अमर रहे ये हिंदुस्तान

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लाल हो गई लहू से देखो भारत माँ की माटी है,
छलनी-छलनी रोज हो रही देश की हर एक घाटी है।
मैदानों में हर दिन खूनी होली खेली जाती है,
जाने कितने सीनों से ये गोली झेली जाती है।
दंश कई अपराधों का है भारत मेरा झेल रहा,
इक खूनी कई-कई जानों से बेदर्दी से खेल रहा।
जिनकी आँखों में पानी न दिल में कोई जज़्बात रहा,
भारत माँ ने उन पापी बेटों का भी आघात सहा।
वंदे मातरम की अस्मत का जिनको भान नहीं होता,
जन गण मन का भी मन में जिनके सम्मान नहीं होता।
पल-पल अट्टाहस करते हैं करते वो गद्दारी हैं,
देश बेचने की पूरी कर ली उनने तैयारी हैं।
संविधान में संशोधन की आवश्यकता जब आती है,
सत्ता आँखें बंद करके हौले-हौले मुसकाती है।
कुर्सी को है शरम कहाँ की वो नोटों की भूखी है,
उन माँ के आँसू कहाँ दिखेंगे जिनकी छाती सूखी हैं।
हर इक नेता अपनी जेबें भरने में मशगूल रहा,
इक-इक किसान हर एक सुबह फाँसी पर देखो झूल रहा।
मेरे दिल में चुभती है ये खूब दलाली दिल्ली की,
देश को भूखा नंगा कर गयी नमकहलाली दिल्ली की।
कहने को तो ये भारत आबाद दिखाई देता है,
पर सच तो हर दुर्घटना के बाद दिखाई देता है।
सरकारी पैसे की जारी चौतरफ़ा बरबादी है,
फिर भी भूखी प्यासी भारत की आधी आबादी है।
सरेआम अब कट्टे-गोली बंदूकें लहराती हैं,
राजनीति की चालें शेखर को आतंकी कह जाती हैं।
स्वामी अन्ना जैसे बेटे जब-जब आगे आते हैं,
पीछे से भारी-भारी षड्यंत्र कराये जाते हैं।
झूठ बोल आरोप लगाना सरकारों की चालें हैं,
कुर्सी पर बैठे ये नेता सारे मन के काले हैं।
दिल्ली कब से जूझ रही सचमुच आज़ादी पाने को,
दागी पैसे लूट रहे हैं बर्बादी पर लाने को।
नहीं लेखनी मैं वो जो डर जाती हो गद्दारों से,
सत्ता की गलियों में फैले भयभीतक अंधियारों से।
देशभक्त मैं वीरपुत्र मैं भगत सिंह सी ज्वाला हूँ,
हर शहीद के प्राण-त्याग का चित्र दिखाने वाला हूँ।
उसने हमसे जनम लिया वो फिर हममें मिल जाएगा,
जो खून तुम्हारा खौल गया तो पाकिस्ताँ हिल जाएगा।
दुनिया को ताकत दिखला दो गर दुःख से आँखें नम हैं तो,
काश्मीर को वापस ला गर दिल्ली तुझमें दम है तो।
भयभीत व्यथित है माँ का मन और करुण रुदन उद्वेलन है,
जो घाव सहे इस माँ ने उन सब घावों का सम्मेलन है।
दिल्ली से है प्रश्न मेरा क्या चीख सुनाई देती है,
भारत माँ हमलों से रोती रोज़ दुहाई देती है।
आतंकी घटनाओं से जब मंज़र सभी बदलते हैं,
दिल्ली तब क्या रोती है जब माँ पर खंज़र चलते हैं।
सब मजहब की चिंगारी को आग बना भड़काते हैं,
मेरी भारत माँ को पीड़ा दे-दे के तड़पाते हैं।
गुंडों को अवलंब मिला दिल्ली के पहरेदारों का,
खून खौल जाता है ये सब देख के कुछ खुददारों का।
शेष रही ना अब लज्जा ना शेष रही मर्यादा है,
माँ की पीड़ा से बढ़कर जज़्बात कौन सा ज्यादा है।
हत्या चोरी लूट यहाँ हर रोज़ नया घोटाला है,
फिर भी देखो मेरा भारत कितनी हिम्मतवाला है।
जो भारत माँ पर लिख न सके वो शायर कैसा शायर है,
माँ को रोते देख सके वो बेटा बिलकुल कायर है।
लो मैं आह्वान करता हूँ हर एक का जो सोता है,
जागो भारत की जनता ये देश तुम्हारा रोता है।
भारत को फिर से विश्वगुरु के पद पर तुम्हें बिठाना है,
गौरव वापस लाना है और महाशक्ति बन जाना है।
हे ईश्वर सन्मार्ग रूप में हमको दो तुम ये वरदान,
रहे अमर ये हिन्दी मेरी रहे अमर ये हिंदुस्तान॥

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