ऐ मित्रों, भारत के पुत्रों,
वक़्त आज है फिर वो आया.
धरती माता हमें बुलाती,
चहुँ ओर संकट गहराया.
लूटेंगे सोने की चिड़िया,
अंग्रेजो ने तब थी ठानी.
तोड़ हमारा भाईचारा,
की थी गैरों ने मनमानी.
देश आज फिर से लुटता है,
अपने ही बन बैठे भक्षक.
चुन कर तुमने सत्ता सौंपी,
मान के जिनको अपना रक्षक.
देश नहीं, लालच के नौकर,
देश बेचकर खाते हैं.
जिस मिट्टी में शरण मिली,
उसमे ही सेंध लगाते हैं.
सरहद पर मैं डटा हुआ हूँ,
अन्दर के दुश्मन तुम देखो.
मगर गैर से पहले खुद के,
दुर्व्यसनों को बाहर फेंको.
तब ही इनसे लड़ पाओगे,
देश मुक्त तुम कर पाओगे.
जीवन का बलिदान मैं दूंगा,
गर ईमान बचा पाओगे.
Add a comment