बनाये
जो राम – रहीम का भेद मिटाए
और सबको प्रेम नीति समझाए
हिंसा और द्वेष के पन्नों पर
लिखे जो शांति की इबारत
वो मेरे सपनों का भारत . . .
जो देश जहां को प्रेम सिखाये
नफरत की दीवार मिटाए
बड़े प्यार से पाले सबको
यूँ ही सबकी माँ कहलाये
और जिस देश के हर कण-कण में
बन जाये एक प्रेम इमारत
वो मेरे सपनों का भारत . . .
जहां युध्द दिलों से जीते जाएँ
हथियार कोई भी काम न आयें
जहां जीवन में कोई न भय हो
और कोई किसी से न घबराएँ
जहां हर दिल में बस प्रेम बसे
और प्रेम हो हर इंसान की चाहत
वो मेरे सपनों का भारत . . .
वो मेरे सपनो का भारत . . .
Poem ID: 169
Poem Title: नवरस भारत
Genre: Other
Poem Creation Date: October 6, 2012
Poem Submission Date: October 6, 2012 at 7:26 pm
नौ रसों का मेलन,
है देश हमारा “ए” वन |
हर रस की है इक गाथा,
अजूबा देश जहाँ भिन्नता का है सांधा |
श्रृंगार रस से ओत प्रोत,
धानी उर्वरा, पूजनीय गंगा और चोटी हिमालय की ..
अद्भुतं रस तो है नितांत,
कान्तता ताज की हो, या धर्मों के अनन्य प्रकार…
हास्य रस का छौंका भी है लगा,
कपडे जितने सफ़ेद धन
उतना ही काला करने का कमाल,
आम आदमी का एक है फलसफा, हर चीज़ का है जुगाड़…
वीर रस को ना हम भूले आज भी ये देश की मांग है,
गाँधी, भगत, सुभाष के रक्तबीज
आज भी भारत में फूंके जान है |
परन्तु आज माहौल का रस है भयंकरम
लहू से लथपथ हैं शरीर, आदमी ही आदमी को भक्षकम |
वीभत्स है हर जगह नज़ारा
हाथो में बारूद और मुख पर मुखौटा
घृणा का, हवास का, लालच का |
घिरी हु मैं रौद्र्य और कारुण्य से,
देश की स्थिति पे तैश खाऊ या भुक्त भोगियो को दया का पात्र बनाऊ,
अंततः एक रस है छुपा हुआ, जिसे करना है उजागर
शान्तं को फैलाना है हर और
भारत को स्वतंत्र बनाना है एक बार और!
Poem ID: 170
Poem Title: एक सिपाही की प्रार्थना
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: October 5, 2012
Poem Submission Date: October 7, 2012 at 4:58 am
ऐ मित्रों, भारत के पुत्रों,
वक़्त आज है फिर वो आया.
धरती माता हमें बुलाती,
चहुँ ओर संकट गहराया.
लूटेंगे सोने की चिड़िया,
अंग्रेजो ने तब थी ठानी.
तोड़ हमारा भाईचारा,
की थी गैरों ने मनमानी.
देश आज फिर से लुटता है,
अपने ही बन बैठे भक्षक.
चुन कर तुमने सत्ता सौंपी,
मान के जिनको अपना रक्षक.
देश नहीं, लालच के नौकर,
देश बेचकर खाते हैं.
जिस मिट्टी में शरण मिली,
उसमे ही सेंध लगाते हैं.
सरहद पर मैं डटा हुआ हूँ,
अन्दर के दुश्मन तुम देखो.
मगर गैर से पहले खुद के,
दुर्व्यसनों को बाहर फेंको.
तब ही इनसे लड़ पाओगे,
देश मुक्त तुम कर पाओगे.
जीवन का बलिदान मैं दूंगा,
गर ईमान बचा पाओगे.
Poem ID: 171
Poem Title: तु कैसी माँ है….
Genre: Other
Poem Creation Date:
Poem Submission Date: October 7, 2012 at 12:56 pm
तु कैसी माँ है???
जहाँ की चाँदनी रातों में मैं सोया
वहाँ के सुनहरे सपनो में मैं खोया
तेरे आँचल मे रहकर मैं
हँसा और रोया
तु कैसी भारत माता है
तु कैसी सबकी माँ है
जिसने तेरी सेवा की तुने उसको पाला
जिसने तुझे दर्द दिया
उसे भी सींचा और सनजोया
तुझे देखकर मै खुब दुखी हुआ और खुब रोया
जिसे तेरि पर्वाह नहीं
उसे भी तुने अप्ने ममता से भीगोय
तु कैसी माँ है
सब अत्याचार सहे जा रही
और कब तक तेरे कंठ से एक आह! न निकली
यह कैस प्यार है तेर
जो सबको बिगाड़ रही
तु पेट भरती है सक
प्यास भी है बुझाती
हर जरुरत तु हम सबकी पुरी है करती
पर तेरे बच्चे तेरे सन्स्करों को भुल रहे
नकल कर दुसरों की
उन जैसा बनने कि कोशीश कर रहे
पर तु खड़ी देख रही
उनके मुस्कराते चेहरों को देख
तु भी खुश हो रहि
मत कर तु इत्न प्यार हमसे
मत खोल अपनी ममता के बांधे
मत कर तु हम्से इतना दुलार
तु सबको दुध देती है
पर ये तो तेर खुन चुस रहे
वह वक्त कब आयेग जब
तु लगएगी इनके अक्ल ठिकाने
तब समझ में आयेगा
तुने क्या किया है हमारे लिए
और हमने तेरे लिये!
Poem ID: 173
Poem Title: जब भी बात करता है……….
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: October 7, 2012
Poem Submission Date: October 7, 2012 at 5:48 pm
जब भी बात करता है कोई कहीं आजादी के दीवानों की बात अपने आप चल पड़ती है हिंदुस्ताहन के दीवानों की
जब भी बात करता……………………………………..
दुनिया में अपने आप में एक मिसाल है यह देश मेरा कहां मिलती है एक सी खुशबू अलग-अलग गुलिस्ता.नों की जब भी बात करता……………………………………..
सर कटाने की बात आई तो सैंकड़ों तैयार हो गए एक साथ वतन पर जां लुटाने की बात से भूख मिट गई मस्ता नों की
जब भी बात करता……………………………………..
दुश्म न की नजरें जब भी जमी हमारे देश की जमीं पर
वंदे मातरम जैसे नारों से नींद उड़ गई उन शैतानों की
जब भी बात करता……………………………………..
कोशिश दिलों को तोड़ने की हद से ज्या.दा की रकीबों ने
दिलों में दीवार बनाने की ख्वा्हिश रही अधूरी नादानों की
जब भी बात करता……………………………………..
मशाल थामी नन्हे -मुन्ने. हाथों ने घर से बाहर निकलकर
तिलक विजय का लगाकर मुराद पूरी की गई परवानों की
जब भी बात करता……………………………………..
न जाने कितने सपूत पैदा हुए भारत की पावन धरती पर तिरंगे के लिए जान देने को तैयार थी टोलियां नौजवानों की
जब भी बात करता……………………………………..
Poem ID: 174
Poem Title: अनंत जीवन
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: October 9, 2012 at 11:27 pm
वे देशभक्त
आज़ादी हित
फाँसी के तख्ते पर झूले
हँसते हँसते
कह गए
वचन ये मौन-
‘निज देश हेतु
मरना न मृत्यु
जीवन अनंत है’
Poem ID: 175
Poem Title: आइये मिलकर रोते है
Genre: Other
Poem Creation Date: May 10, 2012
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 6:26 am
आइये
हम सब मिलकर रोते है
भारत में
फैले भ्रष्टाचार पर
भारत में
किसानो की हत्या पर
आइये रोते हैं
सुरसा के मुंह की भांति फ़ैल रही
महंगाई पर
भारतीय राजनीती पर
यहाँ के रोडपति से करोड़पति बने
भ्रष्ट नेताओं पर
आइये रोते हैं
गरीबी
लोभ
लालच और मोह पर
अन्ना केजरीवाल और रामदेव पर
आइये रोते हैं
हम सब मिल बाँट कर
रोते हैं
हम भारतीय हैं
हम एक हैं
आइये
हम अपनी एकता को दिखाते हैं
आइये
हम सब मिलकर रोते है
Poem ID: 177
Poem Title: 23 March
Genre: Other
Poem Creation Date: March 23, 2000
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 9:53 am
क्या तुम्हे पता है हुसैनीवाला कहां है?
है तुम्हें मालूम २३ मार्च का मतलब?
क्या बता सकते हो तुम,
कि एक बच्चा खेतों में बन्दूकें क्यों बोता था?
क्या दिये की लौ पर रखकर,
जलायी है तुमने अपनी हथेली?
कर सकते हो,
एक सिख हो कर मातृभूमि के लिये केश कटाने की हिम्मत?
कभी सोच सकते हो,
’बेबे’ के हाथ कि रोटी खाने की अंतिम इच्छा?
मज़लूमों के दर्द कि तडप
क्या बना सकती है तुम्हें क्रन्तिकरी?
जानते हो कि जब ठंडी सख्त रस्सी,
गर्दन के चारों ओर कसती है,
तो क्या होता है?
एक बार सोचना कभी,
इन सब का क्या अर्थ है,
और तब कहना कि,
तुम्हारे लिये किसी ने क्या किया है,
और यह भी बताना कि,
तुमने औरों के लिये क्या किया है.
Poem ID: 178
Poem Title: जन्म दूसरा लो
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: October 2, 2011
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 10:42 am
जन्म दूसरा लो रामप्रसाद
तुम भी लौट आओ आजाद
कहीं से तो दिखता होगा जगत
धरती पैर उतर आओ भगत
दफ्टर-दफ्तर होता घोटाला
ये रोक दो तुम आके लाला
भरष्टाचार, गरीबी, मजबूरी
है मेरे देश में स्वतंत्र
डूबता सा दिखे गणतंत्र
कर सकूं सुरक्षा सबकी
बापू दो कोई ऐसा मन्त्र
जो शिक्षा तुम दो राज गुरु
तो सफल जीवन अपना करू
———–तनवीर आलम
Poem ID: 179
Poem Title: मदरसे इबादत
Genre: Other
Poem Creation Date:
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 11:50 am
.कई अनजान सी जुल्फें तेरा चेहरा संवारे हैं
जो बादल हम जगाए थे न जाने अब कहाँ होंगे….
कहाँ होगी मोहब्बत से लरजते होंठ की थिरकन
कहाँ होंगी वो मनभाती मधुर भावों की गहराई…..
क़ि जिनमे डूब कर उतरा किए थे पुरसुकून लम्हे ….
कहाँ होगी इबादत में झुकी वो नाजनी गर्दन
के जिसके ख़म पे जम पाकीजगी देती दुआएं थी |
कहाँ होगी वो शिद्दत से सधाए ध्यान की चोटी…..
कहाँ होगी वो मलखम दंड वो मुगदर क़ी बिजयारी
क़ी जिनमे तैरती थीं मछलियाँ वीरों जवानों क़ी —\
कहाँ गुम है जुबानों से वो बुलबुल सी वो कोयल सी
मधुर सरगम ……
कहाँ गुम है वो अमिया को कुतरती पाक दोपहरी
कहाँ गुम हैं फिराकों से टपकते बेर ओ गुंचे ….
कहाँ गुम मातारामों की जगाती पोपली घुड़की
कहाँ होंगे वो अब्बा के रखाए पाक दिल रोज़े…..
कहाँ होगी वो मन्नत से भरी पुरभाव नवरात्रि
कहाँ जासोन तैरे है खनकते हाथ लोटे में …..
कहाँ कुमकुम गमकता है कपालों के उजाले मैं ………
तन चले कितने किले कुछ ही सवालों से
कहाँ होंगे जवाबों की जमाखोरी के कारिंदे
वो वाशिंदे अमन के चैन के राही कहाँ होंगे…….
क़ि हर धड़कन का रिश्ता है उसी धड़कन के जामे से
समझ कर बूझने वाले परस्तेसिर कहाँ होंगे…….
मदरसे क्या इबादत के कहीं गुम हैं इबादत में
चले असबाब मैं तब्दील होने जिस्म ओ जाना…..
वो फितरत से हंसी चेहरे वो आदत से जवान सांसें
वो तिर्यक तैरती चितवन के हिरणों के छलावे सी …..
गुजरती किन निगाहों से कोई अब जान न पाए ….
कहाँ आँचल कटा होगा कहाँ गुम धान की अंजुर…..
किन्हीं गैरों क़ि खिदमत में जुटी हर गाँव की बेटी
दरकते होंठ कहती जो वो सहने में नहीं आता ….
बड़ी बदजात सी भाषा निगाहोंसे बयां होकर
हवा में तैर पूछे है तुम्हारे घर ओ आस्तांने ……..
किसी बेपर परिंदे की जमीन पर लोट सा होकर
जो मनवा खैर मांगे है वहीँ सोने की चिड़िया था\
वतन पर मर मिटे हैं हम वतन को अब जिला लो तुम
कहा है फिर जनम लेंगे शहीदों ने मुकामों से
कई अनजान सी जुल्फें तेरा चेहरा संवारे हैं ….
Poem ID: 180
Poem Title: “मातृभूमि “
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2011
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 1:32 pm
“मातृभूमि”
ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम , ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम ,
चरणों को धोता है सागर , उस महासिंधु को शत प्रणाम,
जिस धरा पे बहती भागीरथी, उस धरा को मेरा है प्रणाम ,
आँचल को छू के बहे पवन , उस पावन पवन को है प्रणाम,
ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम, ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम.
पियूष कुम्भ वक्षस्थल में नेत्रों में ममता की धारा,
वलिष्ठ भुजाएं भीम भीष्म दुश्मन को सदा ही संघारा ,
मस्तक शोभित हिमराज करे , उस हिमालय को लक्ष प्रणाम,
ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम, ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम.
पावन संगम सब धर्मों का , वह स्वर्ग यहीं ऐ मातृभूमि ,
इन्द्रधनुष आँचल तल में, सबको संबल ऐ मातृभूमि,
पाता है अमृत तुझसे, ले ईश्वर या अल्लाह का नाम,
ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम, ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम.
ऋचाएं वेद पुराणों की, कानों में तू अविरल भर दे,
गीता के गुप्त रहस्यों को , सुलझाकर माँ मुझको वर दे,
तेरे आँगन में पले बढे नानक, गौतम, श्रीकृष्ण, राम
ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम, ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम.
चाह नहीं इन्द्रासन की, ना स्वर्ग की मुझको है आशा,
हर जन्म मेरा भारत भू पर , ये मेरी अंतिम अभिलाषा,
जिस लहू से सींचा है मुझको, उस लहू को मेरा कोटि प्रणाम ,
ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम, ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम.
Poem ID: 181
Poem Title: आह्वान भ्रष्टाचार विरुद्ध
Genre: Other
Poem Creation Date: October 9, 2012
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 2:27 pm
भ्रष्टाचार दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा
हर भारतीय राष्ट्र भूल आपस में लड़ रहा
न जाने आर्यावर्त में ऐसी क्यों लाचारी है!
वोट हँस के देता अशिक्षित, बेगार ही है|
जो डेढ़ वर्षों से निरंतर संघर्ष जारी है
किंतु विरोधी को सिर्फ सत्ता प्यारी है
डंडे बरसवा दे जो रात में मुंह छिपा के
कैसे मानूं सरकार पे जनता भारी है?!
जनसमूह उमड़ा था कल क्रांति वास्ते
लो अब पृथक हुए अन्ना-केजरी के भी रास्ते
खत्म करनी यह जो भ्रष्टाचार बीमारी है
तंत्र प्रवेश ही मात्र बचा एक मार्ग दुश्वारी है|
आह्वान है ‘हितैषी’ का आज देश की जनता से
चिकित्सक से, कृषक से, श्रमिक से, अभियंता से
आवाज़ बुलंद करो, नये गाँधी-सुभाष आये हैं
नीतिज्ञ नैतिक संतुलन को लोकपाल विधेयक लाये हैं|
कवि कहे- न कांग्रेस, न अन्ना-अरविन्द कक्ष में
न्याय ‘लोकनायक’, हो केवल सत्य पक्ष में
भ्रष्ट स्पष्ट दिख रहा, बदलो सरकार, अन्यथा
आम मिले न केला, बंधु, होनी हार हमारी है||
Poem ID: 182
Poem Title: में चाणक्य बनाता हूँ…..
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: October 2, 2010
Poem Submission Date: October 12, 2012 at 4:05 am
विपदाओं ने ऐसा घेरा
निकल न पाया कभी सवेरा
किरणें फैलीं नील गगन पर
धरती पर तो रहा अंधेरा
अंधकार में पुंज तलाशा
उससे दीप जलाता हूँ
मैं चाणक्य बनाता हूँ
शौर्य बंधा हो बाजू में
ऑख़ों में अंगार सजी हो
तर्क पूजतें हों शब्दों को
साँसों में हुंकार भरी हो
विद्रोह से विद्रोह करे जो
उनको शीश नवाता हूँ
मैं चाणक्य बनाता हूँ
शत्रु जब शास्त्रों को भूलें
शस्त्रों की भाषा पहचाने
परमपिता को शीश नवाकर
हत्या, वध में अंतर जाने
गंगाजल का आचमन करके
दिव्य प्रत्यंचा खनकाता हूँ
मैं चाणक्य बनाता हूँ
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