तुम तो माँ हो, सब कुछ सहती हो
संतानों का फिर भी सम पालन करती हो
हो सहस्त्र श्वान कपूत एक सिंह उस पर भारी
नरसिहों ने दी आहूति तुझे है बारी बारी
है वहनियों में सिंह रक्त सभी को दिखला दो
गर्जन से अपने इस व्योम को भी दहला दो
उठो और माता के चरणों को धो दो
रहे पल्लवित धरा ऐसे बीजों को बो दो
माँ भारती का कर स्मर्ण अपने मन में
कर्तव्य पथ पर बढ़ चलो इस जीवन में
जब तक तुम हो माँ का ऊचा शीश रहे
रहे फैलता दशदिक् उनका आशीष रहे
आए हैं नरसिंह और अभी अनंत आयेंगे
तेरे चरणों में जो अपनी आहूति दे जायेंगे
© रतीश
Add a comment