देश प्रेम

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नहीं जागेगा देश प्रेम
नहीं खौलेगा हमारा लहू
हमारे चेहरे पर शिकन भी न आयेगी
जब तक हमारे अस्तित्व पर प्रहार नहीं होगा।

जलती हैं किसी की बेटियां तो हमें क्या
हमारा घर तो महफूज है।
हो जाने दो तार – तार घर की इज्जत को
हमारे घर पर तो चार चांद लगे हैं।

मानसिकता हो गई है विकृत हमारी
नहीं तो क्या सुन नहीं पाते पड़ोस में उठती चीखें।
मूक बधिर दृष्टिहीन बने देखते हैं सब कुछ
ये तो न था संस्कार और संस्कृति हमारी।

हमारे स्वार्थ ने देश को कहां पहुंचा दिया
सोने की चिड़ि‍या को कर्जे में डुबा दिया।
मंदिरों में छिपा है बहुमूल्य खजाना
कूड़े में ढूंढते हैं बच्चे दाना – दाना।

खेतों में अनाज सड़ रहे हैं
लोग भूख से मर रहे हैं।
गणेश जी तत्पर हैं दूध पीने के लिए
किसान विवश हैं स्वहत्या करने के लिए।

देश में बेरोजगारी भत्ता मिलता है, रोजगार नहीं मिलता
कितने ही परिवारों को दो जून का खाना नहीं मिलता।
राशन कार्ड, बी.पी.एल. कार्ड बनवाने में टूट जाती है कमर
गरीबी तो मिटती नहीं, नेताओं पर होता है न कोई असर।

आज हम व्यस्त हैं फेसबुक पर फ्रैंड सर्किल बढ़ाने में
इन्टरनेट, चैटिंग, इयर फोन लगाने में।
हम तो खुश हैं रोशन हैं हमारे घर के दिये
भले ही जलता हो किसी गरीब का लहू इसके लिए।

हमारे लिए कुछ लोग अनशन कर रहे हैं
हम ड्राइंग रूम में बैठे लाइव टेली कास्ट देख रहे हैं।
देश सेवा के लिए हैं हमारे सैनिक सीमा पर उन्हें ही लड़ने दीजिए
हमें तो बस घर बैठ चुपचाप तमाशा देखने दीजिए।

गांधी जी की तस्वीर को हमने घर आफिस में सजाया है
उन्हीं के सामने बैठकर अवैध व्यापार चलाया है।
कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा जहां से हमने पैसा नहीं कमाया है
और की तो बात ही क्या हमने तो पशुओं का चारा खाया है।

देश की अस्मिता से हम खिलवाड़ कर रहे हैं
स्वयं भी डूब रहे हैं देश भी डुबा रहे हैं।
घुसपैठिये को शरण देकर हम अपनी ही जान गवां रहे हैं
कसाब जैसे आतंकी को हम छप्पन भोग खिला रहे हैं।

हम क्यों अपना लहू बहायें
मरणोपरान्त पुरस्कार पायें।
हो – हल्ला करने से कुछ नहीं होगा
जितना मिलना है वह हमारा ही होगा।

हमसे नहीं होगा गांधी सुभाष जैसा काम
हमें कौन सा करना है मरने के बाद अपना नाम।
देश स्वतंत्र है हम आजाद हैं
सबसे जरूरी हमारी जायदाद है।

इस आजादी के लिए दी थी बहुतों ने कुर्बानियां
आज भी देश में मौजूद हैं उनकी निशानियां।
हम नहीं कहते कि वे महान नहीं थे
हमारे कोई भी ”गुण” उनमें विद्यमान नहीं थे।

राम के आदर्श और सुभाष की वीरता
गांधी की विनम्रता और बुद्ध की धीरता।
कैसे सजायेंगे स्वयं को इन विशेषताओं से
हम तो भरे हुए हैं अहंकार दुर्भावनाओं से।

इन महान हस्तियों को हम श्रद्धांजलि देते हैं
हर पुण्यतिथि पर पुष्पांजलि देते हैं।
क्या हुआ जो रोज उनकी वंदना नहीं होती
होली, दिवाली भी तो रोज कहां मनती।

हम जीवित होते तो संभवतः कुछ गुंजाइश होती
मृत देह विद्रोह कहां से करती।
आत्मा होती तो आवाज देती
चुपचाप अत्याचार सहन नहीं कर लेती।

कब तक हसेंगे हम दूसरों पर
अब हमारी भी बारी आयेगी।
रहेगा न कोई संगी न साथी
जब काल की सवारी आयेगी।

कहां है यह देश और कहां है देश भक्ति
कैसे जागेगा देश प्रेम और कैसे मिलेगी मुक्ति।
है कोई जो कुछ रास्ता सुझाता
कुछ हमारी सुनता कुछ अपनी सुनाता।

भ्रष्टाचार, अनाचार के खिलाफ कौन लड़ेगा
हमें ही गांधी सुभाष बनना पड़ेगा।
आज एक नहीं सैकड़ो गांधी चाहिए
देश पर मिटने वाले भारतवासी चाहिए।

आओ, अपने मृत देह को जीवित करें
लुप्त हुई आत्मा का आह्वान करें।
प्राण, शक्ति, मन, क्रम, वचन से,
देश की सेवा में जुट जायें तन, मन, धन से।

हर किसी की जुबान पर हो बस एक नाम
देश की रक्षा ही हो बस अपना काम।
सौगंध लें नहीं करेंगें कभी भ्रष्टाचार
सहेंगे नहीं जुल्म और अत्याचार।

फिर से लायेंगे देश में खुशहाली और शांति
हम एक हैं एक रहेंगे अब रहे न कोई भ्रांति।
चुपचाप बैठकर तमाशा हम न देखेंगे
दूसरों के दुःख से अपनी आंखें हम न सेकेंगे।

त्याग कर जातिवाद, क्षेत्रवाद और न जाने कितने विवाद
हम अपनायेंगे प्रेमवाद और अहिंसावाद।
भूल कर सारे झगड़े फसाद, मिल कर करेंगें अपना काम
तभी देश फूलेगा फलेगा और विश्व में होगा इसका नाम।

तब नहीं जलेंगी किसी की बेटियां
अत्याचारियों के पैरों में होंगी बेड़ि‍यां।
रहेगा न कोई अमीर न गरीब
शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास होगा सबके करीब।

समानता का अधिकार स्वतः ही सबको मिलेगा
प्रगति का प्रति दिन इक द्वार खुलेगा।
हर मासूम के चेहरे पर चमक होगी
देश पर होने को कुर्बान हर जान तत्पर होगी।

जब जागेगा देश प्रेम
जब खौलेगा हमारा लहू
हमारे चेहरे पर शिकन जब आयेगी
तब हमारे अस्तित्व पर प्रहार कभी नहीं होगा।

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