स्वतंत्र विहग के पंखों जैसे
फैल रहा है स्वर संगीत,
मेरे अंतर्मन से निकले,
आकुल करते मेरे गीत,
नीलनभ से विश्वसागर की,
लहरों पर ये तैरें गीत,
इतना साहस नहीं है मुझमें,
तुम तक कैसे पहुंचें गीत,
गीतों के पंखों से छू कर,
तव चरण रज लूँगा, मीत!
तुम जब गाने को कहते हो,
तुम्हें सुनाता हूँ हे मीत!
मेरा मन गर्वित हो जाता,
तुम्हें जब भाता मेरा गीत,
तुमको सन्मुख पाकर मेरे
नैन अश्रु जल छलकें शीत,
परम आनंद मुझे मिलता है,
दुःखदर्द पिघलें मृदु गीत.
खुश हो नशे में झूम रहा हूँ,
स्वयं को भूला, भूले गीत,
ईश सम तुम मित्र हो प्यारे,
तुम्हें पुकारूँ प्यारे मीत.
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