क़र्ज़ कैसे चुकाओगे
जिन माओं ने करी अपनी कोख कुर्बान
जिन माओं से जबरन छीनी गयी उनकी संतान
जिन ने देखे होते बेटें लहू लुहान
आज भेजा जाता नही सरहद पर अपना एक प्यारा लाल
उन माओं का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
खाई थी लाठियां नंगे बदन जिन्होंने
नही लगाया महीनों अन्न का दाना मुंह से
फिर भी डट के लड़े उस तानाशाह हुकूमत से
आज बिना ऐ.सी. के रहा नहीं जाता
उन शहीदों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
जवानी की सारी इच्छा त्याग जिन्होंने
फंदों को चूम कर गले लगाया
देश को थी और हमेशा रहेगी
जरुरत जवां लोगों की जवानी की
यह हमको बतलाया
आज सिगरेट, शराब, शबाब बिन
तुमसे रहा नही जाता
उन लड़कों की जवानी का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
जिन्होंने खून मांग कर आज़ादी दी
उनके खून में भी क्या रवानी थी
जिस खून से सींची इस देश की जमीं
उस खून की भी क्या कहानी थी
आज तुम १५०० में बेईज्ज़त कर आते हो
उन खून की बूंदों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
काकोरी में लुटा अंग्रेजी खज़ाना था
ताकि आने वाली नस्ल स्वतन्त्र हो
वो सोने की चिड़िया
जो रोज़ लुट रही थी
उस पर भी अत्याचार खत्म हो
यहाँ लाखों को झोपडी नसीब नही होती
तुम अपने ही देश को लूट कर
बंगले बनाते चले जाते हो
उन क्रांतिकारियों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
“इंक़लाब जिंदाबाद”
से गुंजाया था जिन्होंने आसमां
ऊँचा सुनने वालो को पहुँचाया
बम से फरमान
आज अपने हक के लिए बोला नही जाता
उन सूरमों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
जलियावाला बाग़ भी हुआ था लहू लुहान
डायर ने ली थी हजारों की जान
तुम सरकारी आकड़ों में उलझे रहते हो
जब बात छेड़ो तो सच दबा कर
३७९ की रट लगाते हो
घुमा था वो २१ साल प्रण लिए दिल में
आज देश के प्रति दो फ़र्ज़ निभाने से कतराते हो
उन कर्म समर्पित लोगों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
हम को तो गुलामी की आदत हो गयी थी
आज़ादी का मतलब समझाने के लिए
आज़ाद नाम जिन्होंने रखा
हस हस कर मौत का जश्न मनाया
बेड़ियों में दम नही तोडा
आज किसी साहूकार किसी सरकार से
दबते चले जाते हो
उन आज़ाद शेरों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
कुछ मामूली सी ख्वाहिशें
“हमारी मज़ारो पर लगेंगे हर बरस मेले”
“मेरा रंग दे बसंती चोला”
आज उनकी बात को सच करके
हर १५ २६ पर मजाक उड़ाते हो
उन निस्वार्थ एहसानों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
कश्मीर की बरफ हो या राजस्थान का रेगिस्तान
दिन-रात
सुबह-शाम
तुम्हारे लिए मरता एक जवान
तुम शहीद को शहीद कहलाने की इज्ज़त नहीं बख्शते
उन सरहद के पहरेदारों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
हमारा आज आने वाली पीढ़ी से लिया उधार है
इस बात को तुम कहा समझ पाओगे
२जी और कोयले से तुम इस आज को बर्बाद कर
कहाँ मुंह दिखाओगे
कहाँ स्वर्ग पाओगे
उस आने वाली पीढ़ी का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
एक बार इस देश पर मर जाये
फिर आराम से जी लेंगे
कुछ ऐसे थे बेटें इस देश के
जिन्होंने इसे भारत माता कहा
आज की तो में अब क्या बात करूँ
यह बताओ उन बेटों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
सर से पांव तक क़र्ज़ में डूबे हो तुम
मुझे तो यह समझ नहीं आता
इतने सारे क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे ?
Shubham Goyal
Really a beautiful poem .. Depicting the big sacrifices of our freedom fighters for our country and also asking the current generation to reflect on their actions and to acknowledge how badly we are neglecting the ones who once died for our mother earth !!
Virender Singh
awsum 1……depicts d reality how we have forgot those who 1nce sacrificed dere lives in d past in order to preserve d future….and make our motherland free from rulers….
keep gng bro u rocked…..
it touched my heart………………………….
Lakshay
mast h sheraaa lage rh…rab rakkha..