हाथ में वीणा नहीं तलवार दे दो
माँ मुझे रण बांकुरा श्रृंगार दे दो
सांस जब तक है ध्वजा ऊंची हो तेरी
स्कंध पर मेरे तनिक ये भार दे दो
हो गए हैं मस्त मद में पुत्र तेरे
माँ मुझे फिर नाग सी फुंकार दे दो
खड्ग खप्पर धारणी काली बना दे
साथ में नरमुंड का ये हार दे दो
दक्ष हैं सब वीर अपने कर्म पथ पर
पग में चीते की गति हुंकार दे दो
रक्त का आवेग अब थमने न पाए
शीश पर आशीष की बौछार दे दो
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