नवचेतना

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जगतगुरु, सोने की चिड़िया कहकर देती दुनिया जिसको सम्मान,
भला ऐसे हिन्दोस्ताँ पर क्यों ना हो हमको अभिमान |
भारत माँ की लाज को रखकर हुए कई बेटे बलिदान,
सबसे पहले इस कवि का उन बेटों को अर्पित एक सलाम ||१||

आज हमारा देश है जकड़ा मजबूरी की जंजीरों में,
खुरच-खुरच कर नोच लिया इस बरगद को रकीबों ने |
सोना-चाँदी-हीरे देती थी जो धरती कभी यहाँ,
आज वहीं के बच्चे हीरे देखते हैं तस्वीरों में ||२||

धन-दौलत ले गये फिरंगी जन-जन को तडपा-तडपा,
देवभूमि को हिला दिया इन दैत्यों ने उत्पात मचा |
धर्म-ग्रन्थ, संस्कृति भी लूटी, हिन्दोस्ताँ को दिया सता,
बस जो कुछ वो छोड़ गये वो थी उनकी पाछिमी अदा ||३||

आज हमारे देश में पसरी मुसीबतें हैं कुछ घनघोर,
बढ़ रही हैं कुरीतियाँ और बढ़ते जा रहे हैं कुछ चोर |
नेतागण और अधिकारी बन गये हैं रिमझिम सावन के मोर,
अब आप बताओ ऐसे में ये देश भला जाये किस ओर ||४||

जेब गरम करने की फिराक में बैठे हैं आला अधिकारी,
घर पर बैठे मौज मनाते कहते हैं खुद को सरकारी |
दहेज़, नशा जैसी कुप्रथायें हिला रही हैं नीव हमारी,
नष्ट करें इनको खुद ही हम, ताकि खुश रहे पीढ़ी सारी ||५||

अपने पेट तक ही सीमित हो रहे हैं अब हम,
दूसरों की कुछ भी फिकर नही है |
‘लाखों बच्चे आज भी भूखे ही सोते हैं सड़कों पर’,
गिरती लाशों की कोई कदर नहीं है ||६||

कहीं कर्ज का बोझ दबा देता है गरीब किसानों को,
कहीं “कॉलेज की रैगिंग” निगल लेती है मासूम जवानों को |
रोगों से लड़ते-लड़ते जाती है जान गरीबों की,
मौला ना करे ऐसी हालत भी हो कभी रकीबों की ||७|||

आज जरुरत है चमन को जवानों की जवाँ जवानी की,
आज जरुरत है वतन को हिन्दोस्ताँ की नयी कहानी की |
आज अमल कर सके अगर हम, तो कल दुनिया हमसे हारी,
अगर आज भी आँखें मूंदी, गुलाम बनेगी पीढ़ी सारी ||८||

रुष, चीन, अमरीका, जापान, हैं दुनिया के देश महान,
इन सबसे भी आगे होगा इक दिन अपना हिन्दोस्तान |
तब जाकर अमर शहीदों की सफल हो सकेगी कुर्बानी,
वरना चिताओं पे मेलों तक ही, सीमित रहेगी उनकी कहानी |
वरना चिताओं पे मेलों तक ही, सीमित रहेगी उनकी कहानी ||९||
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— “जय हिन्द”/ ——- “आशीष नैथानी / हैदराबाद”
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