रुग्ण राग छोड़ दो
भरत शर्मा ” भारत ”
हो गया व्यतीत उस अतीत को अब छोड़ दो |
उस पुरानी दास्ताँ का रुग्ण राग छोड़ दो ||…..
हो गया………………….
देश के समक्ष आज है चुनौतियाँ कई |
जाति भाषा धर्म में राष्ट्रीयता बटी हुई |
उन्नति की राह की सब विघ्न बाधा तोड़ दो ||
हो गया,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तंत्र सारा भ्रष्ट हुआ आज सारे देश का |
कौन ज़िम्मेदार है इस पूरे परिवेशका |
ऐसे उत्तरदाइयों की गर्दनै मरोड़ दो ||
हो गया………………….
जन गण के मौन से जो जेब अपनी भर रहे|
जोंक बनकर राष्ट्र रूपी रक्त को जो पी रहे |
दुष्ट दुराग्रहियों के चूषकांग तोड़ दो ||
हो गया…………………..
वक़्त की पुकार आज भेदभाव तोड़ दो |
राष्ट्र के उत्थान में निज स्वार्थों को छोड़ दो|
“भारत” माँ के गौरव को आम जन से जोड़ दो||
हो गया……………………
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