अपने भावों को ज्वाला बनाकर….

Posted by
|

अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
अश्कों से भिगो कर पन्ने, इन्ख्लाब है लिख डाला
अपने देश की मिट्टी को, घर घर में पहुँचाने को
लगा हुआ हूँ इसी जुगत में, रातों को जला डाला

अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
मात्रभूमि के चरणों को, जज्बातों से सजा डाला

न मुझको जरुरत है, प्रियतम के सहारे की
न मुझको अभीलाशा है, लोगों के इशारे की
मैं तो कर रहा हूँ करता रहूँगा, भारत का गुणगान
जब भी होगी बात वही फिर, हिंद के जयकारे की

अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
अल्फासों के फूलों की, चढ़ा रहा हूँ मैं माला

मेरी रातों में जब भी, रत जागों के दीप जलते हैं
भगत आज़ाद के शब्दों , के जैसे तीर चलते हैं
मेरी खामोशियाँ भी, मुझको अक्सर छेड़ जाती हैं
वो जब नेता जी के किस्से, मुझसे बोल पढ़ते हैं
मैं लिखने से पहले, हर दम रो पढता हूँ
जब बिस्मिल की कविताओं के, शब्द गूँज पढ़ते हैं

अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
कुछ और पीने की जरुरत ही क्या, जब देश प्रेम ही पीडाला
है विकट समस्या मेरे देश की, यहाँ जन जन में वो धार नहीं
संबेदनाओं से भरे हें बहुत पर, कुछ करने को तैयार नहीं
क्या इस मिट्टी के उन सब पर, कोई उपकार नहीं
बस नौकरी पैसा ही काफी है, किसी बेबस का प्यार नहीं
यहाँ पग पग पर मासूमों पर, क्या होते अत्या चार नहीं
जो घूम रहे हें सडको पर एक वक़्त के भोजन की खातिर
क्या वो इसी देश के आधार नहीं
क्या भुखमरी और गरीबी के आगे, हम लाचार नहीं
चन्द लोगों के हाथ में, देश की पतबार नहीं
पीड़ी दर पीड़ी चलाते, जो हम पर अधिकार नहीं
जो मिली थी आजादी, क्या वो कुछ एक का प्रभार नहीं
बेरोज गारी में मिट रही हे जवानी, क्या ये हमारी हार नहीं
किसानो की जिन्दगी है भंवर में, ये हमे कतई स्वीकार नहीं
ऐसे कई सवाल हैं, जो उठते हैं जहन में
क्या उनका जबाब देने के लिए, हम जबाबदार नहीं

अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
मिलेगा तब सुकून, जब बनेगा कोई स्वदेशी हाला

माना हमने, बहुत विकाश कर लिया है
सिनेमा से लेकर खेलों तक, इतिहाश रच दिया है
अब हम कुछ हटकर भी, आजमाने लगे हैं
विक्की डोनर और पान सिंह तोमर, बनाने लगे हैं
अब तो ओलंपिक में भी, पदक आने लगे हैं
हम चांद पर पहले भी पहुंचे हैं
अब दुनिया के उपर भी, कुछ कुछ छाने लगे हैं
पर क्या काफी है जो पाया है?
सोचो हमने थोड़े के लिए, कितना कुछ गबाया है?

अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
कुछ पायेंगे तब, जब भरेगा देशभक्ति का प्याला

परन्तु आज भी कहाँ सुधरा है, इस देश का इंसान
गुजरात को बीते ज़माने हो गए, तो आज निशाने पर आसाम
क्या हिन्दू क्या सिख, और क्या है मुसलमान?
जलती है छाती भारत की, जब लोग करते हैं त्राहिमाम
नहीं चाहिए अच्छाई को, आज के युग मैं कोई भगवान
बस चाहिए तो हर डगर पर, सच्चे और अच्छे इंसान
जहां रहें झोपड़े और महल बराबर, बस चैन से जिए आबाम
दो वक़्त का खाना खाकर,हर रोज सोये हर एक जान
पढने लिखने के लिए, हर सुबह जाए मासूम तमाम
मिल जुल कर रहने लगे, हिन्दू हो या मुस्लमान
चाहे न पढ़े गीता, चाहे न पढ़े कुरान
हर एक करे बस, हिन्दुस्तान का गुणगान
मंदिरों में चाहे न हो पूजा, और मस्जिदों में चाहे न हो अजान
हर एक जुबान पर हो बस, एक मेरा तुम्हारा हिन्दुस्तान
एक ही भाषा हो हमारी, एक ही हो मजहब हमारा
एक ही पेशा हो और बस, एक ही हो हमारी पहचान
बस एक इंसान बस एक इंसान बस एक इंसान

अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
जब होगा सच जो देखा है, तब होगा महा गाला
है यही मेरा सपना, मेरा देश हो निराला
तभी देपाऊंगा शहीदों को, उनके हक़ की जय माला
जय भारत जय हिन्दुस्तान का, होगा हर तरफ बोल बाला
जय भारत जय हिन्दुस्तान का, होगा हर तरफ बोल बाला.

Add a comment