रंग लहू का एक है

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फुलवारी में फूल अनेक
चमन महकता एक है
रंग लहू का एक है|

संविधान की सौं थी मगर
समुदाय बंटा औ छिन्न हुआ,
शराफ़त की दुहाई थी मगर
चलन पशु से क्या भिन्न हुआ?
हम हिन्दू, हम ही मुसलमान
हम ही राष्ट्र की हैं पहचान
यहाँ मनुष्य समान हर एक है,
रंग लहू का एक है|

झुण्ड की कुछ काली भेंड़ों का
चलो, पर्दाफाश सरे-आम करें,
आस्तीन के साँपों का भी
जल्दी से काम तमाम करें|
भ्रष्ट व द्रोही के चंगुल से
मुक्त देश को करने में,
करें वही जो नेक है,
रंग लहू का एक है|

शांति-लौ जलते रहने को
दिया-तेल-बाती लगते हैं,
प्रेम-भ्रातृत्व-सहिष्णुता संग
देशभक्त-परवाने जलते हैं|
उनकी गाथाओं से लिख दें
अमन-चैन की अमर कहानी
जहाँ हो माहौल खुशी का
वहाँ आनंद अतिरेक है,
रंग लहू का एक है|

अपने ही हाथों गढ़नी है
पुनरोदय की अमिट निशानी,
कबिरा-गांधी की पवित्र थली में
मेल-जोल की पौध लगानी|
क्यों हो दंगा, क्यों फसाद
कैसा झगड़ा, कैसा विवाद
जब प्रेम-रंगों का इंद्रधनुष
क्षितिज पर अभिषेक है,
रंग लहू का एक है|
-अजय तिवारी
25 सितम्बर, 2012

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