सच कहता हूँ, सच जीता हूँ, नहीं झूठ कह पाउँगा
जीवन शेष रहा जब तक, प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा
राजनीति है अर्थ खो चुकी, नीति समर्पित राज यहाँ
समजावाद बन गया सपन अब, लंगड़ाता सद्भाव यहाँ
जन रोता है तंत्र जाल में, जनतंत्र कहाँ कह पाउँगा
जीवन शेष रहा जब तक, प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा
आँखे सपनो को तरस गई, उर सज़ल फर्जी मुठभेड़ यहाँ
आधे से अधिक आबादी जब, सोती हो आधे पेट जहाँ
तब दिवा स्वप्न को तोड़ सके, ऐसी आवाज़ उठाऊंगा
जीवन शेष रहा जब तक, प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा
सापेक्ष सत्ता है मानक अब, गृह युद्ध छिड़ा हो आज जहाँ
उद्योग क्रांति के साये में, बढ़ाते कुछ पूँजी व्यक्ति यहाँ
तब मरघट की थाती चीरे जो, गीत वही मै गाऊँगा
जीवन शेष रहा जब तक, प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा
महगाई डायन खाय रही, उस पर खेलों में लूट यहाँ
सर्वोच्च सत्ता जब करती हो, अपने वेतन की बात जहाँ
तब दंभ चरित चेहरे के धब्बे, दर्पण बन दिखालाऊंगा
जीवन शेष रहा जब तक, प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा
सच कहता हूँ, सच जीता हूँ, नहीं झूठ कह पाउँगा
जीवन शेष रहा जब तक, प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा
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