परिवर्तन मुझे खुद में ही लाना होगा

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परिवर्तन मुझे खुद में ही लाना होगा

भाव के अतिरेक में,
बह रहा अशांत मन मेरा,
देख उसे आहत होता तन मेरा,
चोटे कितनी सहेगा वो जर्जर

देख रहा,
चौसठ वर्ष का वृद्ध लंगड़ाता चल रहा
अत्याचार,भ्रष्टाचार से ग्रसित
चार-चार होते उसके वस्त्र अव्यवस्थित,

दर्द अतीत का दबाये
है वो सोच रहा
कंहा गयी वो परम्पराएँ,
अतीत की मर्यादित कथाएं

पुरषोत्तम राम की मर्यादा
कृष्ण का कर्मयोग मनन
नानक का चिंतन
बुद्ध के वचन

महावीर की अहिंसा
गीता का ज्ञान
शहीदों का बलिदान
शिवा की शान
मीरा की तान
पुरखो का अभिमान

सुरदास के भाव
बिहारी के दोहों की शक्ति
कबीर की पंक्ति,
तुलसी की भक्ति

मेरे शैशव में तो देश प्रेम महान था
युवा हुआ तो कर रहा निर्माण था
इस अवस्था में क्यूँ घात है
क्यों न उनको पश्चाताप है,

मेरे बच्चे मुझसे क्यूँ बिछड़ रहे
भ्रस्टाचार और अनाचार में क्यूँ बिगड़है

चिकित्सक कौन ऐसा आयेगा
दूर बिमारिया कर जायेगा
क्या अपाहिज शारीर को फिर से स्वस्थ कर पायेगा

लड़ना मुझको ही है अपनी बिमारियों से
गर संतान मेरी दूषित हो रही
सुधारना मुझे ही है उन्हें प्यार से

परिवर्तन मुझे खुद में ही लाना होगा
मै भारत हूँ,
भारत कहलाना होगा

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