मैं अनसुनी एक आवाज़ हूँ,मुझे ज़रा सुनकर देखो,
कहीं दूर खड़े हो सच्चाई से,पास आकर देखो,
डूब जाओगे इस हकीक़त की गहराई में तुम भी ज़रूर,
सिर्फ खुदको नहीं मुझे भी इंसान मानकर देखो……
ज़िल्लत मिली है सौग़ात में इस बेदर्द ज़माने से,
सोचूं की क्या मिटेगी ये एक ऊँचा नाम कमाने से,
खुदा ने तो हाड़-मांस-रख्त से बनाया सबको ,
फिर मुझे क्यूँ नापते हैं उंच-नीच के पैमाने से……
हैं ख्वाब मेरे भी,सांस लेता हूँ मैं भी यहीं ,
खड़े हो जिस धरती पर तुम,खड़ा हूँ मैं भी वहीँ ,
पूर्वजों की मान्यताओं की दुहाई देते हो आज तक भी ,
पहचान सिर्फ तुम्हारी है,और मेरा कोई वजूद भी नहीं??????
एक दिल है तुम्हारे जैसा जो रोता है कभी तुम्हारे हरकतों से,
जिंदा मुझे भी रहना है,क्यूँ मुंह मोड़ते हो मेरी हसरतों से ,
रगों में तुम्हारे जो लहू है लाल का,मुझमे वह रंग पानी का तो नहीं,
अब तो जीने दो,जज़्बातों को उभरने दो जो दबे हैं कई मुद्दतों से……
वह दमकता सूरज,वह फ़लक का चाँद,बिखेरता है रौशनी सबको एक सामान,
तो कैसे हूँ मैं तुमसे अलग,कारण बताओ या लौटाओ मुझे मेरा सम्मान,
तिरस्कार की नज़रें हटाकर देखो एक बार इंसान की नज़र से मुझे,
जातिवाद का भेद मिटाओ,अब करने दो मुझे भी खुद पर गुमान…….
सबसे बढ़कर भी एक ख़ास है तुम में और मुझमे ए नादानों!
हिंदुस्तान मेरा है ,चाहे तुम मुझे अपना मानो न मानो,
इसी मिट्टी में तुम भी समाओगे और समाऊंगा मैं भी एक दिन,
बस अब भारत को एक ही रहने दो,एक गुज़ारिश ये मेरी सुनो……
Add a comment