नित शीश झुकता रहे हमारा उनके नमन के लिये

Posted by
|

लड़कपन गुजारा जिन्होंने इस वतन के लिये
जवानी हवन की उन्होंने इस वतन के लिये
बुढ़ापे की नौमत न आयी इस वतन के लिये
नित शीश झुकता रहे हमारा उनके नमन के लिये//

सूरज की किरणें भी कम हैं उनकी अर्चना के लिये
चाँद की रोशनी भी मध्यम है उनकी अर्चना के लिये
गंगा की जलधारा भी कम है उनकी अर्चना के लिये
धरती की आँखें भी नम हैं उनकी अर्चना के लिये//

मंदिर भी उनकी मूरत से हर्षाते रहें
देवता भी खुद पर नित इठलाते रहें
घंटे भी उनकी यशगाथा में बजते रहें
उनके बलिदानों को गाकर हम नर्तन करते रहें//

वे वतन की हवाओं पे सिसकते होंगे अब भी
फिर कुछ कर गुजरने को बाजू फड़कते होंगे अब भी
तड़पन उदासी में उनके दिल धधकते होंगे अब भी
खुशबू से उनकी देवलोक महकते होंगे अब भी //

लड़कपन गुजरे यहाँ अब वतन के लिये
जिंदगी हवन हो यहाँ अब वतन के लिये
पूजा हो शहीदों की यहाँ अब वतन के लिये
नित शीश झुकता रहे हमारा उनके नमन के लिये//

Add a comment