Last Year Winner

1st Prize

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Name: Ravindra Kumar Srivastava

Occupation: Government Officer

Location: Gazipur, Uttar Pradesh

हम वतन के हैं पुजारी
दर्द की एक आग लेकर आ रहा हूँ द्वार पर
खून की स्याही से लिखता हूँ ग़ज़ल अंगार पर
मेरे गीतों में नहीं महलों की कोई दास्ताँ
रूप से , यौवन से और श्रृंगार से न वास्ता
मेरे गीतों में उठा के सर है गाती मुफलिसी
हो के मैं मजबूर न ,चलता महल का रास्ता
मेरे गीतों में जवानी ;है भगत के खून की
बातें करने आया हूँ -सुभाष के रंगून की
मेरे गीतों की कहानी , मूंछ है आजाद की
बात इन में है नहीं अमिताभ के पतलून की
हिंद मेरी साँस ,धड़कन, हिंद मेरी आरजू है
हिंद ही मेरा ह्रदय , मेरा लहू है , जुस्तुजू है
ये सही है चाँद पर अब आज हम जाने लगे हैं
दुश्मनों को खाक कर दे बम बनाने हम लगे है
बेतहाशा वृद्धि की है हमने अपने साधनों में
बेतहाशा वृद्धि की है रेल , सड़को , वाहनों में
मैं नहीं कहता की इन पर तालियाँ तुम मत बजाओ
ये नहीं, उपलब्धियों पर तुम दिवाली मत मनाओ
हाँ मगर कुछ प्रश्न भी मेरे जेहन में गूंजते है
ये सही है या गलत है आज तुमसे पूछते है ?
रो रही कश्मीर की वादी है आंसू खून के
दाग इसके दामन पर सिरफिरों के जूनून के
खो दिया कौशौर्य अपना माटी ने गुजरात की
धर्म औ मजहब को खाते लोग हैं अब भून के
डिग्रीयां बांधे गले में है भटकती नौजवानी
योग्यता , प्रतिभा , परिश्रम की हुई बाते बेमानी
काम को बाहें तरसती, भूख से आंतें तड़पती
ईमानदारी और सच्चाई की सुन सुन कर कहानी
नौकरी का प्रश्न आँखों में लिए मजबूर है
घर का रास्ता भूलने को , मंजिले अभी दूर हैं
हाथ आती ही नहीं कोई सिफारिश मंत्री की
भावना बेहाल है , बेचैन , चकनाचूर है
एक तरफ बेकारी की है आग में झुलसी जवानी
एक तरफ ममता की आँखों में हैं करुणा का पानी
लुट रहा है चैन घर का और निशा सोती नहीं है
कूचे में जिस छत के होने वाली है बिटिया सयानी
झोपड़ो को देखकर जलता महल है मुस्कराता
आदमी ही आदमी को, अब यहाँ जिन्दा जलाता
आँख में पानी नहीं इन्सान के इंसानियत की
गिरवी रख अपनी अना, इन्सान अब जीवन बिताता
खून से रंगे हुए अख़बार पीते चुस्कियों में
खूं उबलता क्यूँ नहीं आखिर तुम्हारी धमनियों में?
तुम वतन की हो अमानत, तुम वतन के हो सिपाही
सर उठाने के लिए अब चाहिए कितनी गवाही ?
कब बताओ भारती के दाग तुम धोने चलोगे ?
कब बताओ क्रांति की आग तुम बोने चलोगे ?
उनसे क्या उम्मीद करते , पांव जिनके कब्र में है ?
सीमा पर मरते सिपाही और जो की सब्र में हैं
जिस वतन की नौजवानी , चैन की है नींद सोती
उस वतन में खून से होली है होती , ईद रोती
इन्कलाबों की मशाले कब उठाओगे जवानों ?
कब तलक मदहोशी के गाओगे गाने तुम दीवानों ?
एक हो जाये चलो सौराष्ट्र से सिल्चर तलक हम
कोच्चि , कन्या कुमारी से लिए श्रीनगर तक हम
नफरतों के बीज बोने वाले सर को काट देंगे
और घृणा के फूलती – फलती टहनियां छाट देंगे
हिंद की तस्वीर बदलेंगे बदल देंगे कहानी
हिंद में हम सब रहेंगे बन के बस हिन्दोस्तानी
एक हो मजहब हमारा , एक हो भाषा हमारी
आओ ये ऐलान कर दे हम वतन के हैं पुजारी
हम वतन के हैं पुजारी हम वतन के हैं पुजारी[/div]
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2nd Prize

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Name: Rajendra Swarnkar

Occupation: Writer

Location: Bikaner, Rajesthan

मेरी पाकीज़गी के दस्तख़त गंगो – जमन मेरे

मुहब्बत के तराने गुनगुनाती यां हवाएं हैं
नहीं इस घर में नफ़रत – बैर – सी बेजा बलाएं हैं

न झांको खिड़कियों से , आ’के आंगन में कभी देखो
जहां सदियों से दुनिया के लिए जारी दुआएं हैं

पढ़े आवाम हर पल मंत्र बस इंसानियत के यां
दिगर गूंजे ख़ुलूसो – अम्न की पावन ॠचाएं हैं

मिसालें दे जहां , उस राम का इंसाफ़ ईमां है
लिये’ शाइस्तगी राधा – कन्हैया की अदाएं हैं

मेरी पाकीज़गी के दस्तख़त गंगो – जमन मेरे
मेरे किरदार की अज़मत हिमालय – शृंखलाएं हैं

मेरे देवालयों की घंटियों की गूंज जन्नत में
मुक़द्दस नामों की तारीफ़ यां हम्दो – सनाएं हैं

खड़े मिलते हैं पग – पग रूबरू ख़ुद देवता हाज़िर
सम्ते हर आरती – वंदन है , पूजा – अर्चनाएं हैं

जहां को इल्मो – फ़न की रौशनी बख़्शी है हमने ही
हमारे दम से महकी – मुस्कुराती सब दिशाएं हैं

मैं अपनी सरज़मीं की क्या करूं ता’रीफ़ ; नादां हूं
अगरचे मेरी रग – रग में वफ़ाएं ही वफ़ाएं हैं

मिले ता’लीम – रोज़ी ; भूख दहशत दासता मिट कर
जहां के वास्ते राजेन्द्र ये शुभकामनाएं हैं[/div]
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3rd Prize

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Name: डा. भारतेन्दु सिंह

Occupation: Teacher

Location: आईज़ोल, मिज़ोरम

महात्मा गाँधी कि भारत यात्रा

जैसे ही महात्मा गाँधी जी अखबार उठाए
मायावती द्वारा खुद के नाम पर प्रहार पाए
सो वह तुरंत पहुंचे ‘बी.एम.डब्लू’ के घर
वहां उनका नौकर बोला “बैठीए, बहन जी हैं अन्दर”।

‘बहन माया वती’ आते ही पकड़ लीं गाँधी जी के पैर
और बोलीं “आशिर्वाद दीजीए”
गाँधी जी बोले “पैर छोड़िए पहले मुझसे बात कीजिए,
पहले मेरी इस शंका का निवारण कीजिए,
खबरों से तो लगता है आप हैं मुझसे नाराज़ सख्त,
लेकिन अभी तो लग रहा है आप हैं मेरी परम भक्त”।

सुन कर यह बात मायावती मुस्काईं, थोड़ा सकुचाईं
और दबी आवाज़ में गाँधी जी को सच्चाई बतलाईं
बोलीं, “मैनें इसलिए प्रकट किया आपका आभार
क्योंकि आप ही हैं मेरे राजनीतिक जीवन का आधार।
चँद दिनों पहले मुझे जानता नहीं था कोई,
और आज मेरे पीछे है विधायकों की फौज,
इतने कम समय में प्रसिद्धी पाना, मेरी ही है मौलिक खोज।

आमतौर पर सभी आप को पूजते हैं,
सो मैनें सबसे अलग हट कर आपको दी गाली,
इस वजह से मुझे खबरों में मिली सुर्खी
और आज सोने-चाँदी से भरी है मेरी थाली।
इसीलिए मैंने कहा, आप ही हैं मेरे राजनीतिक जीवन का आधार,
अब आप जो सज़ा दें, वो है मेरे लिए सिरोधार।
अपने राजनीतिक आराध्य को गाली देना मुझे भी खलता है,
पर क्या करें आज-कल राजनीति में सब चलता है”।

मायावती से मिल कर गाँधी जी पहुँचे उस पार्टी के पास,
जिस पार्टी का उन्होने मरते दम तक दिया था साथ।
पार्टी के दफ्तर कि दीवार पर टंगी थी महात्मा गाँधी की तस्वीर
जिसपे पड़ी थी एक ताज़े फूलों की माला,
और उस तस्वीर के पीछे छिपा था धन काला।
उन्हे न पहचानते हुए एक बड़े नेता ने पुछा “कौन?”
महात्मा गाँधी खड़े रहे मौन।

वह नेता पुन: बोला “किससे मिलना है, बोलो क्या काम है?”
गाँधी जी बोले, “शायद इसीलिए है कांग्रेस इतनी बदनाम”
बोले, “तुम मेरे नाम से करते हो अपनी राजनीति का व्यापार
और मुझे ही पहचानने से करते हो इंकार?
मुझे गाली देने वालों से राजनीतिक तालमेल करते हो
और सत्ता में आने पर घोटाले और गोलमाल करते हो,
शर्म नहीं आती, कांग्रेसी हो कर भी पैसे पर मरते हो?”

इतना सुन कर बोला वह कांग्रेसी नेता
”आप को अन्दर आते तो किसी ने नहीं न देखा?
अब आप चुपचाप पिछले रास्ते से हो जाइए नौ-दो-ग्यारह
और कृपया इधर बीच यहाँ न आइयेगा दोबारा।
कहीं-कहीं हमारा ब.स.पा. से समझौता है
आप को यहाँ देख कर हमारा सम्बन्ध खराब हो सकता है।
ऐसा नहीं है कि हम आप की इज्जत नहीं करते हैं
लेकिन क्या करें मायावती से डरते हैं।
न चाहते हुए भी हमारा ब.स.पा. से समझौता है,
क्योंकि ऐसा बुरा दौर बड़ी मुश्किल से टलता है,
और आज-कल राजनीति में सब चलता है”।

कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी का देख कर यह हाल
महात्मा गाँधी हो गए बदहाल,
अब काफी थकी हुई सी लग र्ही थी उनकी चाल।
तभी दिखा उन्हे भा.ज.पा. का दफ्तर,
उसकी भव्यता देख कर उन्हे आने लगा चक्कर,
एक धर्म-निर्पेक्ष देश में धर्म के ठेकेदारों की ये शान?
वाह-रे इस देश कि जनता, वाह-रे मेरे देश महान।
इनका पहला नारा है स्वदेशी,
और पैर में पहनें जूते का फीता भी है विदेशी।
इनका जो भी है, सब है दिखावा,
चाहे हो इनका चरित्र, चाहे पहनावा।
ऐसा दल देख कर ये दिल जलता है,
पर क्या करें, आज राजनीति में यही चलता है।

वहाँ से आगे बढे तो मिला एम. एस. यादव का घर
यानी, समाजवादी पार्टी का मुख्य सदर,
बाहर समाज भूख से तड़प रहा था,
और अन्दर समाजवादी नेता पेट-पूजा कर रहा था।
यह दृश्य देख कर महात्मा गाँधी रह गये दंग,
क्या ऐसा ही होता है समाजवादी नेता का रंग-ढंग !
उन्होने पुछा, “क्या आप विश्वास रखते हैं समाजवाद में?”
भोजन से बिना हटाए ध्यान, मुलायम ने दिया जवाब,
”हाँ, हम विश्वास करते हैं इस बात में, कि पहले हम, समाज बाद में”।
आज के दौर का समाजवादी नेता ऐसे ही पलता है,
और आज-कल राजनीति में सब चलता है”।

महात्मा गाँधी एक जगह बैठ गए हो के उदास,
तभी ‘भारतेन्दु’ पहुँच गए उनके पास।
मैंने उनसे पूछ, “आप लग रहें हैं परेशान”
सुनते ही गाँधी जी हो गए हैरान, गुस्से में बोले,
”यदि आज राजनीति में यही चलता है,
तो क्यों नहीं तू अपना नेता बदलता है?”
मैनें उन्हे समझाया, “चिंता छोड़ीये, न हों परेशान
आज का युवा वर्ग है आशावान,
कि बहुत जल्द ही ढलने वाली है भ्रष्टाचार की शाम
और जल्द ही एक नया सवेरा होगा,
जिसमें सिर्फ अमन और इमान का बसेरा होगा।
ये ठीक है कि आज राजनीति में यही चलता है,
लेकिन इतिहास गवाह है, वक्त हमेशा बदलता है॥
वक्त हमेशा बदलता है ||[/div]
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Consolation Prizes

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Name: Anviksha Srivastava

Occupation: Student

Location: Ardmore ,Oklahoma, USA

I walk alone ,
so others
can walk with
their father.
Mom puts out
3 plates but,we’re
only two.
I celebrate my
holidays alone,
so others
can share
their happiness
together.
I practice sports alone,
so others can practice
with their father
I sleep uncuddled,
so others can
cuddle with their father
everybody listens to the news
in concern
but, I
listen for my father.
I am proud that he is there
so the nation can sleep fearless
because, my dad is a solder.[/div]
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Name:Rajeev Sharma

Occupation: Student

Location: Bhopal, Madhya Pradesh

इस राष्ट्र की अखंडता सम्मान के लिए,
रग रग में बसे सृष्टी के भगवान के लिए
शहीदों के इस मिटते हुए मान के लिए,
इंसान हूँ मैं, लड़ रहा इंसान के लिए……..

इंसान हूँ मैं लड़ रहा इंसान के लिए……

बह रहा है रक्त मिट रही है एकता
दिख रहा मासूम आज अश्रु समेटता ,
हिंसा की ये कहानी करनी ख़तम हमें
इंसानियत की खोई पहचान के लिए…

इंसान हूँ मैं लड़ रहा इंसान के लिए…….

लुट रही इंसानियत झूंठे संसार में
बिक रहा ईमान बेईमान बाज़ार में,
बन जाओ एक दीवार
तुम तूफ़ान के लिए…

इंसान हूँ मैं लड़ रहा इंसान के लिए……..

गाँधी और सुभाष का सम्मान है ये देश
बदल रहा इंसान क्यूँ क्षण क्षण में अपना वेश
हो रही है भंग शांति आज देश की
बचाले इसे शाने हिंदुस्तान के लिए…

इंसान हूँ मैं लड़ रहा इंसान के लिए………[/div]
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Name: Kishore Pareek

Occupation: Government Officer

Location: Jaipur, Rajasthan

खुशबु कैसे महके मेरे गीतों में

खुशबु कैसे महके मेरे गीतों में
मैं कागज़ पर आग कलम से बोता हूँ
लिखता हूँ मैं दर्द जमाने के यारों
लिखता तो पीछे हूँ पहले रोता हूँ

ठंडी रातें बिता रहे फुटपाथों पर
मेरे शब्द चित्र उनको सहलायेंगे
पोंछ सके गर आंसू उनकी आँखों के
तबही सच्चे नगमे गीत कहायेंगे
कितने भी तूफान डराए धमकाये
ले पतवारे खड़ा साथ में होता हूँ
मैं कागज़ पर आग कलम से बोता हूँ

अलंकर छंदों की भाषा, क्या जानू
उपमा नवरस स्लेश भाव क्या होते है
मुझको तो बस दर्द दिखाई देता है
मैं जनमानस के क्रंदन का स्रोत हूँ
मैं कागज़ पर आग कलम से बोता हूँ

कदम बढ़ाते मात्रभूमि की रक्षा में
मेरी कलम नमन करती उन वीरों का
जो दुश्मन को धुल छठा दे छन भर में
वंदन करती कलम उन्ही शमशीरों का
विजय पताका लिए लोटता जब रण से
शब्द सुमन के हार अनेक पिरोता हूँ
मैं कागज़ पर आग कलम से बोता हूँ

जो पापी अन्यायी है अत्याचारी है
मेरी कलम सबक उनको सिखलाएगी
भारत माँ की छाती में जो घाव करे
कलम यही ओकात उन्हें बतलाएगी
किन्तु शहीदों के अति पावन चरणों को
शब्द अश्रु के गंगा जल से धोता हूँ
में कागज़ पर आग कलम से बोता हूँ [/div]
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Name: Dipak Kumar

Occupation: Journalist

Location: New Delhi

पूछ रहा है देश का बचपन

पूछ रहा है देश का बचपन
राह दिखाने वाल से,
दशा देश की ऐसी क्यूं
क्यों हो, तुम मतवाले से?

लोकतंत्र का ह्मदय हमारा
संसद भी रोया है
वैष्णो देवी की यात्रा पे
अलख राग भी सोया है
अपनी ही धरती पर राम
पड़े हुए बंजारे से
दशा देश की ऐसी क्यूं
क्यो हो, तुम मतवाले से?
पूछ रहा है …

अमरनाथ की यात्रा पर
आतंक यू गुर्राया है
अर्थजगत का सम्बल
मुम्बई भी थर्राया है
लाल किला का घाव अभी
है हरा दीवारों पे
पूछ रहा है…
दशा देश…

संकट मोचन का प्रांगण
खून से होली खेला है
अक्षरधाम का अक्षर अक्षर
रक्तपात को झेला है
घायल क्यों है केसरी बाना
आतंक के अंधियारे से
दशा देश…
पूछ रहा है…

वोट बैंक की राजनीति में
देश से कुर्सी प्यारा है
संसद के बहसों में देखो
जूता-चप्पल न्यारा है
क्या तेरी काली करतूतों से
मां घायल है तलवारों से
पूछ रहा है…
दशा देश…

सुनो हमारी माता ने
पीड़ा में हमें पुकारा है
यौवन लेकर साथ चलें
कमर कसें आगे बढ़े
तरूणाई बनकर बचपन
राख हटा अंगारे से
मुक्ति मिलेगी तभी हमें
आतंकी अंधियारे से…। [/div]
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