.कई अनजान सी जुल्फें तेरा चेहरा संवारे हैं
जो बादल हम जगाए थे न जाने अब कहाँ होंगे….
कहाँ होगी मोहब्बत से लरजते होंठ की थिरकन
कहाँ होंगी वो मनभाती मधुर भावों की गहराई…..
क़ि जिनमे डूब कर उतरा किए थे पुरसुकून लम्हे ….
कहाँ होगी इबादत में झुकी वो नाजनी गर्दन
के जिसके ख़म पे जम पाकीजगी देती दुआएं थी |
कहाँ होगी वो शिद्दत से सधाए ध्यान की चोटी…..
कहाँ होगी वो मलखम दंड वो मुगदर क़ी बिजयारी
क़ी जिनमे तैरती थीं मछलियाँ वीरों जवानों क़ी —\
कहाँ गुम है जुबानों से वो बुलबुल सी वो कोयल सी
मधुर सरगम ……
कहाँ गुम है वो अमिया को कुतरती पाक दोपहरी
कहाँ गुम हैं फिराकों से टपकते बेर ओ गुंचे ….
कहाँ गुम मातारामों की जगाती पोपली घुड़की
कहाँ होंगे वो अब्बा के रखाए पाक दिल रोज़े…..
कहाँ होगी वो मन्नत से भरी पुरभाव नवरात्रि
कहाँ जासोन तैरे है खनकते हाथ लोटे में …..
कहाँ कुमकुम गमकता है कपालों के उजाले मैं ………
तन चले कितने किले कुछ ही सवालों से
कहाँ होंगे जवाबों की जमाखोरी के कारिंदे
वो वाशिंदे अमन के चैन के राही कहाँ होंगे…….
क़ि हर धड़कन का रिश्ता है उसी धड़कन के जामे से
समझ कर बूझने वाले परस्तेसिर कहाँ होंगे…….
मदरसे क्या इबादत के कहीं गुम हैं इबादत में
चले असबाब मैं तब्दील होने जिस्म ओ जाना…..
वो फितरत से हंसी चेहरे वो आदत से जवान सांसें
वो तिर्यक तैरती चितवन के हिरणों के छलावे सी …..
गुजरती किन निगाहों से कोई अब जान न पाए ….
कहाँ आँचल कटा होगा कहाँ गुम धान की अंजुर…..
किन्हीं गैरों क़ि खिदमत में जुटी हर गाँव की बेटी
दरकते होंठ कहती जो वो सहने में नहीं आता ….
बड़ी बदजात सी भाषा निगाहोंसे बयां होकर
हवा में तैर पूछे है तुम्हारे घर ओ आस्तांने ……..
किसी बेपर परिंदे की जमीन पर लोट सा होकर
जो मनवा खैर मांगे है वहीँ सोने की चिड़िया था\
वतन पर मर मिटे हैं हम वतन को अब जिला लो तुम
कहा है फिर जनम लेंगे शहीदों ने मुकामों से
कई अनजान सी जुल्फें तेरा चेहरा संवारे हैं ….
मदरसे इबादत
Posted by sbansal
October 10, 2012
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