आओ मिलकर राष्ट्र बनाए………………..

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आओ जीवन अर्पण कर हर क्लिष्ट पथ सरल बनाए
उत्तर हिम को दक्षिण सिन्धु से मिलाये
चाहे पथ अति दीर्घ हो हर क्षण आगे बढ़ते जाये
पश्चिम बालु को पूरब वन से सजाये
हर जन कण को एक ही मंत्र में पिरोये
अप्रतिम सुरम्य राष्ट्र के सपने संजोये
समग्र भूतल व्योम को एक घर बनाए
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए………………..

२. प्रबल शौर्य भाव से आगे बढ आये
ह्रदय पीड़ा को घोल कर पि जाये
जब- जब धरती पर अधर्म का वास जड़ बनाए
नर नारायण बन कर उसे सम्पूर्ण मिटाए
आओ डील -डोल को सुगठित धड बनाए
प्राचीन विद्या पुंज के तेज को फिर बढ़ाये
सिंह के गर्जन की भाँति गाज गिराए
राष्ट्र के हर शत्रु को धुल चटाए
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए……………….

३. जब तक देह में प्राण लहु संचार बनाए
हर लहु बूंद को राष्ट्र पर बलि चढ़ाये
जब तक स्वयं अभिमान प्रेरणा स्त्रोत बनाए
ज्वाला को भी नीर की शीतलता से मिटाए
जब तक जननी की हर दुआ काम आये
अचल वीर हो राष्ट्र के लिए मिट जाये
जब तक गंगा निर्मल जल पाप कुकर्म मिटाए
अविरल अविराम हो राष्ट्रहित मर जाये
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए…………………

४. नाद ब्रह्म को कण तन में अनुभूत कराये
आतंक संत्रास भाव को प्रेम गरल पिलाये
चन्द्र तारत दीप्ति को श्रद्धा सार बनाए
द्वेष मालिन्य डाह को प्रणय राग सुनाये
इक ओंमकार सूत्र से जीवन अलंकृत कराये
उन्माद कट्टरपन को प्रीति द्दश्य दिखाए
यग्न अग्नि तपिश से ह्रदय मन तपाये
नीतिविस्र्द्ध अधर्म से वात्सल्य गान गवाए
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए……………………
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए……………………

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