Bharatvarsh

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ऐ खुदा तेरी इस बसती में ,अब हराम चलता है
जिसम बेचे तो ग़ाली,ज़मीर बेचे तो सलाम चलता है

जब से आई है आज़ादी बदला बदला सा है दसतूर
अब हर ग़ुलाम के संग यहां इक ग़ुलाम चलता है

हर नुकड़ बाज़ार सजा है चमड़ी के ख़रीददारो का
मुन्नी हो या शीला यहां सब का इक दाम चलता है

कौन लिखेगा झूठ को झूठा कौन लिखेगा सच्च को सच्चा
कलम बिकती है हर तरफ़ बिका कलाम चलता है

मत घबरा भारतवरश अच्छा है हम सब राज़ी हैं
बसक इनसां गुम है ,बाकी धंधा तमाम चलता है – rajpaul sandhu

Comments

  1. Ashish Naithani

    September 18, 2012

    Waah !!! Bahut Khoob !!!

  2. Reet

    September 19, 2012

    Heart touching poem,nice written..!!

  3. Reet

    September 20, 2012

    Heart touching poem,nice written

  4. Birpal Somal

    September 21, 2012

    Words of truth in poetic form…great job.

  5. gagandeep

    October 16, 2012

    bahut khoob …sach hai aur likha bhi karara hai ekdum!!!

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