कई काल के खण्डों में भी , जो रहा अनुपम अखण्ड
जिसके अंतस में प्रकाशित, संस्कृति की लौ प्रचण्ड
जिसके उर से जन्म पाकर , कलाओं ने वर्चस्व पाया
भुजाओं में सर को छुपा , संसार ने सर्वस्व पाया
और मानवता के प्रति है , जिसके मन में स्नेह अपार
हमको उस भारत पे गौरव , हमको उस भारत से प्यार
जिसकी पावनता की द्योतक, है धरा पर स्वयं गंगा
मान और गौरव झलकता, जब लहरता है तिरंगा
गुण अगर हैं मापने, इतिहास बारम्बार देखो
धरा का देखो रसातल, गगन का विस्तार देखो
पर उठाओगे कलम तो, खुद को पाओगे वहां
करने परिभाषित इसे तुम, थे खड़े पहले जहाँ
साहस-प्रतीक अशोक के, स्तम्भ के हैं सिंह चार
हमको उस भारत पे गौरव , हमको उस भारत से प्यार
पग-पग पे जिसने जगत को, जीवन का नव दर्शन दिया है
हर धर्म की समृद्धि हेतु, अपना घर आँगन दिया है
जिसकी मिट्टी की महक में, प्रेम और भक्ति बसी है
कण-कण में ईश्वर व्याप्त है, रज-रज सुधा रस से लसी है
सभ्यता कहती जहाँ की, चरित्र का निर्माण करना
वह किसी भी जाति का हो, दुखी जन का त्रास हरना
जिसको सब कुछ सहन पर, असह्न्य है मूल्यों पे वार
हमको उस भारत पे गौरव , हमको उस भारत से प्यार
सोने की चिड़िया जिसे, कह कर पुकारा विश्व ने
सब को आकर्षित किया, जिस देश के अपनत्व ने
आओ की हम एक हो, इस देश को आगे बढायें
कुरीतियों का तम हरें, जो हम वही दीपक जलाएं
प्रण करें कि देश की, निस्वार्थ सेवा हम करेंगे
प्रण करें जब तक जियेंगे, देश हित मन में रखेंगे
तब सब मिलायेंगे मेरी, आवाज़ में अपनी पुकार
हमको भी भारत पे गौरव , हमको भी भारत से प्यार
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