आखिर…कब…?

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आखिर…कब…?
कब करवट लेंगे हिंद पुत्र, कब भारत माता बोलेगी ,
कब छोड़ रूप धरती का वह, शिव बन त्रिनेत्र को खोलेगी ?
कब गूंजेगा फिर अट्टहास, अम्बर में क्रोधित भारत का ,
कब चमकेगा फिर से फरसा, नभ में अरिदल संहारक का ?
क्या इसी तरह से छले हुए, बस शांति गीत ही गाएँगे,
या फिर अर्जुन की भांति नया, करतब कोई दिखलाएँगे ?
क्या तेरे कर्णों से अछूत है, माता की दारुण पुकार,
या देख न पाया तू भारत के, मस्तक पर शोणित की धार ?
फिर क्यों ब्रह्मा बन संबंधों का, सृजन कर रहा बार-बार,
बन रूद्र, आज, अरि की भू पर, तू उगल हलाहल एक बार |
जो ग्रीवा ग्रास हो खड्गों का, उसको न शोभती मालाएँ,
फिर कैसी सोच,कृपाण चला, तब सब मिल जन गण मन गाएं |
कर निश्चय मन में पुनः वीर, हम चन्द्रगुप्त बन जाएंगे,
पश्चिम में फिर अफगान तलक, भारत का ध्वज फहराएंगे |
कवि –
ज्ञानेश चन्द्र त्रिपाठी
विश्वशांति गुरुकुल वर्ल्ड स्कूल
राजबाग , लोनी कालभोर
पुणे (महाराष्ट्र) – 412201

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