विश्व भारती
रवि-रथ उतरता जिस धरा पर सर्व प्रथम
भूतल पर सतरंगी आँचल फैलाती किरण
रौशन हो दम्काती कंचन सा हर एक कण
पर्वतों के भाल पर सिंदूरी तिलक कर रमण
जहाँ गूंजते मंदिर में घण्टे,घर घर आरती
ऋचा ऋचा पुकारती, वही है विश्व भारती
धर्मभूमि सिन्धु अम्बरा सुदेव निर्मितम धरा
स्वप्न सी सुकुमार ,स्वर्ण छवि सी मोहती
राम कृष्ण की जन्मभूमि, यहीं यहीं ऋतंभरा
नव प्रभात पर नव प्रशस्ति मार्ग खोलती
अप्सराएं जिसकी छटा,फलक से निहारती
ऋचा ऋचा पुकारती,वही है विश्व भारती
धरा थी समृद्ध,प्रचुर खनन सम्पदा से हरदम
अब ये स्वर्णिम शिखर है अतीत की घटना मात्र
विदेशी लुटेरो सम लूट रहे देशी नेता,हर कदम
सत्ता पर छा गए लालची, दबंग स्वार्थी पात्र
महंगाई बेरोजगार की दोहरी मार झेलती
ऋचा ऋचा पुकारती,वही है विश्व भारती,
आतंकी संघों का पनाहगार बना देश ,है डावांडोल
मंत्री ,नाते, रिश्तेदार आकंठ डूबे हुए, डाल रहे फूट
खुदरा बाजार में विदेशी निवेश मंदीद्वार रहा खोल
भ्रष्टाचार की बहती धार, महंगाई ,बेरोजगारी,लूट,
समस्याओं की सूची लम्बी जीभ लपलपाती
ऋचा ऋचा पुकारती ,वही है विश्व भारती
है प्रण न रहने देंगे भ्रष्टाचार की काली परछाई
महंगाई होगी दूर फिर होगा स्थापित रामराज्य
जिनकी कुर्बानियों पर खड़ा भारत दे रहा दुहाई
नींव के उन पत्थरों को नमन ,हो बुराई त्याज्य
जहाँ मिले ऐसा जज्बा,हो नौजवाँ हिम्मती
ऋचा ऋचा पुकारती ,वही है विश्व भारती
लाल बाल पाल,घोष,खुदीराम बोस ,गांधी, नेहरू
आजाद ,पटेल ,मौलाना जैसे आजादी के परवाने
फांसी की कोठरी में हंसी के ठहाके गूंजते चहकते
तलवारों के प्रहार झेल मुस्कुराने में नहीं हिचकते
कातिल को माफ़ कर हंसी खिलखिलाती
ऋचा ऋचा पुकारती,वही है विश्व भारती,
प्रश्न हो जब देश की रक्षा,सुरक्षा,अस्मिता का,
झांसी की रानी,रणचंडिका बन आगे आती नारियाँ
निज कल्पना साकार कर,भू ,अम्बर खंगारती
छछिया भर छाछ पर कान्हा को नचातीं गोपियाँ
अनुसूया त्रिदेवों को शिशु बना पुचकारती
ऋचा ऋचा पुकारती,वही है विश्व भारती,
मेहमानो को जहाँ पूजते आज भी देवतुल्य
एक छत के नीचे रहे साथ चार-चार पीढियां
जहाँ होता सबसे पहले भोजन देवों को अर्पित
दादा पोते का हाथ पकड़ करता पार सीढियां
जहाँ पर मनुष्यता निज स्वरुप संवारती
ऋचा ऋचा पुकारती,वही है विश्व भारती
संतोष भाऊवाला
Add a comment