
Poem ID: 2
Occupation: Writer
Education: Other
Age: 23-28
Length: 40 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: March 15, 2012
Poem Submission Date: July 1, 2012 at 5:27 pm
Poem Title: बहुत फ़र्क है तुम्हारे और मेरे भारत में
बहुत फ़र्क है तुम्हारे और मेरे भारत में / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
तुम्हारा भारत-
एक डंडे की नोक पर फड़फड़ाता हुआ तीन रंगों का चिथड़ा है
जो किसी दिन अपने ही पहिए के नीचे आकर
तोड़ देगा अपना दम
तुम्हारे दम भरने से पहले।
मेरा भारत-
चेतना की वह जागृत अवस्था है
जिसे किसी भी चीज़ (शरीर) की परवाह नहीं
जो अनंत है, असीम है
और बह रही है निरंतर।
तुम्हारा भारत-
सफ़ेद काग़ज़ के टुकड़े पर
महज कुछ लकीरों का समन्वय है
जो एक दूसरे के ऊपर से गुज़रती हुईं
आपस में ही उलझ कर मर जाएँगी एक दिन।
मेरा भारत-
एक स्वर विहीन स्वर है
एक आकार विहीन आकार है
जो सिमटा हुआ है ख़ुद में
और फैला हुआ है सारे अस्तित्व पर।
तुम्हारा भारत-
सरहदों में सिमटा हुआ ज़मीन का एक टुकड़ा है
जिसे तुम ‘माँ’ शब्द की आड़ में छुपाते रहे
और करते रहे बलात्कार हर एक लम्हा
लाँघकर निर्लज्जता की सारी सीमाओं को।
मेरा भारत-
शर्म के साए में पलती हुई एक युवती है
जो सुहागरात में उठा देती है अपना घुँघट
प्रेमी की आगोश में बुनती है एक समंदर
एक नए जीवन को जन्म देने के लिए।
तुम्हारा भारत-
राजनेताओं और तथा-कथित धर्म के ठेकेदारों
दोनों की मिली-जुली साज़िश है
जो टूटकर बिखर जाएगी किसी दिन
अपने ही तिलिस्म के बोझ से दब कर।
मेरा भारत-
कई मोतियों के बीच से गुज़रता हुआ
माला की शक्ल में वह धागा है
जो मोतियों के बग़ैर भी अपना वजूद रखता है।
बहुत फ़र्क है तुम्हारे और मेरे भारत में!

Poem ID: 3
Occupation: Government
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 29-35
Length: 10 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: January 1, 2012
Poem Submission Date: July 2, 2012 at 2:42 pm
Poem Title: जो भी मिट गए, तेरी आन पर, वो सदा मिलेंगे यहीं कहीं
जो भी मिट गए, तेरी आन पर, वो सदा मिलेंगे यहीं कहीं
तेरी धूल में वो ही फूल बन के खिला करेंगे यहीं कहीं
ऐ वतन मेरे, नहीं कर सके, कभी काल भी, ये जुदा हमें
मैं मरा तो क्या, मैं जला तो क्या, मेरे अणु रहेंगे यहीं कहीं
तू ही घोसला, तू ही है शजर, तू चमन मेरा, तू ही आसमाँ
तुझे छोड़ के, जो कभी उड़ा, मेरे पर गिरेंगे यहीं कहीं
मुझे मेघ नभ का बना दिया कभी धूप ने तो है वायदा
मेरे अंश लौट के आएँगें औ’ बरस पड़ेंगे यहीं कहीं
कोई दोजखों में जला करे कोई जन्नतों में घुटा करे
जिन्हें प्यार है मेरे देश से वो सदा उगेंगे यहीं कहीं

Poem ID: 4
Occupation: Other
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 61-70
Length: 22 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: February 17, 2010
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 5:44 pm
Poem Title: हमारा तिरंगा
भारतीय अस्मिता का शुभ प्रतीक यह तिरंग ,
शक्ति शौर्य वीरता का शुभ प्रतीक यह तिरंग |
उर्ध्व रंग केसरी कह रहा हमे पुकार ,
उत्सर्ग कर दो देश पर सर्वस्व प्राण भी निसार |
एकता अखंडता का शुभ प्रतीक यह तिरंग ,
शक्ति शौर्य वीरता का शुभ प्रतीक यह तिरंग |
श्वेत रंग मध्य में दे रहा यही संदेश ,
सत्य से भरें हृदय शांतिमय हमारा देश |
शुचिता और सहिष्णुता का शुभ प्रतीक यह तिरंग ,
शक्ति शौर्य वीरता का शुभ प्रतीक यह तिरंग |
मध्य ही सजा हुआ गहरा नीला धर्मचक्र ,
चतुर्विंशति अराओं से निरत सजाये नव दिवस |
ऋत नियम नित्यता का शुभ प्रतीक यह तिरंग ,
शक्ति शौर्य वीरता का शुभ प्रतीक यह तिरंग |
हरित रंग अध भरे हरा भरा हमारा देश ,
आह्लाद से भरे कृषक लहलहाते अपने खेत |
सम्रद्धि सम्पन्नता का शुभ प्रतीक यह तिरंग ,
शक्ति शौर्य वीरता का शुभ प्रतीक यह तिरंग |

Poem ID: 5
Occupation: Student
Education: Pursuing Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 23 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: January 9, 2010
Poem Submission Date: July 8, 2012 at 1:11 pm
Poem Title: मैं, मेरा देश और हम आइ.आइ.आइ. टीयन्स
यह देश है मेरा ,मैं इसका वासी हूँ,
जो कुछ इसने मुझे दिया है मैं इसका आभारी हूँ |
अब है मेरी बारी ,मुझे कुछ कर दिखाना है,
इंजीनियरिंग की राह पे चल कर देश का सर ऊँचा कराना है |
आज, भले ही मेरा देश एक प्रगतिशील देश है,
पर वोह हम ही हैं जिन्हें इसे विकसित बनाना है ।
हम्मे से कुछ भ्रष्टाचार का बहाना दे, कर्तव्य से पीछे हट जाते हैं,
पर असल में वोह हम्मे से ही हैं जो भ्रष्टाचार को फैलाते हैं |
आज के नौजवान देश की ऐसी इस्थिथि देख विदेश चले जाते हैं,
पर अपने ही देश की गन्दगी साफ़ करने से कतरातें हैं।
हम सबका उद्देश्य अपने को एक अच्छा इंजिनियर बनाना है,
पर असल में आधों को तो सिर्फ़ पैसा कमाना है |
पैसे से बड़ी होती है इज्ज़त, ये कौन इन्हे समझाए ?
…पैसे से बड़ी होती है इज्ज़त, ये कौन इन्हे समझाए ?
अगर सच्चे हिन्दुस्तानी हैं तो देश में रहकर उसे उचाइयों पर ले जाएँ ।
इसलिए आज ही प्रन लो, की हम सब नौजावान मिलकर इस देश को वर्ल्ड पावर बनाएँगे ,
कम से कम ‘सूचना प्रोद्योगी’ के छेत्र में तो इसे अव्वल नम्बर पर ले जायेंगे |
अगर इसी तरह हर व्यक्ति, देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाएगा,
तो देखना मेरे दोस्त, हमारा देश सोने की चिडिया फिर से बन जाएगा |
जय हिंद!!

Poem ID: 6
Occupation: Student
Education: Bachelor’s Degree
Age: 23-28
Length: 19 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: May 10, 2007
Poem Submission Date: July 13, 2012 at 8:04 pm
Poem Title: पीले पत्ते …
छू धरा को पीले पत्तों ने
कुछ यूं आक्रोश जताया था ||
होकर छिन्न-भिन्न मचलती शाखों से
अश्कों का मतलब समझाया था ||
मंडराते श्वेत मेघों को, कर जल-विहीन
निरा श्यामल-रंग पहनाया था ||
बेडी कसे बरगद की रक्तहीन शिराओं में
बन तरुण अमर रक्त, नव-प्रवाह जगाया था ||
जलकर सबने, एक समां में
घर-घर समर-दीप जलाया था ||
बिखरे-बिखरे भारत को
कर तम-विहीन, जीवन नया सिखाया था ||
किया शंखनाद जो सबने मिलकर
विस्तीर्ण नभ का ज़र्रा-ज़र्रा थर्राया था ||
क्या दीवाने थे, वे पत्ते भी
एक-एक कोंपल में रंग नया छलकाया था ||

Poem ID: 7
Occupation: Other
Education: Bachelor’s Degree
Age: 29-35
Length: around 500 lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: July 16, 2012
Poem Submission Date: July 16, 2012 at 7:27 pm
Poem Title: हम.. आज़ाद भारतीय..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और अपनों की आजादी के आड़े भी आये..
कभी नारी है हारी गोहार लगाये,
अपनी वो इज्ज़त वा लाज बचाए..
कभी बच्चे भटकते दर दर हो बेबस,
सड़को पे लोगो की दुत्कार खाए..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और भारत की इज्ज़त की धज्जिया उडाये..
रोज़ है सुनते ढेरों कथाये,
सद्बुधी फिर भी किसी को न आये..
योन शोषण हो या हो कन्या भ्रूण हत्या,
आज भी अपराध होते है आये..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और पापो की गिनती बढ़ाते ही जाए..
भगवान को पूजे.. बुजुर्गो को कोसे,
सम्पति, ज़ेदात ही हमको भाये..
वृद्ध तो होना सभी को है एक दिन,
किस्सा वही फिर इतिहास दोहोराये..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और बुजुर्गो को बंधी बनाना हम चाहे..
भेद भाव, छुआ छुत के चलते,
ऊँच नीच के भाव पनपते..
उस बेचारे के भाग ही फूटे,
जो दलित वर्ग के घर में जन्मे..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और भिन्नता के तुच्छ दायरे में हम पलते..
राजनीती बनी हउवा सबके लिए,
पल्ले किसी के न कोई दावपेच आये..
मेहेंगाई भी मारे.. और दोखे भी खा रे,
सरकार के हाथो बने कठपुतली सारे..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और सरकार हमारी हमपर शासन चलाये..
बरोजगारी जो मारे तमाचे,
युवाओं के आत्मविश्वास टूटे..
भ्रष्टाचार.. घूसख़ोरी के चलते,
भारतवासी एक दूजे से भटके..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
अपनी इक्छाओ के दम पर दूसरो को निगलते..
सुरक्षा कर्मचारी या डाकू लूटेरे,
बहू बेटी के दामन पे डाके ये डाले..
सरकार ने पाले है खुद के संरक्षक,
आम नागरिक की मुश्किल ये क्या सुलझाए..?
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
पर फ़रियाद अपनी न कोई सुन पाए..
सहेमत है हम सब है कितनी बुराई,
आजादी को पाकर समझदारी न आई..
उत्पन्न हो जोश जब बुराई को देखे,
पर अगले ही पल सुस्ती विचारों को आये..
जो कहलाना चाहे हम आज़ाद भारतीय,
अपनी सोच को पहले हम आजादी दिलाये..
हम कहते है खुद को आज़ाद भारतीय,
और अपनों की आजादी के आड़े भी आये…

Poem ID: 8
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 51-60
Length: ४४ lines
Genre: Other
Poem Creation Date: August 15, 2011
Poem Submission Date: July 17, 2012 at 10:49 am
Poem Title: परिवर्तन मुझे खुद में ही लाना होगा
परिवर्तन मुझे खुद में ही लाना होगा
भाव के अतिरेक में,
बह रहा अशांत मन मेरा,
देख उसे आहत होता तन मेरा,
चोटे कितनी सहेगा वो जर्जर
देख रहा,
चौसठ वर्ष का वृद्ध लंगड़ाता चल रहा
अत्याचार,भ्रष्टाचार से ग्रसित
चार-चार होते उसके वस्त्र अव्यवस्थित,
दर्द अतीत का दबाये
है वो सोच रहा
कंहा गयी वो परम्पराएँ,
अतीत की मर्यादित कथाएं
पुरषोत्तम राम की मर्यादा
कृष्ण का कर्मयोग मनन
नानक का चिंतन
बुद्ध के वचन
महावीर की अहिंसा
गीता का ज्ञान
शहीदों का बलिदान
शिवा की शान
मीरा की तान
पुरखो का अभिमान
सुरदास के भाव
बिहारी के दोहों की शक्ति
कबीर की पंक्ति,
तुलसी की भक्ति
मेरे शैशव में तो देश प्रेम महान था
युवा हुआ तो कर रहा निर्माण था
इस अवस्था में क्यूँ घात है
क्यों न उनको पश्चाताप है,
मेरे बच्चे मुझसे क्यूँ बिछड़ रहे
भ्रस्टाचार और अनाचार में क्यूँ बिगड़है
चिकित्सक कौन ऐसा आयेगा
दूर बिमारिया कर जायेगा
क्या अपाहिज शारीर को फिर से स्वस्थ कर पायेगा
लड़ना मुझको ही है अपनी बिमारियों से
गर संतान मेरी दूषित हो रही
सुधारना मुझे ही है उन्हें प्यार से
परिवर्तन मुझे खुद में ही लाना होगा
मै भारत हूँ,
भारत कहलाना होगा

Poem ID: 9
Occupation: Other
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 54 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: January 6, 2012
Poem Submission Date: July 18, 2012 at 11:09 am
Poem Title: प्रियतमा दीपक जलाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
मैं लौटकर के आऊंगा
आशा बनाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
झूठ कैसे बोल दू की याद सब आते नहीं
पर बात पहुँचाने के लिए शब्द मिल पाते नहीं
जानता हू तुम सबके लिए मेरे कुछ फ़र्ज़ हैं
पर मातृभूमि का भी मेरे ऊपर बड़ा क़र्ज़ है
जीतकर के आऊंगा रणक्षेत्र से जल्दी प्रिया
तुम रौशनी को जगमगाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
माँ को कहना आँख के आंसू ज़रा से रोक ले
रण की खबरें कम सुने मन को ना इतना शोक दे
जल्दी ही गोद में सर रखकर सोने को मै आऊंगा
उसके हाथों से बनी मक्का की रोटी खाऊंगा
तुम माँ को ज़रा ढाढस बंधाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
बाबा को कहना शत्रु के सर मै काटकर के लाऊंगा
पीठ कभी ना दिखेगी सीने पे गोली खाऊंगा
आज ही सबसे कहे बेटा गया रण क्षेत्र में
मैं जान दे दूंगा मगर देश का सर नहीं झुकाऊँगा
वो गमछे में छुपकर रोएंगे
तुम हिम्मत दिलाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
बच्चो से कहना उनके पिता को उनसे बहुत सा प्यार है
झोले में मेरे मुनिया की गुडिया रखी तैयार है
आऊंगा अबकी बार तो ढेरों खिलोने लाऊंगा
कुछ दिन अपने बच्चो के संग गाँव में बिताऊंगा
कहना पापा इस बार रण के किस्से सुनाएगे
वीरगाथाएं सुनकर वीर उन्हें बनाएँगे
वो याद जब मुझको करे
उन्हें प्रेम से समझाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
तुमसे कहू क्या? तुममे बसते मेरे प्राण है
तुम प्रेयसी हो मेरी इस बात पर अभिमान है
जब तक जियूँगा मन में तुम्हारे प्रेम का राज होगा
मन के हर गीत में तेरे प्रेम का विश्वास होगा
गर लौटकर ना आऊं तो मेरी याद में रोना नहीं
शहीद की विधवा रहोगी ये मान तुम खोना नहीं
मांग का सिंदूर ना पोछना मेरे बाद में
मैं सदा जिन्दा रहूँगा तुम्हारी हर इक याद में
उम्मीद की राहें सजाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना …….

Poem ID: 11
Occupation: Software
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 23 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: March 8, 2012
Poem Submission Date: July 19, 2012 at 11:36 am
Poem Title: क्या देश है मेरा
वाह क्या देश है मेरा,
और क्या खूब हैं इसके नेता,
जिसने खेला नहीं आज तक गिल्ली-डंडा,
वो है यहाँ खेल मंत्री,
जिसने घिस घिस के की अपनी पढाई,
और वो है रेल मंत्री|
संतरी बनने को मांगे पोस्ट ग्रेजुएट
और मंत्री की पूरी नहीं यहाँ ग्रेजुएट,
जो दिन रात कमाता है,
उसका खून चूस लेते हैं टैक्स से,
और जो आराम से खाता है,
वो आलसी हो जाता है रिलेक्स से |
काम करने का मन तो इनता तब होता है,
जब उस काम के लिए इनका कोई अपना रोता है,
भूल जाते हैं ये की ये हमारी बात सुनने के लिए आता हैं,
और हम भी जानते हुए हर बार बस इन्हें ही बुलाते हैं,
यहाँ साथ देने को कोई राज़ी नहीं,
और लड़ने के लिए पकड़ लेते हैं जाति-धर्मं का छोर,
हम भी करते हैं गलती,
पर सामने वाले को कहते हैं चोर,
वाह क्या देश है मेरा |

Poem ID: 12
Occupation: Professional Service
Education: Other
Age: 29-35
Length: 791 words, 80 lines,20 paragraphs,19gaps lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 20, 2012
Poem Submission Date: August 16, 2012 at 5:37 pm
Poem Title: “सबसे प्यारा-न्यारा हिंद है”
“सबसे प्यारा-न्यारा हिंद है”
इस अंजुमन में गुलजार जिस्म का हर चिराग हिंद है ,
रूह पे ओढे हुए वतनपरस्ती का हर लिबास हिंद है !
बहती है वतनफरोशी इबादत की तरह यंहा हर लहू में ,
दिलों पर लिखी पावन इबारतों का कलाम हिंद है !
है हमारे खून का कतरा-कतरा रंग तिरंगा,
और जिस्म का अंश -अंश हिंद है !
बारोह माह देशप्रेम का मौसम यंहा एक सा,
धरती पर खुदा का बेमिसाल कमाल हिंद है !
है तिरंगा अहद हमारी आन के स्वर्णिम गौरवगाथा की,
पारवानावार देशभक्त यंहा हर आग का नाम हिंद है !
मकिने दिल शाने-भारत ,क्रांतिवीरो की मिट्टी ,
इस गुलिस्तान की आबोहवा का श्रंगार हिंद है !
पढ़ती है शहीदों की चिताएं भी हिंद्प्रेम के गीत यंहा,
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई कौम का हर सिंह हिंद है !
पैदा होता है हर हिन्दुस्तानी सरफरोशी की तमन्ना लिए,
वतन पर मर मिटने वाले सीनों का फौलाद हिंद है !
मिलती है इस चमन की खुशबुएँ भी गले अमलन,
इस मुल्क की मिट्टी-तरु-फूल-प्रस्तर तक हिंद है !
इसकी हिफाजत में शौक से कट जाते है लाखो सर यंहा,
आजादी के रंगरेज मतवालों का पैगाम हिंद हैं !
डोला मुगलों-अंग्रेजों का सिहासन जब हमने हुंकार भरी ,
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मर्दानी सिह्नाद हिंद है !
लिखा टीपू की बेखौफ तलवार ने स्वर्णिम अध्याय ,
छत्रपति शिवाजी और महराणा प्रताप का अमुल्य बलिदान हिंद है
पाशमुक्त भारत मस्ताने मंगल पांडे के बलिदानों की अमर कहानी है ,
वीर भगतसिंह के अमूल्य त्याग की अमरज्योति का प्रकाश हिंद है !
लाल-बाल-पाल ने दिया हमे स्वराज्य का मौलिक अधिकार ,
लौहपुरुष बल्लभभाई की लौह दृढ़ता का अंजाम हिंद है !
कर गए परिपाक गांधी-नेहरु-अम्बेडकर संविधान की जड़े,
अनगिनत हाथों की लकीरों में लिखी भाग्यलिपि हिंद है !
हिंदफौज के पुरोधा युगांतरवीर बोस बाबू फक्र है इसका ,
अथक अमरवीर चंद्रशेखर की अमर आजाद उड़ान हिंद है !
महाकवि गुरुदेव ने राष्ट्रगान से उलगुलानों में फूंका प्राण,
बंकिम जी के कालजयी राष्ट्रगीत का अतुल्य योगदान हिंद है !
किया बिस्मिल ने अखंड सरफरोशी से घात हिंद के दुश्मनों पर ,
जन-गण-मन, वन्देमातरम की अभ्यर्थना का इन्कलाब हिंद है !
विद्यापीठ तक्षशिला-नालंदा से ज्ञानगुरु हिंद ने दिया विश्व को ज्ञान,
आर्यभट्ट का विश्व को जीरो का अमूल्य दान हिंद है !
भाषाई सम्राट संस्कृत से लिया एटम ने अणु का नाम,
अलजेब्रा त्रिकोणमिति,केलकुलस का जन्मस्थान हिंद है !
आयुर्वेद के जनक भारत ने किया विश्व कल्याण ,
पृथ्वी की रवि परिक्रमा का खगोलीय अनुमान हिंद है !
पाई के मूल्यांकन का गणितशास्त्र का इतिहास है विश्व प्रसिद्ध ,
मार्यादा ,परम्परा ,संस्कृति की भव्यता का धाम हिंद है !
है गिरिराज हिमालय प्रहरी और माँ गंगा इसकी प्राण है,
कश्मीर से कन्याकुमारी का स्वर्गीय विस्तार हिंद है !
ऋषि-मुनिओं की तपोभूमि ,देव-देविओं की जन्भूमि भारत ,
देवल-दरगाह-चर्च-गुरुद्वारों के मुव्वहिद का उदगार हिंद है !
हल जोतता हलधर इस मातृभूमि की शान है ,
सरहद पर तैनात वीर जवानों का स्वाभिमान हिंद है !
खेल के मैदानों पर उठाते है इसे अपने शानो पर खिलाड़ी ,
होली-ईद-दीवाली-रमजान त्योहारों का सौहाद्र हिंद है !
लोकतंत्र है राष्ट्रधर्म यँहा हर हिन्दुस्तानी का ,
बहु धर्मी-भाषा-जाती-अनेकता में एकता की मिशाल हिंद है
है सत्यमेव जयते मूल मन्त्र हमारी न्याय व्यवस्था का,
जम्बूद्वीप,अजानभदेश,सोने की चिड़िया सब नाम हिंद है
नेस्तानाबूद कर दे अरि मंसूबों को, तरेरे जो तुझ पर नजरे भारत,
हवादिस आतंक से लड़े मिल के निसिबासर, हम बेखौफ हिंद है !
गर है दहशतगर्दो के पास असलाह-गोला-धोखा-बारूद,
तो हमारी जिरहंबख्तर के अंगार का उबाल हिंद है !
खौफजदा लाडो की आँखे ,बेनूर हो रहा नन्हा बचपन
कैसे हम इस मुर्दापन सी निष्ठुरता में जीवित हिंद है
वह कौन निशाचर जला रहा जो दंगों की भट्टी पर भारत
उसे रौंदने को फड़क रही भुजाएं और हिय में भूचाल हिंद है
भ्रष्टासुर लील रहा धीरे-धीरे नोच-नोच माँ भारती को
क्यों शमशानी चुप्पी से तू जडवत खामोश हिंद है
न बना वफादारी को किसी धर्म-रंग-जात-वर्ग-पार्टी का टट्टू
तेरे देशप्रेम और कुर्बानी का आज इम्तिहान हिंद है
अब वक्त नहीं रहा बन्दे चुप्पी बन सहने का
तेरे सत्याग्रह की आहुति के महाव्रत को बेताब हिंद है !
कितने काले सूरज और उगेंगे, कितने मटमैले डूबेंगे चाँद
तुझसे एक नई उजियारी सुबह के आमद को पूछ रहा हिंद है !
अकीदत रहे हर भारतवासी को अर्जमंद आर्यवत इतिहास की,
मातृभूमि की रक्षा को उठने वाली हर प्रतिकार हिंद है !
आओ खत्म करे सरहदे बैर-भाव,मजहबों की दीवार की ,
बजसिन्हा नव भारत के स्वपन को,मेरा मुश्ताक हिंद है
अब घायल इंडिया बेटी-भ्रूण ह्त्या -बलात्कार-कुपोषण-घोटालों के घावों से,
जगा जमीर के तेरे मेहनतकश हाथों में अब इंतजाम हिंद है !
सिमट न रह जाए भारतप्रेम पंद्रह अगस्त-छब्बीस जनवरी की तारीखों तक,
सौगंध तुम्हे नव भारत निर्माण की, कह्कशों में लिखो लहू से “सबसे प्यारा-न्यारा हिंद है” !

Poem ID: 13
Occupation: Writer
Education: Other
Age: 23-28
Length: 37 lines lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: April 1, 2013
Poem Submission Date: July 24, 2012 at 9:08 am
Poem Title: गा गौरव गान देश का
गा गौरव गान देश का,
दे आहुति प्राणो की, कर रक्षा
बड़ा मान देश का,
गा गौरव गान देश का|
आँखो मे हो अंगार
शोले भरे हो दिल मे,
ऐसा कुछ हो प्रहार
दुश्मन जा छिपे बिल मे,
प्राण तेरे खुद के लिए नही
दे! उधारा सामान देश का,
गा गौरव गान देश का|
करो याद उन्हे,
जो देश तुम्हारे हवाले कर गये थे
तुम करो हिफ़ाजत इसकी,
ऐसा दम भर गये थे
मिली जो पोशाक प्रहरी की
पूरा कर कर्म वेश का
गा गौरव गान देश का |
पवित्र गंगा-यमुना ने,
तुझको सींचा है
तेरे लालन पालन को,
विशाल धरातल खींचा है
वो आँचल मा का
समेटे दुख घनेरए है
हो खड़ा, बन सहारा
कर निपटारा उसके क्लेश का
गा गौरव गान देश का|
तू चंचल, तू चिंतित क्यूँ है,
खड़ा तेरे सात सारा देश,
तू वीर सपूत, वीर पुरुष,
सबल-सुफल तेरा वेश,तू
रक्षक है तिरंगे का
खा कसम,
ये बने ना कभी निशाना किसी द्वेष का,
गा गौरव गान देश का,
दे आहुति प्राणो की, कर रक्षा
बड़ा मान देश का,
गा गौरव गान देश का|

Poem ID: 14
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 17-22
Length: 56 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 13, 2011
Poem Submission Date: July 24, 2012 at 1:07 pm
Poem Title: कविता को बुनने का आधार कैसे दूं
“ कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ? ”
दिल की संवेदनाओ को मैं मार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?
पथ भ्रष्ट हो गया, पथिक भ्रष्ट हो गया,
गाँधी और सुभाष का ये राष्ट्र भ्रष्ट हो गया,
चंद रुपयों को भाई भाई भ्रष्ट हो गया,
जगदगुरु- सा मेरा देश भ्रष्ट हो गया..
राम राज्य लाने वाली सरकार कैसे दूं?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?
भ्रष्टाचार की खातिर शत्रु सीमा से सट जाते हैं ,
बुनियादी आरोपों से अब संसद तक पट जाते हैं ,
मानचित्र में हर साल राज्य बट जाते हैं,
भारत माता के कोमल अंग कट जाते हैं..
इस अखंड राष्ट्र को आकर कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?
आरक्षण विधान कर नेता यूँ सो जाते हैं,
मेहनतकश बच्चे खून के आंसू रो जाते हैं,
कर्म करते -करते कई युग हो जाते हैं,
कलयुग के कर्मयोगी पन्नो में खो जाते हैं,
कृष्ण ने जो दे दिया वो सार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?
माँ अपने बच्चे को ममता से सींच देती है,
मंहगाई की मार गर्दनें खीच देती है,
रोटी के अभाव में माँ बच्चा फेंक देती है,
फिर भी पेट ना भरा तो जिस्म बेच देती है,
इस पापी पेट को आहार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?
एक लाठी वाला पूरी दुनिया पे छा गया,
दूजा सत्ताधारी तो चारा तक खा गया,
चम्बल के डाकुओं को संसद भी भा गया,
शायद जीत जायेगा लो चुनाव आ गया,
ऐसे भ्रष्ट नेता को विजय हार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?
तिब्बत चला गया अब कश्मीर चला जायेगा ,
यदुवंशी रजवाड़ों में जब बाबर घुस आएगा ,
देश का सिंघासन चंद सिक्कों में बँट जायेगा ,
तब बोलो भारतवालो तुम पर क्या रह जायेगा ?
आती हुई गुलामी का समाचार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?
सीमा के खतों में हिंसा तांडव करती है,
सूनी राखी देख कर बहिन रोज़ डरती है,
नयी दुल्हन सेज पर रोज़ मरती है,
और बूढी माँ की आँखें रोज़ जल भरती है,
माँ को बेटे की लाश का उपहार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?
आज के भी दशरथ चार पुत्रों को पढ़ाते है,
फिर भी चार पुत्रों पर वो बोझ बन जाते है,
कलयुग में राम कैसे मर्यादा निभाते है ?
राम घर मौज ले और दशरथ वन जाते है,
ऐसे राम को दीपों की कतार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?
मानव अंगों का व्यापार यहाँ खिलता है,
शहीदों के ताबूतों में कमीशन भी मिलता है,
बेरोज़गारों का झुण्ड चौराहों पे दिखता है,
“फील गुड” कहने से सत्य नहीं छिपता है,
देश की प्रगति को रफ़्तार कैसे दूं ?
और कविता को बुनने का आधार कैसे दूं ?
सादर: अनन्त भारद्वाज

Poem ID: 15
Occupation: Software
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 29-35
Length: 28 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: July 26, 2012
Poem Submission Date: July 26, 2012 at 6:57 am
Poem Title: Wonderful nation
I ponder, that I know;
those borders are’nt lines
on a map tucked aside.
It has meaning, it’s a mark.
Into the nation, we are told,
we fall in as a loyal one.
We are bound to come to
make this land proud.
How could I fail
to understand the trail
where no one was namesake
and the substance was real.
Those colors on the flag
aren’t just art of hands
but a symbol of what for
this nation stands.
So varied, so unique,
the world had so much
to learn from this land,
like a stream flowing grand.
With a culture to feel
that it dawns, it reveals,
and the people fortunate
they were fed from this plate.
This is my homeland,
my dear motherland.
For every reason to say
my great fortune today.

Poem ID: 17
Occupation: Student
Education: High School
Age: 17-22
Length: 32 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 27, 2012
Poem Submission Date: July 29, 2012 at 8:25 am
Poem Title: ऐसी होली
“ऐसी होली खेलो लाल, ऐसी होली,
लेकर कराल करवाल , सुख का मंगल तिलक करो लाल|
ऐसी होली खेलो लाल, ऐसी होली |
जन्मभूमि का ऋण चुकाने को , सुख का मंगल तिलक करने को,
माता की आरती पुकारती , तेरे खड़ग उस दीप की बाती,
तुम स्वतन्त्रता के रक्षक हो, मुक्ति विरोधी के भक्षक हो,
लेकर कराल करवाल , माता का मंगल करने को लाल |
ऐसी होली खेलो लाल, ऐसी होली |
राष्ट्र हित में युद्ध करने को, धर्मराज को लाने को,
लाल, माँ तुझको पुकारती ,करवाल पकवान तुझको लाती|
लेकर कराल करवाल ,सुखदायी प्रलय को लाओ लाल |
ऐसी होली खेलो लाल, ऐसी होली |
खेलेगी माँ सिन्दूरी होली, नारी तेरी ही सिन्दूर की होली,
गूंजेगी माँ तेरे अमरत्व की बोली, सजने दे माँ हमरे प्राणों की डोली,
लेकर कराल करवाल , रक्त होली में हो जाओ निहाल |
ऐसी होली खेलो लाल, ऐसी होली |
फिर ना आयेगी लाल ऐसी होली, खेलेगी संग दुश्मन की टोली,
हंस पड़ेगी माँ देख सूरत भोली, ” हमरे प्यारे सुत हो तू “माता बोली |
ऐसी होली खेलो लाल, ऐसी होली |”
“परदेसी भी खेलो तुम ऐसी होली, तेरे आत्मा की बेड़ी ऐसे खोली,
आएगी माँ देख अब ऐसी होली,माँ अब तक तूने बहुत है रोली,
लेकर कृपाण पिचकारी आज, स्वाभिमान का लायेंगे ताज|
ऐसी होली खेलेंगे , हम ऐसी होली,
तेरे दुखों को हम हरने को, तेरी मंगल हम करने को,
लेकर कराल करवाल , शोभित करेंगे माँ तेरी दिव्य भाल |
ऐसी होली , हाँ माँ ऐसी होली |”

Poem ID: 18
Occupation: Other
Education: Bachelor’s Degree
Age: 41-50
Length: 8 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 30, 2012
Poem Submission Date: July 30, 2012 at 7:15 pm
Poem Title: आज़ादी
एक पाती
भीग गया हूँ नेह मेह से , तेरे धागे के स्नेह से
सजा हुआ है ये कलाई पर , स्म्रतियां कर गयी अंतर तर
नन्ही गुडिया सी तू मन में , वही छवि जो थी बचपन में
तू मेरी बहना है प्यारी ,अब तो तेरे कन्धों पर ही छोड़ चला हूँ ज़िम्मेदारी
मोर्चे से उठ रही पुकार , दुश्मन रहा हमें ललकार
क़र्ज़ दूध का चला चुकाने , आज़ादी के गा तराने
ठान लिया है में सीमा से ,दुश्मन को मार भगाऊंगा
सफल नहीं हो सका यदि ,सीने पर गोली खाऊंगा
आंच न आने दूंगा में ,भारत माँ की आन पर
हँसते -हँसते ओढ़ तिरंगा , खेल जाऊँगा जान पर

Poem ID: 19
Occupation: Teacher
Education: Other
Age: 36-40
Length: 20 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 31, 2012
Poem Submission Date: July 31, 2012 at 11:16 am
Poem Title: आखिर…कब…?
आखिर…कब…?
कब करवट लेंगे हिंद पुत्र, कब भारत माता बोलेगी ,
कब छोड़ रूप धरती का वह, शिव बन त्रिनेत्र को खोलेगी ?
कब गूंजेगा फिर अट्टहास, अम्बर में क्रोधित भारत का ,
कब चमकेगा फिर से फरसा, नभ में अरिदल संहारक का ?
क्या इसी तरह से छले हुए, बस शांति गीत ही गाएँगे,
या फिर अर्जुन की भांति नया, करतब कोई दिखलाएँगे ?
क्या तेरे कर्णों से अछूत है, माता की दारुण पुकार,
या देख न पाया तू भारत के, मस्तक पर शोणित की धार ?
फिर क्यों ब्रह्मा बन संबंधों का, सृजन कर रहा बार-बार,
बन रूद्र, आज, अरि की भू पर, तू उगल हलाहल एक बार |
जो ग्रीवा ग्रास हो खड्गों का, उसको न शोभती मालाएँ,
फिर कैसी सोच,कृपाण चला, तब सब मिल जन गण मन गाएं |
कर निश्चय मन में पुनः वीर, हम चन्द्रगुप्त बन जाएंगे,
पश्चिम में फिर अफगान तलक, भारत का ध्वज फहराएंगे |
कवि –
ज्ञानेश चन्द्र त्रिपाठी
विश्वशांति गुरुकुल वर्ल्ड स्कूल
राजबाग , लोनी कालभोर
पुणे (महाराष्ट्र) – 412201

Poem ID: 21
Occupation: Other
Education: Bachelor’s Degree
Age: 51-60
Length: 59 LINES lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 22, 2012
Poem Submission Date: August 29, 2012 at 2:47 pm
Poem Title: प्यारा भारत
भारत ही है जान हमारी
भारत से है शान हमारी
क्यूँ ना हो ये हमको प्यारी
यही तो है माँ हमारी
हमारे रग राग मे है
सुंदर सौम्य भारतीय संस्कार
जिसकी मिसाल देती
पूरी दुनिया बारंबार

Poem ID: 22
Occupation: Teacher
Education: Bachelor’s Degree
Age: 41-50
Length: 30 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 1, 2012
Poem Submission Date: August 3, 2012 at 4:44 pm
Poem Title: “मिली नहीं है आज़ादी हमको यूँ ही दान”
“मिली नहीं है आज़ादी हमको यूँ ही दान”
मिली नहीं है आज़ादी हमको यूँ ही दान
इसके लिए लुटा दिए लोगों ने प्राण
सबके अन्दर गूंज रहा था मुक्ति का जयघोष
लाजपत,गोखले ,तिलक व् सुभाष चन्द्र बोस
तब जाकर पाया हमने सुखमय ये परिणाम
इसके लिए लुटा दिए लोगों ने प्राण .
भटके वन -वन प्रताप पर मांगी नहीं दुहाई
नन्हें से बालक ने उनके घास की रोटी खाई
शिवाजी ने मराठों को एक डोर से बांधा
पाया लक्ष्य उन्होंने,जो था मन में साधा
बड़ी कठिनाई से पाया देश ने खोया मान
इसके लिए लुटा दिए लोगों ने प्राण.
आज़ादी की नींव में दबे बड़े हैं मोती
दुर्गावती ,लक्ष्मीबाई ,चेनम्मा हैं सोती
बनाई योजना क्रांति की कर दिया आगाज़
गूंजी नाना ,तात्या टोपे ,कुंवर की आवाज़
आन्दोलन नेत्रत्व हेतु शाह जफर का नाम
इसके लिए लुटा दिए लोगों ने प्राण
रोटी फूल कमल का विद्रोह का निशान बना
संघर्ष के लिए ३१ मई सन .७५ का दिन चुना ,
आज़ादी की ज्वाला ने सबको लिया लपेट
बैरकपुर ,मेरठ ,दिल्ली ,कानपूर समेट
की नहीं परवाहअपनी जला दिए अरमान
इसके लिए लुटा दिए लोगों ने प्राण .
आज़ादी की बलिवेदी पर करोड़ों हैं शीश चढ़े
माला में इसकी राम ,अशफाक ,भगत जड़े
स्वतन्त्रता संग्राम में साथ लड़े नर-नारी
दुर्गा भाभी ,भिकाजी कामा,अरुणा आसफ अली
बापू ,टैगोर ,बंकिम चंद लम्बी है दास्तान
इसके लिए लुटा दिए लोगों ने प्राण .

Poem ID: 23
Occupation: Software
Education: Bachelor’s Degree
Age: 23-28
Length: 386 words lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 25, 2012
Poem Submission Date: August 4, 2012 at 6:24 pm
Poem Title: ठहरा हुआ है वक्त सदियों से अब तो बदलना होगा ….
ठहरा हुआ है जो वक्त सदियों से, अब तो बदलना होगा
जल पड़ी चिंगारी को और सुलगना होगा………………
बुझती राख के ढेरों को शोलों में बदलना होगा……….
उबालो ज़रा लहू बदन का, थामों मशालें हाथों में
ठहरा हुआ है जो वक्त सदियों से, अब तो बदलना होगा
फिर किसी गाँधी की आँखों में ख्वाबों को पलना होगा
फिर किसी दधिची की हड्डियों को गलना होगा……
वक्त नहीं श्रृंगारों का, पथ है अंगारों का……………..
चलना होगा जलना होगा, जलना होगा चलना होगा
जब तक प्राण रहे शरीर में, ये ज्योत जलानी है…………………
बहुत हुई मनमानी, लिखनी अब नयी कहानी है………………..
जम गया लहू तुम्हारी नसों का या अब भी इसमें रवानी है…….
आओ देखें ज़रा इन ज़वान जिस्मों में, कितना खून है, कितना पानी है
प्राण रहे जिस्म में या इस दहलीज़ पे माथा फूटे……
देश हित की रक्षा में निज हित छूटे तो छूटे
हाथ रहे हाथों में प्रेयसी का या वादा टूटे
वृक्ष हुआ पुराना अब जरा इसमें नव अंकुर फूटे
बुनियादें तो हिली है कई बार, अब जरा ये दीवार टूटे
अब न कोई गद्दार बचे, अब ना ये वतन लूटे……….
साँसों से चाहे नाता टूटे, हाथो से ना तिरंगा छूटे….
अँधेरे कितना भी ताण्डव कर ले, सूरज को निकलना होगा
कितना भी शोर मचा ले तूफाँ, मौसमों को बदलना होगा
दौर नहीं मयखानों का, साकी का, जामों का, पैमानों का
वक्त है पुकारों का, गीत गूँजे जयकारों का
काँप उठे जर्रा जर्रा, देश के गद्दारों का
दौर नहीं फनकारों का, वक्त नहीं श्रृंगारों का
गीत गुँजे जयकारों का, शोर उठे ललकारों का
ठंडी पड़ी शिराओं का लहू उबलना होगा
फिर किसी भगत राजगुरु आज़ाद को घर से निकलना होगा
ठहरा हुआ है जो वक्त सदियों से, अब तो बदलना होगा
हो रहा चीरहरण अपने ही मौलिक अधिकारों का
बेमोल बिकते व्यर्थ शब्दों के व्यापारों का
अनगिनत सपने, अगणित इच्छाएँ,
असीमित आकांक्षाएँ, असंख्य महत्वाकांक्षाएँ
राष्ट्रप्रेम की ज्वाला में अरमाँ सब दलना होगा
वक्त नहीं श्रृंगारों का, पथ है अंगारों का………
चलना होगा जलना होगा, जलना होगा चलना होगा
ठहरा हुआ है जो वक्त सदियों से, अब तो बदलना होगा
बहुत हुआ अपना अपना घर बार, माँ का प्यार दुलार
देश के बेटों अब तो घर से निकलना होगा
जल पड़ी चिंगारी को और सुलगना होगा
बुझती राख के ढेरों को शोलों में बदलना होगा……….
ठहरा हुआ है वक्त सदियों से, अब तो बदलना होगा
दिनेश गुप्ता ‘दिन’

Poem ID: 24
Occupation: Software
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 38 lines
Genre: Shant (peaceful)
Poem Creation Date: August 9, 2012
Poem Submission Date: August 25, 2012 at 1:18 am
Poem Title: मिट्टी की महक
धर्म-ग्रन्थ, मन्त्र-यंत्र, लोक-तंत्र में सदा निहित रहे…
दान-पुण्य, धन-चमन इस भुवन में सदा फलित रहे |
देश-भक्त की जन-हित आशा, भू पर सदा तपित रहे,
मात्री-भूमि की शौर्य-विलासा, मन में सदा गठित रहे !
विराट जन जो शास्त्र को सर्वदा नकारते,
विज्ञान के प्रकाश में धर्म-ज्ञान ताड़ते !
राम-कृष्ण के कथा क्या काल्पनिक हैं ?
आवें! आर्यावर्त के इतिहास को पुकारते…
ग्रन्थ हो कुरान का या हो ये बाइबल…
इतिहास है गवाह इनके आस्तित्व की
फिर क्यों न शोध हो रहे वेद-ज्ञान की
गीता और रामायण-सी महा-काव्य की !
हर पौराणिक काव्य की कुछ तो जड़ें हैं
राम की साम्राज्य की हर तथ्य गड़े है…
आवो कोई विज्ञान की तलवार से कुरेदें
जो सत्य शिव है, तो नग्न अक्ष से देखें !
महाभारत का संग्राम के तथ्य आकार विहीन
वेदों में वर्णित दृष्टी के वेग के आयाम विलीन
गीता के आध्यात्म वाण के सारे गान निर्बोध,
धरती अपनी महक रही पर अंग रहे सब थोथ !!
हर प्राथमिक कक्षा की पुस्तक में यह बतलाओ,
अगर कृष्ण के वंसज हैं, तो हमको ज्ञात करा दो,
इस हिंदुस्तान की भूमि पर हुए अवतार अनेको,
हमें राम, कृष्ण की नगरी का इतिहास बता दो !!
मस्जिद, गिरजे सबको हमने खूब संवारा है,
परमहंस और साईं जी को दिल में उतारा है…|
मदर टरेसा, राष्ट्रपिता का विश्व में काया है,
फिर क्यों? आखिर क्यों??
मिट्टी की महक को हमने भांफ न पाया है !
आओ शोध करें हम देश की सुखी जर्जर मिट्टी में
हर सच्ची खोजों को डालें इतिहासों की गुच्छी में…!
विज्ञानों की पुस्तक में कुछ धर्म की बातें भी होती,
तो बचपन से ही राम-रहीम की शंका मन में न होती !!
— प्रभात कुमार (Prabhat Kumar)

Poem ID: 25
Occupation: Student
Education: Other
Age: 23-28
Length: 22 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 8, 2012
Poem Submission Date: August 11, 2012 at 9:38 am
Poem Title: भारत देश है अपना
हम भारतीय और भारत देश है अपना
स्वतंत्र रहना हर भारत वासी का सपना
भारत देश है जन्नत अपना
जहाँ धरा हरी और नीला अम्बर है अपना
वीरों से भरा ये भारत देश है अपना
जो हो जाते हैं कुर्बान पूरा करने में माँ का सपना
आये बाधा कितना हूँ पूरा करने में माँ का सपना
पर करते हैं वीर वो पूरा माँ का हर एक सपना
भगत सिंह और बोस आजाद ने दिया बलिदान है अपना
तब हुआ है स्वर्ग सवतंत्र भारत देश ये अपना
भूले नहीं हैं अभी भी हम सब कर्तब्य ये अपना
भ्रष्टता की जंजीरों से भारत माँ को है आजाद कराना
कहने को आजाद हैं हम पर कुछ होता नहीं अधिकार है अपना
क्योंकि भ्रष्टता के जाल में जो फँस गया है देश ये अपना
आओ अब से भी जग जाएँ कही बिक न जाये देश ये अपना
जिसे गर्व से कहते हैं हम सब सोने की चिड़िया देश है अपना

Poem ID: 26
Occupation: Other
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 51-60
Length: 34 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 6, 2012
Poem Submission Date: August 11, 2012 at 3:00 pm
Poem Title: ‘देश के नौजवानों के लिए’
आन, बान,अस्मिता लिए लड़ीं लड़ाईयां,
नौनिहालों शौर्य की सुन लो वो कहानियाँ,
जय भारती जय वीरभूमि जय –2 |
ललकारी थीं माँएं बहने अपनी आँख के तारों को,
सौंपके स्वर्नाभूषण चाँदी मंगल गले के हारों को,
स्वाभिमान का समर ढहाएं कटुता की दीवारों को,
कर में तिलक लगा पकडायीं दुधारी तलवारों को.
मातृभूमि के लिए होम हर कौम ने दीं जवानियाँ,
नौनिहालों शौर्य ……….जयभारती…….|
मुल्क मराठा जूझा था मुगलों के अत्याचारों से,
वतन परस्ती का जज्बा भर मतवाली हूँकारों से,
सत्ता छीन हुकूमत की गोरी शुरमेदारों से,
हिला दीं चूलें शूरवीरों ने इन्कलाव के नारों से,
शेर शिवाजी राणा प्रताप ने दीं अपनी कुर्बानियाँ,
नौनिहालों शौर्य …………जय भारती…….|
मनमानी की थीं अंग्रेजों ने जलियाँ वाले वाग में,
हल्दी घटी में राजपुताना आयुद्ध था उन्माद में,
कूदीं हजारों पद्द्मिनियाँ जौहर होने को आग में,
कई मिसालें गौरव की इस माटी की नाभि में,
वफादार चेतक की रण में चौकड़ी कलाबाजियाँ,
नौनिहालों शौर्य ……….जय भारत ………|
सर पे बांध तिरंगा सेहरा जाबांजी दिखलाई थी,
सीने पे जाने कितनी गोली दीवानों ने खाई थीं,
देख दीवानगी वीरों की ये धरती भी थर्राई थी,
प्राण दुलारों की आहुति पे ये आज़ादी पाई थी,
खेल खून की होली तोड़ी परतंत्रता की बेड़ियाँ,
नौनिहालों शौर्य……..जय भारती……,,|
लहर-लहर लहराये केसरिया शान से अभिमान की,
महाप्रसाद ये स्वतंत्रता का वीरों के बलिदान की,
ऋण तभी चुका पायेगा भारत होठों के मुस्कान की,
छाती से लगाये रखना थाती पुरखों के सम्मान की,
चैन की बंशी बजा के सोती आज़ादी चादर तानियाँ,
नौनिहालों शौर्य ……..जय भारती ……|

Poem ID: 27
Occupation: Student
Education: Pursuing Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 40 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 25, 2012
Poem Submission Date: August 12, 2012 at 7:23 am
Poem Title: आओ मिलकर राष्ट्र बनाए………………..
आओ जीवन अर्पण कर हर क्लिष्ट पथ सरल बनाए
उत्तर हिम को दक्षिण सिन्धु से मिलाये
चाहे पथ अति दीर्घ हो हर क्षण आगे बढ़ते जाये
पश्चिम बालु को पूरब वन से सजाये
हर जन कण को एक ही मंत्र में पिरोये
अप्रतिम सुरम्य राष्ट्र के सपने संजोये
समग्र भूतल व्योम को एक घर बनाए
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए………………..
२. प्रबल शौर्य भाव से आगे बढ आये
ह्रदय पीड़ा को घोल कर पि जाये
जब- जब धरती पर अधर्म का वास जड़ बनाए
नर नारायण बन कर उसे सम्पूर्ण मिटाए
आओ डील -डोल को सुगठित धड बनाए
प्राचीन विद्या पुंज के तेज को फिर बढ़ाये
सिंह के गर्जन की भाँति गाज गिराए
राष्ट्र के हर शत्रु को धुल चटाए
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए……………….
३. जब तक देह में प्राण लहु संचार बनाए
हर लहु बूंद को राष्ट्र पर बलि चढ़ाये
जब तक स्वयं अभिमान प्रेरणा स्त्रोत बनाए
ज्वाला को भी नीर की शीतलता से मिटाए
जब तक जननी की हर दुआ काम आये
अचल वीर हो राष्ट्र के लिए मिट जाये
जब तक गंगा निर्मल जल पाप कुकर्म मिटाए
अविरल अविराम हो राष्ट्रहित मर जाये
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए…………………
४. नाद ब्रह्म को कण तन में अनुभूत कराये
आतंक संत्रास भाव को प्रेम गरल पिलाये
चन्द्र तारत दीप्ति को श्रद्धा सार बनाए
द्वेष मालिन्य डाह को प्रणय राग सुनाये
इक ओंमकार सूत्र से जीवन अलंकृत कराये
उन्माद कट्टरपन को प्रीति द्दश्य दिखाए
यग्न अग्नि तपिश से ह्रदय मन तपाये
नीतिविस्र्द्ध अधर्म से वात्सल्य गान गवाए
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए……………………
आओ मिलकर राष्ट्र बनाए……………………

Poem ID: 28
Occupation: Journalist
Education: Bachelor’s Degree
Age: 29-35
Length: 41 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: August 13, 2000
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 12:22 am
Poem Title: कौन रखेगा याद मुझे
कैसे मनाऊं मैं आजादी,
अभी आजाद होना बाकी है
अभी आजाद होना बाकी है।
रूठने को तैयार पूर्वांचल,
कटने को तैयार कश्मीर।
हर तरफ है मुंह फैलाया,
सांपों का जंजाल यहां।
कितने हैं अभी भूखे नंगे,
उसे पूरा करना बाकी है।
लूटती है हर रोज,
यहां सैकड़ों पायल।
कितने ही दुल्हन की चूड़ियां,
होती हैं घायल।
गिरते पड़ते लोगों को,
सुरक्षा देना बाकी है।
फैल गया है समाज में,
धर्म और मजहब की बात।
राजनीति में भी आ गया,
जाति और वंशवाद।
इन सभी को अभी,
उखाड़ फेंकना बाकी है।
दोस्ताने व्यवहार ने दी,
कारगिर की चढ़ाईयां।
झेली है हमने,
एक दशक में तीन लड़ाइयां।
कितनी लड़ाइयां,
अभी और झेलना बाकी है।
कारवां गुजर गया,
साथ हो के विदेशी।
साथ लेकर अब चलें,
हर चीज स्वदेशी।
काम करना है अभी सभी,
जो करना बाकी है।
फिर मनाऊंगा मैं आजादी,
पूर्ण आजादी बाकी है।
पूर्ण आजादी बाकी है॥

Poem ID: 29
Occupation: Professional Service
Education: Bachelor’s Degree
Age: 29-35
Length: 30 Lines lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: August 15, 2011
Poem Submission Date: August 13, 2012 at 1:43 pm
Poem Title: हिंदुस्तान
हिंदुस्तान
हमने कब तुमसे तख़्त ताज,
और सम्मान माँगा था |
हम सबके सपनो में बसने वाला ,
एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था|
नाही तो हिन्दू और नाही,
मुस्लमान माँगा था |
हमारी सरहदों पर मिटने वाला,
बस एक सच्चा जवान माँगा था |
इंसानियत को रुसवा कर दे,
कब ऐसा इंसान माँगा था |
हमने तो केवल भगत सिंह जैसा,
एक सच्चा सपूत महान माँगा था |
तुम्हारे सियासी दंगों से बनने वाला,
कब वो मनहूस कब्रिस्तान माँगा था |
हम सबके सपनो में बसने वाला ,
एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था|
सबको भोजन, मुफ्त शिच्छा,तन पर कपड़े,
और चेहरों पर मुस्कान माँगा था |
हमने बस तुमसे भ्रस्टाचार मुक्त,
एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था |
पले सत्य बढे विश्वास,
नित – नित जीवन हो आसान |
सबको लेकर चलने वाला,
वह तरुण नौजवान माँगा था|
सबके हाँथो से गढ़ने वाला,
एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था|
शायद तुम कभी समझ भी न सको,
की हमने तुमसे कैसा इमान माँगा था |
क्या यही है वह देश जैसा तुमसे,
हमने अपने सपनो का हिंदुस्तान माँगा था|
प्रस्तुति-
संजय सिंह “भारतीय”

Poem ID: 30
Occupation: Software
Education: Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 68 lines lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 6, 2012
Poem Submission Date: September 15, 2012 at 8:20 am
Poem Title: Vibhajan Me
Wo Aaazadi nhi thi
wo kewal ek samjhuta tha
jab kisi ne balidani itihas par
kalis pota tha.

Poem ID: 31
Occupation: Other
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 36-40
Length: 63 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 9, 2012
Poem Submission Date: August 15, 2012 at 8:08 am
Poem Title: माँ की पुकार ……!
माँ की पुकार ——
न हिन्दू , न मुसलमान
न सिख , न ईसाई .
मेरे आँचल के लाल
तुम सब हो भाई भाई
गौर से देखो मुझे
मै तुम सबकी माई .
क्यूँ लड़ते हो आपस में
बैर की भावना
मन में क्यूँ समाई
कर दोगे हज़ार टुकड़े , मेरे
क्या यही कसम है तुमने खाई.
सत्ता के नशे में चूर
चश्मा कुर्सी का चढ़ा है ऐसा ,
कि नज़रे घुमाते ही ,
चारो तरफ बस ,
कुर्सी ही कुर्सी नज़र आई..
आँखों से टपकती हैवानियत में
लुटती हुई माँ कहीं नजर ही न आई .
भारत की सरजमीं को सीचा था,
जिस प्यार व एकता ने ,
आज फिर वही
टूटती – बिखरती नज़र आई
कटते जा रहे है अंग मेरे ,
ममता आज मेरी ,
बहुत बेबस नज़र आई ….!
आतंकवाद , भ्रष्टाचार और हैवानियत से
छलनी कर सीना मेरा ,
ये कैसी विजय है पाई .
माता के तो कण – कण में बसी है,
शहीदो के प्यार व त्याग की गहराई .
मत कटने दो अब अंग मेरा
बहुत मुश्किलों से ,
बेडियो से ,
मुक्ती है पाई
तुम सब तो हो भाई-भाई
गौर से देखो मुझे
मै हूँ तुम सब की माई .
सुनो हे वत्स
अपनी इस धरती
माँ की पुकार
इसी माटी पे जन्मे
वीर लाल , छोड गए है
बंधुत्व की अमित छाप
पर तुम्हारी करतूतों से
माँ हो रही जार -जार .
एक वक़्त था जब
धरा उगलती थी सोना
आज कोख हो रही उजाड़
आँचल भी हुआ है तार तार
यह कैसी ऋतु आई
खाओ कसम न करोगे
अपने भाई का सर कलम
न खेलो खूनी होली
ना काटो मेरे अंग
दो मिसाल एकता
और भाई चारे की
तो सुरक्षित हो जाये वतन
जन्मभूमि तुम्हारी आज
मांग रही तुमसे यह वचन
मेरे आँचल के लाल
तुम सब तो हो भाई भाई
गौर से देखो मुझे मै
तुम सब भी प्यारी माई.
——— शशि पुरवार

Poem ID: 32
Occupation: Student
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 26 lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: August 14, 2012
Poem Submission Date: August 14, 2012 at 7:26 pm
Poem Title: ये कैसी स्वतंत्रता ?
आजकल भारत मा की परवाह कौन है करता ,
जाने दो कैसे भी हो अपना तो काम है चलता
आम आदमी अपना पेट छोड़ कर और कुछ नही भरता
कहता है, मैंने तो नेता चुना वो क्यू नही लड़ता
नेता कहता है हमें मत”दान” करो, अब जब कर दिया है तो उसका भुगतान करो
नेता कहता है “हाहा” तु इसी तरह रहेगा मरता पर मेरा जेब रहेगा हमेशा भरता
बहुत कहने पर जब नेता को थोड़ी शर्म है आती,
तब सरकार योजना भवन से नयी योजना है लाती
जब दुखिया कहता है भूख,ग़रीबी,बीमारी है कुछ तो कहो,
तब नेता कहता है योजना बना तो दी उसी से खुश रहो.
दुखिया कहता है नेताजी मा बीमार है ज़रा देखें तो ना जाने क्यू परेशान है
नेताजी कहते है तेरी मा है तू जाने तब दुखिया ने कहा नेताजी, भारत मा है ज़रा पहचाने
जिसके तुम जैसे पे ना जाने कितने एहसान है.
ऐसे कपूतो को देख कर मा का दिल ना जाने कितना है दुखता,
ये क्या गम नही की आजकल तिरंगा भी चौराहो पर है बिकता
साल में दो ही दिन तो भारत मा की जय जयकार होती है
बाकी ३६३ दिन ये मेरी मा तो लाचार होती है.
राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान में अंतर जानते नही,तिरंगे का रंग पहचानते नही,
फिर भी सीना ताने कहते है अरे हम तो है हिन्दुस्तानी,आजकल के नये यांगीस्तानी.
आज अगर शहीद भगत सिंग,सुखदेव और राजगुरु होते
अपने इस भारत की दशा देखकर ना जाने कितना रोते
कहते हे मा, माफ़ करना हमें व्यर्थ गया हमारा बलिदान
पर चिंता मत करो कल को फिर कोई शहीद होगा ये सोच कर की यही तो है मेरा हिन्दुस्तान.
आज़ादी क्या होती है ये लड़नेवालो से जानो,
अरे तुम्हे तो मुफ़्त में मिली है ज़रा इसकी कीमत पहचानो.
जय हिंद, जय भारत

Poem ID: 33
Occupation: House wife
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 36-40
Length: 39 लाइन lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: October 10, 2012
Poem Submission Date: October 18, 2012 at 7:03 am
Poem Title: भारत माँ तू खास
दिलो में गूंजती जय जयकार
भारत माँ तू खास
पूरब हो या पश्चिम
उत्तर हो या दक्षिण
दिलो में हो काबा या काशी
हम सब भारत के रहवासी
तिरंगे का सम्मान
मिलकर गाते राष्ट्रगान
यही भारत का आधार
दिलो में गूंजती जय जयकार
भारत माँ तू खास
गांधी का अहिंसा पाठ
गौतम की मीठी बानी
गंगा जमुना औ सरस्वती
का निर्मल निर्मल पानी
वेद मंत्रो की बहती रवानी
पुरखो की गौरवशाली कहानी
यही है भारत का श्रींगार
दिलो में गूंजती जय जयकार
भारत माँ तू खास
शहादत का बाँध सेहरा
जंग पे बढ़ाये कदम
शत्रु के हर यतन
नेस्तनाबूद कर देंगे हम
बाँध सर पे कफ़न
जाँ तुझपे कुर्बान वतन
कभी नहीं मानेगे हार
दिलो में गूंजती जय जयकार
भारत माँ तू खास
शांति अमन का पैगाम
जन गन मन का गुणगान
तिरंगा भी कहे —
भारत गुणों की खान
यहाँ की संस्कृति महान
देश हमारी आन-बान -शान
हमें भारतीय होने का गुमान
भारत की माटी में भी प्यार
दिलो में गूंजती जय जयकार
भारत माँ तू खास .
–शशि पुरवार

Poem ID: 34
Occupation: Student
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 35 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: August 15, 2012 at 1:56 pm
Poem Title: स्वाधीनता सभा
सजती सभा स्वाधीनता,
सम्राट सा सम्मान है,
सम्पूर्ण सृष्टि सार सरिता,
सज रहा सुरधाम है,
स्वतंत्र स्वयंभू स्वराज्य का,
हो रहा उदघोष है,
लहरा रहा तिरंगा,
हर साँस में अब जोश है ||
इस तिरंगे में छिपे है,
सेकड़ो तप त्याग के,
छोड़ वैभव को गए जो,
हसते इस संसार से,
ढूंढता योवन जिन्हें था,
दे रहे थे आहुति,
शूलिया थी थक गयी,
उनकी कहानी न रुकी ||
ओज के वो पुष्प थे,
थे इस धरा के पुत्र वो,
रच गए इतिहास स्वर्णिम,
मृत्यु से अभिरुद्द हो,
देखती थी स्वप्न जो,
आँखे हमेशा वो रही,
है हकीकत सामने,
उपहार उनकी देन ही ||
नाद मस्तक ताल हृदय,
बढ रहे अविराम है,
प्रेरणा उनसे मिली,
जीवन नहीं विश्राम है,
स्वप्न है बस अब सजाना,
बाकि क्या जिए और क्या मरे,
और क्या वह जिंदगी,
जो न हुई राष्ट्र के लिए ||

Poem ID: 35
Occupation: Government
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 18 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: August 15, 2012 at 4:34 pm
Poem Title: भारत माँ, तुझसे करते हैं वादा
तुझे सम्पूर्ण और मुकम्मल आजादी दिलाने का है पूरा पूरा इरादा
हे भारत माँ, करना है तुझसे आज एक छोटा सा आशामयी वादा
जकडी और उलझी हुई है आज भी तू ना जाने किन किन बेड़ियों में
इन बेड़ियों के टुकड़े टुकड़े करने का किया है खुद से चाहतभरा वादा
वक्त ने जो तेरी साँसों में दे दी है भ्रष्टाचार की दूषित दुर्गन्ध
उसे महकती खुशबू में बदल डालने का है हमारा ओजस्वी वादा
अमीर होता जा रहा है अमीर और गरीब दरिद्रता में पिस्ता जा रहा
मेहनत और चेष्टा के बल पर इन रेखाओं को जड़ से मिटाने का है वादा
लूटमार और धोखाधड़ी का दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है रोग
इस घृणा भरी बीमारी पर भी नियंत्रण लाने का है पूरा पूरा वादा
क्यूँ रहें बिना पढ़े लिखे आज भी हमारे साथी नौजवान और युवतियां
गाँव गाँव और गली गली साक्षरता और शिक्षा लाने का किया है वादा
कहते हैं तुझे हम माँ और लुटते देखते हैं बेधड़क इज्ज़त स्त्रियों की
आज अपनी कथनी और करनी में समानता लाने का है सक्षम वादा
आज मांग रही है भारत माँ एक मुख़्तलिफ़ और अनोखा सा बलिदान
उस न्यारी सी उसकी चाहत पर मर मिटने का है हम सभी का इरादा
तुझे सम्पूर्ण और मुकम्मल आजादी दिलाने का है पूरा पूरा इरादा
हे भारत माँ, करना है तुझसे आज एक छोटा सा आशामयी वादा

Poem ID: 36
Occupation: Writer
Education: Bachelor’s Degree
Age: 41-50
Length: 33 lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: September 1, 2012
Poem Submission Date: September 1, 2012 at 4:30 pm
Poem Title: शब्द दर शब्द
शब्द दर शब्द
चुक रही हैं इबारतें
गीता के श्लोक
वेदों की सीख
कुरआन की आयतें
शब्द……………
१- ‘बांटों और राज करो’
फिरंगी- रणनीति थी
पर असम, काश्मीर ने
पुनः वह गाथा कही
हाशिये पर हाँफते
लाचारियों के काफिले
बेसबब चलती रहीं –
सियासती कवायदें
शब्द……………
२- भेड़ सम जनचेतना
जो हांकते थे रहनुमा –
कुर्सियों के खेल ने
पहुंचा दिया उनको कहाँ!
लूट, बदहाली पे फिर
ये शोरोगुल तब किसलिए?
मर गयी इंसानियत
ज़िंदा रहीं रवायतें
शब्द …………….
३- देश है जिनकी बपौती
व्यवस्था जिनकी गुलाम
घोटालों का खेल खेलें रोज वे
सुलगे अवाम
तांडव से आतंक के –
फिर बस्तियां उजड़ी तमाम
पंगु जनादेश पर
कायम रही विरासतें
शब्द ………………….

Poem ID: 37
Occupation: Other
Education: Bachelor’s Degree
Age: 23-28
Length: 38 lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: April 12, 2012
Poem Submission Date: August 16, 2012 at 9:34 am
Poem Title: प्रजातंत्र का अंग
धीरे धीरे कोहरा छंटने लगा
मानव सभ्यता की देहलीज पर
एक नए सूर्य का
उदय हुआ !
रात के सन्नाटे से परेशान
सोया हुआ आदमी
नींद से जगा !
प्रकाश के चकाचौंध से
उसकी आँखें चुंधिया गईं !
आँखें मल – मल कर उसने देखने की कोशिस की !
कुछ दिखा –
कुछ नहीं दिखा !
लाशों के बीच
तिरंगा पकडे एक बूढा –
कृशकाय !
आजादी की कीमत
“लाश”
आजादी का मतलब
“बंटवारा”
हिस्सा -हिस्सा आजादी !
टुकड़े -टुकड़े आजादी !!
उस बूढ़े की कल्पना साकार हुई !
भारत आजाद हुआ !
और आज
वही भारत ,
धर्म और राजनीति का अखाडा है !
बेबस मजबूर मनुष्य ,
इस आजादी का मारा है !!
अब रावण
राम से नहीं डरता !
क्योंकि उसके पास
खद्दर की शक्ति है !
वर्दी का हथियार है !
खद्दर से बलात्कार होता है !
वर्दी से अपहरण !
किन्तु आखिर में
वह भी तो
“प्रजातंत्र का ही एक अंग” है

Poem ID: 38
Occupation: Journalist
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 29-35
Length: 30 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: February 1, 2011
Poem Submission Date: August 17, 2012 at 10:58 am
Poem Title: गणतंत्र को नमस्कार है।
भुखों और गरीबों की लग रही भरमार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
हिन्दी यहाँ की फिजा में घुट रही,
अंग्रेजी का बढ़ रहा हमपे अधिकार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
देशी उत्पादों से कतराते लोग यहाँ,
विदेशी सामानों से सजता रोज बाजार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
सभ्यता और संस्कृति रोती सरे बाजार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
छोटों-बड़ों को प्यार और आदर देना,
भुल गया यहाँ हर परिवार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
अपनी तहज़ीब अपनी जिम्मेदारी के धर्म से,
दूर होकर जीने का यहाँ हो चुका आगाज है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
शहीदों की मजारों पर भी अब,
लगता राजनीति का घिनौना बाजार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
मजहबों के नाम पर रोज इंसान बँटते हैं,
भाईचारे के पाठ से बचता यहाँ का समाज है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
अमन और शांति से भटक रहा मुल्क है,
उग्रवाद का रोज झेलता दंश है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
बेरोजगारी की मार है जीना दुश्वार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
विदर्भ में किसान जल रहे,
हर तरफ खेतों मे पसरा हाहाकार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
पैसे लुटती सरकार चल रही,
कानून भी बेचारी यहाँ बीमार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
पुलिस जनता पर धौंस जमा रही,
न्यायपालिका यहाँ की लाचार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
इज्जत के नाम पर बली चढ़ रही,
खापों की चल रही सरकार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
आरक्षण देने दिलाने की राजनीति हो रही,
शिक्षा व्यवस्था की स्थिती बेकार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
भ्रष्टाचार खुली हवा में हो रहा,
पूरी व्यवस्था यहाँ शर्मसार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
अनाज के एक-एक दानों की मारामारी है,
कालाबाजारी करने की हर रोज होती तैयारी है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।
भारत तो है गौरव हमारा,
चाहे यह कितना भी लाचार है।
फिर भी इस गणतंत्र को नमस्कार है।

Poem ID: 39
Occupation: Writer
Education: Other
Age: 51-60
Length: 20 lines lines
Genre: Other
Poem Creation Date: February 8, 2007
Poem Submission Date: August 18, 2012 at 1:28 pm
Poem Title: बलिदान चाहिए
मेरे देश को भगवान नहीं,सच्चा इंसान चाहिए,
गांधी-सुभाष जैसा बलिदान चाहिए।
इंसानियत विलख रही इंसान ही के खातिर,
इंसाफ दे सके जो ऎसा सत्यवान चाहिए…..
मेरे देश को भगवान नहीं सच्चा इंसान चाहिए।
बचपन यहां पे देखो बन्धुआ बना हुआ है,
दिला सके जो इनको मुक्ति ऎसा दयावान चाहिए….
मेरे देश को भगवान नहीं सच्चा इंसान चाहिए।
मुखौटों के पीछे क्या है कोई जानता नहीं है,
दिखा सके जो असली चेहरा ऎसा महान चाहिए….
मेरे देश को भगवान नहीं सच्चा इंसान चाहिए।
रोज़ मर रहे हैं यहां कुर्सी के वास्ते,
जो देश के लिए जिए-मरे,ऎसा इक नाम चाहिए….
मेरे देश को भगवान नहीं सच्चा इंसान चाहिए।
सदियों के बाद भी जो इंसां न बन सकी है,
समझ सके जो इनको इंसान,ऎसा कद्र्दान चाहिए…
मेरे देश को भगवान नहीं सच्चा इंसान चाहिए।
मेहनत से नाता टूटा सब यूंही पाना चाहें,
गीतोपदेश वाला कोई श्याम चाहिए…
मेरे देश को भगवान नहीं सच्चा इंसान चाहिए
Poem ID: 40
Occupation: Government
Education: Bachelor’s Degree
Age: 61-70
Length: 34 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: August 20, 2012 at 11:02 am
Poem Title: आज जो भी है वतन
आज जो भी है वतन आज़ादी की सौग़ात है।
क्या दिया हमने इसे यह सोचने की बात है।
कितने शहीदों की शहादत बोलता इतिहास है।
कितने वीरों की वरासत तौलता इतिहास है।
देश की ख़ातिर किये हैं ज़ाँबाज़ों ने फ़ैसले,
सुनके दिल दहलता है वह खौलता इतिहास है।
देश है सर्वोपरि न कोई जात-पाँत है।।
आज़ादी से पाई है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
सर उठा के जीने की, कुछ करने की प्रतिबद्धता।
सामर्थ्य कर गुज़रने का, हौसला मर मिटने का,
काम आऍ देश के, कुछ करने की कटिबद्धता।
सर झुके ना देश का, बस एक ही ज़ज़्बात है।।
सोएँगे बेफ़िक्र हो, लुटेंगे ये सच्चाई है।
एक जुट होना ही होगा, देश पे बन आई है।
आतंक भ्रष्टाचार ने, अम्नो वफ़ा पे घात कर,
दी चुनौती है हमें, फ़ज़ा भी अब शरमाई है।
पत्थर जवाब ईंट का, घात का प्रतिघात है।।
महँगाई, घूस, वोट की राजनीति अत्याचार है।
क़ानून का मखौल भी, अब होता बारबार है।
जनतंत्र में जनता ही त्रस्त, ख़ौफ़ में जीती रहे,
रक्षक बने भक्षक, तो कैसा, कौनसा उपचार है।
खुशहाल हो हर हाल में, वतन तो कोई बात है।।
करें नमन शहीदों, हुतात्माओं और वीरों को
बापू, जवाहर, लोहपुरुष और सैंकड़ों वज़ीरों को।
बनाना है सिरमौर, फहराना है परचम विश्वम में,
अक्षुण्ण अपनी सभ्यता, संस्कृति की नज़ीरों को।
गिद्ध दृष्टि डाले, ना किसी की भी औक़ात है।।
आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौग़ात है।।

Poem ID: 41
Occupation: Professional Service
Education: Bachelor’s Degree
Age: 29-35
Length: 40 lines
Genre: Hassya (comic)
Poem Creation Date: August 21, 2012
Poem Submission Date: August 21, 2012 at 5:13 pm
Poem Title: राजनीती की परिभाषा
इस राजनीती की अपनी ही परिभाषा है..
यहाँ हर एक नेता की अपनी ही एक भाषा है|
हर कोई यहाँ अपनी ही रोटी सेक रहा है ..
भूके के पेट पर मोबाइल की रोटी फेक रहा है ||
अब १०० रूपये तक का बिल सरकार भरेगी..
और देश की भूखी जनता, गूगल से रोटी डाउनलोड करेगी||
मटर पनीर और शाही पनीर का एम.एम.एस होगा.
और धन्यवाद दो अहलुवालिया को क्यों की ..
२० रुपये कमानेवाला अगले साल से अमीर होगा .||
किसी ने सही कहा है, पैसो से पेट नहीं भरता..
पर पैसे वाला इंसान, कभी भूखा नहीं मरता ||
मंत्री हमारे अल्पहारी कहलाते है ..
आम जनता से हमदर्दी है, इसीलिए
खाना कम और पैसा पेट भर खाते है ..||
दलाली मैं हाथ तो पंतप्रधान के भी काले है
किस से जाके कहे..
आम इंसान को दो वक़्त की रोटी के लाले है ..||
देश मैं हर तरफ अकाल ही अकाल है..
मनमोहनजी हमारे कहते है ..
माँ हमारी मैडम जी .. और हम उनके ही लाल है ||
बंद करो ये एम.एम.एस, दंगो के आसार है ..
पर शिन्देजी जरा ध्यान से ..
ये एम.एम.एस तो, मन मोहन सिंह का ही सार है||
क्या होगा इस देश का,
यहाँ की बेबस जनता.. राजनीती से बेजार है|
हाथ का चांटा गाल पर है तो कमल कीचड़ से सरोबार है
घडी, साइकिल की धीमी रफ़्तार है तो लालटेन होते हुए भी अन्धकार है ||
ए मेरे दिल तू बेकार ही रोता है ..यहाँ मौत मतलब इंसान लम्बा सोता है..
क्यों की ये गिद्धों की बस्ती है मेरे दोस्त .. यहाँ मौत ही उत्सव होता है.

Poem ID: 42
Occupation: Writer
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 05 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 22, 2012
Poem Submission Date: August 22, 2012 at 4:01 pm
Poem Title: गंगे की कसम हमको …………….
”तिरंगे की कसम ”
गंगे की कसम हमको ,तिरंगे की कसम हमको |
थके उड़कर भी जो न उस परिंदे की कसम हमको ||
लड़ेंगे आखिरी दम तक , लिए हैं हाथ गंगाजल ;
जिन्होंने देश को लूटा , करेंगे हम भसम उनको ||
—-सुनील ‘नवोदित’ ,मानिकपुर

Poem ID: 43
Occupation: Non-Profit
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 677 words lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 23, 2012
Poem Submission Date: August 22, 2012 at 7:36 pm
Poem Title: अपने भावों को ज्वाला बनाकर….
अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
अश्कों से भिगो कर पन्ने, इन्ख्लाब है लिख डाला
अपने देश की मिट्टी को, घर घर में पहुँचाने को
लगा हुआ हूँ इसी जुगत में, रातों को जला डाला
अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
मात्रभूमि के चरणों को, जज्बातों से सजा डाला
न मुझको जरुरत है, प्रियतम के सहारे की
न मुझको अभीलाशा है, लोगों के इशारे की
मैं तो कर रहा हूँ करता रहूँगा, भारत का गुणगान
जब भी होगी बात वही फिर, हिंद के जयकारे की
अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
अल्फासों के फूलों की, चढ़ा रहा हूँ मैं माला
मेरी रातों में जब भी, रत जागों के दीप जलते हैं
भगत आज़ाद के शब्दों , के जैसे तीर चलते हैं
मेरी खामोशियाँ भी, मुझको अक्सर छेड़ जाती हैं
वो जब नेता जी के किस्से, मुझसे बोल पढ़ते हैं
मैं लिखने से पहले, हर दम रो पढता हूँ
जब बिस्मिल की कविताओं के, शब्द गूँज पढ़ते हैं
अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
कुछ और पीने की जरुरत ही क्या, जब देश प्रेम ही पीडाला
है विकट समस्या मेरे देश की, यहाँ जन जन में वो धार नहीं
संबेदनाओं से भरे हें बहुत पर, कुछ करने को तैयार नहीं
क्या इस मिट्टी के उन सब पर, कोई उपकार नहीं
बस नौकरी पैसा ही काफी है, किसी बेबस का प्यार नहीं
यहाँ पग पग पर मासूमों पर, क्या होते अत्या चार नहीं
जो घूम रहे हें सडको पर एक वक़्त के भोजन की खातिर
क्या वो इसी देश के आधार नहीं
क्या भुखमरी और गरीबी के आगे, हम लाचार नहीं
चन्द लोगों के हाथ में, देश की पतबार नहीं
पीड़ी दर पीड़ी चलाते, जो हम पर अधिकार नहीं
जो मिली थी आजादी, क्या वो कुछ एक का प्रभार नहीं
बेरोज गारी में मिट रही हे जवानी, क्या ये हमारी हार नहीं
किसानो की जिन्दगी है भंवर में, ये हमे कतई स्वीकार नहीं
ऐसे कई सवाल हैं, जो उठते हैं जहन में
क्या उनका जबाब देने के लिए, हम जबाबदार नहीं
अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
मिलेगा तब सुकून, जब बनेगा कोई स्वदेशी हाला
माना हमने, बहुत विकाश कर लिया है
सिनेमा से लेकर खेलों तक, इतिहाश रच दिया है
अब हम कुछ हटकर भी, आजमाने लगे हैं
विक्की डोनर और पान सिंह तोमर, बनाने लगे हैं
अब तो ओलंपिक में भी, पदक आने लगे हैं
हम चांद पर पहले भी पहुंचे हैं
अब दुनिया के उपर भी, कुछ कुछ छाने लगे हैं
पर क्या काफी है जो पाया है?
सोचो हमने थोड़े के लिए, कितना कुछ गबाया है?
अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
कुछ पायेंगे तब, जब भरेगा देशभक्ति का प्याला
परन्तु आज भी कहाँ सुधरा है, इस देश का इंसान
गुजरात को बीते ज़माने हो गए, तो आज निशाने पर आसाम
क्या हिन्दू क्या सिख, और क्या है मुसलमान?
जलती है छाती भारत की, जब लोग करते हैं त्राहिमाम
नहीं चाहिए अच्छाई को, आज के युग मैं कोई भगवान
बस चाहिए तो हर डगर पर, सच्चे और अच्छे इंसान
जहां रहें झोपड़े और महल बराबर, बस चैन से जिए आबाम
दो वक़्त का खाना खाकर,हर रोज सोये हर एक जान
पढने लिखने के लिए, हर सुबह जाए मासूम तमाम
मिल जुल कर रहने लगे, हिन्दू हो या मुस्लमान
चाहे न पढ़े गीता, चाहे न पढ़े कुरान
हर एक करे बस, हिन्दुस्तान का गुणगान
मंदिरों में चाहे न हो पूजा, और मस्जिदों में चाहे न हो अजान
हर एक जुबान पर हो बस, एक मेरा तुम्हारा हिन्दुस्तान
एक ही भाषा हो हमारी, एक ही हो मजहब हमारा
एक ही पेशा हो और बस, एक ही हो हमारी पहचान
बस एक इंसान बस एक इंसान बस एक इंसान
अपने भावों को बनाकर, ले आया मैं एक ज्वाला
जब होगा सच जो देखा है, तब होगा महा गाला
है यही मेरा सपना, मेरा देश हो निराला
तभी देपाऊंगा शहीदों को, उनके हक़ की जय माला
जय भारत जय हिन्दुस्तान का, होगा हर तरफ बोल बाला
जय भारत जय हिन्दुस्तान का, होगा हर तरफ बोल बाला.

Poem ID: 44
Occupation: Government
Education: Other
Age: 51-60
Length: अटवी के प्रस्तर , खंड -खंड घर्षण, lines
Genre: Shant (peaceful)
Poem Creation Date: August 24, 2012
Poem Submission Date: August 24, 2012 at 12:28 pm
Poem Title: chingaaree
अटवी के प्रस्तर ,
खंड -खंड घर्षण,
चकमक चकाचौध ,
जठरानल को शान्ति दे ,
अखंड जीवन की,
लौ चिंगारी ।
बन मशाल,
प्रेरणा की मिसाल ,
मंगल की,
चमकी चिंगारी ।
चहुँ ओर ,
तम का का डेरा।
जन सैलाब चिंगारी से,
अभिभूत वडवानल घेरा ।
व्याकुल आने को नया सवेरा,
रानी के खडगों की चिंगारी ।
अमर कर गई ,
जन-जन में जोश भर गई ,
सत्य अहिंसा प्रेम दीवानी,
बापू की स्वराज चिंगारी ।।
नूतन अलख जगा गई ,
देशभक्त बलिदानी,
चिंगारी दावानल फैला गई ।
युग – युग के ज़ुल्मों को सुलझा गई ।
नई रात ,
नई प्रात: करा गयी ।
चिंगारी मशाल,
मिसाल बन ,
स्वाभिमान बन,
राष्ट्र गीत सुना गयी ।।

Poem ID: 45
Occupation: Government
Education: Bachelor’s Degree
Age: 41-50
Length: 36 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 14, 2012
Poem Submission Date: August 24, 2012 at 12:34 pm
Poem Title: विशाल लोकतंत्र के गगन पे नवविहान है. सपूत मातृभूमि के भरो नयी उड़ान है.
विशाल लोकतंत्र के गगन पे नवविहान है.
सपूत मातृभूमि के भरो नयी उड़ान है.
ह्रदय में गर्व की तरंग स्वर्णमय अतीत पर.
कदम बढ़ें सुमार्ग सत्य शान्ति औ सुनीति पर.
यकीन ध्रुव रहे सदा मनुष्यता की जीत पर.
युगल अधर मुखर रहें ये मातृभू की प्रीत पर.
वक्ष पर सहन किये असंख्य घात काल के.
स्वबन्धुओं की फूट के विदेशियों की चाल के.
अनेक हैं परन्तु एक व्यंजनों से थाल के.
अनेक रूप रंग के विहंग एक डाल के.
तेरे बलिष्ठ बाहुओं पे देश को गुमान है.
सपूत मातृभूमि के भरो नयी उड़ान है.
विशाल लोकतंत्र के गगन पे नवविहान है.
सपूत मातृभूमि के भरो नयी उड़ान है.
आज पुण्य पर्व पर सुनो कथा पुनीत है.
सिखा दिया ‘महात्मा’ ने भय के पार जीत है.
बिगुल बजा स्वतंत्रता गली गली समर ठनी.
शहीद वीर सैनिकों के रक्त से मही सनी.
हरेक जाती धर्म के अबाल वृद्ध बालिका.
बढे पुनीत पंथ पर ले प्राण पुष्प मालिका.
अदम्य शौर्य का सुफल मिला हुए नयन सजल.
वसुंधरा पे वन्दिनी के मुक्ति के खिले कमल.
फहर फहर फहर उठा तिरंगा स्वाभिमान है.
सपूत मातृभूमि के भरो नयी उड़ान है.
विशाल लोकतंत्र के गगन पे नवविहान है.
सपूत मातृभूमि के भरो नयी उड़ान है.
तू शिल्पकार देश की समृद्धि के मकान का.
है जागरूक संतरी हमारी आन बान का.
लहलहाते खेत राजमार्ग पुष्प क्यारियाँ.
हुनर तेरे ही हाथ का ढ़ो रहा सवारियाँ.
तू रुग्ण मानवों के हेतु जग रहा अहर्निशा.
विपत्ति आपदा में भूल भूख क्लान्ति औ तृषा.
लहू की बूँद जब तलक है तन में ऐसी आन कर.
जियेगा देश के लिए यही जिया में ठान कर.
अमर रहे अनादि काल तक सुकीर्ति गान है.
सपूत मातृभूमि के भरो नयी उड़ान है.
विशाल लोकतंत्र के गगन पे नवविहान है.
सपूत मातृभूमि के भरो नयी उड़ान है.

Poem ID: 46
Occupation: Other
Education: Graduate of Professional Degree
Age: >70
Length: 28 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: August 24, 2012 at 8:30 pm
Poem Title: झंडा न झुकने पाये.
प्राण भले ही जाये मित्रो,
पर झंडा न झुकने पाये.
झंडा हमारी शान है मित्रो,
मर मिटने की आन है मित्रो.
इसके तीन रंगों का फलसफा
महत्वपूर्ण और महतारा है
केसरिया बाना वीरों का
श्वेत शांति का नारा है
हरा रंग खुशहाली जग में
यही सन्देश हमारा है.
बीच चमकता चक्र सितारा,
धर्म कर्त्तव्य की धारा है.
शान है अरु आन हमारी,
सर झुकाती इसे हिंद सारी.
जितनी भी बाधाएं आयें,
पर झंडा न झुकने पाये.
आजादीपन की यही निशानी,
इसके पीछे कई कहानी.
ओ’ डायर का इतिहास काला,
भूलो न तुम जलियान वाला.
गोलियों की जम कर झड़ी थी,
नींव आज़ादी की पड़ी थी.
याद करो वो खूं बहाना,
झंडा कभी न नीचे झुकाना.
सब कहो कि सर कटेगा,
झंडा नीचे नहीं झुकेगा.
जय हिंद!
बोलो जय हिंद!!

Poem ID: 47
Occupation: Software
Education: Other
Age: 23-28
Length: 36 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date:
Poem Submission Date: August 26, 2012 at 6:32 am
Poem Title: नवचेतना
—————————————–
जगतगुरु, सोने की चिड़िया कहकर देती दुनिया जिसको सम्मान,
भला ऐसे हिन्दोस्ताँ पर क्यों ना हो हमको अभिमान |
भारत माँ की लाज को रखकर हुए कई बेटे बलिदान,
सबसे पहले इस कवि का उन बेटों को अर्पित एक सलाम ||१||
आज हमारा देश है जकड़ा मजबूरी की जंजीरों में,
खुरच-खुरच कर नोच लिया इस बरगद को रकीबों ने |
सोना-चाँदी-हीरे देती थी जो धरती कभी यहाँ,
आज वहीं के बच्चे हीरे देखते हैं तस्वीरों में ||२||
धन-दौलत ले गये फिरंगी जन-जन को तडपा-तडपा,
देवभूमि को हिला दिया इन दैत्यों ने उत्पात मचा |
धर्म-ग्रन्थ, संस्कृति भी लूटी, हिन्दोस्ताँ को दिया सता,
बस जो कुछ वो छोड़ गये वो थी उनकी पाछिमी अदा ||३||
आज हमारे देश में पसरी मुसीबतें हैं कुछ घनघोर,
बढ़ रही हैं कुरीतियाँ और बढ़ते जा रहे हैं कुछ चोर |
नेतागण और अधिकारी बन गये हैं रिमझिम सावन के मोर,
अब आप बताओ ऐसे में ये देश भला जाये किस ओर ||४||
जेब गरम करने की फिराक में बैठे हैं आला अधिकारी,
घर पर बैठे मौज मनाते कहते हैं खुद को सरकारी |
दहेज़, नशा जैसी कुप्रथायें हिला रही हैं नीव हमारी,
नष्ट करें इनको खुद ही हम, ताकि खुश रहे पीढ़ी सारी ||५||
अपने पेट तक ही सीमित हो रहे हैं अब हम,
दूसरों की कुछ भी फिकर नही है |
‘लाखों बच्चे आज भी भूखे ही सोते हैं सड़कों पर’,
गिरती लाशों की कोई कदर नहीं है ||६||
कहीं कर्ज का बोझ दबा देता है गरीब किसानों को,
कहीं “कॉलेज की रैगिंग” निगल लेती है मासूम जवानों को |
रोगों से लड़ते-लड़ते जाती है जान गरीबों की,
मौला ना करे ऐसी हालत भी हो कभी रकीबों की ||७|||
आज जरुरत है चमन को जवानों की जवाँ जवानी की,
आज जरुरत है वतन को हिन्दोस्ताँ की नयी कहानी की |
आज अमल कर सके अगर हम, तो कल दुनिया हमसे हारी,
अगर आज भी आँखें मूंदी, गुलाम बनेगी पीढ़ी सारी ||८||
रुष, चीन, अमरीका, जापान, हैं दुनिया के देश महान,
इन सबसे भी आगे होगा इक दिन अपना हिन्दोस्तान |
तब जाकर अमर शहीदों की सफल हो सकेगी कुर्बानी,
वरना चिताओं पे मेलों तक ही, सीमित रहेगी उनकी कहानी |
वरना चिताओं पे मेलों तक ही, सीमित रहेगी उनकी कहानी ||९||
——————————————
— “जय हिन्द”/ ——- “आशीष नैथानी / हैदराबाद”
——————————————-

Poem ID: 48
Occupation: Student
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 18 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 14, 2012
Poem Submission Date: August 26, 2012 at 6:48 am
Poem Title: Sandesha Pak ke naam
संदेशा पाक के नाम
काश्मीर पे हक़ जताने वाले,अपने गिरेबां में झांक ज़रा!
भारत को आंख दिखाने से पहले अपनी ताकत को आँक ज़रा!!
घात लगाये बैठा है जो तू घुसपैठ की ताक में!
अंदेशा भी नहीं तुझको की मिल जायेगा खाक में!!
संसार के भूगोल से ,तू इतिहास बन कर रह जायेगा !
कफ़न ओढ़े दफनाये कब्र की लाश बन कर रह जायेगा !!
सीमा पार करने वालों की अब टांग तोड़ दी जाएगी !
भारत की तरफ उठने वाली हर आँख फोड़ दी जाएगी !!
दान में मिली जमीन पर तू इतना अकड़ दिखाता है!
लाहौर करांची पर पकड़ नहीं, काश्मीर पे पकड़ दिखाता है!!
नापाक इरादे तेरे स्वप्न बन कर रह जायेंगे !
दुनिया के सामने अस्तित्व भी तेरे प्रश्न बन कर रह जायेंगे !!
अमेरिका ,जो तुझे अपने टुकड़ों पर है पाल रहा !
उदीयमान हिंद का आगे बढ़ना उसे भी अब शाल रहा !!
अभी वक़्त है,सबक ले तू पिछले युद्धों के अंजाम से !
कर ले सर परस्ती अब भी अपने देश के आवाम से !!
कब तक भूखा रहकर पैसे गोले -बारूद में लगाएगा !
जियो और जीने दो का मंत्र अपना ,तेरा भी भला हो जाएगा !!

Poem ID: 50
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 29-35
Length: 14 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: August 27, 2012 at 6:57 am
Poem Title: माँ भारती
तुम तो माँ हो, सब कुछ सहती हो
संतानों का फिर भी सम पालन करती हो
हो सहस्त्र श्वान कपूत एक सिंह उस पर भारी
नरसिहों ने दी आहूति तुझे है बारी बारी
है वहनियों में सिंह रक्त सभी को दिखला दो
गर्जन से अपने इस व्योम को भी दहला दो
उठो और माता के चरणों को धो दो
रहे पल्लवित धरा ऐसे बीजों को बो दो
माँ भारती का कर स्मर्ण अपने मन में
कर्तव्य पथ पर बढ़ चलो इस जीवन में
जब तक तुम हो माँ का ऊचा शीश रहे
रहे फैलता दशदिक् उनका आशीष रहे
आए हैं नरसिंह और अभी अनंत आयेंगे
तेरे चरणों में जो अपनी आहूति दे जायेंगे
© रतीश

Poem ID: 51
Occupation: Software
Education: Bachelor’s Degree
Age: 36-40
Length: 16 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 28, 2012
Poem Submission Date: August 29, 2012 at 7:03 am
Poem Title: जागो भोर भई
जागो भोर भई
घर मै बैठा कोसता हूँ, देश के हालात को
ये बुरा है, सब गलत है, रिश्वती अंदाज़ को
आज सो कर जब उठा, तो मन ने पुछा बावले
क्या दिया तुने अभी तक देश के अंजाम को
कोसते ही कोसते, उम्र बीती मगर
लूटेरे, लूटते रहे देश के हर गॉव को
देख निकले है दीवाने हाथ में मसाल है
आज मौका है, मिला ले, हाथो से अपने हाथ को
लूट का रावन हिमालय से बड़ा अब हो गया
अब लगेंगे हाथ लाखो, राम के हर बाण को
जंग मेरी ही नहीं, ये जंग तेरी भी तो है
जब लगेंगे हाथ सब, हिला देंगे इस बुनियाद को
रोने, कोसने, से जालिम कभी हिलता नहीं
पलट पन्ने इतिहास के, हक भीक में मिलता नहीं
या तू भी कूद जा, जंग के मचान पे
या कोसना तू बंद कर, जालिमो के नाम पे
— जीवन

Poem ID: 52
Occupation: Student
Education: High School
Age: 17-22
Length: 50 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 2, 2009
Poem Submission Date: September 4, 2012 at 1:50 pm
Poem Title: भारत : सोने की चिड़िया
था कभी सोने कि चिड़िया, देश मेरा किसी काल में ।
पर लग गयी इसको नज़र, डाला फिर डेरा काल नें ।
आए बहेलिये परदेस से, इसको फंसाने जाल में ।
आकाश में फिर उड़ सके, छोड़ा नहीं इस हाल में ।
छाया अँधेरा देश पर, सब लोग घबराने लगे ।
भेष धर मेहमान का, और बहेलिये आने लगे ।
करके भरोसा उनपर दिया था, धोखा वतन की आन को ।
छीना उसीने घर हमारा, पूजा था जिस मेहमान को ।
रख सकता नहीं लेकिन, पिंजरे में कोई तूफ़ान को ।
चल पड़े वीर फिर जोड़ने, बिखरे हुए सम्मान को ।
लाए वो आज़ादी छीनकर, देकर स्वयं की जान को ।
दे दिया उन्होंने देश यह, अपनी हर इक संतान को ।
फिर हुआ सवेरा एक दिन, पर जागा न को कोई नींद से ।
हो गयी थी चकनाचूर, यह देश, छीना था जिस उम्मीद से ।
देश अपना पर हर इक, वासी पराया हो गया ।
एक गहरी नींद में, हर एक भारतवासी सो गया ।
है नहीं गुलाम कोई भी अब, पर आज़ादी नज़र आती नहीं ।
अपनी यह पावन सभ्यता, अब किसी को भाती नहीं ।
नींद में है प्रत्येक मानव, पर दिन रात है वो जाग रहा ।
उगते हुए सूरज को छोड़, उलटी दिशा में भाग रहा ।
क्यों किसी के ज्ञान को, अंग्रेज़ी में अब हम नापते हैं ।
मातृभाषा बोलने में, अल्फाज़ क्यों अब कांपते हैं ।
यह देश क्यों है इंडिया, अब मन को ये भाता नहीं ।
आज़ाद है गर देश तो, भारत ही क्यों कहलाता नहीं ।
यूँ तो कहने को सभी में, प्यार हम बस बांटते हैं ।
लेकिन धरम के नाम पर, इंसान को हम काटते हैं ।
हर गली-कूचे में बस, दंगे और फंसाद हैं ।
फिर भी हमें यह मान है, की देश अब आज़ाद है ।
हर शख्स दोषी है, नहीं माफ़ी के काबिल कोई भी ।
भारत माँ यह सब देखकर, चिल्लाई भी और रोई भी ।
कर अनसुनी माँ की पुकार, बस प्रगति हम करते रहे ।
फिर भी हैं लाखों लोग जो, भूख से मरते रहे ।
चिर नींद में सोने से पहले, इक बार तो जागो भी अब ।
ऋण है तुम पर भी तो माँ का, पर उसे उतरोगे कब ।
समय यही है श्रेष्ठ, तुम अब तो निद्रा त्याग दो ।
इस देश को भारत बनाने में, सभी अब भाग दो ।
अपनी यह पावन सभ्यता, हर एक जन अपनाएगा ।
ऋण चुकाने के लिए, वापस हर बेटा आएगा ।
चमकेगा सूरज एक दिन, फिर जग में भारतवर्ष का ।
होगा वही सबसे अधिक, मेरे लिए दिन हर्ष का ।
होगा वही सबसे अधिक, मेरे लिए दिन हर्ष का ।

Poem ID: 53
Occupation: Writer
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 61-70
Length: 31 Dohe.504 words lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 20, 2012
Poem Submission Date: August 29, 2012 at 2:24 pm
Poem Title: मेरा भारत देश
मेरा भारत देश
१ . भारत मेरा देश है .सुन्दर और न कोय
शीश हिमालय श्रेष्ठ है ,सागर -जल पग धोय .
२. अनुपम भारत देश है ,विविध जाति औ रूप
भाषा रीति -रिवाज़ भी ,धर्म-पर्व बहुरूप .
३ .सोने की चिड़िया जिसे ,कहते आये लोग
शत्रु बहुत आये यहाँ ,करने इसका भोग .
४ . कई और पहुँचे यहाँ ,करने को व्यापार
फिर फैलाया राज हित ,अतिक्रामक कर भार.
५ .सदियों की परतंत्रता ,पीड़ा अत्याचार
शीश बहुत से कट गए ,कोड़े मार प्रहार.
६. अपनी ही धरती लुटी ,खुद बेबस लाचार
तब क्रांति की लौ उठी ,जागा माँ हित प्यार .
७ .मंगल पांडे ने किया ,क्रांति बिगुल का नाद
रानी झाँसी की लड़ी ,हो दुश्मन बर्बाद ,
८. समय चक्र चलता रहा ,मिलते आये वीर
खुदीराम बिस्मिल भगत ,आजाद बहुत वीर
९. फाँसी के फंदे मिले .कालापानी दंड
हँसते ही वे सह गए ,सारी पीर प्रचंड
१०. ख्वाब अनोखा एक जो ,देख गए वे वीर
आज़ादी मिलकर रहे ,टूटेगी ज़ंजीर .
११ .बाँध कफ़न सर पर चले ,माटी को धर माथ
प्राणदान मंज़ूर था ,छूट न जाये साथ .
१२. अमर हुए कुछ जन यहाँ ,हुए बहुत ग़ुमनाम
आज़ादी इक ध्येय था ,और तिरंगा शान .
१३. बिना ढाल तलवार के ,सत्य अहिंसा साथ
मिलकर चल इक राह पे , ली आज़ादी हाथ .
१४. भूल न जाएँ हम कभी, वीरों के बलिदान
स्वतंत्रता जो दे गए ,बढ़ा देश का मान .
१५. गए विदेशी छोड़ के ,प्यारा भारत वर्ष
आज़ादी अब मिल गयी ,सभी मनाते हर्ष .
१६.आज़ादी अनमोल है, इसका हो सम्मान
लहराए ऊँचा सदा , अमर तिरंगा शान
१७.भारत देश स्वतंत्र है ,काम रह गए शेष
जनता के हिस्से नहीं,आया फर्क विशेष
१८.सूरज सा भारत हुआ भ्रष्टतंत्र का ग्रास
आज़ादी है नाम की ,सबके मन भय त्रास.
१९. सर्व -धर्म सम भाव हों ,राष्ट्र धर्म हो एक
अनेकता में एकता ,कर्म सभी के नेक.
२०.सुरक्षा हेतु स्वदेश की , सीमा प्रहरी वीर
देते जान सहर्ष जो ,सम्मानित हों वीर .
२१.बच्चों का बचपन खिले , युवकों को हो काम.
वृद्ध उपेक्षित हों नहीं ,नारी का सम्मान .
२२.कृषक और मजदूर भी, पायें अपना भाग
कोई भी अवसाद में, करें न जीवन त्याग .
२३.बेटी भी परिवार में ,पाए सम सम्मान
पढ़ लिख के उन्नति करे ,ऊँची भरे उड़ान .
२४.शष्य श्यामला हो धरा ,फल फूलों से पूर
नदियाँ कल कल कर बहें,सभी कलुष से दूर
२५.शीतल मंद पवन बहे ,धूल प्रदूषण हीन
खुली हवा में रह सकें ,जन आतंक विहीन .
२६.हर दिन खुशियों से भरा ,ईद ,तीज त्योहार
होली दीवाली मनें,गलबहियों के हार .
२७.हिन्दू ,सिख व ईसाई , पारसी मुसलमान
जैन बौद्ध से मिल बने ,भारत मेरा महान.
२८.जब तक सूरज चाँद हैं ,वसुंधरा आकाश
गंगा यमुना नित बहें ,सुख समृद्धि का वास .
२९.स्वतंत्रता की शान पे ,तन मन से बलिहार
प्राणों को अर्पण करें , रक्षा हेतु नर -नार .
३० भारतीय हों सब प्रथम ,भेदभाव हो दूर
भाई भाई मिल रहें ,खुशियाँ हों भरपूर .
३१. विश्व -देश , अन्तरिक्ष में ,चमके तेरा नाम
जय हिंद की गूँज से माँ, तुमको करें सलाम .
जय हिंद !!!
Poem ID: 54
Occupation: Non-Profit
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 28 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 30, 2012
Poem Submission Date: September 3, 2012 at 4:41 pm
Poem Title: हिमालय की गुहार
सर्व दिशाओं मे फैलाकर,
अपने वर्चस्व की ज्योति |
खड़ा हिमालय देख रहा,
अपनी गंगा मैली होती ||
है जो शक्ति का महा कुण्ड,
वो आज दिखे लाचार खड़ा
अपने होने पर गर्व नहीं,
पी रहा घूंट है शर्म भरा
अपने सपूत ने नाम डुबाकर,
अपनी माँ की छीनी धोती
खड़ा हिमालय देख रहा,
अपनी गंगा मैली होती ||
वो क्या अब खुद मे अहम भरे,
और क्या शत्रु पर बाध्य बने
वो था सीने पर ढाल लिए,
पर पीछे के वार हैं घाव बने
भ्रष्ट आत्मा वैध जताकर,
है दवा पिलाई फिर खोटी
खड़ा हिमालय देख रहा,
अपनी गंगा मैली होती ||
फिर आज बज उठे एक नाद
ललकार भरी हुंकार भरी
फिर आज जग उठें हम मानस
क्यूँ अब तक की कर दी देरी
वो पत्थर दोनों हाथ उठाकर
जला रहा यलगार ज्योति
खड़ा हिमालय देख रहा,
अपनी गंगा मैली होती ||

Poem ID: 55
Occupation: Entertainment
Education: High School
Age: 41-50
Length: 16 lines
Genre: Shant (peaceful)
Poem Creation Date: November 3, 2009
Poem Submission Date: September 3, 2012 at 3:17 pm
Poem Title: हे भारत भूमि!
शामे अवध हो या सुबहे बनारस
पूनम का चन्दा हो चाहे अमावस
अली की गली, महाबली का पुरम हो
निराकार हो या सगुण का मरम हो
हो मज़हब रिलीजन, मत या धरम हो
मैं फल की न सोचूँ तो सच्चा करम हो
कोई नाम दे दो कोई रूप कर दो
उठा दो गगन में धरा पे या धर दो
तमिलनाडु, आंध्रा, शोनार बांगला
डिमापुर, कवरत्ति, पुणे माझा चांगला
सूरत नी दिकरी, मथुरा का छोरा
मोटा या पतला, काला या गोरा
सिन्धु ए हिन्द से आती हैं लहरें
हिमालय सी ऊंची, पहुँची हैं गहरे
ग़ज़ब की खुमारी, मदमस्त मस्ती
है भारत ह्रदय में, यही मेरी हस्ती

Poem ID: 56
Occupation: Student
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 52 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 3, 2012
Poem Submission Date: September 4, 2012 at 10:02 am
Poem Title: ‘भारत’ कहलाने आए हैं
कर तिलक तेरी माटी का माँ
ये शपथ उठाने आए हैं
रोशन करने को तेरा जहाँ
हम खुद को जलाने आए हैं
कुछ लोग घरों से निकले हैं
कुछ आवाज़ें तो गूँजी हैं
ये शोर नही हंगामा कोई
बस सबको जगाने आए हैं
रोशन करने को……
क्रांतिकारियों के बलिदान को
यूँ ही न जाने देंगे
उनके सपनों का ‘भारत’
सच्चाई में लाने आए हैं
रोशन करने को……
हम हैं संतान तेरी इस पर
है अपरिमित गर्व हमें ए माँ
हम भी अपने कृत्यों से तेरा
सर ऊँचा उठाने आए हैं
रोशन करने को……
अंधेरों से कोई कह दे ये
दिन उनके ढालने वाले हैं
जो अस्त न हो, तेरे क्षितिज पे माँ
सूरज वो उगाने आए हैं
रोशन करने को……
चाह नही तेरे दिव्य भवन की
दीवारों में सजे जीवन
बनके नींव के पत्थर हम तो
खुद को छिपाने आए हैं
रोशन करने को…….
है स्वप्न यही इन आँखों में
तुझे विश्व-गुरु बनता देखें
दुनिया के शिखर पे ‘तीन-रंग’
तेरे हम फहराने आए हैं
रोशन करने को……
तेरी संस्कृति तेरी सभ्यता
से जग ने जीना सीखा
तेरी ‘गौरव-गाथा’ को
हम फिर से गाने आए हैं
रोशन करने को……
भारत धर्म है भारत कर्म है
पहचान हमारी भारत है
धर्म जाति के भेद मिटाके
‘भारत’ कहलाने आए हैं
रोशन करने को……

Poem ID: 57
Occupation: Teacher
Education: Bachelor’s Degree
Age: 29-35
Length: 38 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 5, 2012
Poem Submission Date: September 4, 2012 at 6:20 pm
Poem Title: अब फिर सुभाष चाहिए……
भगत सिंह सुखदेव राजगुरु, और आज़ाद चाहिए।
वतन की है पुकार ये, अब फिर सुभाष चाहिए॥
जल रहे हैं लोग बस, दिल मे ही नफ़रत लिए।
भाई है प्यासा ख़ून का, भाई से अदावत लिए॥
मज़हब के नाम पे, ये खूनी खेल रोकना होगा।
मजहब का सियासत से, ये मेल रोकना होगा॥
नफ़रत की नहीं दिल में, बग़ावत की आग चाहिए।
वतन की है पुकार ये, अब फिर सुभाष चाहिए॥
एक ओर सीमा पर, सैनिकों ने ख़ून बहाया है।
तो दूजी ओर गद्दारो ने, वतन बेचकर खाया है॥
गद्दारो को अब यहाँ, सबक सही सिखलाना होगा।
चौराहो पर सरेआम ही, फांसी पर लटकाना होगा॥
समझौता क्या इनसे, बस सम्पूर्ण विनाश चाहिए।
वतन की है पुकार ये, अब फिर सुभाष चाहिए॥
अपने ही वोट से हमे यूं, कब तक चोट मिलती रहेगी।
ये आग भ्रष्टाचार की, कब तक यूं निगलती रहेगी॥
पानी नहीं इसे बुझाने, अपना ख़ून बहाना होगा।
दिलो मे अंगार लिए, अब सड़कों पर आना होगा॥
एकल नहीं इसके लिए, संगठित प्रयास चाहिए।
वतन की है पुकार ये, अब फिर सुभाष चाहिए॥
है हर इंसा के दिल में, सुभाष कहीं सोया हुआ।
स्वार्थ और लालच में कहीं, दबा हुआ खोया हुआ॥
सोये हुये सुभाष को, इस दिल मे जगाना होगा।
भारतपुत्रों देश बचाने, सबको आगे आना होगा॥
जोश भरे भारतवासी, नहीं ज़िंदा लाश चाहिए।
वतन की है पुकार ये, अब फिर सुभाष चाहिए॥
समझें जीवन मूल्य, खुद से क्रांति की शुरुवात हो।
स्वयं को बदले पहले, फिर औरों से कोई आस हो॥
है देशप्रेम तो देश वास्ते, ये क़ुरबानी करनी होगी।
औरो से पहले खुद अपनी, नीयत ही बदलनी होगी॥
गैरो से पहले खुद अपनी, रूह से जवाब चाहिए।
वतन की है पुकार ये, अब फिर सुभाष चाहिए॥
वतन की है पुकार ये, अब फिर सुभाष चाहिए॥

Poem ID: 58
Occupation: Other
Education: Bachelor’s Degree
Age: 23-28
Length: 18 lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date:
Poem Submission Date: September 8, 2012 at 5:44 am
Poem Title: ए कलम तू कर मदद
एक अनकही कहानी लबज़ों की जुस्तजू मे भटक रही है कहीं,
ए कलम,तू करे मदद तो मिले पहचान उसे खुद मे ही…
.
.
कुछ आदम्या एहससों ने बना लिया है दिल मे ही अपना आशियाना,
ए कलम,तू करे मदद तो सारे जज़्बात बाहर आएँगे तो सही…
.
.
वो पुकारें तो पुकारे किसे,सारा जहाँ है सदा ही स्वार्थी,
ए कलम,तू करे मदद तो मिल जाए अब मंज़िल यहीं…
.
.
ये महेंगाई है गगनचुंभी,इसका हल मिले तो कैसे मिले,
ए कलम,तू करे मदद तो कोई आगे आज आएगा तो सही…
.
.
अमीरो को है बिरियानी खानी,राजनीति ने दुनिया लूटी,
ए कलम,तू कर मदद वरना ग़रीबों क लिए रोटी भी नही

Poem ID: 59
Occupation: Government
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 29-35
Length: 131 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 30, 2012
Poem Submission Date: September 10, 2012 at 10:14 am
Poem Title: देश प्रेम
नहीं जागेगा देश प्रेम
नहीं खौलेगा हमारा लहू
हमारे चेहरे पर शिकन भी न आयेगी
जब तक हमारे अस्तित्व पर प्रहार नहीं होगा।
जलती हैं किसी की बेटियां तो हमें क्या
हमारा घर तो महफूज है।
हो जाने दो तार – तार घर की इज्जत को
हमारे घर पर तो चार चांद लगे हैं।
मानसिकता हो गई है विकृत हमारी
नहीं तो क्या सुन नहीं पाते पड़ोस में उठती चीखें।
मूक बधिर दृष्टिहीन बने देखते हैं सब कुछ
ये तो न था संस्कार और संस्कृति हमारी।
हमारे स्वार्थ ने देश को कहां पहुंचा दिया
सोने की चिड़िया को कर्जे में डुबा दिया।
मंदिरों में छिपा है बहुमूल्य खजाना
कूड़े में ढूंढते हैं बच्चे दाना – दाना।
खेतों में अनाज सड़ रहे हैं
लोग भूख से मर रहे हैं।
गणेश जी तत्पर हैं दूध पीने के लिए
किसान विवश हैं स्वहत्या करने के लिए।
देश में बेरोजगारी भत्ता मिलता है, रोजगार नहीं मिलता
कितने ही परिवारों को दो जून का खाना नहीं मिलता।
राशन कार्ड, बी.पी.एल. कार्ड बनवाने में टूट जाती है कमर
गरीबी तो मिटती नहीं, नेताओं पर होता है न कोई असर।
आज हम व्यस्त हैं फेसबुक पर फ्रैंड सर्किल बढ़ाने में
इन्टरनेट, चैटिंग, इयर फोन लगाने में।
हम तो खुश हैं रोशन हैं हमारे घर के दिये
भले ही जलता हो किसी गरीब का लहू इसके लिए।
हमारे लिए कुछ लोग अनशन कर रहे हैं
हम ड्राइंग रूम में बैठे लाइव टेली कास्ट देख रहे हैं।
देश सेवा के लिए हैं हमारे सैनिक सीमा पर उन्हें ही लड़ने दीजिए
हमें तो बस घर बैठ चुपचाप तमाशा देखने दीजिए।
गांधी जी की तस्वीर को हमने घर आफिस में सजाया है
उन्हीं के सामने बैठकर अवैध व्यापार चलाया है।
कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा जहां से हमने पैसा नहीं कमाया है
और की तो बात ही क्या हमने तो पशुओं का चारा खाया है।
देश की अस्मिता से हम खिलवाड़ कर रहे हैं
स्वयं भी डूब रहे हैं देश भी डुबा रहे हैं।
घुसपैठिये को शरण देकर हम अपनी ही जान गवां रहे हैं
कसाब जैसे आतंकी को हम छप्पन भोग खिला रहे हैं।
हम क्यों अपना लहू बहायें
मरणोपरान्त पुरस्कार पायें।
हो – हल्ला करने से कुछ नहीं होगा
जितना मिलना है वह हमारा ही होगा।
हमसे नहीं होगा गांधी सुभाष जैसा काम
हमें कौन सा करना है मरने के बाद अपना नाम।
देश स्वतंत्र है हम आजाद हैं
सबसे जरूरी हमारी जायदाद है।
इस आजादी के लिए दी थी बहुतों ने कुर्बानियां
आज भी देश में मौजूद हैं उनकी निशानियां।
हम नहीं कहते कि वे महान नहीं थे
हमारे कोई भी ”गुण” उनमें विद्यमान नहीं थे।
राम के आदर्श और सुभाष की वीरता
गांधी की विनम्रता और बुद्ध की धीरता।
कैसे सजायेंगे स्वयं को इन विशेषताओं से
हम तो भरे हुए हैं अहंकार दुर्भावनाओं से।
इन महान हस्तियों को हम श्रद्धांजलि देते हैं
हर पुण्यतिथि पर पुष्पांजलि देते हैं।
क्या हुआ जो रोज उनकी वंदना नहीं होती
होली, दिवाली भी तो रोज कहां मनती।
हम जीवित होते तो संभवतः कुछ गुंजाइश होती
मृत देह विद्रोह कहां से करती।
आत्मा होती तो आवाज देती
चुपचाप अत्याचार सहन नहीं कर लेती।
कब तक हसेंगे हम दूसरों पर
अब हमारी भी बारी आयेगी।
रहेगा न कोई संगी न साथी
जब काल की सवारी आयेगी।
कहां है यह देश और कहां है देश भक्ति
कैसे जागेगा देश प्रेम और कैसे मिलेगी मुक्ति।
है कोई जो कुछ रास्ता सुझाता
कुछ हमारी सुनता कुछ अपनी सुनाता।
भ्रष्टाचार, अनाचार के खिलाफ कौन लड़ेगा
हमें ही गांधी सुभाष बनना पड़ेगा।
आज एक नहीं सैकड़ो गांधी चाहिए
देश पर मिटने वाले भारतवासी चाहिए।
आओ, अपने मृत देह को जीवित करें
लुप्त हुई आत्मा का आह्वान करें।
प्राण, शक्ति, मन, क्रम, वचन से,
देश की सेवा में जुट जायें तन, मन, धन से।
हर किसी की जुबान पर हो बस एक नाम
देश की रक्षा ही हो बस अपना काम।
सौगंध लें नहीं करेंगें कभी भ्रष्टाचार
सहेंगे नहीं जुल्म और अत्याचार।
फिर से लायेंगे देश में खुशहाली और शांति
हम एक हैं एक रहेंगे अब रहे न कोई भ्रांति।
चुपचाप बैठकर तमाशा हम न देखेंगे
दूसरों के दुःख से अपनी आंखें हम न सेकेंगे।
त्याग कर जातिवाद, क्षेत्रवाद और न जाने कितने विवाद
हम अपनायेंगे प्रेमवाद और अहिंसावाद।
भूल कर सारे झगड़े फसाद, मिल कर करेंगें अपना काम
तभी देश फूलेगा फलेगा और विश्व में होगा इसका नाम।
तब नहीं जलेंगी किसी की बेटियां
अत्याचारियों के पैरों में होंगी बेड़ियां।
रहेगा न कोई अमीर न गरीब
शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास होगा सबके करीब।
समानता का अधिकार स्वतः ही सबको मिलेगा
प्रगति का प्रति दिन इक द्वार खुलेगा।
हर मासूम के चेहरे पर चमक होगी
देश पर होने को कुर्बान हर जान तत्पर होगी।
जब जागेगा देश प्रेम
जब खौलेगा हमारा लहू
हमारे चेहरे पर शिकन जब आयेगी
तब हमारे अस्तित्व पर प्रहार कभी नहीं होगा।

Poem ID: 60
Occupation: Other
Education: Bachelor’s Degree
Age: 41-50
Length: 108 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 11, 2012
Poem Submission Date: September 11, 2012 at 11:36 am
Poem Title: विश्व भारती
विश्व भारती
रवि-रथ उतरता जिस धरा पर सर्व प्रथम
भूतल पर सतरंगी आँचल फैलाती किरण
रौशन हो दम्काती कंचन सा हर एक कण
पर्वतों के भाल पर सिंदूरी तिलक कर रमण
जहाँ गूंजते मंदिर में घण्टे,घर घर आरती
ऋचा ऋचा पुकारती, वही है विश्व भारती
धर्मभूमि सिन्धु अम्बरा सुदेव निर्मितम धरा
स्वप्न सी सुकुमार ,स्वर्ण छवि सी मोहती
राम कृष्ण की जन्मभूमि, यहीं यहीं ऋतंभरा
नव प्रभात पर नव प्रशस्ति मार्ग खोलती
अप्सराएं जिसकी छटा,फलक से निहारती
ऋचा ऋचा पुकारती,वही है विश्व भारती
धरा थी समृद्ध,प्रचुर खनन सम्पदा से हरदम
अब ये स्वर्णिम शिखर है अतीत की घटना मात्र
विदेशी लुटेरो सम लूट रहे देशी नेता,हर कदम
सत्ता पर छा गए लालची, दबंग स्वार्थी पात्र
महंगाई बेरोजगार की दोहरी मार झेलती
ऋचा ऋचा पुकारती,वही है विश्व भारती,
आतंकी संघों का पनाहगार बना देश ,है डावांडोल
मंत्री ,नाते, रिश्तेदार आकंठ डूबे हुए, डाल रहे फूट
खुदरा बाजार में विदेशी निवेश मंदीद्वार रहा खोल
भ्रष्टाचार की बहती धार, महंगाई ,बेरोजगारी,लूट,
समस्याओं की सूची लम्बी जीभ लपलपाती
ऋचा ऋचा पुकारती ,वही है विश्व भारती
है प्रण न रहने देंगे भ्रष्टाचार की काली परछाई
महंगाई होगी दूर फिर होगा स्थापित रामराज्य
जिनकी कुर्बानियों पर खड़ा भारत दे रहा दुहाई
नींव के उन पत्थरों को नमन ,हो बुराई त्याज्य
जहाँ मिले ऐसा जज्बा,हो नौजवाँ हिम्मती
ऋचा ऋचा पुकारती ,वही है विश्व भारती
लाल बाल पाल,घोष,खुदीराम बोस ,गांधी, नेहरू
आजाद ,पटेल ,मौलाना जैसे आजादी के परवाने
फांसी की कोठरी में हंसी के ठहाके गूंजते चहकते
तलवारों के प्रहार झेल मुस्कुराने में नहीं हिचकते
कातिल को माफ़ कर हंसी खिलखिलाती
ऋचा ऋचा पुकारती,वही है विश्व भारती,
प्रश्न हो जब देश की रक्षा,सुरक्षा,अस्मिता का,
झांसी की रानी,रणचंडिका बन आगे आती नारियाँ
निज कल्पना साकार कर,भू ,अम्बर खंगारती
छछिया भर छाछ पर कान्हा को नचातीं गोपियाँ
अनुसूया त्रिदेवों को शिशु बना पुचकारती
ऋचा ऋचा पुकारती,वही है विश्व भारती,
मेहमानो को जहाँ पूजते आज भी देवतुल्य
एक छत के नीचे रहे साथ चार-चार पीढियां
जहाँ होता सबसे पहले भोजन देवों को अर्पित
दादा पोते का हाथ पकड़ करता पार सीढियां
जहाँ पर मनुष्यता निज स्वरुप संवारती
ऋचा ऋचा पुकारती,वही है विश्व भारती
संतोष भाऊवाला

Poem ID: 61
Occupation: Student
Education: Pursuing Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 67 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date:
Poem Submission Date: September 22, 2012 at 5:35 pm
Poem Title: प्रश्न
इक लौ की दीपित शिखा, वर्षों से नयनों में जल रही है ,
कभी मंद कभी आरोहित, यह पीढ़ियों दर पीढियां उतर रही है
कुछ बात है दीवानी इसमें कि बुझती नहीं कभी ये,
सदियों से घने मतवाले तिमिरों को हर रही है
राष्ट्र प्रेम में की इस शमां में आहुत होने को परवाने
माँ धरती कल भी सिरजती थी, और आज भी जन रही है
हिमालय के ललित स्वर्णाभ शिखरों से, आज से युगांतर पहले,
दिखता था एक स्वर्ण पक्षी, सुदूर पूर्व से पश्चिम तक पंख पसारे
इस असीम विभव पर विजय लालसा लिए,
जाने कितने चंगेज़ मंगोल चोटियों से उतरे
फिर उन्हीं रास्तों से लौट गए मुँह की खा के
या रह गये फिर सदा के लिए यहीं के हो के
वैमनस्य कहाँ टिक पता है, सदय उदार कुटुंब की छत के तले
पर कभी जो ये ज्योति मंद पड़ने लगी
गिर्द आत्मश्लाघा की कालिख जो जमने लगी
जब कर्मण्यता राजसी ठाटों में बिखरने लगी
तकनीक के प्रति उदासीनता अपनी कीमत भरने लगी
हाय! परतंत्रता तब सादगी का शील हरने लगी !
वीरांगना जब शोषित होती है, छुप के सबसे भले वह रोती है
पर व्यथा न कभी अधरों तक लाती है,
बस संतान को शौर्यगाथाएँ सुनाती जाती है
उसमें ओज बल बुद्धि भर कर, वह अपना टूटा हृदय जुड़ाती है
और संग्राम दिवस के आने पर, रण तिलक स्वयं सजाती है
मातृभूमि भी सहते सहते सिसक उठी जब
खून से अपने, वो आँसू धोने निकल पड़े उसके सुनंद
कितने शरीर निष्प्राण हुए, दूसरों को देने को उन्हीं का ज़मीं-फ़लक
बहुत कुछ खोकर फिर पा लिया हमने,जो होता वजूद का सबब
वो अनमोल चीज़, जो छीनी गयी थी होते हुए भी हमारी
आयी लौट के ले के दिवाली, और दे के कीमत बड़ी भारी
उमर ग़ुलामी में काट उन्होंने हमारे लिए ला दी आज़ादी
और जब मांगी कीमत जालिमों ने, तो दी अपनी जिंदगानी
खो के, पा के पर छोड़ यहीं सब वो चले गए बिन देखे,
कि खुली फिज़ा में साँस लेना क्या होता है,
इसलिए कि हम आयें जब जहाँ में तो यह न देखें,
कि ग़ैर इशारों पर जीना या मरना क्या होता है !
पर जब जोशो-जुनून और हसरते-ज़िन्दगी की बात तौलें,
तो उनका ख्वाब हमारी हक़ीकत पे भारी होता है !
जो आ गया कर पार सारी मुश्किलों को
क्यों आज उसे बस सँवारना मुश्किल हो रहा है
क्योंकि कुछ लोग सीना ठोंक बदल गए तकदीरों को
पर उन्हीं के वंशजों को बस स्वार्थ निहित दिख रहा है
अधिकार जानते हैं हम सभी अपने, साक्षरता दर भी बढ़ी है
पर क्या तब से अब फिर से नहीं वो ज्योति मंद पड़ी है?
स्वअपेक्षा उन्मुख स्वकर्म तो नहीं, पर आशाएं बहुत बड़ी हैं
मैंने अपनी गलतियाँ नेतृत्व पर और नेतृत्व ने मुझ पर मढ़ी हैं
बन्दर ही सब ले जाता, जब दो बिल्लियाँ आपस में लड़ी हैं
छोटा या बड़ा हिस्सा, क्यों उसमें मेरा नहीं, दूसरे चेहरों पर चमकती जो ख़ुशी है
पर हिस्सा तो हम उसके हल में भी नहीं लेते, समस्या दूसरों की जो सीना ताने खड़ी है
अब ख्वाब बस पलने लगे हैं खुद के आराम और इमारत के
जयंतियों को ही बस याद आते हैं लफ्ज़ शहीदों की इबारत के
अपने सुख के आगे कहाँ दिखते हैं किस्से दूसरों की हरारत के
सब यही मानते हैं क्या बने-बिगड़ेगा मेरी एक हिकारत से
किंचित कड़ियों के परिवर्तन भर से, अभिलेख नूतन गढ़ जाते हैं
तारे भरसक आलोकित करते, जब राकेश अमावास में ढल जाते हैं
अगर इमान दिखे हर भारत पुत्र के काम में, तो उनकी क्या बिसातें हैं,
पद, लाभ, प्रलोभन, या जाति, धर्म, वर्ण, वेश में जो उलझाते हैं
आशियाने बनाते हम खुद वहीँ, और फिर कहते फिजाएँ ही मैली हैं
रखवाले से लेकर रहबर तक, पक्ष और विपक्ष सभी बहुत दोषी हैं,
पर जब आये अपनी बारी, तो हमें भी दिखती क्यों बस थैली है
क्या सत्पथ, सनातन गीता-ध्यायी भारत के लिए सच में कठिन है?
भटके पार्थ को लक्ष्य-बोध कराती, जो पार्थेष- पठित है?

Poem ID: 62
Occupation: Student
Education: Pursuing Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 61 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: June 17, 2011
Poem Submission Date: September 12, 2012 at 3:53 pm
Poem Title: देशभक्ति
देशभक्ति
याद आती देश की ,
अब केवल दो रोज,
देश पर मर मिटना,
हुई एक घटिया सोच.
कैसे कहूँ? अब मैं ,
देश मेरा महान है,
भ्रस्टाचार, आतंकवाद ,महंगाई से,
जूझता हर इन्सान है.
आज देशभक्ति के नाम पर,
गाने बजा दिए जाते है,
बस जय हिंद बोलकर ,
कम चला लिए जाते है.
लोकतंत्र से विश्वास अब,
उठता ही जाता है,
आम आदमी हमेशा खुदको ,
ठगा ही पता है.
यार किसे हम वोट दे,
सभी की एक है करनी,
देश से पहले हमेशा,
खुद की जेब है भरनी.
अपने दिल की भड़ास ,
आज मैं निकलता हूँ ,
दिल के दर्द को,
कविता द्वारा सुनाता हूँ.
कसाब जैसे आतंकवादियों को,
जेल में रखकर पला जाता है,
आम आदमी को सड़क पर,
खुलेआम मारा जाता है.
कंधार , संसद ,ताज,
भुलाये नहीं भूलता है,
आज भी वो दिन दिल में,
शूल जैसे चुभता है.
आज जेहन में ये आता है,
शायद घर वापस जा ना पाऊ,
रेल में , बस में या सड़क पर,
कहीं बेमौत ना मारा जाऊ.
आज मैं खुद को ,
बहुत बेबस पता हूँ,
चाह कर भी देश के लिए,
कुछ नहीं कर पता हूँ.
बहुत विचार करके मेरे,
दिमाग में ये आता है,
ईमानदारी से अपना कम करना ही,
देश सेवा कहलाता है.
बहुत नहीं तो थोडा करे
करे जो भी मन से करे,
खुद से ईमानदारी सदैव,
अपने मन में धरे.

Poem ID: 63
Occupation: Government
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 36-40
Length: 77 lines
Genre: Other
Poem Creation Date:
Poem Submission Date: September 14, 2012 at 8:04 am
Poem Title: हिंदुस्तान वाया कश्मीर
मैंने कहा कि धरती की है स्वर्ग ये जगह
उसने कहा की अब तुम्हारी बात बेवजह
सुनता जरुर हूँ कि थी ये खुशियों कि जमीं
धन-धन्य से थी पूर्ण, नहीं कुछ कि थी कमी
हिम चोटियाँ ही रचती जिसका खुद सिंगार हैं
बसता है गर कहीं – यहीं परवरदिगार है
झीलों की श्रृंखलाएं यहाँ मन है मोहती
हरियाली यहीं पर है जलवा बिखेरती
केसर की क्यारियां थी, पंक्तिया गुलाब की
कुछ बात ही जुदा थी इसके शबाब की
लेकिन जो मैंने देखा है मजबूर हो गया
गम , दर्द, आह , अश्क से हूँ चूर हो गया
तुम ये समझ रहे हो मुझे कुछ गुमाँ नहीं
तुमने न देखा खून ,आग और धुआं – नहीं
तुमने फकत सजाई है तस्वीर ही इसकी
तुमने पढ़ी किताबों में तहरीर है इसकी
सुनो आज कह रहे हैं मेरे अश्क दास्ताँ
इंसानियत , ईमान का है तुमको वास्ता
मैं दूध पी सका न कभी माँ के प्यार का
नहीं याद मुझको वक़्त हैं बचपन बहार का
माँ ने कभी लगाया नहीं मुझको डिठौना
गीला हुआ तो बदला नहीं मेरा बिछौना
होती है चीज ममता क्या ये जान न सका
मैं माँ की गोद भी तो पहचान न सका
मैं न हुमक सका कभी माता की गोद में
ना उसको देख पाया कभी स्नेह क्रोध में
कभी बाप की ऊँगली पकड़ के चल न पाया मैं
और मुट्ठियों में उसकी मूंछ भर न पाया मैं
उससे न कर सका मैं जिद मिठाई के लिए
आँगन में लोट पाया न ढिठाई के लिए
राखी के लिए सूनी रही है कलाइयाँ
हैं गूंजती जेहन में बहन की रुलाईयां
दिन और महीना याद है न साल ही मुझे
जिस दिन की मेरी ज़िन्दगी के सब दिए बुझे
कहते हैं लोग आग की लपट था मेरा घर
और गोलियां शैतान की ढाने लगीं कहर
कापी , कलम , किताब , मदरसे नहीं देखे
कहते किसे ख़ुशी हैं वो जलसे नहीं देखे
लाशो को ढोकर , कंधो पे हैं गिनतियाँ सीखी
विद्या के नाम शमशान , सजाना चिता सीखी
अब तुम ही कहो इसके बाद क्या हैं ज़िन्दगी
सर हम कहाँ झुकाए , करें किसकी वन्दगी
एक आस की किरण हैं तो जवान फ़ौज के
है जिनकी बदौलत हिंदुस्तान मौज से
उनके भी हाथ बाँधती है रोज हुकूमत
गर है कोई गिला तो अफ़सोस हुकूमत
हर रोज यहाँ बेगुनाह मारे जा रहे
पर जाने कैसे सोचती है सोच हुकूमत
जाकर कहो उनसे की सियासत न अब करे
आखिर कैसे कोई , कितना सब्र अब धरे
कश्मीर में बहती है रोज खून की नदी
है जिससे दागदार एक पूरी ही सदी
है जल चुका चरार – ए- शरीफ यहाँ पर
हैं हजरत बल में खून के धब्बे भी खुदा पर
दहशत का है गवाह , मंदिर रघुनाथ का
और अब तो पृष्ठ जुड़ गया है अक्षर धाम का
विष्फोट मुंबई का हो या गोहाटी का लहू
काशी में बेटे मर गए और पुणे में बहू
कश्मीर की विधान सभा , दिल्ली की संसद
आतंक जिनका धर्म है आतंक ही मकसद
आखिर कब तलक हम यहाँ सब्र ढोयेंगे
हम जाके किसकी किसकी कब्र रोयेंगे
दिल्ली से कहो जंग का ऐलान अब करे
दहशत को मिटा देने का ऐलान अब करे
आतंक समझाता नहीं है हर्फ़-ऐ-मोहब्ब्बत
इंसानियत को दाग देता , देता है तोहमत
बन्दुक की गोली को नहीं फूल चाहिए
मक्कारों के न सामने उसूल चाहिए
है मुल्क अपना , इसको चलो हम ही बचाएं
हर कोने से “जय हिंद ” की आवाज़ लगाये
हम जाति, धर्म , वर्ण औ मजहब को भुला दे
आओ शहर और भाषा की हर दूरी मिटा दे
मक्कारों , कायरों का तख्तो – ताज पलट दे
माँ भारती के चरणों में हर शीश झुका दे
लहरों पे समंदर के लहराए तिरंगा
और “बेजुबाँ” हिमालय पे फहराएँ तिरंगा

Poem ID: 64
Occupation: Government
Education: Other
Age: 29-35
Length: 224 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 13, 2012
Poem Submission Date: September 14, 2012 at 7:42 pm
Poem Title: मातृभूमि को नमन करूँ
मातृभूमि को नमन करूँ मैं
मातृभूमि को नमन करूँ,
इसके गौरवशाली चरणों में
मैं अपने शीश धरूँ II 1 II
मातृभूमि को नमन करूँ मैं
मातृभूमि को नमन करूँ I
पाँव पखारे सागर जिसका
और हिमालय मुकुट बने ,
अद्वितीय सभ्यता समेटे
अतुलनीय भू-खंड है ये II 2 II
साक्षी इसकी हिम की चोटी
जो खड़ी हजारों सालों से ,
फहराता ध्वज जहाँ आज तलक
इस देश के जनमे लालों से II 3 II
यहाँ वीर उपजते मिट्टी से
इसका इतिहास पुराना है ,
उनके ही रक्तों से सिंचित
इस देश का ताना-बाना है II 4 II
यहाँ भरत खेलते शावक से
शैशव में रंग दिखाते हैं ,
करते हैं दो-दो हाथ निडर
दुश्मन उन्हें देख लजाते हैं II 5 II
जब-जब आक्रांत हुई ये माँ
जब भी कोई दुश्मन आया है ,
प्राणों को न्योछावर करके
पुत्रों ने मोल चुकाया है II 6 II
हो चन्द्रगुप्त या राजा पुरु
पर हार किसी ने ना मानी ,
कर दिया चूर अरि का घमंड
पड़ गयी उन्हें मुँह की खानी II 7 II
गोरी जब दुस्साहस करके
इस भूमि पर चढ़ आया था ,
अपने ही घर में वधित हुआ
घटना का मोल चुकाया था II 8 II
सन सत्तावन में जब फैली
आज़ादी की चिंगारी थी ,
अबला कहते थे सब जिनको
वह सिंह-सदृश ललकारी थी II 9 II
चढ़ गया अठारह में फाँसी
पर मुँह से उफ़ तक किया नहीं ,
जी गया जो जीवन खुदीराम
वो और किसी ने जिया नहीं II 10 II
वो भगत सिंह जो बचपन से
बंदूके भी उपजाता था ,
घर-बार छोड़कर जोड़ लिया
इस मातृभूमि से नाता था II 11 II
आज़ाद बन गया पंद्रह में
बचपन में कोड़े खाए थे ,
आज़ाद रहा जो जीवन भर
आज़ाद ही प्राण गंवाए थे II 12 II
अनगिनत शहीदों ने दी है
जीवन की अपने कुर्बानी,
सच्चे सपूत थे मातृभूमि के
देश-प्रेम के अभिमानी II 13 II
बापू-नेहरु की थाती ये
टैगोर-तिलक का सपना है ,
लाला-सुभाष की जिद थी ये
स्वाधीन-साँस ही लेना है II 14 II
गंगा-यमुना कल-कल बहती
यहाँ राम-रहीम की भाषा में ,
गुरबानी संग अज़ान उठे
पावन जग की अभिलाषा में II 15 II
सतरंगी धूप छिटकती जब
बन जाता दृश्य मनोहर है ,
सब जाति धर्म और सम्प्रदाय
यह देश जहाँ से सुन्दर है II 16 II
जब जग के प्राणी वनचर थे
सर्वत्र व्याप्त जब जंगल था ,
आदर्श सभ्यता बसी यहाँ थी
सिन्धु घाटी में मंगल था II 17 II
महावीर और बुद्ध ने जग को
ज्ञान का मार्ग दिखाया था ,
सत्य अहिंसा की शिक्षा दी
प्रेम का पाठ पढ़ाया था II 18 II
तक्षशिला से ज्ञान उपजता
जो दुनिया में पहला था ,
चतुराई चाणक्य नीति से
विश्व-विजेता दहला था II 19 II
किसी और के देश-भूमि की
कभी हमें लालसा नहीं ,
हम पर जिसने आँख उठाई
कभी आज तक बचा नहीं II 20 II
संख्या-पद्धति दिया विश्व को
शून्य दशमलव सिखलाया ,
ज्ञान भूमि ये रही सदा से
जो आया उसने पाया II 21 II
आयुर्वेद है देन चरक की
शल्य-चिकित्सा सुश्रुत की ,
दुनिया को विज्ञान दिया था
बात अतीत पुरातन की II 22 II
योरप की सारी भाषाएँ
उनकी जननी संस्कृत है ,
नवगति यहीं से शुरू हुआ था
ये प्रमाण भी उद्धृत है II 23 II
अंतरिक्ष के इस रहस्य को
आर्यभट्ट ने सुलझाया ,
धरा लगाती रवि का चक्कर
सबसे पहले बतलाया II 24 II
गार्गी मैत्रेयी की धरती
जहाँ कालिदास महान हुए ,
विद्वत्ता नर और नारी की
ऊँची उठकर आकाश छुए II 25 II
आज उसी धरती पर कैसा
समय का पहिया घूम गया ,
इतराता था मानव जिस पर
आज उसे वो भूल गया II 26II
मक्कारी सीनाज़ोरी से
अब लूट-खसोट मचाते हैं ,
गाँधी-गौतम की धरती पर
बच्चे भूखों मर जाते हैं II 27 II
अन्याय हो रहे प्रतिपल क्यूँ
रक्षक क्यूँ भक्षक बनते हैं ,
अवमूल्यन मूल्यों का होता
हम चुप बेबस क्यूँ सहते हैं II 28 II
जो नारी देवी थी कल तक
अब कैसे ये होता है ,
दिन में चौराहे पर उसका
चीरहरण क्यूँ होता है II 29 II
उपजे कुछ ऐसे नरपिशाच
जो देश-गर्व से खेल रहे ,
इतने कायर हम कैसे हुए
क्यूँ देश-दुर्दशा झेल रहे II 30 II
कुछ मुट्ठी भर राक्षस जिनसे
ये जनता क्रंदन करती है ,
पददलित देश की आत्मा है
गणतंत्र की आह निकलती है II 31 II
बस अपने मतलब की खातिर
ये सब कुछ ही बाँटते हैं ,
आज़ादी जो मिली हमें
उसकी कीमत आंकते हैं II 32 II
यह आज़ादी जो मिली हमें
इसकी कीमत मत आंकों तुम ,
गर लहू उबाल नहीं ले तो
अपने अतीत में झाँकों तुम II 33 II
राणा-प्रताप की धरती यह
अन्याय को जिसने सहा नहीं ,
सोचो उस वीर शिवाजी को
जो दुश्मन से कभी डरा नहीं II 34II
सौगंध हमें उन वीरों की
अन्याय न अब होने देंगे ,
भ्रष्टाचारी हो सावधान
तुम्हे चैन न अब लेने देंगे II 35 II
अत्याचारी अन्यायी सब
जो बैठ मदों में फूले हैं ,
उनको अहसास दिलाना है
ये हाथ न लड़ना भूले हैं II 36 II
सौगंध शहीदों की हमको
अब राक्षस ना बच पाएंगे ,
गाँधी-इंदिरा की आहुति
हम यूँ ना व्यर्थ गवाएंगे II 37 II
उठो हो जाओ होशियार
अँधियारा ना घिरने पाए ,
दीमक लग आये जड़ में हैं
यह महावृक्ष ना गिर जाए II 38 II
आओ हम इसे बचाते हैं
और शपथ आज ये खाते हैं ,
जो भूल हुई अब ना होगी
फिर स्वर्ण-काल ले आते हैं II 39 II
यह देश हमारा हम इसके
हमें फिर से इसे संजोना है ,
सोने की चिड़िया कहते थे
उस गरिमा को पा लेना है II 40 II
ऋषियों-मुनियों की कर्मभूमि
का गौरव फिर से लाओ तुम ,
निर्वहन करो कर्तव्यों का
सच्चे सपूत कहलाओ तुम II 41 II
इसकी मिट्टी से बने हैं हम
इस मिट्टी में मिल जायेंगे ,
ग़र काम देश के आ न सके
तो कैसे पुत्र कहायेंगे II 42 II
संस्कृति ऐसी अपनी है
सारा जग शीश नवाता है ,
धन्य मनुज वो जिनका
इस पावन भूमि से नाता है II 43 II
ये जीवन इसे समर्पित है
सौ और जनम यदि पाऊँ मैं ,
बस यही लालसा एक मेरी
इस माँ का पुत्र कहाऊँ मैं II 44 II
धन्य हूँ इस धरती पर आकर
बारम्बार प्रणाम करूँ ,
मातृभूमि को नमन करूँ मैं
मातृभूमि को नमन करूँ II 45 II

Poem ID: 65
Occupation: Writer
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 28 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: September 13, 2012
Poem Submission Date: September 15, 2012 at 4:22 am
Poem Title: नज़म-ए-भारत-माता
नज़म-ए-भारत-माता
वीर बनो‚ गुणवान बनो‚
रीत है भारत माता की।
प्रीत समाये हर बंधन में‚
नज़म-ए-भारत-माता की॥
प्रेम के कच्चे धागे‚
सीरत स्वाभिमान की।
खोना न इसे‚
जान है भारत माता की॥
चाहो तो मान लो,
चाहो तो भूल जाओ।
चाहना तुम्हारे बस में है,
नहीं है तकदीर भारत माता की॥
पीपल की छाँव का झूला,
हंसी की लहरों का फूला।
बरगद तले दांव-पेंच,
रंगीन यादें भारत माता की॥
हर पल पूजनीय रंगीन,
हर कदम लहराता नवीन।
हर सांस फर्राती यही,
सलाम भारत माता की॥
डा मोनिका सपोलिया

Poem ID: 66
Occupation: Government
Education: Bachelor’s Degree
Age: 36-40
Length: 18 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 14, 2011
Poem Submission Date: September 17, 2012 at 12:27 pm
Poem Title: मेरा सपना
मेरा सपना
मेरा भी एक सपना है, मैं स्वस्थ भारत बनाऊँगा ।
भले यहाँ मैं मिट जाऊँ, सुख, शांति, समृद्धि फैलाऊँगा ।।
सर पे कफन जो बांधकर कर्तव्य पथ पर चलते हैं,
अंजाम की चिन्ता किये बिना, वो कर्म ही अपना करते हैं,
लड़ने को जो मुसीबतों से, तैयार हर-दम रहते हैं,
बाधा, रुकावट जब भी आये, कभी न उससे डरते हैं ।
बिल्कुकल ऐसे हीं लोगों को अपने साथ मैं लाऊँगा ।
अपने देश में फैली जकड़न को, मैं जड़ से ही मिटाऊँगा ।।
मेरा भी एक सपना है, मैं स्वस्थ भारत बनाऊँगा ।
भले यहाँ मैं मिट जाऊँ, सुख, शांति, समृद्धि फैलाऊँगा ।।
भारत वासी सुधर जायेंगे, काम करेंगे सबसे बेहतर,
मदद के लिए दूसरों की ही, हरदम रहेंगे वो तत्पर,
हम भारत के उत्थान के लिए, कभी न चूकेंगे अवसर,
विश्वर पटल पर भारत का, स्थान होगा सबसे ऊपर ।
भ्रष्टाचार को दूर भगा, सोने की चिड़ियाँ बनाऊँगा ।
आतंकवाद का नाम मिटा, शांति से जीना सिखाऊँगा ।।
मेरा भी एक सपना है, मैं स्वस्थ भारत बनाऊँगा ।
भले यहाँ मैं मिट जाऊँ, सुख, शांति, समृद्धि फैलाऊँगा ।।

Poem ID: 67
Occupation: Teacher
Education: Other
Age: 51-60
Length: 52 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 17, 2012
Poem Submission Date: September 17, 2012 at 5:43 pm
Poem Title: वंदेमातरम गाया
वंदेमातरम गाया
देश के शहीदों को नमन बारम्बार हमारा
सीमाओं पर जाकर शत्रुओं को ललकारा
आज़ादी का बिगुल बजाकर प्राणों को वारा
थमती हुई साँसों ने वंदेमातरम गाया .
आज़ादी के संकल्पों से माँ को था चूमा
ज्वालाओं की देह बन बैरियों को था भूना
बलिदान अपना करके वायदा था निभाया
बिछुड़ती हुई साँसों ने वंदेमातरम गाया .
बन के सरहदों के मेरुदंड बन गए मोर्चा
करके संहार रिपुओं का इतिहास नया रचा
दगाबाजों को मिटाकर स्वयं को था मिटाया
ठहरती हुई नब्जों ने वंदेमातरम गाया .
जिसकी माटी में खेलकर बचपन था झूला
जिस माता का अन्न -फल खाकर यौवन था झूमा
दे कर अपने प्राण माता का ऋण था चुकाया
माता की दुआओं ने वंदेमातरम गाया .
बसा था जिनके फौलादी सीनों में तिरंगा
बनके विजयी तिरंगा था मौत को रंगा
इसकी शान के खातिर जौहर था दिखलाया
मौन हुई साँसों ने वंदेमातरम गाया .
माता की लाज बचाने किया सीनों को लाल
कफन मातृभूमि का बाँधकर बने महाकाल
कर्तव्य अपना अदा कर मौत को गले लगाया
निकलते हुए प्राणों ने वंदेमातरम गाया .
बेड़ियों को भस्म किया बन के प्राणों का लावा
अजर – अमर होकर देश का गौरव था बढ़ाया
बिछुड़े जो थे आज़ादी ने बच्चो को बताया
बच्चो की नम पलकों ने वंदेमातरम गाया .
रण स्तंभ बनके नाम उनका अंकित हो गया
अमर जवान ज्योति बनकर के देश भक्ति रहे जगा
सपना आज़ाद भारत का साकार कराया
मिलकर पंचतत्वों ने वंदेमातरम गाया .
केसरिया बाना पहन के रक्त फाग का खेला
आज़ादी का सूरज बन नया सवेरा फैला
धर्म , देश , न्याय के लिए शीश नहीं था झुकाया
वीरों की कुर्बानी ने वंदेमातरम गाया .
शहादत अपनी दे चमन देश का रहे महका
स्वयं को सुलाकर स्वाधीनता को गए जगा
उजड़े न किसी की कोख मोल कोख का चुकाया
फलित पवित्र कोखों ने वंदेमातरम गाया .
आज़ादी की विरासत दे ऋणी हुई पीढ़ियां
श्रद्धा सुमन चढ़ा के देश – जग दे रहा श्रद्धांजलि
राष्ट्रीय धर्म निभाकर स्वतंत्रता को गूंजाया
आखिरी महासफ़र ने वंदेमातरम गाया .
बन के भारत के आज़ादी गीत जन गा रहा
बन के राष्ट्रीय पर्व देश है तुम्हें पूज रहा
भारत माँ आज़ाद रहे नारा बुलंद कराया
स्वाधीनता महान ने वंदेमातरम गाया .
शहादत की जीवनी बन जीवनी रहे सूना
क्रांतिकारियों की अमर कहानियाँ रहे बता
सौंपकर आज़ादी आज़ाद रहना सिखाया
अलबिदा कह साँसों ने वंदेमातरम गाया .

Poem ID: 68
Occupation: Student
Education: Pursuing Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 55 lines
Genre: Adbhut (wondrous)
Poem Creation Date: April 8, 2011
Poem Submission Date: September 18, 2012 at 7:58 am
Poem Title: हम प्रोग्रेस कर रहे है..
“हम प्रोग्रेस कर रहे है”
कोर्ट के वकील बाबू से,
पसीना पोछते उस इंसान तक ।
दफ्तरी महिलाओं से लेकर,
वयोवृद्ध किसान तक ।
सभी को कहते सुना है
हम प्रोग्रेस कर रहे है ।।
गंगा की निर्मल धरा से,
बाजार के मिनरल वाटर तक ।
स्वर्ण रजत की थालो से,
थर्मोकोल की प्लेटो तक ।
हम प्रोग्रेस कर रहे है ।।
रिश्तो की गर्माहट से,
फेसबुक की चाहत तक ।
शास्त्रों के प्रज्ञान से,
गूगल के विज्ञान तक ।
हम प्रोग्रेस कर रहे है ।।
सर्वेभवन्तु सुखिनः से ,
नक्सल आतंकवाद तक ।
अखंड भारतवर्ष से टूटते,
‘खंडित’ कश्मीर ‘आज़ाद’ तक ।
हम प्रोग्रेस कर रहे है ।।
माता-पिता के चरणों से,
‘मॉम-डैड’ के कंधो तक ।
नारी शक्ति की पूजा से,
वेश्यावृत्ति के धंधो तक ।
हम प्रोग्रेस कर रहे है ।।
विक्रम के न्याय से,
‘राखी के इन्साफ’ तक ।
गौ सेवा – ईश्वर सेवा से,
गौ चर्म के व्यापार तक ।
हम प्रोग्रेस कर रहे है ।।
‘नालंदा-तक्षशिला’ को छोड़,
ऑक्सफोर्ड की चौखट तक ।
‘विश्वगुरु’ भारत से पीछे,
‘प्रगतिशील’ इस भारत तक ।
हम प्रोग्रेस कर रहे है ।।
पर इस प्रोग्रेस की दौड़ में,
हम भूल रहे संस्कार को ।
भूल रहे संस्कृति व भारतीय आकर को ।।
बचा सको तो बचा लो,
इस देश को इस बाजार से ।
वरना बिक जायेगी ये सभ्यता
‘उनकी’ एक ललकार से ।।
और जब बचा लो तभी कहना …
“हम प्रोग्रेस कर रहे है”

Poem ID: 69
Occupation: Writer
Education: Bachelor’s Degree
Age: 29-35
Length: 10 lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: September 17, 2012
Poem Submission Date: September 18, 2012 at 9:44 am
Poem Title: Bharatvarsh
ऐ खुदा तेरी इस बसती में ,अब हराम चलता है
जिसम बेचे तो ग़ाली,ज़मीर बेचे तो सलाम चलता है
जब से आई है आज़ादी बदला बदला सा है दसतूर
अब हर ग़ुलाम के संग यहां इक ग़ुलाम चलता है
हर नुकड़ बाज़ार सजा है चमड़ी के ख़रीददारो का
मुन्नी हो या शीला यहां सब का इक दाम चलता है
कौन लिखेगा झूठ को झूठा कौन लिखेगा सच्च को सच्चा
कलम बिकती है हर तरफ़ बिका कलाम चलता है
मत घबरा भारतवरश अच्छा है हम सब राज़ी हैं
बसक इनसां गुम है ,बाकी धंधा तमाम चलता है – rajpaul sandhu

Poem ID: 70
Occupation: Government
Education: Other
Age: 41-50
Length: 68 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 9, 2012
Poem Submission Date: September 18, 2012 at 6:00 pm
Poem Title: भारत माँ का कर्ज़
देशभक्ति का यह जज़्बा
हर दिल में जनम नहीं लेता,
निज सुख को तज स्वदेश हित में
हर कोई जतन नहीं करता |
है खास नस्ल उन वीरों की
जो सरहद पर डट जाते हैं,
सीमा की रक्षा करने को
अपना सर्वस्व लूटते हैं |
अपनी आज़ादी की खुशबू को
तनमन से वश में रखना,
जीवन की मोहक धारा में
मत अपने को बहने देना |
अपने को खरा बनाना तुम
यूँ तपन झेल कर सोने सा,
गाँधी सुभाष भी फक्र करें
ऐसा तुम देश बना देना |
ये स्वतंत्रता जो मिली हमें
अपने सत्कोटि शहीदों से,
वो अल्फ़्रेड पार्क, जलियाँवाला,
अट्ठारह सौ सत्तावन की प्रथम क्रांति |
अब अलग नही हो सकते हम
अपनी बहुमूल्य विरासत से,
हो कोई देश हो कोई जाति
मन में रक्खे न कोई भ्रांति |
भारत माता की ओर बढ़े
हर हाथ को चकनाचूर करें,
वो मुँह की खाएगा हमसे
जो अखण्ड हिंद के खण्ड करे |
यह सत्प्रण है उन वीरों का
जो सीमा पर मर मिटे लड़े,
गाँधी, सुभाष, नेहरू, बिस्मिल,
रानी, आज़ाद, सुखदेव, भगत,
विक्रम बत्रा, मनोज पांडे, नायर
जिन संग गुमनाम शहीद बड़े |
अब वक़्त हमारा आया है
हमको कुछ साबित करना है,
इन वीरों ने जो देखा था
वो सपना पूरा करना है |
है क़र्ज़ हमारे ऊपर भी
इस माटी का इस धरती का,
देकर अपना भी योगदान
हमको यह क़र्ज़ चुकाना है |
कुछ दुश्मन तो भाग चुके
कुछ दुश्मन अब भी बाकी हैं,
कर शंखनाद हुंकार भर
हमें उनको मार भगाना है,
भ्रष्टाचार, ग़रीबी, बेरोज़गारी
को जड़ से हमें मिटाना है |
हमको कुछ और नही करना
नहि कोई मुहिम चलानी है,
तन मन कर पाक़ शुद्ध सबको
अपना कर्त्तव्य निभाना है |
हर माँ का फ़र्ज़ वह बच्चे में
ऐसे पावन संस्कार भरे,
जो लहू बने दौड़े रग में
किंचित सन्मार्ग से हो ना परे |
हर शिक्षक अपने शिष्यों में
ऐसी शिक्षा संचरित करे,
वह राष्ट्र विकास राष्ट्र हित में
अपना प्रयास भर पूर करे |
नैतिकता से परिपूर्ण नस्ल
जिस दिन तैयार कर सकेंगे,
हम भ्रष्टाचार, ग़रीबी जैसे
दुश्मन को परास्त कर सकेंगे |
जो सपना देखा अमन चैन का
देश के वीर शहीदों ने,
उस सपने को साकार बना इस
माटी के ऋण से उऋण हो सकेंगे |

Poem ID: 71
Occupation: Government
Education: Bachelor’s Degree
Age: 41-50
Length: 52 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 16, 2012
Poem Submission Date: September 18, 2012 at 6:06 pm
Poem Title: हे! भारत के राम
हे भारत के राम
शयन हुआ संपूर्ण तुम्हारा, आगे मात्र समरांगण है,
घर-घर दंगा, हर घर लंका, हर घर में एक रावण है,
भेद चुके जो नाभि उसकी, मैं उसे बुलाने आया हूँ,
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।
धवल ध्वजाएँ धर्मच्युत हों, मलिन हुई फहराती हैं,
तालिबान की आदिम शक्ति, जिहादी भिजवाती हैं
स्वर्णमृग मारीच बने हैं, मैं तुम्हें चेताने आया हूँ
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।
आज प्रकंपित सबल राष्ट्र यह, अपने घर के शत्रु-दल से,
हमें तोड़ना है कुचक्र को, अपने ही अंतर्बल से,
इस संबल की वानर – सेना, मैं आज माँगने आया हूँ,
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।
विस्फारित उनके हैं नेत्र, जो अंग हमारे होते थे,
वो करते युद्ध की भाषा बुद्ध जिनके यहीं पर बसते थे,
इस प्रेम-दया से पूरित जन को ब्रह्मास्त्र थमाने आया हूँ,
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।
अतिथि को हम मान देवता , अपने अंग लगाते हैं,
करगिल के हत्यारे को भी हम पलकों पर सजाते हैं,
गर वह समझे युद्ध की भाषा तो बिगुल बजाने आया हूँ,
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।
पतित हो गए आज विभीषण, चल पड़े रावण के द्वार,
कुंभकर्ण की नींद सो रहे आज नागरिक व सरकार,
इस पाप नगर में घूम – घूम मैं आग लगाने आया हूँ,
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।
आश्रम सूने, गुरु मौन, निर्जन संसकार की शाला है,
सर पर गाँधी टोपी और एक हाथ में हाला है,
रामभक्तों की यह मर्यादा मैं तुम्हें दिखाने आया हूँ,
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।
रामनाम की लूट मचाई, देश के इन कर्णधारों ने,
जाने क्या – क्या खा डाला, देश के इन गद्दारों ने,
भ्रष्टाचार का यह सागर मैं आज सुखाने आया हूँ,
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।
आरुढ़ भरत सिंहासन पर, यह गठजोड़ों का मेला है,
लक्ष्मण तज गए मचा तहलका वन में राम अकेला है,
वनवास छोड़ के लौट चलो, मैं तुझे बुलाने आया हूँ,
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।
मायावी सत्ता की शूपर्णखां अंकशायिनी होती है,
सीता जैसी संस्कृति आज अग्निपरीक्षा देती है,
मंथरा कैकयी के तंत्रजाल को आज काटने आया हूँ,
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।
ऊर्जासिंधु युवावर्ग की आज कतारों में खड़ी है,
शस्त्रों का आडंबर पहने, अँधियारे में आज पड़ी है,
बाँध सके जो शक्ति सागर, वो पत्थर तिराने आया हूँ,
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।
मातृशक्ति की पावन प्रतिमा क्यूँ खंडित हो जाती है,
कभी जलाई जाती है, कभी नग्न घुमाई जाती है,
इस अहिल्या की मूरत में प्राण फूँकने आया हूँ,
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।
सुख-समृद्धि इस धरा पर, हम तो फिर से लाएंगे,
मर्यादा – मंडित अयोध्या, हे ! राम यहीं बनाएंगे,
जन-जन में हे ! राम, तुझे मैं आज बसाने आया हूँ,
हे भारत के राम! तुझे मैं आज जगाने आया हूँ।

Poem ID: 72
Occupation: Software
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 50 lines/ 360 words approximately. lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: September 15, 2012
Poem Submission Date: September 22, 2012 at 9:48 am
Poem Title: गौरवगाथा
जन्मभूमि जहाँ मातृत्व का हो पर्याय,
पर्वत-नदियाँ जहाँ माता-पिता सम आदर पाएं!
प्रस्तर में भी बसते हो भगवान जहाँ,
रह गया वही है देश के लिए सम्मान कहाँ?
जिसकी गौरव-गाथा संपूर्ण विश्व गाता था!
जग को दे परम ज्ञान जो जगतगुरु कहलाता था!
वचन की रक्षा में जहाँ प्राण गंवाया जाता था!
परोपकार जहाँ पूण्य की संज्ञा पाता था!
स्वार्थ वही देखो कैसी लीला रचाता है,
अपर का न्यास छीन मानव-हृदय हर्षाता है!
राम-राज्य की स्थापना जहाँ हुई थी कभी!
संतुष्ट प्रसन्न जहाँ रहा करते थे सभी!
जहाँ रही है प्रेम-शांति-करूणा-क्षमा-दया,
जिससे हमे है प्राप्त उत्कर्ष सदा हुआ!
वही ‘सर्वकार’ देखो ‘सरकार’ बन गया,
जिसको स्वयं से बस ‘सरोकार’ रह गया!
समृद्ध ऐश्वर्ययुक्त स्वतंत्र देश
में आया परतंत्रता का परिवेश,
जब विदेशी राष्ट्र ने आधिपत्य जमाया
तब क्रांति ने अपना रूप दिखाया!
धरा को निज रक्त से सिंचित कर,
प्रसन्नता से प्राणों की आहुति देकर,
अपनी धरती विदेशियों से मुक्त कर ली गयी!
सब मोल चुका स्वतंत्रता मोल ले ली गयी!
पर स्वतंत्र होकर भी आज प्रसन्नता नहीं होती है!
गणतंत्र होकर भी शोषित जनता लाचार रोती है!
जो है आध्यात्मिकता के तेज से प्रकाशित,
सदा से है जो संस्कृति एवं संस्कारों से पोषित!
विश्वबन्धुत्व-वसुधैवकुटुम्बकम हुए जहाँ से प्रसारित,
वह पुण्य भूमि भारत भूमि कर दी गयी विभाजित!
पहले देश विभाजित हो गया अपना,
फिर प्रारम्भ हो गया राज्यों का बँटना!
अब तो देखो घर भी बंटने लगे हैं!
हम सब स्वयं में ही सिमटने लगे हैं!
घर का आँगन कहीं लुप्त हो गया,
विभाजन की दीवारों में जाने कहाँ खो गया?
जहाँ पावनी पापनाशिनी पवित्र गंगा बहती है,
जहाँ कहते हैं सद्भावना कण-कण में बसती है,
हरिश्चंद्र दधिची सम हुए जहाँ दानी,
वीरों ने दी जहाँ प्राणों की कुर्बानी,
जहाँ परहित हेतु सर्वस्व होता था निस्सार,
वही आज चहुँ ओर होता है स्वार्थ का व्यापार!
धरती का जगतगुरु भारत!
भरतों की पुण्य भूमि भारत!
आज अपने ही ज्ञान से वंचित क्यूँ है?
परोपकार की भूमि स्वार्थ से सिंचित क्यूँ है?
हे भारतवासी! पहचानो अपनी वास्तविकता!
हो पुनः सर्वत्र प्रेम और पारस्परिकता!
फिर इस महिमा मंडित भूमि की महिमा वापस आएगी,
गौरवशाली देश की ‘गौरवगाथा’ सर्वत्र गायी जाएगी!!!

Poem ID: 73
Occupation: Student
Education: High School
Age: 11-16
Length: 130 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 17, 2012
Poem Submission Date: September 22, 2012 at 4:45 pm
Poem Title: सशक्त नौजवान : अदम्य क्रांति
जेहन में आई देशभक्ति की तरंग
हृदय में स्वारित हुआ मधुर मृदंग
आज़ादी-गाथा आज गुनगुनाता भृंग
झलकता वीरों में उत्साह रंग-बिरंग
गणतंत्र रहा है आजादी का शाश्वत भरतार
अभिव्यक्ति का आज यह नव-अवतार
शत्रु करते रहे इंसानियत तार-तार
अचानक धराधर ने बरसाया जल-मूसलाधार
और गिरि से उड़े क्रांतिकारी पखेरू हज़ार
असीम गगनचुम्बी परवान छुए बार-बार
निष्कपट पीकर गरल, चूम लिया शिखर
कौड़े-लाठी-भाठा का करते हुए तिरस्कार
आज मतवारा-मंत्रमुग्ध हुआ हर राष्ट्रभक्त
नई आभा, नई प्रभा – आज़ादी का वक्त
अमूल्य-अतुल्य इन शूरवीरों का रक्त
जितनी बार करो याद, कम हैं अरब-करोड़-लाख-हज़ार
यह गौरव-गाथा रखेंगे याद हमारे तात
बनाया है नव-इतिहास, अंग्रेजों को देकर मात
शहीदों की ये पवित्र काया, पवित्र गात
आज शहादत को करो सलाम, भूल कर जात-पांत
वाहित हो रही उमंग की मलय-वात
वंदन-गायन-पूजन योग्य हमारी भारत मात
कायम कर मिसाल, जगा डाली क्रांति-जोत
आह्वान भाव लिए उड़ते गये नित-कपोत
इन अमर-वीरों की होती रहे सदैव अर्चना
जिन्होंने की कायरता-अज्ञानता-दासता से घ्रणा
इनमें ही पली राष्ट्रप्रेम की अदम्य तृष्णा
राष्ट्र को पहुँचाया फर्श से अर्श तक
लड़ते रहे वो महावीर अंतिम दम तक
चेतना से भरकर जोशीले राग किये उदधृत
मूल रहा सेवा-निष्काम, जब तक गये मृत
इक्कीसवीं सदी के नए युग का है आगमन
उन्नति का लेकर प्रण, मिलकर करें अभिनन्दन
तरुण-जवानों से जमकर करें आह्वान-निवेदन
कि करके तुम देशभक्त-राष्ट्रवीरों का अभिवादन
नवयुवकों को मैं प्रेरित करता होकर अंतर्ध्यान
उठ खड़े होकर कर दो बुराइयों को छिन्न-भिन्न
उन्नति का असीम परवान हासिल करने का करो प्रयत्न
लाओ भारत में खूब कांस्य,रजत,स्वर्ण,हीरा,मोती,रत्न
लहराओ हर क्षेत्र में भारतीय परचम, बनकर तुम शत्रुघ्न
नवयुवकों को मैं प्रेरित करता होकर अंतर्ध्यान
भरपूर करके देश-सेवा, जीवन का देश हेतु कर बलिदान
कहलाकर तुम अमर-वीर, बन जाओ भारत की शान
गाते रहो सदेव इन्कलाब-जिंदाबाद का मधुर गान
दीनों के बनकर तुम बन्धु, बनाओ उन्हें विपन्नता-हीन
नवयुवकों को मैं प्रेरित करता होकर अंतर्ध्यान
भ्रष्टाचार,नक्सलवाद,भेदभाव को कर डालो क्षीण
अधीनता का करके उल्लंघन, लाओ नई उषा किरण
दांव पर लगते हुए स्वयं की आन-बान-शान
कलयुगी-राक्षसों को पहुंचा डालो शमशान
नवयुवकों को मैं प्रेरित करता होकर अंतर्ध्यान
स्पेक्ट्रम का बंटवारा या हो कोयले की खान
विधायक-मंत्री-सांसद हो चुके रिश्वत की दुकान
आज हर व्यभिचारी की आफत में है जान
न तो रहा इनका अब रुतबा, न ही शान
नवयुवकों को मैं प्रेरित करता होकर अंतर्ध्यान
2014 में जनता रखेगी हर प्रत्याशी का ध्यान
स्वच्छ-छवि वालों का ही होगा संसद को प्रस्थान
मुगदर हिला रही आक्रोश की ज्वाला
वीरों ने क्रांति में सारा जीवन झोंक डाला
आज गूँज रही राष्ट्र में क्रांति-मशाल
हिन्दोस्तां के पास है फ़ौज विशाल
मुगदर हिला रही आक्रोश की ज्वाला
राष्ट्र-उत्थान के गुणधर्म जो की पुण्य,पावन व सजीला
आज हर राष्ट्रभक्त महायज्ञ में आहुति देने को मतवाला
धधकती क्रांति से होगा भ्रष्टाचारियों का देशनिकाला
स्वर्णाक्षरों से सजेगी, सद्कर्मों की खुशबूदार शिला
रक्तप्लावित स्वर एक उफान पैदा करता
मैं नम्रता में भी क्रांति-सुर जगाता फिरता
दुनिया के समक्ष गाड़ डालो भारतीय झंडा
राष्ट्र-उन्नति को मानते हुए एजेंडा
विन्ध्याचल से हिमालय, फतह कर एवेरस्ट
तरुणाई ही लाएगी प्रगति का सुपरजेट
आतंकवाद-आरक्षण की सुलग रही आग
बुरे नेताओं ने ही अलापा यह राग
पूर्व चलने के बटोही अब तो तू जाग!
जनता को समझना होगा यह मर्म
कुपोषण को कहती है सरकार “राष्ट्रीय शर्म”
ऐसी कर्तव्यहीनता नही है इनका जुर्म ?
दग्ध-क्रांति की ज्वाला भड़क पड़ी है आज
क्षुब्ध-जन की जोशीली है आवाज
जनलोकपाल को सभी दलों ने है नकारा
सशक्त-भारत का ख्वाब इन्होने कहाँ विचारा?
करना ही होगा अपराधी-सांसदों का अंत
समस्याएं अनेक बढ़ रही हैं ज्वलंत
भारत माँ का करते हुए अदभुत गुणगान
राष्ट्रहित में न्योछावर कर दो प्राण
हर राजनेता के जेहन में केन्द्रित है बेईमानी
दुर्गुणों की अव्वलता में नहीं इनका कोई सानी
राजस्थान के जल-मंत्री की रही शोचनीय कहानी
संपूर्ण राज्य को कर डाला उसने पानी-पानी
मेरी कृति में समाहित है जनता की जागृति
जनतंत्र में जनता की सुनते क्यों नहीं मंत्री?
मंत्रियों के लिए सार्थक-प्रजातंत्र का नहीं रह गया कोई मोल
भ्रष्टाचार-व्यभिचार ही बन गया इनका अब “गोल”
राष्ट्र की अवनति में निभा रहे ये महत्पूर्ण रोल
जनता को चुनना ही होगा “राईट टू रिकाल”
गंभीर समस्याओं को न समझें युवक अवध्य
स्वच्छ-राजनीति हेतु करना ही होगा सद्बुद्धि यज्ञ
देशभक्ति पुनः करानी होगी इन्हें हृदयंगम
सुशासन की बात जानी चाहिए पूर्णतः रम
अटूट-अद्वितीय-अनुशीलनता का करते हुए संगम
दृढ-निश्चित होकर उत्थान कार्य करो विहंगम
वात्सल्य-स्नेह का पाकर दामन
पराक्रमी बन कर डालो बुराइयों का दमन
नव-सृजित कर दो यह चमन
पुनः खिलखिला उठें अनन्य सुमन
सभी दलों ने राष्ट्र लूटकर लड्डू तो खाया, नारियल भी फोड़ा
देश की अर्थव्यवस्था की कमर को भी तोड़ा
चुनाव के समय गला फाड़कर चिल्लाते ये इन्कलाब-जिंदाबाद
पूछो ज़रा इनसे, इसका मतलब है इन्हें याद?
आतंक में अलकायदा और देश में बाकायदा हो रहे प्रचंड
एकजुट होकर करना ही होगा इन्हें खंड-खंड
हे नौजवानों! ग्रहण करो नव-श्रद्धा और आशीष
थामते हुए अडिग-अविचल शिरीष
अरविन्द करता रहता एक आह्वान नित
लोकतंत्र की बुराइयाँ कर डालो चारों खाने चित
करते रहो कार्य एक से बढ़कर एक
राष्ट्र को बना डालो अत्यंत नेक
आर्थिक-महाशक्ति की दावेदारी का पेश करते हुए अदभुत नमूना
बहा डालो फिर से, उन्नति की गंगा-विकास की यमुना
जगत-गुरु की भाँति बनाओ इसे अमर-अटल सिरमौर
हे क्रन्तिकारी! नव-क्रांति की ज्वाला निज मन में फूँक डाल
दुआ कर, आना नए जोश से “15 अगस्त” हर साल
Poem ID: 74
Occupation: Software
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 21 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 22, 2012
Poem Submission Date: September 23, 2012 at 7:57 am
Poem Title: तब मुझको प्रेम हुआ भारत से
जब सम्पूर्ण धरा शिशुओं सी, भटक रही बिन पहचान लिए
जब ढूँढ रहा था विश्व अखिल, देव प्रकाश का दान लिए
तब हरकर अज्ञानता की रजनी और जलाकर सूर्य प्रखर
सभ्यता सृजन करने भारत तब प्रकट हुआ था ज्ञान लिए
बस एक यही है जगद-गुरु एक यही पथ-प्रदर्शक
जब सम्पूर्ण विश्व परिचित हो गया सत्य इस शाश्वत से
तब मुझको प्रेम हुआ भारत से
उठा कृपाण इस दुनिया ने, जीता जब भूभगों को
प्रेम सुधा उर में भरकर,हम चले बुझाने आगों को
यवन हूणों के तलवारों से,गूँज उठा जब विश्व सकल
बुद्ध महावीर और अशोक ने, छेड़ा प्रेम के रागों को
आज विश्व वह दोहराता,जो हमने सदियों सिखलाया
क्रूर और कुत्सित हिंसा दानव जब झुका अहिंसा के हठ से
तब मुझको प्रेम हुआ भारत से
“ये तेरा है ये मेरा है” जग में तो ये चलता आया
शोणित लीक खींच धरा पर,जग ने अब तक क्या पाया
“है कुटुम्ब संपूर्ण धरा ही” कहकर भारत ने किंतु
मुगलों,यहूदी,पारसियों को, सच्चे मान से अपनाया
पीकर कटु गरल भारत ने,जब विश्व को पय का दान किया
जयकारों की ध्वनि उठी,कृतज्ञ मुखों फिर शत शत से
तब मुझको प्रेम हुआ भारत से
Poem ID: 75
Occupation: Journalist
Education: Other
Age: 41-50
Length: 28 Lines lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: October 9, 2012 at 10:36 pm
Poem Title: राष्ट्र के लिए
जब! प्रेमिका, प्रेमी पर मरती
प्रेमी के लिये जिये।
जब! प्रेमी, प्रेमिका पर मरता
जिये प्रेमिका के लिए।
जब! स्वार्थी धन पर मरता
जिये धन के लिए।
जब! परमार्थी परमार्थ पर मरता
जिये परमार्थ के लिये।
तब! मरना तुम्हें है किसी पर
तो जिओ राष्ट्र के लिये।
अगर! किसी के लिये जीना तुम्हें
तो मरो राष्ट्र के लिये।।

Poem ID: 76
Occupation: Teacher
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 78 LINES IN A POEM lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 22, 2012
Poem Submission Date: September 23, 2012 at 3:25 pm
Poem Title: शहीदों की याद
आओ याद करें उनको
जिन्हें भुला चुके हैं लोग यहाँ.
सूरज अस्त नहीं होता था
अंग्रेजों के राज में ,
चुभते थे वे अत्याचारी
भारत में के ताज में .
निकल पड़े कुछ लोग घरों से
करने माँ की दूर चुभन ,
मन में था साहस अदम्य
और बंधा हुआ था शीश कफ़न.
तन घायल था मन घायल था,
अधरों पे नए तराने थे.
उनके पास भी घर में
रुक जाने के कई बहाने थे.
Poem ID: 77
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 12 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 11, 2012
Poem Submission Date: September 24, 2012 at 6:34 am
Poem Title: हाथ में वीणा नहीं तलवार दे दो …
हाथ में वीणा नहीं तलवार दे दो
माँ मुझे रण बांकुरा श्रृंगार दे दो
सांस जब तक है ध्वजा ऊंची हो तेरी
स्कंध पर मेरे तनिक ये भार दे दो
हो गए हैं मस्त मद में पुत्र तेरे
माँ मुझे फिर नाग सी फुंकार दे दो
खड्ग खप्पर धारणी काली बना दे
साथ में नरमुंड का ये हार दे दो
दक्ष हैं सब वीर अपने कर्म पथ पर
पग में चीते की गति हुंकार दे दो
रक्त का आवेग अब थमने न पाए
शीश पर आशीष की बौछार दे दो

Poem ID: 78
Occupation: Student
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 35 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 24, 2012
Poem Submission Date: September 24, 2012 at 2:55 pm
Poem Title: इंकलाब चाहिए………
आज फिर वो वक़्त है जहा इंकलाब चाहिए
मेरे वतन की हर एक आत्मा आज़ाद चाहिए,
क्यों लाल झंडे के नीचे
कफ़न में लिपटे लोग हे ?
क्यों खून बहते है यहाँ
अपनों का अपने ही लोग हे ?
क्यों रोष हे उनमे इतना
और क्यों वो अनसुने से लोग हे ?
क्यों बैठते नहीं वो मंच पर
क्यों हल नहीं निकलते ये लोग हे ?
आज फिर हमें एक सरदार पटेल चाहिए,
आज फिर वो वक़्त है जहा इंकलाब चाहिए,
मेरे वतन की हर एक आत्मा आज़ाद चाहिए,
आज सडको पर चलता हुआ
डरता हे आम आदमी,
जीता हे घुट घुट कर
हर डरता हुआ आदमी,
क्यों ये धमाको की आवाजे
और चीखे ख़त्म नहीं होती,
क्यों आज कश्मीर में
एक आम सुबह नहीं होती,
आज फिर हमें एक सुभाष बोस चाहिए,
आज फिर वो वक़्त है जहा इंकलाब चाहिए,
मेरे वतन की हर एक आत्मा आज़ाद चाहिए,
यहाँ क़त्ल-ए-आम हे
जात के नाम पर,
मिट रही इंसानियत
क्यों धर्म के नाम पर ?
क्यों स्त्रियों के दामन पर
खून ही खून हे ?
क्यों लुटती हे आबरू
धर्म जात के नाम पर ?
आज फिर हमें एक मोहनदास गाँधी चाहिए,
आज फिर वो वक़्त है जहा इंकलाब चाहिए,
मेरे वतन की हर एक आत्मा आज़ाद चाहिए,

Poem ID: 80
Occupation: Other
Education: High School
Age: 61-70
Length: 34 lines
Genre: Adbhut (wondrous)
Poem Creation Date: August 14, 2012
Poem Submission Date: September 24, 2012 at 9:13 pm
Poem Title: जय भारत माँ, जय भारत माँ!
जय भारत माँ, जय भारत माँ!
यह भूमि अहा! मम भारत की।
सुजला, सुफला, महकी-महकी।
इस भू पर जन्म अनंत लिए।
सुख सूर्य, अनेक बसंत जिये।
यह स्वर्ग धरा पर और कहाँ?
जय भारत माँ! जय भारत माँ!
सिर, ताज हिमालय शोभित है।
चरणों पर सागर मोहित है।
हर रात यहाँ पर पूनम की।
हर प्रात सुवर्णिम सूरज की।
बहतीं यमुना अरु गंग यहाँ।
जय भारत माँ! जय भारत माँ!
यह भूमि पुरातन वैभव की।
यह भूमि सनातन गौरव की।
यह संस्कृति की बहती सरिता।
अति पावन है यह वेद ऋचा।
इतिहास यही कहती सदियाँ।
जय भरत माँ! जय भारत माँ!
हर हाथ जुड़े नित वंदन को।
हर शीश झुके अभिनंदन को।
यह पोषक है, अभिभावक है।
सुखकारक है, वरदायक है।
नित गुंजित हो इसकी महिमा।
जय भारत माँ! जय भारत माँ!
हम याद रखें, यह माँ सबकी।
जिस छोर बसें, सुध लें इसकी।
बन सेवक हों, इसके प्रहरी।
पनपे मन में ममता गहरी।
कम हो न कभी इसकी गरिमा।
जय भारत माँ! जय भारत माँ!

Poem ID: 81
Occupation: Student
Education: Pursuing Graduate degree
Age: 17-22
Length: 18 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: May 25, 2012
Poem Submission Date: September 25, 2012 at 4:32 am
Poem Title: ये देश मेरी आस्था, यही मेरा गुरूर है
ये देश मेरी आस्था, यही मेरा गुरूर है
क्यों नहीं रगों में आज तुम्हारे बिजली कौंधती ?
क्यों स्वकेन्द्रीय सत्ताएं आज इंसानियत को रौन्ध्ती ?
क्यों लेन-देन की दुनिया में और बचा नहीं कुछ शेष है ?
इतिहास बदल देने वाले नाम बस रह गए अवशेष हैं…
एक नए बदलाव की क्रांति लाना हमे ज़रूर है….
ये देश मेरी आस्था , यही मेरा गुरूर है….
पढ़ी-लिखी पीढ़ी आज बस ऊपर से चमकदार है,
अन्दर डरती हीन भावना, वोह भी जार-जार है,
अगर देश का भविष्य ही कर्मों से मुंह चुराएगा,
तो खुद का देश बचने क्या अंतरिक्ष से कोई आयेगा?
आओ चलें साथ, भले ही मंजिल अभी दूर है…
ये देश मेरी आस्था, यही मेरा गुरूर है…
इस धरती ने ही जने सुभाष, भगत और गाँधी,
मिल जाओ सब एक जुट, और लाओ ऐसी आंधी.
अकेले यूँ मत घबरा, एक छोटा-सा कदम बढ़ा,
पीछे मुड़के जब देखेगा तो पायेगा पूरा देश खड़ा.
लोग कहेंगे की ये बस मेरे खाली दिमाग की फितूर है…
पर ये देश मेरी आस्था, यही मेरा गुरूर है….

Poem ID: 82
Occupation: Other
Education: Graduate of Professional Degree
Age: >70
Length: 20 lines
Genre: Adbhut (wondrous)
Poem Creation Date: March 16, 2012
Poem Submission Date: September 25, 2012 at 4:40 am
Poem Title: भारत माँ
भारत माँ
स्नेह की प्रतिमा सुहानी है हमारी भारत माँ
दुनियाँ मे दिखता न कोई दूसरा ऐसा यहाँ
भाल है काश्मीर जिस पर हिम किरीट ताज है
है हिमाचल चन्द्रमुख जिसका सुखद भूभाग है
दिल है दिल्ली, यू पी राजस्थान हैं वक्षस्थली
कुरूक्षेत्र जहाँ पै” जन्मी गीता वह पुण्य स्थली
गंगा यमुना सरस्वती जिसके गले का हार है
करधनी सी नर्मदा औ” ताप्ती की धार है
बिहार छत्तीसगढ महाराष्ट्र कहते रामायण कथा
आंध्र कर्नाटक तमिलनाडु बताते मन की व्यथा
हरा केरल भरा गुजरात असम और पूर्वाचंल
अंग बंग औ” उडीसा लहराते सुदंर वनांचल
कृष्णा कावेरी हैं नुपुर ,चरण धोता है जलधि
सुनहरी पूरब क्षितीज है पश्चिम में नीला उदधि
हिमालय सा उच्च पर्वत गंगा सी पावन नदी
राम कृष्ण की मातृ भू यह सदा सुख साधन भरी
आज भी आध्यात्म में ऊंचा इसी का नाम है
प्राकृतिक सौंदर्य सुख भंडार सब अभिराम है
जन्म पाने को तरसते देवता सब भी जहाँ
वह अनोखी इस जगत में है एक ही भारत माँ।

Poem ID: 83
Occupation: Teacher
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 14 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 11, 2011
Poem Submission Date: September 25, 2012 at 7:00 am
Poem Title: रुग्ण राग छोड़ दो
रुग्ण राग छोड़ दो
भरत शर्मा ” भारत “
हो गया व्यतीत उस अतीत को अब छोड़ दो |
उस पुरानी दास्ताँ का रुग्ण राग छोड़ दो ||…..
हो गया………………….
देश के समक्ष आज है चुनौतियाँ कई |
जाति भाषा धर्म में राष्ट्रीयता बटी हुई |
उन्नति की राह की सब विघ्न बाधा तोड़ दो ||
हो गया,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तंत्र सारा भ्रष्ट हुआ आज सारे देश का |
कौन ज़िम्मेदार है इस पूरे परिवेशका |
ऐसे उत्तरदाइयों की गर्दनै मरोड़ दो ||
हो गया………………….
जन गण के मौन से जो जेब अपनी भर रहे|
जोंक बनकर राष्ट्र रूपी रक्त को जो पी रहे |
दुष्ट दुराग्रहियों के चूषकांग तोड़ दो ||
हो गया…………………..
वक़्त की पुकार आज भेदभाव तोड़ दो |
राष्ट्र के उत्थान में निज स्वार्थों को छोड़ दो|
“भारत” माँ के गौरव को आम जन से जोड़ दो||
हो गया……………………

Poem ID: 84
Occupation: Student
Education: High School
Age: 17-22
Length: 24 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: May 20, 2010
Poem Submission Date: September 25, 2012 at 8:48 am
Poem Title: हो चली शुरुआत
मिल गए गर सपने जो धूल में
तो क्या छुट गयी आस
अभी न जाने पल हैं कितने
मायने जो रखते ख़ास
उठो रे मानुष अब तुम जागो
निराशा के बंधन को फेंको
सारी कठिनायियो को दे दो मात
अब हो चली शुरुआत
अब हो चली शुरुआत
मुश्किलों को गले लगाने की
अब हो चली शुरुआत
कंटका – कीर्ण रस्तों पे चलने की
अब इनसे डरना है क्या
अब इनसे छिपना है क्या
पानी है जो मंजिल अपनी
तो फिर इनसे बचना है क्या
सफलता है नहीं नपती
उन्चायियो से जो तुमने पाई
सफलता उससे है नपती
ठोकरे जो उन तक तुमने खायी
याद करोगे एक ये भी दिन
जब सारी दुनिया थी अन्धकार में लीन
याद आयेगी तब वो बात
जब हुई थी एक शुरुआत

Poem ID: 85
Occupation: Software
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 17-22
Length: 28 lines lines
Genre: Other
Poem Creation Date: September 24, 2012
Poem Submission Date: September 25, 2012 at 11:29 am
Poem Title: लोकतंत्र का पर्व …
लोकतंत्र का पर्व अबकी ऐसे मनाया जाये
शत्रुओ को देश के जड़ से मिटाया जाये
हिन्दू ,मुस्लमान ना सिक्ख ना इसाई
कौम से पहले राष्ट्र को लाया जाये
सबके लिए हो रोटी ,सबके लिए हो शिक्षा
सबके लिए बराबर कानून बनाया जाये
अलग अलग लड़ने से कुछ नहीं हासिल
साथ मिलके पहले भ्रस्टाचार मिटाया जाये
छुपे हुए है भेडिये जो, खादी की आड़ लेकर
चेहरे से उनके अबकी ,नकाब हटाया जाये
एक बार “इन्कलाब ” का नारा बुलंद करके
चोरों को संसद से मार भगाया जाये
भूल चुके है अपने अधिकार को जो लोग
ऊँगली पकड़ के उनको “बूथ ” पे लाया जाये
जाती ,धरम और द्वेष का भेद भुलाकर
योग्य उम्मीदवार पर ही “बटन ” दबाया जाये
लाख रास्ता है कठिन ,दूर मंजिल है सही
चलो अबकी खुद को आजमाया जाये
आँखों में आस भरके “सागर” निहारता है
चलो अबकी देश बचाया जाये , देश बचाया जाये …..
संजीव सिंह “सागर”

Poem ID: 87
Occupation: Student
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 46 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 10, 2012
Poem Submission Date: September 25, 2012 at 2:53 pm
Poem Title: रे भ्रष्ट तू सिंघासन संभाल
हिलती है धरा, डोले है गगन
राजा है डरा, सहमा है सदन
उमड़ी है प्रजा, हुआ आन्दोलन
अब झूम उठा, वीरो का मन
लो सजी ध्वजा, बज उठा नाद
यह पुण्य कर्म का, है प्रसाद
क्या सुन्दरता, क्या भोलापन
सब त्याग चला, देखो बचपन
अब मात्रि हेतु, उठ खड़ा हुआ
अधिकार हेतु बस, अड़ा हुआ
ललकार जो सुन ले अब कोई
जग उठे प्रीत मन में सोयी
जिस क्षण की थी अभिलाष सखे
चल शीश उठा अब मान रखें
बस बहुत हुआ शासन उनका
बस बहुत हुआ भाषण उनका
अब तो जनता की बारी है
वहि शासन की अधिकारी है
सदियों से अत्याचार सहे
क्यों शासक ही लाचार रहे
यदि स्वर्ण गला हमने ढाला
सिंघासन को हमने पाला
अब हम ही उसे गलायेंगे
सिंघासन नया बनायेंगे
प्रासाद गिराए जायेंगे
जन भवन उठाये जायेंगे
चलते है जन, मन में उमंग
इतना तो आज करेंगे हम
धरती का ऋण अब बहुत हुआ
सब क़र्ज़ चुकायेंगे अब हम
चल बन्धु चले अब बढ़ निकलें
अपना भविष्य हम गढ़ निकलें
उन हुक्कामो को पता चले
आवाज़ यहाँ भर दम निकले
अब गया दौर उठ रहा आज
बरसो से जो सोया समाज
अब समेट अपना ये जाल
रे भ्रष्ट तू सिंघासन संभाल
की अब तक जिनको कुचल रहा
अब उनका ही ब्रह्माण्ड हिला
अब वापस करने की बारी
जो तुझको दी ज़िम्मेदारी
अब ख़तम हुआ भय राज तेरा
अब होगा यहाँ स्वराज मेरा
चमकेगी बस अब राष्ट्र ध्वजा
कि राज करेगी यहाँ प्रजा

Poem ID: 88
Occupation: Student
Education: Other
Age: 23-28
Length: 23 lines
Genre: Shant (peaceful)
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: September 25, 2012 at 4:04 pm
Poem Title: हे मातृभूमि तुझको अर्पण
हे मातृभूमि तुझको अर्पण, मेरा तृण-तृण मेरा कण-कण
वर्षो तूने दी है ये शक्ति, कभी खंडित न हो राष्ट्रभक्ति
जीवन यह तुक्ष तुझे अर्पण, यह स्वास देह धन और ये मन
किस तरह करू तेरा मान जननी, तुझपे सब वार बनूँ मै धनि
किस तरह और क्या दू तुझको, तुझसे ही मिला सब कुछ मुझको
कामना यही मै कर सकती, मेरा ह्रदय बने तेरा दर्पण
हे मातृभूमि तुझको अर्पण……
करना चाहू तेरि पूजा मै, तेरा अभिनन्दन और मान करू
रज-भूमि तेरि मै ललाट मलूँ, सर्वत्र तेरा गुणगान करूँ
तेरे जल में अधिक मिठास लगे, संपूर्ण मुझे हर स्वास लगे
तेरे खेतो की हरियाली से, तेरे बागो की हर डाली से
तेरी पगडण्डी तेरे मौसम से, मुझे प्रीत हवा मतवाली से
तू है अनुपम नैसर्गिक है, किस तरह करू तेरा वर्णन
हे मातृभूमि तुझको अर्पण…..
तेरे खेतो ने खलिहानों ने, तेरि धरा के पूज्य किसानो ने
सीमा पर डटे जवानों ने, आज़ादी के दीवानों ने
तुझको चाहा तुझको ही जपा, तेरा सुमिरन कर खुद को तपा
शत कोटि कंठ जय गान करे, शत कोटि शीश अभिमान करे
है ममता की अभिलाष हमे, बस एक तुम्हारी आस हमे
तुझको यह दिवस समर्पित कर, शत पुत्र करे तेरा ही मनन
हे जननी करू तुझे अर्पण, मेरा तृण-तृण मेरा कण-कण
Poem ID: 89
Occupation: Business
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 36-40
Length: 24 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: February 5, 2012
Poem Submission Date: September 25, 2012 at 7:58 pm
Poem Title: मेरे देश तुझको मेरा नमन
मेरे देश तुझको मेरा नमन
मेरे देश तुझको मेरा नमन
कितनी सुहानी धरती तेरी
पावन तेरा गगन।
मंत्रों सी पावन धरती है,
सबका अभिनन्दन करती है,
जीवन की साँसे हैं सबमें,
जड़ हो या चेतन
पवन तेरी है चंचल–चंचल,
गीत सुनाये मंगल-मंगल,
हर मौसम खुशियों का मौसम,
पतझड़ या सावन
खिलती हुई कली ना तोडें,
अपनों को अपनों से जोड़ें,
महकाना है उपवन अपना,
अपना ये आँगन
ना हो भाषा राग-द्वेष की,
बोली मीठी प्रेम-देश की,
लोभ, निराशा, स्वार्थ, तिकड़में,
आज करें तर्पण
अपना देश है अपना साथी,
जैसे एक दीया और बाती,
चलो किरण बन जाएँ हम तुम,
दुनिया हो रोशन
-रोहित रुसिया

Poem ID: 90
Occupation: Student
Education: Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 24 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: February 8, 2013
Poem Submission Date: September 26, 2012 at 12:22 pm
Poem Title: एक बार फिर स्वतंत्र, भारत वर्ष महान हो…
विस्मृत गौरव गाथाओं का, हमें पुनः ज्ञान हो,
एक धर्म हो मानवता, भारतीयता पहचान हो,
यों स्वतंत्र हों विचार, नव स्वतंत्र गान हो,
एक बार फिर स्वतंत्र , भारत वर्ष महान हो…!!!
आंख मूँद क्यों चलें, क्यों अनुसरण करें,
स्वयं विचारते नहीं, क्या करें क्या न करें,
स्व-संस्कृति प्यारी हो, निजता पर अभिमान हो,
एक बार फिर स्वतंत्र , भारत वर्ष महान हो…!!!
सच का साथ दे सकें और गलत बदल सकें,
जिसपे चलने मन करे, राह वो चल सकें,
हो शिखर जिसका हश्र, वो शुरू अभियान हो,
एक बार फिर स्वतंत्र , भारत वर्ष महान हो…!!!
प्रेम गुनगुना सकें, विश्वास को अपना सकें,
ईमान बाकी है अभी, खुद को ये समझा सकें,
मृत्यु आये चाहे जब, पर जीवन आसान हो,
एक बार फिर स्वतंत्र , भारत वर्ष महान हो…!!!
खोखला करती दीमकों से, घर बनाती चीटियों से,
अन्यायपूर्ण नीतिओं से, व्यर्थ की कुरीतियों से,
एक बार फिर स्वतंत्र , भारत वर्ष महान हो…!!!
एक बार फिर स्वतंत्र , भारत वर्ष महान हो…!!!

Poem ID: 91
Occupation: Government
Education: Other
Age: 51-60
Length: MUKTAK-30-LINES lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date:
Poem Submission Date: September 26, 2012 at 12:23 pm
Poem Title: अटवी के प्रस्तर , खंड -खंड घर्षण,
कविता- चिंगारी
अटवी के प्रस्तर ,
खंड -खंड घर्षण,
चकमक चकाचौध ,
जठरानल को शान्ति दे ,
अखंड जीवन की,
लौ चिंगारी ।
बन मशाल,
प्रेरणा की मिसाल ,
मंगल की,
चमकी चिंगारी ।
चहुँ ओर ,
तम का डेरा।
जन सैलाब चिंगारी से,
अभिभूत वडवानल घेरा ।
व्याकुल आने को नया सवेरा,
रानी के खडगों की चिंगारी ।
अमर कर गई ,
जन-जन में जोश भर गई ,
सत्य अहिंसा प्रेम दीवानी,
बापू की स्वराज चिंगारी ।।
नूतन अलख जगा गई ,
देशभक्त बलिदानी,
चिंगारी दावानल फैला गई ।
युग – युग के ज़ुल्मों को सुलझा गई ।
नई रात ,
नई प्रात: करा गयी |
चिंगारी मशाल,
मिसाल बन ,
स्वाभिमान बन,
राष्ट्र गीत सुना गयी ।।

Poem ID: 92
Occupation: Government
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 42 lines
Genre: Adbhut (wondrous)
Poem Creation Date: January 9, 2014
Poem Submission Date: September 26, 2012 at 12:28 pm
Poem Title: रंग लहू का एक है
फुलवारी में फूल अनेक
चमन महकता एक है
रंग लहू का एक है|
संविधान की सौं थी मगर
समुदाय बंटा औ छिन्न हुआ,
शराफ़त की दुहाई थी मगर
चलन पशु से क्या भिन्न हुआ?
हम हिन्दू, हम ही मुसलमान
हम ही राष्ट्र की हैं पहचान
यहाँ मनुष्य समान हर एक है,
रंग लहू का एक है|
झुण्ड की कुछ काली भेंड़ों का
चलो, पर्दाफाश सरे-आम करें,
आस्तीन के साँपों का भी
जल्दी से काम तमाम करें|
भ्रष्ट व द्रोही के चंगुल से
मुक्त देश को करने में,
करें वही जो नेक है,
रंग लहू का एक है|
शांति-लौ जलते रहने को
दिया-तेल-बाती लगते हैं,
प्रेम-भ्रातृत्व-सहिष्णुता संग
देशभक्त-परवाने जलते हैं|
उनकी गाथाओं से लिख दें
अमन-चैन की अमर कहानी
जहाँ हो माहौल खुशी का
वहाँ आनंद अतिरेक है,
रंग लहू का एक है|
अपने ही हाथों गढ़नी है
पुनरोदय की अमिट निशानी,
कबिरा-गांधी की पवित्र थली में
मेल-जोल की पौध लगानी|
क्यों हो दंगा, क्यों फसाद
कैसा झगड़ा, कैसा विवाद
जब प्रेम-रंगों का इंद्रधनुष
क्षितिज पर अभिषेक है,
रंग लहू का एक है|
-अजय तिवारी
25 सितम्बर, 2012

Poem ID: 93
Occupation: Writer
Education: Other
Age: 61-70
Length: ३७ lines
Genre: Other
Poem Creation Date: November 30, 2011
Poem Submission Date: September 26, 2012 at 1:36 pm
Poem Title: मत पूछो क्यों तन -मन हँसता
मत पूछो क्यों तन -मन हँसता
मत पूछो क्यों तन मन हंसता
पगध्वनि में क्यों साज सा बजता
अंग-अंग में थिरकन रहती
अधरों पे मृदु गीत सा सजता
देस अपने थी गई सखि मैं
देस मेरा अँखियों में बसता ।
धरती की केसरिया चुनरी
मनवा पल पल याद करे
पीपल की वो ठंडी छैयाँ
याद करूँ तो आंख भरे
क्यारी- क्यारी, उपवन-उपवन
चित्रकार रंग भरता
देवदारों की शीत पवन
प्राणों में भर देती सिहरन
जलतरंग की स्वर लहरी सा
शाख- शाख में होता गुंजन
नदियों की कल-कल लहरों में
स्नेह वेग न थमता ।
त्योहारों की मेंहदी का रंग
झलके नभ के आंगन में
वांसती फूलों का उत्सव
सजता सब के प्रांगन में
श्र्द्धा और विश्वास का दीपक
मन मन्दिर में जलता
श्वेत पताका लिये खड़े वे
सीमाओं के प्रहरी पर्वत
मौन तपस्या लीन युगों से
संतों से वे साधक पर्वत
ऋषि मुनियों के ज्ञान का झरना
हिम शिखरों से झरता
हर प्राणी की अँखियां जैसे
स्नेह सुधा की गागर
अब जानूँ क्यों कहती दुनिया
गागर में है सागर
कैसे कह दूँ बिन माँ के हूँ
देस मेरा माँ जैसा लगता
तभी तो वो अँखियों में बसता ।
शशि पाधा

Poem ID: 94
Occupation: Student
Education: High School
Age: 11-16
Length: 24 lines lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: February 9, 2014
Poem Submission Date: September 26, 2012 at 3:55 pm
Poem Title: ‘our proud’
Today my dear fellowmen,
You will learn about some men,
Who are for their country,
More than just someone who brought them victory,
For when their nation was in danger,
their blood boiled in anger,
Without caring for their personal life,
They left their parents,children,and wife,
And off they went like real heroes,
To make the enemy feel like zeroes,
These men had muscles like Iron,
And had the hearts of a Lion,
When the enemy faced these men,
The enemy didn’t know where to go then,
For one of these men,
Was enough for the enemies then,
The enemy then ran away like rats,
Like rats run after seeing the cats,
Thus these men saved the country,
Giving it a proud victory,
The heroes of this story,
Work for the country,
These are the great and ever victorious,
Our Proud India!

Poem ID: 95
Occupation: Student
Education: Other
Age: 17-22
Length: 35 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: March 2, 2013
Poem Submission Date: October 11, 2012 at 10:17 pm
Poem Title: वीर सुभाष बाकी तो हैं………
मानचित्र में जड़ा हुआ, या बीच सड़क पर खड़ा हुआ
रामलीला में अड़ा हुआ, या फिर संसद में पड़ा हुआ
जन-गण का भाग्य-विधाता वह,हम कहें किसे भारत है?
वहीं भारत जिसकी महिमा सारे संसार ने गाया,
नई दिशा दे सकल विश्व को जगतगुरु कहलाया|
आज वहीं जननी अपने कुछ कपुतों पर रोती,
जिसके कारण भारतमाता अस्मिता अपनी खोती|
जो संसद को बना दुकान, ईमान को रखकर गिरवी
करते सौदा संस्कार का, जिनसे शरमाती दिल्ली|
पूछ रहा है आज हर बच्चा राजा, कलमाडी से,
क्या गरिमा बढ़ जाती इनकी मंत्री जैसे गाली से|
सत्तर साल के कंधे पर बूढ़ा भारत रोया है,
और हमारा यूवा आज़ाद जाने कहाँ सोया है?
नोट उछाले, इज़्ज़्त बेची, कुर्सी-जूते चला दिया,
संवैधानिक मंदिर को तुमने मयखाना बना दिया|
कभी जला सिंगूर, कभी जलते मंदिर-मस्जिद भी,
मजहबों की ले आड़ फिर इंसानियत भी जला दिया|
पाँच साल पर जयहिन्द कहता वह कथित देशभक्त है,
संवैधानिक पुतलों के हाथों में तिरंगा त्रस्त है|
है एक कटु सवाल मेरा नक्सलपोषक ठेकेदारो से,
जो बनते समाजवाद के नायक, दम भरते बस बातों से|
क्या कभी धमाके उनके दिल्ली का दिल दहलाते हैं?
बस उनके निशाने पर मासूम सिपाही आते हैं|
दोनों ने रोटी की खातिर बंदूक संभाला है पर,
फ़र्क होता बस वर्दी का, क्या इसलिये मारे जाते हैं?
हर बार जली है रेल सामूहिक नरसंहार के जलवे में,
क्या कभी सुना है हुई मौत, मंत्री की नक्सल हमले में|
यह सवाल नही तमाचा है, समाजवाद के चेहरे पर,
क्या कभी भ्रष्ट नेता के बेटे होते लाशों की मलवों में|
क्यों लोकतंत्र है मौन, खौलता लहू नहीं इन बातों से?
क्यों उदासीन हो गये हार, हौसला हम हालातों से?
डायनिंग से निकल चौक तक आक्रोश आज आया पर,
सड़क से संसद तक उसका जाना अभी बाकी तो है|
मत भूल सत्ता के गलियारे, है बूढ़ा शेर बस थका अभी,
याद रखना उसके कई वीर सुभाष बाकी तो हैं…….||

Poem ID: 96
Occupation: Teacher
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 80 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: June 1, 2012
Poem Submission Date: September 26, 2012 at 4:46 pm
Poem Title: हुईं यहाँ मर्दानियाँ
हुईं यहाँ मर्दानियाँ
भारत कि इस धरती ने
वीरता की रची कहानियाँ
मर्दानों की बात तो क्या
हुई यहाँ मर्दानियाँ
कभी बनी चाँद बीबी वो
कहलाई कभी रजिया सुल्तान
नूरजहाँ का नूर कभी तो
कभी रानीझाँसी हुई महान
चलती रहीं गाथाएं आगे
चलती रहीं कहानियाँ
मर्दानों की ………………
वीरता की इस गाथा में
जुड़ा एक नाम बलिदानी
आँधियों भरे दिन हों चाहे
चाहे रातें हो तूफानी
भारत की इस बेटी ने
छोड़ी कितनी निशानियाँ
मर्दानों की बात……………..
अटल हिमालय सा निर्णय ले
बंग देश आजाद किया
डटी रहीं और डिगी नहीं
रची कहानी साहस की
लहू के कतरे कतरे से
लिखीं अमिट कहानियाँ
मर्दानों की बात ………….
संकट में होगा जब भारत
वे फिर तलवार उठाएंगी
रानीझाँसी सा जज्बा ले कर
दुश्मन को मार भागएंगी
व्यर्थ नहीं जाने देगीं वे
उनकी वो कुर्बानियाँ
मर्दानों की बात ………………..
भारत तो हमारी आन है
भारत हमारी शा न है
इसकी एक मुस्कान पर तो
कुर्बान हमारी जान है
यही कहेंगी नहीं डरेंगी
भारत की दीवानियाँ
मर्दानों की बात तो क्या
कुई यहाँ मर्दानियाँ हुईं यहाँ मर्दानियाँ
भारत कि इस धरती ने
वीरता की रची कहानियाँ
मर्दानों की बात तो क्या
हुई यहाँ मर्दानियाँ
कभी बनी चाँद बीबी वो
कहलाई कभी रजिया सुल्तान
नूरजहाँ का नूर कभी तो
कभी रानीझाँसी हुई महान
चलती रहीं गाथाएं आगे
चलती रहीं कहानियाँ
मर्दानों की ………………
वीरता की इस गाथा में
जुड़ा एक नाम बलिदानी
आँधियों भरे दिन हों चाहे
चाहे रातें हो तूफानी
भारत की इस बेटी ने
छोड़ी कितनी निशानियाँ
मर्दानों की बात……………..
अटल हिमालय सा निर्णय ले
बंग देश आजाद किया
डटी रहीं और डिगी नहीं
रची कहानी साहस की
लहू के कतरे कतरे से
लिखीं अमिट कहानियाँ
मर्दानों की बात ………….
संकट में होगा जब भारत
वे फिर तलवार उठाएंगी
रानीझाँसी सा जज्बा ले कर
दुश्मन को मार भागएंगी
व्यर्थ नहीं जाने देगीं वे
उनकी वो कुर्बानियाँ
मर्दानों की बात ………………..
भारत तो हमारी आन है
भारत हमारी शा न है
इसकी एक मुस्कान पर तो
कुर्बान हमारी जान है
यही कहेंगी नहीं डरेंगी
भारत की दीवानियाँ
मर्दानों की बात तो क्या
कुई यहाँ मर्दानियाँ

Poem ID: 98
Occupation: Student
Education: High School
Age: 17-22
Length: 27 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 9, 2012
Poem Submission Date: September 26, 2012 at 5:01 pm
Poem Title: देश
देश
देश लिखा नहीं जाता
देश पढ़ा नहीं जाता
देश जिया जाता है
देश प्रेम जब पीया जाता है
लाख चट्टानों के गिरने से
देश दिया नहीं जाता
दो टुकडों की लड़ाई में
बंजर खेतों की जुताई में
इंसानों को धागों सा सिया नहीं जाता
तोड़ने की कोशिश में लगकर
जोड़ने का परिचय दिया नहीं जाता
देश लिखा नहीं जाता
देश पढ़ा नहीं जाता
पैसों की चमक से
न शहर न गावं से
देश नहीं डरता किसी अलगाव से
जुड़कर ,बना मिलकर रहा
न कभी झुकेगा न कभी झुका
गिरकर सर उठाया नहीं जाता
सपनो को कभी दबाया नहीं जाता
हर शहीद ने इतिहास लिखा
गर्व से भरी यहाँ हर इक माँ
ममता की छाँव ये देश मेरा
तेरे लिए मेरे लिए
हर सैनिक सरहद पर खड़ा
वीरो को डर से डराया नहीं जाता
गद्द्दारो को घर में बसाया नहीं जाता

Poem ID: 99
Occupation: Government
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 51-60
Length: 44 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 1, 1992
Poem Submission Date: September 26, 2012 at 11:48 pm
Poem Title: यह देश मेरा जल रहा
यह देश मेरा जल रहा .. [कविता] – श्रीकान्त ,मिश्र ’कान्त’
आतंक के अंगार बरसे
आज अम्बर जल रहा
त्रस्त घर उसका नहीं
यह देश मेरा जल रहा
भ्रमित अरि के हाथ में
कुछ सुत हमारे खेलते हैं
घात कर के मातृभू संग
जो अधम धन तौलते हैं
आज उन सबके लिये
न्याय का प्रतिकार दो
विहंसता है कुटिल जो
अब युद्द में ललकार दो
नीर आंखों का हुआ है व्यर्थ सब
और अब तो क्षीर शोणित बन रहा
त्रस्त घर उसका नहीं
यह देश मेरा जल रहा
आग यह किसने लगायी
क्यों लगायी किस तरह
राष्ट्र के सम्मुख खड़े हैं
कुछ यक्ष प्रश्न इस तरह
किस युधिष्ठिर की चाह में
राष्ट्र के पाण्डव पड़े हैं
प्रतीक्षा में कृष्ण की हम
मूक जैसे क्यों खड़े हैं
आतंक की हर राह में
सैनिक हमारा छल रहा
त्रस्त घर उसका नहीं
यह देश मेरा जल रहा
कुटिल अरि ललकारता है
मातृभू हुंकारती है
महाकौशल के लिये
फिर जन्मभू पुकारती है
उठो जागो ….
सत्यसिंधु सजीव मानस
कर गहो गाण्डीव
फिर से बनो तापस
रक्त अब राणा शिवा का
युव धमनि में जल रहा
शीष लेकर हाथ में हर
‘कान्त’ युगपथ चल रहा
त्रस्त घर उसका नहीं
यह देश मेरा जल रहा

Poem ID: 100
Occupation: Student
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 51-60
Length: 16 lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: August 14, 2012
Poem Submission Date: September 27, 2012 at 4:01 am
Poem Title: भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव को समर्पित
भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव को समर्पित
थे बड़े सजीले वह दूल्हे
वैसी ही थी बारात चली
हर दिल भीतर से रोता था
पर चेहरे थी मुस्कान सजी
मुख मंडल पर वह आभा थी
शत शत सूरज भी शर्मायें
हौसलों में वह बुलंदी थी
हिम शिखर के मस्तक झुक जायें
अधरों पर जयजयकार लिए
अंत:स में माँ का प्यार लिए
वे चले आज जिसको वरने
वह दुल्हन थी बेताब खड़ी
कितना प्यारा आलिंगन था
सारे देवों के शीश झुके
मनसा वाचा और कर्मों से
वे जोड़े मिलकर एक हुए …

Poem ID: 101
Occupation: Teacher
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 51-60
Length: 34 lines
Genre: Adbhut (wondrous)
Poem Creation Date: August 5, 2012
Poem Submission Date: September 27, 2012 at 4:36 am
Poem Title: देश के साथ यात्रा
देश के साथ यात्रा
आओ मेरे देश
एक दीप की तरह
ज्योतित होकर
साथ चलो मेरे क्योंकि
कोई इंतज़ार नहीं करता
तारीखों के ठहर जाने का
हम साथ होंगे तो
देश के लिए
इतिहास बनायेंगे
जहर का प्याला पीकर
देश के लिए
अमृत जुटाएँगे
फिर मूक हो जाएँगे
ताकि देश गा सके
विश्वास के गीत
आस्था और
सदभाव के गीत
हम चलते चले जायेंगे
दूर की यात्राओं में
साफ़ सुथरी
सुबह की तरह
गुजर जायेंगे
अंधी सुरंग से
रोशनी की हवा लेकर
जरुरत हुई तो
अंधे हो जायेंगे ताकि
देश को नेत्र मिलें
प्रतीक्षा करेंगे
मौत की
देश को जिलाने में
आओ मेरे देश
साथ चलें
एक दीप की तरह
ज्योतित होकर !
Poem ID: 103
Occupation: Writer
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 29-35
Length: 46 lines lines
Genre: Rudra (wrathful)
Poem Creation Date: September 27, 2012
Poem Submission Date: September 27, 2012 at 4:47 pm
Poem Title: क्या क़ीमत है आज़ादी की
क्या क़ीमत है आज़ादी की
हमने कब यह जाना है
अधिकारों की ही चिन्ता है
फर्ज़ कहाँ पहचाना है
आज़ादी का अर्थ हो गया
अब केवल घोटाला है
हमने आज़ादी का मतलब
भ्रष्टाचार निकाला है
आज़ादी में खा जाते हम
पशुओं तक के चारे अब
‘हर्षद’ और ‘हवाला’ हमको
आज़ादी से प्यारे अब
आज़ादी के खेल को खेलो
फ़िक्सिंग वाले बल्लों से
हार के बदले धन पाओगे
‘सटटेबाज़ों’ दल्लों से
आज़ादी में वैमनस्य के
पहलु ख़ूब उभारो तुम
आज़ादी इसको कहते हैं?
अपनों को ही मारो तुम
आज़ादी का मतलब अब तो
द्वेष, घृणा फैलाना है ॥
आज़ादी में काश्मीर की
घाटी पूरी घायल है
लेकिन भारत का हर नेता
शान्ति-सुलह का कायल है
आज़ादी में लाल चौक पर
झण्डे फाड़े जाते हैं
आज़ादी में माँ के तन पर
चाक़ू गाड़े जाते है
आज़ादी में आज हमारा
राष्ट्र गान शर्मिन्दा है
आज़ादी में माँ को गाली
देने वाला ज़ीन्दा है
आज़ादी मे धवल हिमालय
हमने काला कर डाला
आज़ादी मे माँ का आँचल
हमने दुख से भर डाला
आज़ादी में कठमुल्लों को
शीश झुकाया जाता है
आज़ादी मे देश-द्रोह का
पर्व मनाया जाता है
आज़ादी में निज गौरव को
कितना और भुलाना है ?
देखो! आज़ादी का मतलब
हिन्दुस्तान हमारा ह

Poem ID: 104
Occupation: Other
Education: Other
Age: 51-60
Length: 20 LINES lines
Genre: Other
Poem Creation Date: September 3, 2012
Poem Submission Date: September 28, 2012 at 8:06 am
Poem Title: MERA BHARAT MAHAN
देश हमारा कितना प्यारा कहलाता है हिंदुस्तान
भारत भी इसको कहते हैं मेरा भारत महान
आज़ादी के आन्दोलन को वर्षों तक कितने देशभक्तों ने खींचा
चंद्रशेखर ,भगत सिंह , सुभाष ने अपने खून से सींचा
गाँधी जी ने दे दी जान संवार के इस देश का ये बागीचा
इसीलिये तो इसमें यारो बसते हैं अपने प्राण
देश हमारा कितना प्यारा कहलाता है हिंदुस्तान
भारत भी इसको कहते हैं मेरा भारत महान
समय समय पे आज़ादी पर खतरे कितने आये
सबने एकजुट होके दुश्मन को सबक सिखलाये
कभी न सर उठा सके ऐसे नाकों चने चबवाये
हम एक थे एक ही रहेंगे ऐसी अपनी शान
देश हमारा कितना प्यारा कहलाता है हिंदुस्तान
भारत भी इसको कहते हैं मेरा भारत महान
आज देश को चंद लोग किस दिशा में मोड़ रहे हैं
भाईचारे के संबंधों को क्यों कर तोड़ रहे हैं
नीम बबूल को किसकी खातिर किसके लिए जोड़ रहे हैं
भूल शत्रुता आओ मिल गाए मित्रता के गान
देश हमारा कितना प्यारा कहलाता है हिंदुस्तान
भारत भी इसको कहते हैं मेरा भारत महान

Poem ID: 105
Occupation: Student
Education: Pursuing Graduate degree
Age: 17-22
Length: 95 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: October 9, 2012
Poem Submission Date: October 5, 2012 at 6:23 am
Poem Title: क़र्ज़ कैसे चुकाओगे
क़र्ज़ कैसे चुकाओगे
जिन माओं ने करी अपनी कोख कुर्बान
जिन माओं से जबरन छीनी गयी उनकी संतान
जिन ने देखे होते बेटें लहू लुहान
आज भेजा जाता नही सरहद पर अपना एक प्यारा लाल
उन माओं का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
खाई थी लाठियां नंगे बदन जिन्होंने
नही लगाया महीनों अन्न का दाना मुंह से
फिर भी डट के लड़े उस तानाशाह हुकूमत से
आज बिना ऐ.सी. के रहा नहीं जाता
उन शहीदों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
जवानी की सारी इच्छा त्याग जिन्होंने
फंदों को चूम कर गले लगाया
देश को थी और हमेशा रहेगी
जरुरत जवां लोगों की जवानी की
यह हमको बतलाया
आज सिगरेट, शराब, शबाब बिन
तुमसे रहा नही जाता
उन लड़कों की जवानी का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
जिन्होंने खून मांग कर आज़ादी दी
उनके खून में भी क्या रवानी थी
जिस खून से सींची इस देश की जमीं
उस खून की भी क्या कहानी थी
आज तुम १५०० में बेईज्ज़त कर आते हो
उन खून की बूंदों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
काकोरी में लुटा अंग्रेजी खज़ाना था
ताकि आने वाली नस्ल स्वतन्त्र हो
वो सोने की चिड़िया
जो रोज़ लुट रही थी
उस पर भी अत्याचार खत्म हो
यहाँ लाखों को झोपडी नसीब नही होती
तुम अपने ही देश को लूट कर
बंगले बनाते चले जाते हो
उन क्रांतिकारियों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
“इंक़लाब जिंदाबाद”
से गुंजाया था जिन्होंने आसमां
ऊँचा सुनने वालो को पहुँचाया
बम से फरमान
आज अपने हक के लिए बोला नही जाता
उन सूरमों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
जलियावाला बाग़ भी हुआ था लहू लुहान
डायर ने ली थी हजारों की जान
तुम सरकारी आकड़ों में उलझे रहते हो
जब बात छेड़ो तो सच दबा कर
३७९ की रट लगाते हो
घुमा था वो २१ साल प्रण लिए दिल में
आज देश के प्रति दो फ़र्ज़ निभाने से कतराते हो
उन कर्म समर्पित लोगों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
हम को तो गुलामी की आदत हो गयी थी
आज़ादी का मतलब समझाने के लिए
आज़ाद नाम जिन्होंने रखा
हस हस कर मौत का जश्न मनाया
बेड़ियों में दम नही तोडा
आज किसी साहूकार किसी सरकार से
दबते चले जाते हो
उन आज़ाद शेरों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
कुछ मामूली सी ख्वाहिशें
“हमारी मज़ारो पर लगेंगे हर बरस मेले”
“मेरा रंग दे बसंती चोला”
आज उनकी बात को सच करके
हर १५ २६ पर मजाक उड़ाते हो
उन निस्वार्थ एहसानों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
कश्मीर की बरफ हो या राजस्थान का रेगिस्तान
दिन-रात
सुबह-शाम
तुम्हारे लिए मरता एक जवान
तुम शहीद को शहीद कहलाने की इज्ज़त नहीं बख्शते
उन सरहद के पहरेदारों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
हमारा आज आने वाली पीढ़ी से लिया उधार है
इस बात को तुम कहा समझ पाओगे
२जी और कोयले से तुम इस आज को बर्बाद कर
कहाँ मुंह दिखाओगे
कहाँ स्वर्ग पाओगे
उस आने वाली पीढ़ी का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
एक बार इस देश पर मर जाये
फिर आराम से जी लेंगे
कुछ ऐसे थे बेटें इस देश के
जिन्होंने इसे भारत माता कहा
आज की तो में अब क्या बात करूँ
यह बताओ उन बेटों का क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे
सर से पांव तक क़र्ज़ में डूबे हो तुम
मुझे तो यह समझ नहीं आता
इतने सारे क़र्ज़
तुम कैसे चुकाओगे ?

Poem ID: 106
Occupation: Other
Education: Other
Age: 36-40
Length: 59 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: September 27, 2012
Poem Submission Date: September 28, 2012 at 8:43 pm
Poem Title: इंतज़ार है मुझे
मायने आजादी आज फिर मुख्तलिफ है,
कल देश को थी आज हमको ही अपनी जरूरत है,
इक आजादी हमने कई शहादतों से पाई है,
इक गुलामी के चलते अब तो जान पे बन आई है।
तब बंटी थी सीमाएं और दिल थे छलनी हुए,
उस समय के घाव जो थे वो न अब तक भरे,
मजहब के सीने में चुभा था जो खंज़र उस समय,
आज भी दूर तक उसके खून के कतरे मिले।
दम भर जो बैठे अपने सारे गीले, सूखे ज़ख्म लिए,
चीन के हमले से फिर कुछ नए नश्तर चुभे,
दर्द और धोखे की फरेहिस्त और लम्बी हो गई,
हिन्दोस्तां के माथे पे हार के भी कंकर लगे।
रफ्ता रफ्ता फिर भी हम जिन्दगी की रौ में बह गए,
चोट जो दिल पे लगी थी उसको हँस के सह गए,
माझी की दुश्वारियां तब बस किस्से बन के रह गए,
सुनहरे मुस्तकबिल के सपने आँखों में बस के रह गए।
और पहले तो फटे चाक हमने सब रफू किये,
दुश्मनों के दिए जख्मों से भी कई सबक लिए,
दोस्ती के रूप को भी हमने नए मायने दिए,
अपनी रक्षा को भी कुछ बेहतर आयाम दिए।
दूध की किल्लत का नामोनिशां ही हमने मिटा दिया,
खेतो में चलते थे जो हल उनको ही ताकत अपनी बना लिया,
ला के कुछ तबदीलियाँ इसका नक्शा ही बदल दिया,
दुनिया के परदे पे इसको एक नया मुकाम दिया।
आज सोचो तो मन इस बात से इतराता भी है,
पर खुली आँखों से इक और सच दिखलाता भी है,
आज के सरपरस्त बस व्यापारी बन के ही रह गए,
देश की जगह खुद के फायदे में ही उलझ के रह गए।
आज भी सड़कों पे भूखा बचपन है देखो रो रहा,
और देश का नौजवां नाउम्मीदी के फर्श पे है सो रहा,
स्वदेशी का नारा दूर कहीं पे तार तार है हो रहा,
और बाहर के मुल्कों का बोलबाला है हो रहा।
आज भी बेटे के जन्म पे मिठाईयां बांटी जाती है,
और बेटियों के पैदा होने पे चुप्पी सी छा जाती है,
आज भी निठारी जैसे किस्सों से गर्दन हमारी झुक जाती है,
और माँ बहनों की आबरू सरे आम ही लुटी जाती है।
क्या करे, कैसे करे, इन सवालों को फिर से दोहराना होगा,
अब तो अपने अन्दर जज्बातों का इक जलजला लाना होगा,
जंग लगी इन बेड़ियों को अब कही बहा कर आना होगा,
बरसों से जमे जवां खून में उबाल तो लाना होगा।
वो हसरतें जो हमने इस पाक सरजमीं के लिए सजाई थी,
वो आजादी जो हमने कई शहादतो के बाद पाई थी,
उस आजादी को आज पूरी तरह से पाना होगा,
मुद्दों की इस दलदल से इस देश को बाहर लाना होगा।
सोच की इन लहरों में जब यह तूफां आएगा,
तब ही सोये हुए इस वतन में इन्कलाब आएगा,
और धुंधला चुका सूरज चमक के सामने आ जायेगा,
शायद मायने आजादी भी तब ही समझ में आएगा।

Poem ID: 107
Occupation: Government
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 27 lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: September 29, 2012
Poem Submission Date: September 29, 2012 at 9:25 am
Poem Title: सियाचिन का शहीद
वह प्रहरी था
उस हिमनद का
जो करता रहा छुप छुप कर वार
सर्द हवा की तलवार से
शिखर स्तब्ध खड़े
नाम लिखते रहे
वतन पर मिटने वालों का
मैदान खड़े रहे
बस वसंत के लिए
लेकर फूलों के हार.
रात घिर आयी
और वह नहीं लौटा
आँखों में बसता था जो तारा
दिन भर पत्तों पर टिकी बर्फ
रात की सर्दी में
बूँद बन पिघलती रही
नम होता रहा धरा का आँचल
यादों की ऊष्मा से.
फिर वह लौटा
तीन रंग लपेटकर
धरती का सीना
रंगों से फूला
वसंत सारी खुशबू और रंग लिए
जल उठा टेसू सा
अब वह कभी वापस नहीं जायेगा.

Poem ID: 108
Occupation: Writer
Education: Bachelor’s Degree
Age: 51-60
Length: 32 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: January 1, 2005
Poem Submission Date: October 3, 2012 at 2:15 am
Poem Title: वंदेमातरम् ! वंदे !! कण-कण से हर गली-गांव से , घर-घर से , सब नीड़ों से ,
वंदेमातरम् ! वंदे !!
कण-कण से हर गली-गांव से , घर-घर से , सब नीड़ों से ,
होता है जयघोष… किलों-गढ़-दुर्गों की प्राचीरों से ,
वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् ! वंदे !!
जीत नहीं पाएगा दुश्मन हिंदुस्थानी वीरों से !!
केशर दसों दिशाओं फैला , कमल मृदुल मुसकाए !
भगवा विजय-पताका नीले अंबर तक लहराए !
रौद्र रूप की झलक देख’ हर महिषासुर थर्राए !
रणचंडी जब चली भाल पर शोणित तिलक लगाए !
रानी लक्ष्मी कोटि कांतिमय कोहेनूर के हीरों से !
जीत नहीं पाएगा दुश्मन हिंदुस्थानी वीरों से !
वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् ! वंदे !!
हमसे घात न करना , हर ज़ालिम को नेक सलाह है !
निज पद से ना कंटक कुचले ; कहो , कौन सी राह है ?
हृदय पराक्रम अ द् भु त पौरुष-परावार अथाह है !
निज घावों को सहलाने की… सुनो किसे परवाह है ?
ख़ौफ़ नहीं सांगा को खल-दल की तोपों-शमशीरों से !
जीत नहीं पाएगा दुश्मन हिंदुस्थानी वीरों से !
वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् ! वंदे !!
कई ग़ज़नवी , कितने ग़ौरी… सबको धूल चटाई !
जिसने आंख उठाई ; गर्दन उसकी वहीं उड़ाई !
पुण्य-भूमि पर धर्म-पताका लाख बार फहराई !
पृथ्वीराज , प्रताप , शिवा ने विजय-रागिनी गाई !
छिछलों की तुलना मत करना हमसे गहन-गंभीरों से !
जीत नहीं पाएगा दुश्मन हिंदुस्थानी वीरों से !
वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् ! वंदे !!
लहू उबलता हुआ हमारी रग-रग में बहता है !
राष्ट्रभक्ति का हृदय-हृदय… इक सैलाब उफनता है !
घर में हमारे कोई दुश्मन अब कैसे रहता है ?
निपटेंगे गद्दारों से हम , हर बेटा कहता है !
भगत , पटेल , सुभाष ना डरें बम-बंदूकों-तीरों से !
जीत नहीं पाएगा दुश्मन हिंदुस्थानी वीरों से !
वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् ! वंदेमातरम् ! वंदे !!

Poem ID: 109
Occupation: Writer
Education: Bachelor’s Degree
Age: 51-60
Length: 18 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: March 3, 2000
Poem Submission Date: October 3, 2012 at 2:15 am
Poem Title: लहू रहे न सर्द अब उबाल को तलाश लो
लहू रहे न सर्द अब उबाल को तलाश लो
दबी जो राख में हृदय की ज्वाल को तलाश लो
भविष्य तो पता नहीं , गुज़र गया वो छोड़ दो
इसी घड़ी को वर्तमान काल को तलाश लो
सृजन करें , विनाश भूल’ नव विकास हम करें
तो गेंती-फावड़े व हल-कुदाल को तलाश लो
धरा को स्वर्ग में बदलना साथियों ! कठिन नहीं
दबे-ढके-छुपे हुनर-कमाल को तलाश लो
भटकना मत जवानों ! मां का कर्ज़ भी उतारना
निकल के वहशतों से अब जलाल को तलाश लो
किया दग़ा जिन्होंने हिंद से उन्हें न छोड़ना
नमकहराम भेड़ियों की खाल को तलाश लो
हमें ही हल निकालना है अपनी मुश्किलात का
जवाब के लिए किसी सवाल को तलाश लो
यहीं पॅ चंद्र हैं , भगत सुभाष हैं , पटेल हैं
यहीं शिवा प्रताप छत्रशाल को तलाश लो
राजेन्द्र देशभक्त हर गली शहर में गांव में
किसी भी घर में जा’के मां के लाल को तलाश लो

Poem ID: 110
Occupation: Writer
Education: Bachelor’s Degree
Age: 51-60
Length: 23 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: January 21, 2000
Poem Submission Date: October 3, 2012 at 2:14 am
Poem Title: वंदे मातरम् ! मंत्र है , पावन ॠचा है , राष्ट्र का मन-प्राण है !
वंदे मातरम् !
उत्तप्त ध्वनि उ द् घो ष वंदे मातरम जय मातरम् !
उत्फुल्ल ध्वनि स द् घो ष वंदे मातरम जय मातरम् !
श् वा स वंदे मातरम् ! उच्छ्वास वंदे मातरम् !!
मंत्र है , पावन ॠचा है , राष्ट्र का मन-प्राण है !
विहित वंदे मातरम् में संस्कृति का त्राण है !
निहित वंदे मातरम् में सृष्टि का कल्याण है !
जयति जय जय राष्ट्र ! वंदे मातरम् !! जय मातरम् !!!
है हमारा कर्म यह , हर कर्म का प्रतिफल यही !
स्नेह में सौहार्द है यह , समर में संबल यही !
ओज है यह , तेज है यह , शौर्य शुचिता गर्व है !
बल भुजाओं का यही ,अधरों की स्मित-मुस्कान है !
राष्ट्र-हित सन्नद्ध जन का लक्ष्य है , संधान है !!
सभ्यता-संस्कृति न अंगद-पांव-सी टस मस हुई !
शिवत्व के संस्पर्श से ज्योतित स्वयं कल्मष हुई !
पुण्य शाश्वत् यश चिरंतन पथ सनातन श्रेष्ठतम ;
नित्य अपराजेय अक्षुण्ण आत्मभू अभिमान है !
अनवरत् उत्कर्ष अरुणिम अभ्युदय उत्थान है !!
शूरवीर प्रताप ना बिसराएं वंदे मातरम् !
लक्ष्मी दुर्गा शिवाजी गाएं वंदे मातरम् !
भगतसिंह सुखदेव बिस्मिल राजगुरु आज़ाद की ,
और… हेडगेवार सावरकर सभी की जान है !
मातृ-सुत बंकिम की वंदे मातरम् पहचान है !!
जयति भारतवर्ष ! वंदे मातरम् !! जय मातरम् !!!

Poem ID: 111
Occupation: Writer
Education: Bachelor’s Degree
Age: 51-60
Length: 39 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: January 10, 1999
Poem Submission Date: October 3, 2012 at 2:10 am
Poem Title: नौजवान आबरू वतन की नौजवान ! तुमसे है …
नौजवान
आबरू वतन की नौजवान ! तुमसे है …
ख़ुशबू-ए-चमन ऐ बाग़बान ! तुमसे है …
देश के लिए निकल के तू घरों से आ !
मस्जिदो-गुरुद्वारों, चर्चो-मंदिरों से आ !
गर्दे-मज़हब रुहो-जिस्म से ; आ झाड़ कर !
दुश्मने-वतन पे टूट पड़ दहाड़ कर !!
मोड़-मोड़ पर खड़े हैं लाख इम्तिहां !
देश को बहुत है आस तुमसे नौजवां !
ज़र्रा-ज़र्रा हिंद का निहारता तुम्हें …
मां का रोम-रोम ; सुन ! पुकारता तुम्हें …
नौजवान आ !
नूरे-जहान आ !
हिंद के मुस्तक़बिल ! रौशन-निशान आ !!
तू ही जिस्म और तू ही जान हिंद की !
नौजवां ! बलंद रखले शान हिंद की !
अज़्मतो-पाकीज़गी, बलंद हौसला ;
ख़ास है जहां में ये पहचान हिंद की !
नौजवां सम्हाले रखना शान हिंद की !!
नौजवां ! अज़ीम तेरी आन बान शान !
तेरे हाथ में सुकून, अम्न-ओ-अमान !
जीतले ज़मीन, जीतले तू आसमान !
जीतले दिलों को, जीतले तू दो जहान !
सुन ! वतनपरस्ती ऊंची मज़हबों से है !
इज़्ज़ते-वतन तुम्हारे वल्वलों से है !!
बर्फ़ के मानिंद शोले हो नहीं सकते !
शेरमर्द तो खिलौने हो नहीं सकते !
तीरगी टिकेगी कब मशाल के आगे ?
तेरे हौसले तेरे जलाल के आगे !!
मादरे-वतन के ज़ख़्म भरदे नौजवां !
दुश्मनों के सर क़लम तू करदे नौजवां !
क़तरा-क़तरा ख़ून का तेरा वतन का है !
है वतन भी तेरा !
…और तू वतन का है !
लहरादे तिरंगा ऊंचे आसमान पे !
फहरादे तिरंगा ऊंचे आसमान पे !
जानो-ईमां नज़्र कर हिंदोस्तान पे !
नौजवान आ !
नौजवान आ !!
नौजवान आ !!!

Poem ID: 112
Occupation: Non-Profit
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 29-35
Length: 27 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 2, 2012
Poem Submission Date: September 29, 2012 at 3:00 pm
Poem Title: क्या जंग लगी तलवारों में
क्या जंग लगी तलवारों में, जो इतने दुर्दिन सहते हो I
राणा प्रताप के वंशज हो,क्यों कुल को कलंकित करते हो II
आराध्य तुम्हारे राम-कृष्ण,जो कर्म की राह दिखाते थे I
जो दुश्मन हो आततायी, वो चक्र सुदर्शन उठाते थे I
श्री राम ने रावण को मारा, तुम गद्दारों से डरते हो II
जब शस्त्रों से परहेज तुम्हे,तो राम राम क्यों जपते हो I
क्या जंग लगी तलवारों में,जो इतने दुर्दिन सहते हो II
अंग्रेजों ने दौलत लूटी,मुगलों ने थी इज्जत लूटी I
दौलत लूटी, इज्जत लूटी, क्या खुद्दारी भी लूट लिया,
गिद्धों ने माँ को नोंच लिया,तुम शांति शांति को जपते हो I
इस भगत सुभाष की धरती पर,क्यों नामर्दों से रहते हो?
क्या जंग लगी तलवारों में जो इतने दुर्दिन सहते हो II
हिन्दू हो,कुछ प्रतिकार करो,तुम भारत माँ के क्रंदन का I
यह समय नहीं है, शांति पाठ और गाँधी के अभिनन्दन का II
यह समय है शस्त्र उठाने का,गद्दारों को समझाने का,
शत्रु पक्ष की धरती पर,फिर शिव तांडव दिखलाने का II
इन जेहादी जयचंदों की घर में ही कब्र बनाने का,
यह समय है हर एक हिन्दू के,राणा प्रताप बन जाने का I
इस हिन्दुस्थान की धरती पर ,फिर भगवा ध्वज फहराने का II
ये नहीं शोभता है तुमको,जो कायर सी फरियाद करोI
छोड़ो अब ये प्रेमालिंगन,कुछ पौरुष की भी बात करोII
इस हिन्दुस्थान की धरती के,उस भगत सिंह को याद करो,
वो बन्दूको को बोते थे,तुम तलवारों से डरते होI
क्या जंग लगी तलवारों में जो इतने दुर्दिन सहते हो II
Poem ID: 113
Occupation: Software
Education: Bachelor’s Degree
Age: 23-28
Length: 8 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: December 16, 2010
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 12:59 am
Poem Title: वीरों को नमन
कठनाइयों की चले आँधी अड़चनें बन जाए तूफान|
फिर भी ना ढले जो पथ से कहलाते वो ही वीर महान||
चाहे आकाश से बरसे आग या तीरों की हो बौछार|
मातृभूमि के लिए झेलते सिने पे शत शत प्रहार||
हर पत्ता बने भाला हर डाली बने तलवार|
जब देश पर मर मिटने को हर इंसान हो तय्यार||
स्वतंत्रता के लिए जिन्होने कष्ट सहे अपरंपार|
उन वीरों को सर झुकाके नमन करूँ मैं सैंकड़ो बार|
Poem ID: 114
Occupation: Student
Education: High School
Age: 11-16
Length: 24 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 3, 2012
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 5:14 am
Poem Title: यह आज़ादी, जो मनाने का त्यौहार नही…..
पुष्प की अभिलाषा कभी ये कहती थी,
उस राह पर फेके जाने को मचलती थी
कहती धन्य भाग्य सर आ जाए उनके चरणो तले
दिल में जिनके वतन का प्यार पले
आज वह अभिलाषा प्रवंचना बन गई है
बस एक मनोरंजक कविता भर रह गई है
कहाँ गाँधी, कहाँ नेहरू, कहाँ उनके सपने
रह गये ख्वाब वे हो भी न सके अपने
वतन की मिट्टी बिकती है जहाँ कौडियों के मोल
रह गया रत्ती भर न अब सत्य का भी तोल
गाँधी जेबों तले अब सिसकियाँ भरते हैं
उन्ही के नाम पर लोग बिका करते हैं
रंग गई उनकी सूरत भी अब सरेआम
रंगों से बदल गई है उनकी पहचान
कहते आज़ादी पर आज़ादी क्या जब कितने लोग
आज़ादी का मतलब भी नहीं जानते
भूखी नंगी तस्वीर और फूटी तकदीर से
आज़ादी जैसी नेमत कैसे पहचानते
यह तो चंद धनपतिओं को पड़ी हुई गिरवी है
जहाँ ग़रीबों के ठठरियो की मशाल जल रही है
आज़ादी पर्व मना कर उत्सव मनता है कहीं
दिल में मेरे उठती है पुकार यहीं
कोई जाकर जरा उनसे ये तो कह दे
ये आज़ादी जो मनाने का त्यौहार नहीं……….
Poem ID: 115
Occupation: Student
Education: High School
Age: 11-16
Length: 23 lines
Genre: Other
Poem Creation Date:
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 5:46 am
Poem Title: ईमान
बालकों में कमी है ज्ञान की
बडों के सम्मान की।
युवाओं का भी बडा बुरा हाल है,
एक्शन फिल्मों से ज्यादा
विधान सभा में बवाल हैं।
गांधी की तस्वीर के नीचे
रिश्वतखोरी होती है,
सरकार छोडो, अब तो
परिवार में भी राजनीति होती है।
बाबू नेता की सुनता है
नेता सुनता है गुंडों की,
सरदार दीदी की सुनता है
और दीदी अपने मन की।
जब बैठा एक साधु अनथन पर
इल्ज़ाम लगा कि वह राजनीति में आना चाहता है!
बैठा जब बूढ़ा
इल्ज़ाम लगा कि दल में उसके भ्रष्टाचार है!
पर कोई वक्ता से
क्या वह राजनीति में नहीं?
क्या दल उसका भ्रष्ट नहीं?
सत्य की चिंगारी तो है पर आग को ईंधन नही।
जोशीले युवा तीर तो हैं पर कोई कमान नहीं।
सब कुछ है मेरे देश में बस एक ईमान नहीं।

Poem ID: 116
Occupation: Government
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 25 lines
Genre: Vibhatsa (odious)
Poem Creation Date: July 2, 2011
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 6:11 am
Poem Title: प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा
सच कहता हूँ, सच जीता हूँ, नहीं झूठ कह पाउँगा
जीवन शेष रहा जब तक, प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा
राजनीति है अर्थ खो चुकी, नीति समर्पित राज यहाँ
समजावाद बन गया सपन अब, लंगड़ाता सद्भाव यहाँ
जन रोता है तंत्र जाल में, जनतंत्र कहाँ कह पाउँगा
जीवन शेष रहा जब तक, प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा
आँखे सपनो को तरस गई, उर सज़ल फर्जी मुठभेड़ यहाँ
आधे से अधिक आबादी जब, सोती हो आधे पेट जहाँ
तब दिवा स्वप्न को तोड़ सके, ऐसी आवाज़ उठाऊंगा
जीवन शेष रहा जब तक, प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा
सापेक्ष सत्ता है मानक अब, गृह युद्ध छिड़ा हो आज जहाँ
उद्योग क्रांति के साये में, बढ़ाते कुछ पूँजी व्यक्ति यहाँ
तब मरघट की थाती चीरे जो, गीत वही मै गाऊँगा
जीवन शेष रहा जब तक, प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा
महगाई डायन खाय रही, उस पर खेलों में लूट यहाँ
सर्वोच्च सत्ता जब करती हो, अपने वेतन की बात जहाँ
तब दंभ चरित चेहरे के धब्बे, दर्पण बन दिखालाऊंगा
जीवन शेष रहा जब तक, प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा
सच कहता हूँ, सच जीता हूँ, नहीं झूठ कह पाउँगा
जीवन शेष रहा जब तक, प्रतिकार करूँ, करवाऊंगा

Poem ID: 117
Occupation: Student
Education: Pursuing Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 460 words gabs 2 interval lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 29, 2012
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 9:41 am
Poem Title: तेरे वीर बहादूरशेर
Xkkrk gS lkjk fo’o ftldh xkFkk
gj txg iqth tkrh Hkkjr ekrk2
rsjs ohj cgknqj ’ksj nq’eu dks dj x, <sj
nq’eu dks dj x, <sj rsjs ohj cgknqj ’ksj
fgeky; dh Nkao gS pank is ikao gS
dU;k ls d’ehj rd rsjk ;s xkao gS
ufn;ksa es ehBk ikuh ioZr fo’kky gS
rsjk gh vUu [kkdj c<s rsjs yky gS
cgrh gokvksa esa gSa Økafr dk ’kksyk
xxu dk iaNh Hkh t; fgUn cksyk2
rsjs ohj cgknqj—-
rsjh gh j{kk esa Hkxrflag csrkc Fkk
cq<s cPps Hkh ej x, oks tfy;kaokykckx Fkk
÷kkalh dh jkuh dh ohjrk egku Fkh
uUgsaµuUgsa gkFkksa esa Hkh rhj vkSj deku Fkh
jktiqrksa dh lsuk us /kjrh fgyk nh
ejkBksa ds dneksa us /kqy mMk nh 2
rsjs ohj cgknqj—
rsjs gh Kku dk tx esa Ádk’k gS
rsjs gh vkxs ÷kqdrk uhyk vkdk’k gS
[kq’cq ls T;knk egds ekVh xa/k gS
rsjh xfr ds vkxs mtkyk Hkh ean gS
[kMk jg ik;k dksbZ rsjs vkxs
dkjfxy ;k gYnh?kkVh ge gh Fks vkxs 2
rsjs ohj cgknqj—
vka/kh ds tSlh rsjs ’ksjksa dh pky gS
iRFkj ls baV ctkdj djrs ngkM gS
vtZqu vkSj Hkhe ls lSdMksa yky gS
vfHkeU;q us rksMs pØO;qg ds rky gS
buds fnyksa dh xehZ lqjt ls rst gS
Fkdus ls budks lcls T;knk ijgst gS 2
rsjs ohj cgknqj—
ck#n ds <sj esa [kqf’k;ksa dks NksM fn;k
yk[kksa ?kj clk, ysfdu viuk ?kj NksM fn;k
taxy ds va/ksjksa esa fdLer dks eksM fn;k
/kjrh ds I;kj esa viuksa ia[kksa dks rksM fn;k
fcuk jaxks ds gksyh bZn Hkh dkyh
va/ksjksa esa gh bUgksus eukbZ fnokyh 2
rsjs ohj cgknqj—-
lksus dh fpfM;k rq÷kdks nqfu;kq iqdkjrh
pankµflrkjsµlqjt mrkjs vkjrh
txnxq# ds vklu ij ltrh rq Hkkjrh
eerk ds lkxj esa rq gedks mrkjrh
laLÑfr;ksa ds jaxks ls ltk rsjk #i gS
iSj /kks, lkxj rsjk fgeky; eqdqV gS 2
rsjs ohj cgknqj—-
rsjh xksn esa iys c<sµc<s lar gS
rsjh gh xkFkk xkrs dfo;ksa ds xzaFk gS
rsjs vkxs ÷kqd tkrh ;s nqfu;k vuar gS
leqanj esa gksrk tSls ufn;ksa dk var gS
cPpksa dks lquk, gj ekWa rsjh gh dgkuh rsjs ohj cgknqj ’ksj
jkeµÑ’.k us Hkh ikbZ xksn ;s lqgkuh 2
rsjs ohj cgknqj—-
xkW/kh dk lR;kxzg usg# dh /kkd Fkh
jko.k ds lkeus tSls vaxn dhs ykr Fkh
jxµjx esa xqWat jgh Økafr dh ukn Fkh
xqykeh ds vWa/ksjksa esa jks’kuh dh jkr Fkh
vktknh rks cl ,d NksVhµLkh ckr Fkh 2
rsjs ohj cgknqj—
vkWBokW gS jax rsjs vkWaBok rq lqj gS
pWank gS nksµnks tx esa ,d rsjk uqj gS
Qqyksa ls dksey gS rq e/kq ls e/kqj gS
fny ds ikl bruh fd gj pht nqj gS
rsjh efgek dks Hkh cksy ldrs gSa D;k
lkxj dk ikuh Hkh rkSy ldrs gSa D;k 2
rsjs ohj cgknqj—-

Poem ID: 118
Occupation: Other
Education: Bachelor’s Degree
Age: 23-28
Length: 24 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: March 22, 2012
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 11:10 am
Poem Title: नित शीश झुकता रहे हमारा उनके नमन के लिये
लड़कपन गुजारा जिन्होंने इस वतन के लिये
जवानी हवन की उन्होंने इस वतन के लिये
बुढ़ापे की नौमत न आयी इस वतन के लिये
नित शीश झुकता रहे हमारा उनके नमन के लिये//
सूरज की किरणें भी कम हैं उनकी अर्चना के लिये
चाँद की रोशनी भी मध्यम है उनकी अर्चना के लिये
गंगा की जलधारा भी कम है उनकी अर्चना के लिये
धरती की आँखें भी नम हैं उनकी अर्चना के लिये//
मंदिर भी उनकी मूरत से हर्षाते रहें
देवता भी खुद पर नित इठलाते रहें
घंटे भी उनकी यशगाथा में बजते रहें
उनके बलिदानों को गाकर हम नर्तन करते रहें//
वे वतन की हवाओं पे सिसकते होंगे अब भी
फिर कुछ कर गुजरने को बाजू फड़कते होंगे अब भी
तड़पन उदासी में उनके दिल धधकते होंगे अब भी
खुशबू से उनकी देवलोक महकते होंगे अब भी //
लड़कपन गुजरे यहाँ अब वतन के लिये
जिंदगी हवन हो यहाँ अब वतन के लिये
पूजा हो शहीदों की यहाँ अब वतन के लिये
नित शीश झुकता रहे हमारा उनके नमन के लिये//

Poem ID: 119
Occupation: Student
Education: Bachelor’s Degree
Age: 23-28
Length: 31 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 18, 2012
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 2:43 pm
Poem Title: माँगा जिस मिटटी ने कभी …….
माँगा जिस मिटटी ने कभी, बलिदान अपने सपूत से ,
आज वही मिटटी हमसे, ज़बाव माँगती है ।
वही पुनीत भावना , वही स्वर्ण कल्पना ,
संस्कृति और दर्शन का , वही इतिहास माँगती है ।
माँगा जिस मिटटी ने कभी …….
लाखों अबाल बृद्ध नर नारी , जिनके सपने छले गए ,
त्याग और बलिदान की गाथा , लिखाकर के जो चले गए ।
उस भगत सिंह आजाद को , चौराहों पर गड़ाने वाले ,
उस शिल्पकार कारीगर से , उन जैसा व्यक्तित्व माँगती है ।
माँगा जिस मिटटी ने कभी …..
इक अदम्य शक्ति का , जन जन में संचय हो ,
जहाँ प्रीत श्रद्धा भक्ति का , फिर कभी न क्षय हो ।
जहाँ जीने की न शर्त हो , हर कोई समर्थ हो ।
ऐसे कल्प देश की , वही पुकार माँगती है ।
माँगा जिस मिटटी ने कभी ……..
जब मानवता और लोकहित , इक छलावा मात्र है ।
जब हर तरफ कर्तव्य पथ पर , अंधकार व्याप्त है ।
जब आदर्शों और मूल्यों को , असली अर्थों में खो दिया ।
तब शील , शिष्ट और सदभावाना का वही चरित्र माँगती है ।
माँगा जिस मिटटी ने कभी ………….
जब एतिहासिक पर्व था , उसको हम पर गर्व था ।
हर मानते पर चन्दन था , मिटटी का एसा वंदन था ।
आज सभ्यता के विक्ष युग में , उपेक्षित सी उदाशीन सी ,
अपने लिए वो मिटटी हमसे , वही सम्मान माँगती है ।
माँगा जिस मिटटी ने कभी बलिदान अपने सपूत से ,
आज वही मिट्टी हमसे ज़बाव माँगती है ।

Poem ID: 120
Occupation: Software
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 38 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 15, 2012
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 3:17 pm
Poem Title: पहले हिन्दुस्तानी हैं
‘पहले हिन्दुस्तानी हैं’
फिर गुजराती, फिर मलयाली, बंगाली, आसामी हैं |
आज शपथ लेकर कहते हैं- ‘पहले हिन्दुस्तानी हैं’ ||
हम गाँधी की अटल अहिंसा, हम सुभाष का नारा हैं |
भगत सिंह की फांसी हैं हम, अंडमान का कारा हैं ||
पृथ्वीराज का तरकश हैं हम, सत्तावन के बागी हैं |
हम राणा की घास की रोटी, हम ही बंदा बैरागी हैं ||
हम कित्तूर की बेटी हैं, हम झांसी की रानी हैं |
अस्सी बरस के कुंवर सिंह की, हम बेख़ौफ़ जवानी हैं ||
फिर गुजराती, फिर मलयाली, बंगाली, आसामी हैं |
आज शपथ लेकर कहते हैं- ‘पहले हिन्दुस्तानी हैं’ ||
हम शिरडी की दीवाली, हम ख्वाजा की होली हैं |
गुरुग्रंथ की वाणी हैं हम, हम अज़ान की बोली हैं ||
उस मसीह की करुणा हैं हम, हम नवरोज़ की ज्वाला हैं |
हम विनाश के महाकाल, मीरा के बांसुरीवाला हैं ||
सारनाथ के बरगद हैं हम, कुंडग्राम का पानी हैं |
धरम के हेतु समर हुआ जो, उसकी अमर कहानी हैं ||
फिर गुजराती, फिर मलयाली, बंगाली, आसामी हैं |
आज शपथ लेकर कहते हैं- ‘पहले हिन्दुस्तानी हैं’ ||
हम हैं गर्व हिमाला का, हम फूलों वाली घाटी हैं |
हम प्रयाग के संगम हैं, हम रेवा तट का माटी हैं ||
हम ही दक्कन का पठार, हम केसर की क्यारी हैं |
लक्षद्वीप का मूंगा हैं हम, पावन कन्याकुमारी हैं ||
अलग रूप है, अलग है बोली, अलग धरम और पानी है |
अलग भले विश्वास हमारे, अपनी एक कहानी है ||
फिर गुजराती, फिर मलयाली, बंगाली, आसामी हैं |
आज शपथ लेकर कहते हैं- ‘पहले हिन्दुस्तानी हैं’ ||
Poem ID: 121
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 61-70
Length: 25 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: June 15, 2012
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 3:33 pm
Poem Title: भारत माँ के नाम
भारत माँ के नाम
हे माँ बताऊँ कैसे, कितना प्यार तुमसे है
जीवन की सभी खुशियाँ , बहार तुमसे है !
माँ जन्मदायिनि तुम आँचल में दी जगह
अंततः समाना तुममें, ये संसार तुमसे है !
नदियाँ, गिर श्रंखलायें, झील, ताल कंदरायें
कला बोध, गीत, प्रीत लय मल्हार तुमसे है !
हमें दिये माँ तुमने अनमोल रतन कितने
ऋषि संत मुनियों सा मिला उपहार तुमसे है !
गार्गी, मीरा, सीता या हों कल्पना, सुनीता
सुन्दर सुगन्धित चमन ये गुलजार तुमसे है !
श्री राम ,राणा, शिवाजी ,पटेल, टैगोर गाँधी
वेद पंचम धर्म दर्शन का आधार तुमसे है!
दुष्टों के प्रहार भी माँ सहती रही सदा से
निश्छल प्रेम, क्षमा भाव का आचार तुमसे है !
मन में है चाह इतनी हों प्राण तुम पे कुर्बां
सब गीत गजल कविता अशआर तुमसे हैं !
Poem ID: 122
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 17-22
Length: 30 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: September 30, 2012
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 4:47 pm
Poem Title: हमको उस भारत से प्यार …….
कई काल के खण्डों में भी , जो रहा अनुपम अखण्ड
जिसके अंतस में प्रकाशित, संस्कृति की लौ प्रचण्ड
जिसके उर से जन्म पाकर , कलाओं ने वर्चस्व पाया
भुजाओं में सर को छुपा , संसार ने सर्वस्व पाया
और मानवता के प्रति है , जिसके मन में स्नेह अपार
हमको उस भारत पे गौरव , हमको उस भारत से प्यार
जिसकी पावनता की द्योतक, है धरा पर स्वयं गंगा
मान और गौरव झलकता, जब लहरता है तिरंगा
गुण अगर हैं मापने, इतिहास बारम्बार देखो
धरा का देखो रसातल, गगन का विस्तार देखो
पर उठाओगे कलम तो, खुद को पाओगे वहां
करने परिभाषित इसे तुम, थे खड़े पहले जहाँ
साहस-प्रतीक अशोक के, स्तम्भ के हैं सिंह चार
हमको उस भारत पे गौरव , हमको उस भारत से प्यार
पग-पग पे जिसने जगत को, जीवन का नव दर्शन दिया है
हर धर्म की समृद्धि हेतु, अपना घर आँगन दिया है
जिसकी मिट्टी की महक में, प्रेम और भक्ति बसी है
कण-कण में ईश्वर व्याप्त है, रज-रज सुधा रस से लसी है
सभ्यता कहती जहाँ की, चरित्र का निर्माण करना
वह किसी भी जाति का हो, दुखी जन का त्रास हरना
जिसको सब कुछ सहन पर, असह्न्य है मूल्यों पे वार
हमको उस भारत पे गौरव , हमको उस भारत से प्यार
सोने की चिड़िया जिसे, कह कर पुकारा विश्व ने
सब को आकर्षित किया, जिस देश के अपनत्व ने
आओ की हम एक हो, इस देश को आगे बढायें
कुरीतियों का तम हरें, जो हम वही दीपक जलाएं
प्रण करें कि देश की, निस्वार्थ सेवा हम करेंगे
प्रण करें जब तक जियेंगे, देश हित मन में रखेंगे
तब सब मिलायेंगे मेरी, आवाज़ में अपनी पुकार
हमको भी भारत पे गौरव , हमको भी भारत से प्यार

Poem ID: 124
Occupation: Writer
Education: Bachelor’s Degree
Age: 51-60
Length: 8 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 21, 2009
Poem Submission Date: October 3, 2012 at 2:13 am
Poem Title: डंका हम बजाते सदा-सर्वदा से आए हैं !
ॐ
डंका हम बजाते सदा-सर्वदा से आए हैं !
हिंद के सपूत कमजोर या कायर नहीं
डंका हम बजाते सदा-सर्वदा से आए हैं !
पीठ पीछे घात की , उसे भी नहीं छोड़ा ; लड़े
सामने उन्हें तो तारे दिन में दिखाए हैं !
राम कृष्ण दुर्गा के भक्तों ने न्याय के निमित्त
जब-तब अस्त्र-शस्त्र हाथों में उठाए हैं !
धूल है चटादी , यमलोक भेजा पापियों को
छक्के आतताइयों-दुश्मनों के छुड़ाए हैं !

Poem ID: 125
Occupation: Writer
Education: Bachelor’s Degree
Age: 51-60
Length: 8 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 21, 2009
Poem Submission Date: October 3, 2012 at 2:12 am
Poem Title: घाती-कायरों से हम कभी नहीं डरते !
ॐ
घाती-कायरों से हम कभी नहीं डरते !
खेल-खेल में दबा के मुंह में सूरज लाल
बाल हनुमान नभ में कुलांचे भरते !
दूह लेते शेरनी को खेल-खेल में शिवाजी
भरत सिंहों के दांत खेलते ही गिनते !
भरते दहाड़ पृथ्वीराज वीर छत्रसाल
दूर-दूर दुश्मनों के कलेजे दहलते !
रग़ों में हमारी लहू उन्हीं शूरवीरों का है
घाती-कायरों से हम कभी नहीं डरते !

Poem ID: 126
Occupation: Student
Education: Pursuing Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 62 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 29, 2012
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 5:54 pm
Poem Title: अमर रहे ये हिंदुस्तान
लाल हो गई लहू से देखो भारत माँ की माटी है,
छलनी-छलनी रोज हो रही देश की हर एक घाटी है।
मैदानों में हर दिन खूनी होली खेली जाती है,
जाने कितने सीनों से ये गोली झेली जाती है।
दंश कई अपराधों का है भारत मेरा झेल रहा,
इक खूनी कई-कई जानों से बेदर्दी से खेल रहा।
जिनकी आँखों में पानी न दिल में कोई जज़्बात रहा,
भारत माँ ने उन पापी बेटों का भी आघात सहा।
वंदे मातरम की अस्मत का जिनको भान नहीं होता,
जन गण मन का भी मन में जिनके सम्मान नहीं होता।
पल-पल अट्टाहस करते हैं करते वो गद्दारी हैं,
देश बेचने की पूरी कर ली उनने तैयारी हैं।
संविधान में संशोधन की आवश्यकता जब आती है,
सत्ता आँखें बंद करके हौले-हौले मुसकाती है।
कुर्सी को है शरम कहाँ की वो नोटों की भूखी है,
उन माँ के आँसू कहाँ दिखेंगे जिनकी छाती सूखी हैं।
हर इक नेता अपनी जेबें भरने में मशगूल रहा,
इक-इक किसान हर एक सुबह फाँसी पर देखो झूल रहा।
मेरे दिल में चुभती है ये खूब दलाली दिल्ली की,
देश को भूखा नंगा कर गयी नमकहलाली दिल्ली की।
कहने को तो ये भारत आबाद दिखाई देता है,
पर सच तो हर दुर्घटना के बाद दिखाई देता है।
सरकारी पैसे की जारी चौतरफ़ा बरबादी है,
फिर भी भूखी प्यासी भारत की आधी आबादी है।
सरेआम अब कट्टे-गोली बंदूकें लहराती हैं,
राजनीति की चालें शेखर को आतंकी कह जाती हैं।
स्वामी अन्ना जैसे बेटे जब-जब आगे आते हैं,
पीछे से भारी-भारी षड्यंत्र कराये जाते हैं।
झूठ बोल आरोप लगाना सरकारों की चालें हैं,
कुर्सी पर बैठे ये नेता सारे मन के काले हैं।
दिल्ली कब से जूझ रही सचमुच आज़ादी पाने को,
दागी पैसे लूट रहे हैं बर्बादी पर लाने को।
नहीं लेखनी मैं वो जो डर जाती हो गद्दारों से,
सत्ता की गलियों में फैले भयभीतक अंधियारों से।
देशभक्त मैं वीरपुत्र मैं भगत सिंह सी ज्वाला हूँ,
हर शहीद के प्राण-त्याग का चित्र दिखाने वाला हूँ।
उसने हमसे जनम लिया वो फिर हममें मिल जाएगा,
जो खून तुम्हारा खौल गया तो पाकिस्ताँ हिल जाएगा।
दुनिया को ताकत दिखला दो गर दुःख से आँखें नम हैं तो,
काश्मीर को वापस ला गर दिल्ली तुझमें दम है तो।
भयभीत व्यथित है माँ का मन और करुण रुदन उद्वेलन है,
जो घाव सहे इस माँ ने उन सब घावों का सम्मेलन है।
दिल्ली से है प्रश्न मेरा क्या चीख सुनाई देती है,
भारत माँ हमलों से रोती रोज़ दुहाई देती है।
आतंकी घटनाओं से जब मंज़र सभी बदलते हैं,
दिल्ली तब क्या रोती है जब माँ पर खंज़र चलते हैं।
सब मजहब की चिंगारी को आग बना भड़काते हैं,
मेरी भारत माँ को पीड़ा दे-दे के तड़पाते हैं।
गुंडों को अवलंब मिला दिल्ली के पहरेदारों का,
खून खौल जाता है ये सब देख के कुछ खुददारों का।
शेष रही ना अब लज्जा ना शेष रही मर्यादा है,
माँ की पीड़ा से बढ़कर जज़्बात कौन सा ज्यादा है।
हत्या चोरी लूट यहाँ हर रोज़ नया घोटाला है,
फिर भी देखो मेरा भारत कितनी हिम्मतवाला है।
जो भारत माँ पर लिख न सके वो शायर कैसा शायर है,
माँ को रोते देख सके वो बेटा बिलकुल कायर है।
लो मैं आह्वान करता हूँ हर एक का जो सोता है,
जागो भारत की जनता ये देश तुम्हारा रोता है।
भारत को फिर से विश्वगुरु के पद पर तुम्हें बिठाना है,
गौरव वापस लाना है और महाशक्ति बन जाना है।
हे ईश्वर सन्मार्ग रूप में हमको दो तुम ये वरदान,
रहे अमर ये हिन्दी मेरी रहे अमर ये हिंदुस्तान॥

Poem ID: 127
Occupation: Writer
Education: Other
Age: 36-40
Length: 35 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 30, 2012
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 6:26 pm
Poem Title: तेरी शान रहे तिरंगे
!! तेरी शान रहे तिरंगे !!
शूल चुभें या बरसें फूल ,
सत्य सदा से तेरा मूल
तेरी साँसों से संचारित..
मुझमें प्राण रहें …!
तेरी शान रहे तिरंगे,
तेरी शान रहे ..!!
-१-
भाल सदा ऊंचा हो तेरा
शिखर मिलें तुमको /
विश्व-पटल पर सबसे आगे ,
सूरज सम चमको //
रक्त भरी रग-रग संचालित,
है तेरे कारण /
पल पल ध्यान रहे तिरंगे ,
तेरा ध्यान रहे //
तेरी शान रहे ..!!
-२-
दशों दिशाओं में लहराए,
आनंदित झूमे /
रंग न फीके हों दामन के ,
अम्बर पग चूमे //
छू न सके वैरी बन कोई
तेरा तन पावन /
तेरी आन रहे तिरंगे …
तेरी आन रहे //
तेरी शान रहे ..!!
-३-
युग-युग गौरव गाथा तेरी,
हर्षित सब गायें /
तेरे यश आदर्शों के हित,
बलि-बलि हम जाएँ //
प्रेम सुधा से सुरभित क्षण-क्षण,
हो तेरा आँगन /
ये अरमान रहे तिरंगे ,
यह अरमान रहे //
तेरी शान रहे ..!!
– भावना तिवारी –

Poem ID: 128
Occupation: Student
Education: Pursuing Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 23 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 30, 2012
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 6:30 pm
Poem Title: क्या यही सिला दोगे ?…
क्या यही सिला दोगे ?…
क्या यही सिला दोगे ,तुम उनकी सहादत का ?
उनके त्याग का बलिदान का और उनकी बगावत का,
क्या यही सिला दोगे तुम उनकी सहादत का ?
प्राण आहुति देकर जिसने, तुम सब को आज़ाद किया,
शांति,स्वतंत्रता, सुख, समृद्धि का फिर से यहाँ आगाज़ किया,
देशसेवा अज़ान था जिसका ,उनके किये इबादत का ,
क्या यही सिला दोगे ,तुम उनकी सहादत का ?
शौर्य ही श्रृंगार था जिसका,धरती जिसकी माता थी,
फांसी के फंदे से गूंजी जिसकी गौरव गाथा थी,
वीरों के इस वीरभूमि में, वीरता के विरासत का,
क्या यही सिला दोगे, तुम उनकी सहादत का ?
अपने खून को जिसने खून न समझा, बहा दिया पानी कि तरह,
कोई है जो जाँ दे सकता है अब,आज़ाद कि कुर्बानी कि तरह
राजगुरु,सुखदेव, भगत की,माँ की लुटी अमानत का,
क्या यही सिला दोगे ,तुम उनकी सहादत का ?
माँ चाहती है, कुर्बानी फिर,उठो देश का उद्धार करो,
भ्रष्ट, भ्रष्टाचार,व्यभिचार, सबका तुम संहार करो,
या फिर तुम तमाशा देखो,राजा, तेलगी, कसाब के जमानत का,
क्या यही सिला दोगे ,तुम उनकी सहादत का ?
– दीपक कुमार दुबे”दीप”

Poem ID: 129
Occupation: Writer
Education: Bachelor’s Degree
Age: 51-60
Length: 24 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 7, 2004
Poem Submission Date: October 3, 2012 at 2:11 am
Poem Title: अरे हिंद के वीर जवां !
ॐ
अरे हिंद के वीर जवां !
अपने ख़ून की गरमी दिखलादे तू आज जहान को !
अमन की बातें भूलजा प्यारे ! दिल में रख तूफ़ान को !
अरे हिंद के वीर जवां ! पहचानले अपनी आन को !
अपने पुरखों के गौरव को , गरिमा को , अभिमान को !
आंख दिखाने वाले दुश्मन की आंखें तू फोड़दे !
अकड़ दिखाने वाले ढीठ की गरदन आज मरोड़दे !
देख तू उसकी शैतानी , मत देख कुटिल मुस्कान को !
अरे हिंद के वीर जवां ! पहचानले अपनी आन को !
बार-बार मुंह की खा’कर भी जिसको शर्म नहीं है
अबके उसका अहम तोड़दे , तेरा धर्म यही है !
अमर तुम्हारी रहे जवानी ; मिटादे हर हैवान को !
अरे हिंद के वीर जवां ! पहचानले अपनी आन को !
नहीं अकेला तू सीमा पर ,बच्चा-बच्चा तेरे साथ !
टकराए दो अरब बाज़ुओं से , किसकी इतनी औक़ात ?
फिर भी मरने आए दुश्मन ; सौंप उसे शमशान को !
अरे हिंद के वीर जवां ! पहचानले अपनी आन को !
ओ प्रताप के पूत ! न अपना शीश कभी झुकने देना !
वीर शिवा के वंशज ! घर और सीमा पर चौकस रहना !
ओ लक्ष्मी के लाल ! संभालले अपने हिंदुस्तान को !
अरे हिंद के वीर जवां ! पहचानले अपनी आन को !
ओ वीर बांकुरे ! जवां बहादुर ! राष्ट्र के प्रहरी ! ओ सैनिक !
ओ जल थल नभ के रक्षक ! देश के बेटे ! देश के ओ मालिक !
तेरे होते’ कहां कोई भय भारत भूमि महान को ?!
अरे हिंद के वीर जवां ! पहचानले अपनी आन को !

Poem ID: 130
Occupation: Other
Education: Other
Age: 36-40
Length: 18 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: October 1, 2012
Poem Submission Date: September 30, 2012 at 7:49 pm
Poem Title: वर दो माँ भारत माता !!
वर दो माँ भारत माता
देश तुम्हारी मिट्टी ने ,हमको संघर्ष सिखाया है,
दौड़ रहा जो रक्त रगों में,देह ने तुमसे पाया है //
है आभार उन्हें शत-शत,जिनके बल पर आज़ाद हुए ,
उनको वंदन कोटि-कोटि,जिनके श्रम से आबाद हुए //
है धिक्कार उन्हें जो धरिणी,नोच डालने को आतुर ,
है लानत जो स्वाभिमान को, बेच डालने को आतुर //
युद्ध शेष है विजय गान की ,गाथाएँ फिर गानी हैं ,
पावनतम आँचल में दूध की,नदियाँ लहरानी हैं //
चन्द्र-सूर्य-सम चलें निरंतर,कहीं विराम न लेना है
उन्नति का नभ छुए बिना,क्षण भर विश्राम न लेना है //
प्रवहमान जनशक्ति देश में ,परिवर्तन लाएगी ,
विश्व गुरु होने की संज्ञा ,वापस फिर आएगी //
देश न उन्नत होगा जब तक ,जनगण सुदृढ नहीं होंगे ,
मातृभूमि के ऋण से हम,मर कर भी उऋण नहीं होंगे //
उच्च स्वरों में गाएँ हम,निशिदिन शुभ गौरव गाथा /
मातृभूमि के चरणों में हम ,नित्य नवाएँ माथा //
आओ हों समवेत पुनः बन जाएँ भाग्य विधाता ,
सुप्त चेतना जाग्रत हो ,वर दो माँ भारत माता //
– भावना तिवारी-

Poem ID: 131
Occupation: Student
Education: Pursuing Graduate degree
Age: 23-28
Length: 29 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 13, 2012
Poem Submission Date: October 1, 2012 at 3:06 pm
Poem Title: धरती वीरों की
“ये आज़ाद भारत,धरती है वीरों की,
धर्म है,कर्म है,जीवन है शूरवीरों की,
लहू देकर अपना,जिसे सींचा है वीरों ने,
चारों ओर लकीर जिसके,खींचा है धीरों ने,
यही वो उन्मुक्त-चमन है फूलों की|
यही वो आज़ाद धरती है वीरों की|
आओ इस आज़ादी के सही मायने,
समझें आज़ाद-भगत-बिसमिल से,
जो आज़ादी की लौ जलाकर,
चले गये दुनिया की महफ़िल से।
यही वो पतीत-पावन शुभ वेला है,
जब हमे यह विचार करना है,
इस पावन धरती की प्रतिष्ठा के लिए ,
जीना है या इसके लिए मरना है।
इसी पवित्र भावना से,
दुनिया भारत की चलती है,
ज़रा जागो इस निद्रा से,
ये आज़ाद भारत की धरती है|
ऐसा वर हमे दो, हे! भारतमाता!
कि तुम्हारे चरणों मे
बलिदान हम दे सकें।
धन-सम्पत्ती यश-वैभव,
कुछ भी न हो हमारे पास,
फ़िर भी सर्वस्व अपना,
तुमपर निछावर हम कर सकें।
जब भी प्राण निकले इस तन से,
तब तन मेरा तुम्हारी गोद मे हो।
जब भी विकार आये इस मन मे,
तब मन मेरा स्वच्छ गंगाजल से हो।”
Poem ID: 134
Occupation: Government
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 51-60
Length: 27 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: October 2, 2012 at 8:21 am
Poem Title: भारती उठ जाग रे !
है कहां निद्रित अलस से
स्वप्न लोचन जाग रे !
प्रगति प्राची से पुकारे
भारती उठ जाग रे !
मलय चन्दन सुरभि नासा
नित नया उत्साह लाती
अरूणिमा हिम चोटियों से
पुष्प जीवन के खिलाती
कोटिश: पग मग बढ़े हैं
रंग विविध ले हाथ रे !
भारती उठ जाग रे !
ज्ञान की पावन पुनीता
पुण्य सलिला बह रही
आदि से अध्यात्म गंगा
सुन तुझे क्या कह रही
विश्व है कौटुम्ब जिसका
चरण रज ले माथ रे!
भारती उठ जाग रे !
नदी निर्झर वन सुमन सब
वाट तेरी जोहते
ध्वनित कलकल नीर चँचल
मृगेन्द्रित मन मोहते !
कोटिश: कर साथ तेरे
अनृत झुलसा आग रे !
भारती उठ जाग रे !
युग भारती फिर जाग रे !
जाग रे ! .. फिर जाग रे !

Poem ID: 135
Occupation: Writer
Education: Bachelor’s Degree
Age: 36-40
Length: 15 lines
Genre: Shant (peaceful)
Poem Creation Date: August 14, 2012
Poem Submission Date: October 3, 2012 at 2:01 am
Poem Title: इस आजादी,कुछ आजादी कम की जाये
इस आजादी, कुछ आजादी कम की जाये
नहीं सुरक्षित भ्रूण कन्या,कुछ बेड़ियाँ तय की जाएँ ।
बढ़ती हुई कोपलों को, एक सी सीख दी जाये
अधिकार कानून ने दिए,थोड़ा तो सम्मान दिया जाये ।
विचार गोष्ठियाँ,रैलियाँ, आयोजनों का मेला लगा
खुद के स्तर को समझ, ‘सच’ में कुछ तो किया जाये ।
नहीं दिखाना किसी को नीचा,कोई बड़ी बात नहीं
दोनों हाथोँ की ताकत से किसी को तो उठाया जाये ।
दिल जलता है लबों पे हँसी, देख दूसरों की ख़ुशी
ह्रदय बड़ा कर लबों की हवा से जलते दिल को बुझाया जाये ।
सब्जी,रिक्शा,ज़मीनी सामान सब लगता मंहगा बड़ा
चलो इक रोज ज़रा, ‘शेष’ पे ध्यान लगाया जाये ।
गुलामी बुरी थी या कि भली है आजादी
छोड़ बहस ये,खुद पे गौर फ़रमाया जाये
इस आजादी,कुछ आजादी कम की जाये ।
Poem ID: 136
Occupation: Government
Education: Bachelor’s Degree
Age: 51-60
Length: 21 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: August 18, 2012
Poem Submission Date: October 2, 2012 at 10:44 am
Poem Title: द
देश की अखंडता को, रोकने के लिये आज।
बहना ईद साथ ले, आया है पतेती जी।।
थोडी दूर पर खडे, ढांढस बंधाते देख।
बडा गुरू पर्व संग, मोहिनी दिवाली जी।।
बारी बारी आते पर्व, इसी नेक भाव संग।
देश गतिमान रहे, एकता के साथ जी।।
देश के अखंडता की, बुझने न पाए आग।
एकता की जगी रहे, सदा ये मसाल जी।।
भीषण हिंसा की आग, जल रहा कोक्राझार।
समती न आज आग, देखिए असम की।।
त्राहि माम त्राहि माम, मचा पूरे देश शोर।
देखो दबी राख कैसे, चिनगारी भडकी।।
देश की अखंडता न,जिनको सुहाती आज।
बने हैं पलीता सब, वही इस आग की।।
देश की अखंडता को, यूँ न कर तार तार ।
सुधि कर प्यारे जरा , माँ के उपकार की।।

Poem ID: 137
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 51-60
Length: ३९ lines
Genre: Shant (peaceful)
Poem Creation Date: August 15, 2011
Poem Submission Date: October 2, 2012 at 1:13 pm
Poem Title: परिवर्तन मुझे खुद में ही लाना होगा
परिवर्तन मुझे खुद में ही लाना होगा
भाव के अतिरेक में,
बह रहा अशांत मन मेरा,
देख उसे आहत होता तन मेरा,
चोटे कितनी सहेगा वो जर्जर
देख रहा,
चौसठ वर्ष का वृद्ध लंगड़ाता चल रहा
अत्याचार,भ्रष्टाचार से ग्रसित
चार-चार होते उसके वस्त्र अव्यवस्थित,
दर्द अतीत का दबाये
है वो सोच रहा
कंहा गयी वो परम्पराएँ,
अतीत की मर्यादित कथाएं
पुरषोत्तम राम की मर्यादा
कृष्ण का कर्मयोग मनन
नानक का चिंतन
बुद्ध के वचन
महावीर की अहिंसा
गीता का ज्ञान
शहीदों का बलिदान
शिवा की शान
मीरा की तान
पुरखो का अभिमान
सुरदास के भाव
बिहारी के दोहों की शक्ति
कबीर की पंक्ति,
तुलसी की भक्ति
मेरे शैशव में तो देश प्रेम महान था
युवा हुआ तो कर रहा निर्माण था
इस अवस्था में क्यूँ घात है
क्यों न उनको पश्चाताप है,
मेरे बच्चे मुझसे क्यूँ बिछड़ रहे
भ्रस्टाचार और अनाचार में क्यूँ बिगड़है
चिकित्सक कौन ऐसा आयेगा
दूर बिमारिया कर जायेगा
क्या अपाहिज शारीर को फिर से स्वस्थ कर पायेगा
लड़ना मुझको ही है अपनी बिमारियों से
गर संतान मेरी दूषित हो रही
सुधारना मुझे ही है उन्हें प्यार से
परिवर्तन मुझे खुद में ही लाना होगा
मै भारत हूँ,
भारत कहलाना होगा

Poem ID: 138
Occupation: Professional Service
Education: Other
Age: 29-35
Length: 853 words, 88 lines,22 paragraphs,21gaps lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: July 20, 2012
Poem Submission Date: October 2, 2012 at 3:47 pm
Poem Title: “सबसे प्यारा-न्यारा हिंद है”
“सबसे प्यारा-न्यारा हिंद है”
इस अंजुमन में गुलजार जिस्म का हर चिराग हिंद है ,
रूह पे ओढे हुए वतनपरस्ती का हर लिबास हिंद है !
बहती है वतनफरोशी इबादत की तरह यंहा हर लहू में ,
दिलों पर लिखी पावन इबारतों का कलाम हिंद है !
है हमारे खून का कतरा-कतरा रंग तिरंगा,
और जिस्म का अंश -अंश हिंद है !
बारोह माह देशप्रेम का मौसम यंहा एक सा,
धरती पर खुदा का बेमिसाल कमाल हिंद है !
है तिरंगा अहद हमारी आन के स्वर्णिम गौरवगाथा की,
पारवानावार देशभक्त यंहा हर आग का नाम हिंद है !
मकिने दिल शाने-भारत ,क्रांतिवीरो की मिट्टी ,
इस गुलिस्तान की आबोहवा का श्रंगार हिंद है !
पढ़ती है शहीदों की चिताएं भी हिंद्प्रेम के गीत यंहा,
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई कौम का हर सिंह हिंद है !
पैदा होता है हर हिन्दुस्तानी सरफरोशी की तमन्ना लिए,
वतन पर मर मिटने वाले सीनों का फौलाद हिंद है !
मिलती है इस चमन की खुशबुएँ भी गले अमलन,
इस मुल्क की मिट्टी-तरु-फूल-प्रस्तर तक हिंद है !
इसकी हिफाजत में शौक से कट जाते है लाखो सर यंहा,
आजादी के रंगरेज मतवालों का पैगाम हिंद हैं !
डोला मुगलों-अंग्रेजों का सिहासन जब हमने हुंकार भरी ,
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मर्दानी सिह्नाद हिंद है !
लिखा टीपू की बेखौफ तलवार ने स्वर्णिम अध्याय ,
छत्रपति शिवाजी और महराणा प्रताप का अमुल्य बलिदान हिंद है
पाशमुक्त भारत मस्ताने मंगल पांडे के बलिदानों की अमर कहानी है ,
वीर भगतसिंह के अमूल्य त्याग की अमरज्योति का प्रकाश हिंद है !
लाल-बाल-पाल ने दिया हमे स्वराज्य का मौलिक अधिकार ,
लौहपुरुष बल्लभभाई की लौह दृढ़ता का अंजाम हिंद है !
कर गए परिपाक गांधी-नेहरु-अम्बेडकर संविधान की जड़े,
अनगिनत हाथों की लकीरों में लिखी भाग्यलिपि हिंद है !
हिंदफौज के पुरोधा युगांतरवीर बोस बाबू फक्र है इसका ,
अथक अमरवीर चंद्रशेखर की अमर आजाद उड़ान हिंद है !
महाकवि गुरुदेव ने राष्ट्रगान से उलगुलानों में फूंका प्राण,
बंकिम जी के कालजयी राष्ट्रगीत का अतुल्य योगदान हिंद है !
किया बिस्मिल ने अखंड सरफरोशी से घात हिंद के दुश्मनों पर ,
जन-गण-मन, वन्देमातरम की अभ्यर्थना का इन्कलाब हिंद है !
विद्यापीठ तक्षशिला-नालंदा से ज्ञानगुरु हिंद ने दिया विश्व को ज्ञान,
आर्यभट्ट का विश्व को जीरो का अमूल्य दान हिंद है !
भाषाई सम्राट संस्कृत से लिया एटम ने अणु का नाम,
अलजेब्रा त्रिकोणमिति,केलकुलस का जन्मस्थान हिंद है !
आयुर्वेद के जनक भारत ने किया विश्व कल्याण ,
पृथ्वी की रवि परिक्रमा का खगोलीय अनुमान हिंद है !
पाई के मूल्यांकन का गणितशास्त्र का इतिहास है विश्व प्रसिद्ध ,
मार्यादा ,परम्परा ,संस्कृति की भव्यता का धाम हिंद है !
है गिरिराज हिमालय प्रहरी और माँ गंगा इसकी प्राण है,
कश्मीर से कन्याकुमारी का स्वर्गीय विस्तार हिंद है !
ऋषि-मुनिओं की तपोभूमि ,देव-देविओं की जन्भूमि भारत ,
देवल-दरगाह-चर्च-गुरुद्वारों के मुव्वहिद का उदगार हिंद है !
हल जोतता हलधर इस मातृभूमि की शान है ,
सरहद पर तैनात वीर जवानों का स्वाभिमान हिंद है !
खेल के मैदानों पर उठाते है इसे अपने शानो पर खिलाड़ी ,
होली-ईद-दीवाली-रमजान त्योहारों का सौहाद्र हिंद है !
लोकतंत्र है राष्ट्रधर्म यँहा हर हिन्दुस्तानी का ,
बहु धर्मी-भाषा-जाती-अनेकता में एकता की मिशाल हिंद है
है सत्यमेव जयते मूल मन्त्र हमारी न्याय व्यवस्था का,
जम्बूद्वीप,अजानभदेश,सोने की चिड़िया सब नाम हिंद है
नेस्तानाबूद कर दे अरि मंसूबों को, तरेरे जो तुझ पर नजरे भारत,
हवादिस आतंक से लड़े मिल के निसिबासर, हम बेखौफ हिंद है !
गर है दहशतगर्दो के पास असलाह-गोला-धोखा-बारूद,
तो हमारी जिरहंबख्तर के अंगार का उबाल हिंद है !
खौफजदा लाडो की आँखे ,बेनूर हो रहा नन्हा बचपन
कैसे हम इस मुर्दापन सी निष्ठुरता में जीवित हिंद है
वह कौन निशाचर जला रहा जो दंगों की भट्टी पर भारत
उसे रौंदने को फड़क रही भुजाएं और हिय में भूचाल हिंद है
घोंप रहे संसद की पीठ में छुरा चंद पापाचारी हुक्काम
कानून पड़ गया पीला,चंहुओर बेबसी सा मातम हिंद है
भोला संविधान कराह रहा ,मासूम लोकतंत्र के हाथ कटे
साम्राज्यवादी तानाशाहों को अब तीता सबक सिखाना हिंद है
जल रही मातृभूमि निर्दोष मुफलिसों के आंसुओं से ,
दुबली आजादी भी राजनैतिक कैद में बेहद बीमार हिंद है !
चिल्ला रहे पर्वत-पेड़-नदियाँ , बचाओ ! बचाओ !
सत्य ,अहिंसा के हथियारों से क्या तू फिर से तैयार हिंद है !
भ्रष्टासुर लील रहा धीरे-धीरे नोच-नोच माँ भारती को
क्यों शमशानी चुप्पी से तू जडवत खामोश हिंद है
न बना वफादारी को किसी धर्म-रंग-जात-वर्ग-पार्टी का टट्टू
तेरे देशप्रेम और कुर्बानी का आज इम्तिहान हिंद है
अब वक्त नहीं रहा बन्दे चुप्पी बन सहने का
तेरे सत्याग्रह की आहुति के महाव्रत को बेताब हिंद है !
कितने काले सूरज और उगेंगे, कितने मटमैले डूबेंगे चाँद
तुझसे एक नई उजियारी सुबह के आमद को पूछ रहा हिंद है !
अकीदत रहे हर भारतवासी को अर्जमंद आर्यवत इतिहास की,
मातृभूमि की रक्षा को उठने वाली हर प्रतिकार हिंद है !
आओ खत्म करे सरहदे बैर-भाव,मजहबों की दीवार की ,
बजसिन्हा नव भारत के स्वपन को,मेरा मुश्ताक हिंद है
अब घायल इंडिया बेटी-भ्रूण ह्त्या -बलात्कार-कुपोषण-घोटालों के घावों से,
जगा जमीर के तेरे मेहनतकश हाथों में अब इंतजाम हिंद है !
सिमट न रह जाए भारतप्रेम पंद्रह अगस्त-छब्बीस जनवरी की तारीखों तक,
सौगंध तुम्हे नव भारत निर्माण की, कह्कशों में लिखो लहू से “सबसे प्यारा-न्यारा हिंद है” !

Poem ID: 139
Occupation: Software
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 29-35
Length: 24 lines
Genre: Shant (peaceful)
Poem Creation Date: October 1, 1997
Poem Submission Date: October 2, 2012 at 4:23 pm
Poem Title: ‘उस दीवार के पीछे’
कुछ लोग रहते है उस दीवार के पीछे
होते है मेरी ही तरह बने हुए,
करता है शिरकत लाल ही खून उनकी रगों में,
बसते है ख्वाब भी उनकी आँखों में,
होते है उनके भी कुछ दुःख दर्द, आंसूँ और गम,
हाँ! कुछ लोग रहते है उस दीवार के पीछे
होते है मेरी ही तरह बने हुए.
है वो भी किसी राखी का रेशम,
किसी घर का सुनहरा दीपक
किसी के दिल का आराम होते है वो भी
पर मालूम न चल सका क्यों दी बंदूके उन्हें?
चाहते तो थे वे भी इक मिला जुला संसार
फिर क्यों?
आखिर क्यूँ बदल दिया उनका रास्ता चल पड़ने के पहले ही?
हाँ! कुछ लोग रहते है उस दीवार के पीछे
होते है मेरी ही तरह बने हुए.
‘उन’ पीछे वालों को थमा तो दी विनाश-सामग्री
पर न सोचा क्या उन्होंने न गाया कोई सुखी गान?
क्या नहीं स्वर दिया विश्व एकता के भावों को?
नहीं हुई तमन्ना फूलों और भवरों की उन्हें?
फिर क्यों?
आखिर क्यूँ बदल दिया उनका रास्ता चल पढने के पहले ही?
हाँ! कुछ लोग रहते है उस दीवार के पीछे
होते है मेरी ही तरह बने हुए.

Poem ID: 140
Occupation: Government
Education: Other
Age: 51-60
Length: 20 lines
Genre: Shant (peaceful)
Poem Creation Date: August 14, 2012
Poem Submission Date: October 2, 2012 at 4:46 pm
Poem Title: ** अतुलनीय भारत **
** अतुलनीय भारत **
-x—x—x—x-
” हिम आच्छादित श्वेत श्रंखला ,स्वाभिमान दर्शाती है.
निर्झर नदियां जल से पूरित ,सुख समृद्धि दिखाती हैं
आदर्शों की राह चुने हर भारतवासी ,
आस्था के प्रतीक बन गये मथुरा काशी,
पर्वों की भरमार– ईद , होली, दीवाली ,
लंगर छकते कभी, कभी सरगी की थाली
संस्कृति इतनी उच्च , विश्व चोटी में नाम लिखाती है ..
.हिम आच्छादित श्वेत श्रंखला ,स्वाभिमान दर्शाती है..
अन्तरिक्ष ,तकनीक कृषि जगत प्रकृति सम्पदा ,
समृद्धि चारों ओर , भरे खलियान सर्वदा
लघु कुटीर उद्योग बनाते आत्म- विश्वासी ,
मानवता से ओत -प्रोत हर भारतवासी .
गगन विचरती पर्वत चढ़ती ,नारी विश्वास जगाती हैं
हिम आच्छादित श्वेत श्रंखला ,स्वाभिमान दर्शाती है..
वीरों ने इतिहास लिखा -स्वर्णिम अक्षर में ,
देशप्रेम का भाव भरा हर नारी-नर में ,
गीता के उपदेश गूंजते हैं – घर-घर में ,
परमात्मा के दर्शन करते -स्थिर, चर में,
संत जनों की अमृत वाणी कर्म योग सिखलाती है.
हिम आच्छादित श्वेत श्रंखला ,स्वाभिमान दर्शाती है..”
————–x————–x————-x———-
Poem ID: 141
Occupation: House wife
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 10 lines lines
Genre: Other
Poem Creation Date: September 2, 2012
Poem Submission Date: October 4, 2012 at 3:59 pm
Poem Title: hosla
देख तिरंगे, का सम्मान,
हमको है, तुम पर अभिमान|
भारत की बेटी ने आख़िर,
भारत को, भेजा पैगाम|
दूर छितिज पर फहराया,
जन-गन-मन तुमने गाया|
हर भारतवासी के मन मे,
लहर तिरंगा लहराया|
भिन्न-भिन्न भाषा और वेश,
सतरंगी सा, अपना देश|
सोंधी-सोंधी, खुश्बू इसकी
कण -कण, देता है संदेश|
रहे किसी, कोने मे कोय,
देश-प्रेम का, भाव संजोय|
सेवा-भाव, समर्पण, त्याग,
जनम से उपजे, कोई न बोय|
गर्व हमे, हम भारतवासी,
अपनी तो, पहचान यही है,
सच पूछो तो, शान यही है,
जिस्म यही और जान यही है|

Poem ID: 142
Occupation: Other
Education: Graduate of Professional Degree
Age: >70
Length: 44 lines lines
Genre: Shringaar (romantic)
Poem Creation Date: October 3, 2012
Poem Submission Date: October 3, 2012 at 9:21 am
Poem Title: आकुल करते मेरे गीत…
स्वतंत्र विहग के पंखों जैसे
फैल रहा है स्वर संगीत,
मेरे अंतर्मन से निकले,
आकुल करते मेरे गीत,
नीलनभ से विश्वसागर की,
लहरों पर ये तैरें गीत,
इतना साहस नहीं है मुझमें,
तुम तक कैसे पहुंचें गीत,
गीतों के पंखों से छू कर,
तव चरण रज लूँगा, मीत!
तुम जब गाने को कहते हो,
तुम्हें सुनाता हूँ हे मीत!
मेरा मन गर्वित हो जाता,
तुम्हें जब भाता मेरा गीत,
तुमको सन्मुख पाकर मेरे
नैन अश्रु जल छलकें शीत,
परम आनंद मुझे मिलता है,
दुःखदर्द पिघलें मृदु गीत.
खुश हो नशे में झूम रहा हूँ,
स्वयं को भूला, भूले गीत,
ईश सम तुम मित्र हो प्यारे,
तुम्हें पुकारूँ प्यारे मीत.

Poem ID: 143
Occupation: Student
Education: Associate’s Degree
Age: 17-22
Length: 12 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: February 15, 2011
Poem Submission Date: October 3, 2012 at 1:08 pm
Poem Title: आझादी
लम्हे की चिँगारी को आग मे बदलना सिखो,
जिँदगी मे खुद की वजह धुंडना सिखो ।
ये वक्त तुम्हारा ही है, जो किसीने छिन लिया है,
अपनी आझादी की लढाई अब तुम भी लढना सिखो ।
पनाह दो सपनो को अपने दिलो मे,
तुम खुद मे ही अपनी एक शान हो ।
एक और, एक और मौका दो खुदको,
ताकि सर आँखो पे सारा जहान हो ।
धडकनो की धुन बनाकर जीत के गीत गुनगुनाओ,
बंधे पंखो को खोलकर खुले आसमान मे उडना सिखो,
अपनी आझादी की लढाई अब तुम भी लढना सिखो ।

Poem ID: 144
Occupation: House wife
Education: Bachelor’s Degree
Age: 51-60
Length: 22 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 8, 2012
Poem Submission Date: October 4, 2012 at 2:14 am
Poem Title: देश के ओ वीर प्रहरी ….
देश के ओ वीर प्रहरी
आभा सक्सेना देहरादून
देश के ओ वीर प्रहरी तू धरा को डगमगादे,
सो गया है आज पौरूष, तू उसे फिर से जगादे।।
गांधी की यह पुण्य भूमि रह गयी अभिशाप बन कर,
नेहरू जी का रोम- रोम भी रो रहा अवसाद बन कर।
ओ धरा के युग प्रवर्तक तू नया इतिहास गढ़ दे।।
देश के ओ वीर प्रहरी तू धरा को डगमगादे,
सो गया है आज पौरूष, तू उसे फिर से जगादे।।
देश के नेता ही देखो देश के गददार निकले
अब वतन के वास्ते उनकी आंख से आंसू न निकले
ओ मसीहा देश के एक, काव्य तू धरती पर लिखदे
देश के ओ वीर प्रहरी तू धरा को डगमगादे
सो गया है आज पौरूष, तू उसे फिर से जगादे
विदेश की बैंकों में जो, चोरी से अपना धन गया है
देश का हो कर भी वह अब देश का न रह गया है
ओ रक्षक देश के निज धन ला करके दिखादे
देश के ओ वीर प्रहरी तू धरा को डगमगादे
सो गया है आज पौरूष, तू उसे फिर से जगादे
राष्ट्र की यह प्रिय पताका अब कभी न झुक सकेगी
आकाश की उँचाइयों से यह सदा बातें करेगी
ओ सिपाही देश के तू जोश हर सीने में भर दे
देश के ओ वीर प्रहरी तू धरा को डगमगादे
सो गया है आज पौरूष, तू उसे फिर से जगादे
Poem ID: 145
Occupation: Other
Education: Bachelor’s Degree
Age: 23-28
Length: 29 lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: October 4, 2012
Poem Submission Date: October 4, 2012 at 6:28 am
Poem Title: मुझे भी खुद पर गुमान करने दो
मैं अनसुनी एक आवाज़ हूँ,मुझे ज़रा सुनकर देखो,
कहीं दूर खड़े हो सच्चाई से,पास आकर देखो,
डूब जाओगे इस हकीक़त की गहराई में तुम भी ज़रूर,
सिर्फ खुदको नहीं मुझे भी इंसान मानकर देखो……
ज़िल्लत मिली है सौग़ात में इस बेदर्द ज़माने से,
सोचूं की क्या मिटेगी ये एक ऊँचा नाम कमाने से,
खुदा ने तो हाड़-मांस-रख्त से बनाया सबको ,
फिर मुझे क्यूँ नापते हैं उंच-नीच के पैमाने से……
हैं ख्वाब मेरे भी,सांस लेता हूँ मैं भी यहीं ,
खड़े हो जिस धरती पर तुम,खड़ा हूँ मैं भी वहीँ ,
पूर्वजों की मान्यताओं की दुहाई देते हो आज तक भी ,
पहचान सिर्फ तुम्हारी है,और मेरा कोई वजूद भी नहीं??????
एक दिल है तुम्हारे जैसा जो रोता है कभी तुम्हारे हरकतों से,
जिंदा मुझे भी रहना है,क्यूँ मुंह मोड़ते हो मेरी हसरतों से ,
रगों में तुम्हारे जो लहू है लाल का,मुझमे वह रंग पानी का तो नहीं,
अब तो जीने दो,जज़्बातों को उभरने दो जो दबे हैं कई मुद्दतों से……
वह दमकता सूरज,वह फ़लक का चाँद,बिखेरता है रौशनी सबको एक सामान,
तो कैसे हूँ मैं तुमसे अलग,कारण बताओ या लौटाओ मुझे मेरा सम्मान,
तिरस्कार की नज़रें हटाकर देखो एक बार इंसान की नज़र से मुझे,
जातिवाद का भेद मिटाओ,अब करने दो मुझे भी खुद पर गुमान…….
सबसे बढ़कर भी एक ख़ास है तुम में और मुझमे ए नादानों!
हिंदुस्तान मेरा है ,चाहे तुम मुझे अपना मानो न मानो,
इसी मिट्टी में तुम भी समाओगे और समाऊंगा मैं भी एक दिन,
बस अब भारत को एक ही रहने दो,एक गुज़ारिश ये मेरी सुनो……

Poem ID: 146
Occupation: Government
Education: Other
Age: 51-60
Length: ४० लाइन हर कविता में ३ तीन कविता lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: October 14, 2012
Poem Submission Date: October 4, 2012 at 10:11 am
Poem Title: माँ भारती तेरे चरणों में, हम अर्पित है
माँ भारती तेरे चरणों में, हम अर्पित है
माँ भारती तेरे चरणों में, हम अर्पित है
हम सबने मन में ठाना है,
नफरत को दूर भगाना है,
जग में परचम फहराना है
माँ भारती तेरे चरणों में, हम अर्पित है!
अंतिम घर में भी उजाला हो,
हर मुहं के पास निवाला हो,
प्रेम तराने हम गायें,
मंदिर-मस्जिद मिल मुस्काएं,
सन्देश यही फैलाना है
हम सबको हिलमिल जाना है
भारत को आगे आना है
दुनिया में नाम कमाना है
माँ भारती तेरे चरणों में, हम अर्पित है!
हम सब माली इस बगिया के,
मिलकर के कदम उठाएं,
ये नागफनी खरपतवारें
अब नज़र नहीं यहाँ आयें
भ्रष्टाचार मिटाना है
दुश्मन को दूर भगाना है
दहशत को भी धमकाना है
माँ भारती तेरे चरणों में, हम अर्पित है!
सरहद पर चोकस वीर रहे,
हरदम अपना कश्मीर रहे
गंगा जमुना में नीर रहे
अबला का चोकस चीर रही
चमन हमें तो सजाना है
तितली को भी मुस्काना है
भवरों को नगमें गाना है
नव इंद्र धनुष रच जाना हैं
माँ भारती तेरे चरणों में, हम अर्पित है!
केसरिया रंग ने ये बोला,
तुम स्वाभीमान अपनाओ,
श्वेत शांत और हरे रंग संग
चक्र चलाते जाओ
कवियों को कलम चलाना है
पुरखों का मान बढ़ाना है
वन्देमातरम गाना है
माँ भारती तेरे चरणों में, हम अर्पित है!
माँ भारती तेरे चरणों में, हम अर्पित है!
किशोर पारीक “ किशोर”
9414888892
जयपुर
(2)
मेरे भारत को तुम देना , खुशियॉं अपरम्पार
देना मॉं अनुपम उपहार, देना मॉं अनुपम उपहार,
मेरे भारत को तुम देना , खुशियॉं अपरम्पार ।
मिटटी, अंबर,आग, हवा, जल, में मॉं नहीं जहर हो,
सूखा, वर्षा, बाढ, सुनामी का मां नहीं कहर हो,
रितुऐं, नवग्रह, सात स्वरों की हम पर खूब महर हो,
धरती ओढे चुनरधानी, ढाणी, गांव, शहर हो,
दशो दिशाओं का कर देना, अदभुद सा श्रंगार ।
देना मॉं अनुपम उपहार, देना मॉं अनुपम उपहार,
मेरे भारत को तुम देना , खुशियॉं अपरम्पार । ।
शब्दों के साधक को देना, भाव भरा इक बस्ता
मुफलिस से मॉं दूर करो तुम, कष्टों भरी विवशता
तितली गुल भवरों को देखें, हरदम हंसता हंसता
दहशतगर्दों के हाथों में भी दे मॉं गुलदस्ता
कल कल करती मां गंगा फिर, मुस्काये हर बार
देना मॉं अनुपम उपहार, देना मॉं अनुपम उपहार,
मेरे भारत को तुम देना , खुशियॉं अपरम्पार ।
मंदिर के टंकारे से, निकले स्वर यहॉं अजान के
मस्जिद की मिनारें गायें नगमें गीता ज्ञान के
मिलकर हम त्योंहर मनाऐं, होली के रमजान के
दुनियां को हम चित्र दिखाऐं ऐसे हिन्दुस्तान के
अमन चैन भाई चारे की, होती रहे फुहार
देना मॉं अनुपम उपहार, देना मॉं अनुपम उपहार,
मेरे भारत को तुम देना , खुशियॉं अपरम्पार ।
किशोर पारीक “ किशोर”
9414888892
जयपुर
(3)
मांगे फूल मिलें है खार,
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
रक्त सना है गोपी चन्दन, थमी धड़कने चुप स्पंदन
कैसी संध्या, कैसा वंदन, आह, कराह, रुदन है क्रंदन
लुप्त हुए है स्वर वंशी के, गूंजा भीषण हाहाकार
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
दहके नगर बाग, वन-उपवन,आशंकित आकुल है जन-जन
गोकुल व्याकुल शंकित मधुबन,कहाँ छुपे तुम कंस निकंदन
माताएं बहिने विस्मित हैं, छुटी शिशुओं की पयधार
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
लड़ती टोपी पगड़ी चोटी, बची इन्ही में धर्म कसोटी
मुश्किल चूल्हे की दो रोटी, अबलाओं पर नज़रे खोटी
सपनो के होते है सोदे, अरमानो के है व्यापार
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
बदला नहीं कोई मंज़र, केवल बदले हमने कई कलेंडर
संसंद में गाँधी के बन्दर, बेशर्मी से हुए दिगंबर
थमा सूर तुलसी का सिरजन, अब बारूदी कारोबार
मांगे फूल मिलें है खार,
इनसे कैसे हो सृंगार!
किशोर पारीक “ किशोर”
9414888892
जयपुर
(4)
नई सुबह के पन्नो पर, में अपने मन के मीत लिखूंगा
वंदन मिले ना, चाहे मुझको, चन्दन मिले ना चाहे मुझको
नई सुबह के पन्नो पर, में अपने मन के मीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
बादल चाहे कितना गरजे, सूरज से भी अग्नि बरसे
अपने माँ के अनुपम गुंजन, से में नवनीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
थक कर चाहे सो जाऊंगा, जग कर फिर लिखने आऊँगा
करदे सराबोर सब जग को, ममतामय में शीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
मोसम तो आये जायेंगे, मुझको कहाँ हिला पाएंगे
अग्नि का जो ताप भुजादे , कागज़ पर में शीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
इस बगिया की आंगन क्यारी, मुझको प्यारी हर फुलवारी
हर रिश्ते में जान फुकदे, ऐसी सुन्दर रीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
ओ चिराग गुल करने वालों, चाहे जितना जोर लगालो
जगतीतल को रोशन करदे, ऐसे उज्वल दीप लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
सागर जितना में गहरा हूँ, अम्बर जैसा में ठहरा हूँ
वर्तमान को सुरभित करदे, अनुपम वही अतीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
चाहे शब्द कहीं खो जाये, स्वर मेरे चाहे खो जाये
फिघलती पावक पर बैठा, में फिर से नवनीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
वंदन मिले ना, चाहे मुझको, चन्दन मिले ना चाहे मुझको
नई सुबह के पन्नो पर, में अपने मन के मीत लिखूंगा
में धड़कन के गीत लिखूंगा
किशोर पारीक “ किशोर”
9414888892
जयपुर

Poem ID: 147
Occupation: Non-Profit
Education: Other
Age: 51-60
Length: 20 Lines lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: January 8, 1992
Poem Submission Date: October 4, 2012 at 11:11 am
Poem Title: आज़ादी की सालगिरह पर – एक आज़ाद नज़्म
आज़ादी की सालगिरह पर, तुम सबका अभिनन्दन है
जीवन पथ पर बढ़ो हमेशा, यही हमारा वंदन है
मत भूलो गांधी, नेहरू को, याद सदा उनको रखना
लड़ें लड़ाई आज़ादी की, भगतसिंह का था सपना
भेद भाव बाकी न रहा जब, आज़ादी के मतवालों में
रानी झांसी ज्वाला बनकर कूद पड़ी मैदानों में
तनिक वेदना याद करो आज़ाद, लाजपत, सुखदेवों की
लाठी, गोली, फांसी खाकर की है सेवा जन मानस की
अस्त्र-शस्त्र से लड़ें सभी पर हिम्मत गांधी जी की देखो
सत्य अहिंसा के बूते पर दिला गए आज़ादी हमको
बुरे नहीं अंगरेज़ कभी थे, बसी बुराई मन उनके
इक आँगन बांटा वर्गों में हम भी कितने नादाँ थे
तमिलनाडु से काश्मीर तक भारतवर्ष हमारा है
मातृभूमि का कण-कण हमको जान से बढ़कर प्यारा है
Poem ID: 148
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 29-35
Length: 40 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: May 9, 2014
Poem Submission Date: October 4, 2012 at 5:04 pm
Poem Title: बलिदानो का पुण्य महूरत !!!
बलिदानो का पुण्य महूरत,आता नहीं दुबारा
उठो देश के वीर सपूतो,भारत माँ ने पुकारा……………….।
जिनसे तुमको अन्न दिया,अपने जल से सींचा
उस माँ का मस्तक देखो होने न पाये नीचा
सिर काटना मंजूर हमे,सिर झुकना नहीं गवारा…………..।
उठो देश के वीर सपूतो,भारत माँ ने पुकारा……………….।
उठो कि…शस्त्र उठाओ,दुश्मन के आँख उठाने के पहले….।
मर्यादा पे भारत माँ की दाग लगाने से पहले…………।
चीर दो सीना उसका,जिस दुश्मन ने ललकारा…………….।
उठो देश के वीर सपूतो,भारत माँ ने पुकारा……………….।
हम उनको समझौते के कई बार दे चुके मौके
और नहीं मनमानी उनकी…नहीं और अब धोखे ……..।
उनको अपना शौर्य दिखा दो,जो समझे हमे बेचारा………….।
उठो देश के वीर सपूतो,भारत माँ ने पुकारा……………….।
तुमने की जो शुरू कहानी ,हम खत्म करेगे वो किस्सा…..
एक टुकड़ा भी न देगे उसमे,जो मेरे घर का हिस्सा…..।
हमको को अपना मुल्क बैरियो है प्राणो से प्यारा…………।
उठो देश के वीर सपूतो,भारत माँ ने पुकारा……………….।
सौगंध तुम्हें भारत माँ की…कि वार ये खाली जाए न…..।
गोली जड़ना छाती पर….पर तू पीठ कभी दिखलाए न……।
मुल्क रखेगा याद हमेशा ये बलिदान तुम्हारा………..।
उठो देश के वीर सपूतो,भारत माँ ने पुकारा……………….।
जनने वाली माँ को भूले….ब्याही पत्नी को भूल गए
कुछ वो भी वीर सपूत तो थे…जो हंस कर फांसी झूल गए….।
आजादी के लिए जिनहोने प्राणो को बलिहारा………..।
उठो देश के वीर सपूतो,भारत माँ ने पुकारा……………….।
सूनी जिनके गांवो की गलिया…जिनके घर का आँगन खाली है..।
सूने होली के रंग जिसके…जिसकी बे रौनक दीवाली है…..।
उस कठिन तपस्या से दुश्मन… होगा दमन तुम्हारा………..।
उठो देश के वीर सपूतो,भारत माँ ने पुकारा……………….।
सर्द स्याह रातो मे भी जो पलक नहीं झपकता….।
तपता गरम मरुस्थल जिसका साहस नहीं डिगाता…..।
हर मान कर कदम खीच ले…..वरना अबकी जाएगा मारा……।
उठो देश के वीर सपूतो,भारत माँ ने पुकारा……………….।
माना हम ने कि सबको जीवन देता है ईश्वर ……।
रक्षा करता तू जीवन कि……तू ईश्वर से भी बड्कर…….।
ये ‘गौरव गाथा ‘ करती ‘शत-शत’ नमन तुम्हारा………।
उठो देश के वीर सपूतो,भारत माँ ने पुकारा……………….।
बलिदानो का पुण्य महूरत,आता नहीं दुबारा
उठो देश के वीर सपूतो,भारत माँ ने पुकारा……………….।

Poem ID: 149
Occupation: Government
Education: Bachelor’s Degree
Age: 29-35
Length: २5 lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: October 4, 2012
Poem Submission Date: October 4, 2012 at 6:19 pm
Poem Title: ख्वाबों का हिन्दुस्तान …
तेरी अज़्मत१ का कायल तो, आज भी ज़हान है,
तेरी खुद्दारियों का गवाह, आज भी आसमान है,
मेरे बापू – सुभाष ! फ़िर लौटकर देखो यहाँ..
तेरे ख्वाबों का, क्या यही हिन्दुस्तान है…?
—–
इख्लाको–मज़हब२ जो तूने दिया इस ज़माने को,
बेरहम वक्त तक डरता है, आज़ भी उन्हें आज़माने को,
मज़हबी सियासतों३ में अब बंट चुका इंसान है,
मेरे बापू – सुभाष ! फ़िर लौटकर देखो यहाँ..
तेरे ख्वाबों का, क्या यही हिन्दुस्तान है…?
—–
गुलामी की फ़सीलें४ तोड़कर जीना सिखाया आपने,
ख़ातिर इस ज़माने के, मरना भी सिखाया आपने,
काबिले-ताज़ीर-झूठ५ खुश है और हकीकत६ परेशान है,
मेरे बापू – सुभाष ! फ़िर लौटकर देखो यहाँ..
तेरे ख्वाबों का, क्या यही हिन्दुस्तान है…?
——
मायूस होगा तू भी तस्वीर-ए-वतन७ के दाग देखकर,
रोएगी रूह तेरी, गद्दारों के सर हीरों का ताज देखकर,
अब शहीदों की चिताओं पर बन रहा झूठ का मकान है,
मेरे बापू – सुभाष ! फ़िर लौटकर देखो यहाँ..
तेरे ख्वाबों का, क्या यही हिन्दुस्तान है…?
१महानता २ सदाचार और धर्म ३ धर्म की राजनीति ४ दीवार
५ दंड देने योग्य झूठ ६ सच्चाई ७ देश की सच्चाई

Poem ID: 151
Occupation: Government
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 29-35
Length: 17 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: September 13, 2007
Poem Submission Date: October 5, 2012 at 7:10 am
Poem Title: तितली रानी
तितली रानी उड़कर मेरे पास तो आओ
सुन्दर पुष्प कहाँ खिलते हैं पता बताओ
उन पुष्पों को चुनकर माला तैयार करूँगा
एक परम पूज्य प्रतिमा का श्रृंगार करूँगा
तुम बूझ सको तो बूझो किसकी प्रतिमा है
जिसकी पूजा करने को मन आतुर इतना है
आँचल में जिसके मैं इतनी क्रीड़ा करता हूँ
चुपचाप वो सहती है जितनी पीड़ा करता हूँ
वो अन्न मुझे देती है जल भी देती है
कितनी सारी खुशियाँ मुझको हर पल देती है
लगता मेरा उससे कुछ गहरा नाता है
दादी मेरी कहती है वो भारत माता है

Poem ID: 152
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 17 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: October 5, 2012 at 7:04 am
Poem Title: हिंदुस्तान
हिंदुस्तान
हमने कब तुमसे तख़्त ताज,
और सम्मान माँगा था |
हम सबके सपनो में बसने वाला ,
एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था|
नाही तो हिन्दू और नाही,
मुस्लमान माँगा था |
हमारी सरहदों पर मिटने वाला,
बस एक सच्चा जवान माँगा था |
इंसानियत को रुसवा कर दे,
कब ऐसा इंसान माँगा था |
हमने तो केवल भगत सिंह जैसा,
एक सच्चा सपूत महान माँगा था |
तुम्हारे सियासी दंगों से बनने वाला,
कब वो मनहूस कब्रिस्तान माँगा था |
हम सबके सपनो में बसने वाला ,
एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था|
सबको भोजन, मुफ्त शिच्छा,तन पर कपड़े,
और चेहरों पर मुस्कान माँगा था |
हमने बस तुमसे भ्रस्टाचार मुक्त,
एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था |
पले सत्य बढे विश्वास,
नित – नित जीवन हो आसान |
सबको लेकर चलने वाला,
वह तरुण नौजवान माँगा था|
सबके हाँथो से गढ़ने वाला,
एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था|
शायद तुम कभी समझ भी न सको,
की हमने तुमसे कैसा इमान माँगा था |
क्या यही है वह देश जैसा तुमसे,
हमने अपने सपनो का हिंदुस्तान माँगा था|

Poem ID: 154
Occupation: Government
Education: Bachelor’s Degree
Age: 51-60
Length: 21 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 18, 2012
Poem Submission Date: October 5, 2012 at 7:21 am
Poem Title: देश की अखंडता
देश की अखंडता को, रोकने के लिये आज।
बहना ईद साथ ले, आया है पतेती जी।।
थोडी दूर पर खडे, ढांढस बंधाते देख।
बडा गुरू पर्व संग, मोहिनी दिवाली जी।।
बारी बारी आते पर्व, इसी नेक भाव संग।
देश गतिमान रहे, एकता के साथ जी।।
देश के अखंडता की, बुझने न पाए आग।
एकता की जगी रहे, सदा ये मसाल जी।।
भीषण हिंसा की आग, जल रहा कोक्राझार।
समती न आज आग, देखिए असम की।।
त्राहि माम त्राहि माम, मचा पूरे देश शोर।
देखो दबी राख कैसे, चिनगारी भडकी।।
देश की अखंडता न,जिनको सुहाती आज।
बने हैं पलीता सब, वही इस आग की।।
देश की अखंडता को, यूँ न कर तार तार ।
सुधि कर प्यारे जरा , माँ के उपकार की।।

Poem ID: 156
Occupation: Teacher
Education: Other
Age: 41-50
Length: First 8 lines and second 14 lines lines
Genre: Other
Poem Creation Date: August 8, 2012
Poem Submission Date: October 5, 2012 at 11:29 am
Poem Title: स्वराज का आना बाकी है |
( १ )
स्वराज का आना बाकी है|
मानव ; मानवता से दूर,
उत्कर्ष अभी भी बाकी है|
आज़ादी का सही अर्थ मे,
भाव जगाना बाकी है |
किया बहुत उत्थान ,
पतन की राह मिटाना बाकी है|
प्रजातांत्रिक “भारत” में ,
स्वराज का आना बाकी है ||
भरत शर्मा “भारत”
18, शिवपुरी, बॅंक ऑफ इंडिया के पीछे
कालवाड़ रोड , झोटवाड़ा , जयपुर
राजस्थान 302012
सचल दूरभाष 09829711011
( २ )
आज़ादी का सपना
आज़ादी सपना बन आई, स्वपन हक़ीकत हीन रहा |
गली मोह्हले बाज़ारों में , बचपन कचरा बीन रहा ||
गली मोह्हले………………
अपने अपने हक़ की रोटी, जनता का अधिकार बना|
रैन बसेरे मिलने चाहिए , इसका भी आधार बना |
दशकों बीते इसी आस में , अंतर नहीं नवीन रहा |
राजे; महाराजे बन बैठे , जन पहले सा दीन रहा ||
गली मोह्हले……………….
भावी भारत आज देश में , निगाह पसारे बैठा है |
रोज़गार के कम अवसर से , कुंठित होकर ऐंठा है |
बंदर बाट मचाई ऐसी , गण से तन्त्र कुलीन रहा |
कैसी आज़ादी उसका तो , वाज़िब हक़ ही छीन रहा||
गली मोह्हले……………..
सामाजिक सद्भाव बट गये, अब काबा और काशी में|
उग्रवाद की लपटें उठती , काश्मीर कैलाशी में |
लूट डकैती व्यभिचार से , अमन चमन गमगीन रहा |
“भारत” सारा रोम जल उठा, नीरो फिर तल्लीन रहा||
गली मोह्हले………………
भरत शर्मा “भारत”
18 , शिवपुरी बॅंक ऑफ इंडिया के पीछे
कालवाड़ रोड , झोटवाड़ा , जयपुर
राजस्थान 302012
सचल दूरभाष : 09829711011
Poem ID: 157
Occupation: Other
Education: Bachelor’s Degree
Age: 51-60
Length: 29 lines
Genre: Shringaar (romantic)
Poem Creation Date: February 28, 2005
Poem Submission Date: October 5, 2012 at 2:23 pm
Poem Title: मातृभूमि वंदना
शस्य श्यामला धरा स्नेह सिक्त निर्झरा
षड़ऋतु श्रृंगार युता अन्नपूरणा वरा
जननी हे जन्मभूमि तू महान है
जननी हे जन्मभूमि तू महान है जननी हे जन्मभूमि तू महान है ।।
शस्य श्यामला धरा स्नेह सिक्त निर्झरा…
वन उपवन झूमे हिमगिरि नभ चूमे
देव धरे नर देहा पुलकित मन घूमे
हिमगिरि देखो रजत वरण मरूरज कण जैसे स्वरण
सत्यम् शिवम् सुन्दरम् का गान है
जननी हे जन्मभूमि तू महान है
शस्य श्यामला धरा स्नेह सिक्त निर्झरा…।।
नदियाँ अटखेलि करे कलकल बहे
मधुर सुरों में गाये गीत अनकहे
छम छम छम बाजे पैंजनीखन खन खन बोले कंगना
मुदितमना नवयौवना मिलन चली पिया अंगना
हुलसित हिय सागर में भी उफान है
हुलसित हिय सागर में भी उफान है, जननी हे जन्मभूमि तू महान है
शस्य श्यामला धरा स्नेह सिक्त निर्झरा…।।
मलयज शीतल समीर गंगा का अमिय नीर
कस्तूरीयुत कुरंग केशर युत काशमीर
अवतारी पुरूष धीर शंकर बुद्ध महावीर
मीरा रसखान सूर नानक तुलसी कबीर
विश्वगुरू तू ही गुणिजन की खान है
दिग दिगन्त गूंजे तव यशोगान है
दिग दिगन्त गूंजे तव यशोगान है जननी हे जन्मभूमि तू महान है
शस्य श्यामला धरा स्नेह सिक्त निर्झरा…।।
Poem ID: 158
Occupation: Student
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 16 lines lines
Genre: Other
Poem Creation Date: January 1, 2012
Poem Submission Date: October 5, 2012 at 3:54 pm
Poem Title: उठो जवानों जाग उठो अब ….
उठो जवानों जाग उठो अब , अग्नि परीक्षा आई है |
समृद्ध संपन्न राष्ट्र बनाने , की पुकार अब आई है ||
भारत माता मलिन हो रहीं, प्रतिद्वन्दी भर रहे हैं तान |
शंखनाद अब कर विकास का, दिखा विश्व को अपनी शान ||
आतंकवाद के साए में , भय की दुर्गन्ध आई है |
महगाई की मार ने भी , जन जन को तरपाई है ||
अपनी सभ्यता भूल रहे हम , पश्चिम की परछाई में |
बेरोजगारी और गरीबी , सर्वत्र कहर बरपायी है ||
ज्ञान की गंगा में बहकर तुम , सागर तट तक साथ चलो |
सम्पूर्ण राष्ट्र को सींचकर , जन – जन का कल्याण करो ||
जय हिंद | जय भारत ||
Poem ID: 159
Occupation: Student
Education: Pursuing Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 20 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: October 5, 2012 at 9:27 pm
Poem Title: नज़र आता है
नज़र आता है
असली नही है ये चेहरे,
हर चेहरे पे मुझे इश्तिहार नज़र आता है.
हालत-ए-मुल्क गौर करो,
जैसे सबको तबाही का इंतज़ार नज़र आता है.
वतन क्यों गिर रहा है नीचे,
वतनपरस्त तो मुझे सरे बाज़ार नज़र आता है.
वोह अलग दौर था कोई यारो,
अब कहाँ मुल्क में परवरदिगार नज़र आता है.
अब क्यों न हवा दे थोड़ी सी हम,
जबकि हर सीने में आज अंगार नज़र आता है.
ज़माने की कोई विसात नही कोई,
क्या करे जब राह रोके अपना ही दीवार नज़र आता है.
कड़ी कर लो अब छाती तुम अपनी,
मुझे अब हिमालय में भी एक दरार नज़र आता है.
अब क्यों शहादत नही होता जबकि,
हर खून में आज हौसला तो बेशुमार नज़र आता है.
ये दिए न जलाओ मेरी चौकट पर,
जब तक कि मुझे हर जलसा उधार नज़र आता है.
होने दो अब रौशनी बर्क से ही राघव,
इससे इस साँझ के धुधलके के पार नज़र आता है .
Poem ID: 160
Occupation: Government
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 31 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: December 18, 1999
Poem Submission Date: October 5, 2012 at 9:33 pm
Poem Title: जिन्दगी, ऐ माँ तेरे लिए
जिन्दगी, ऐ माँ तेरे लिए
अपनी जवानी मैंने पहाड़ों के नाम लिख दी,
जवानी की बहारें जंगलों के नाम लिख दी,
जवानी की गर्मी से बर्फ मैं पिघलाता रहा,
जवां जिस्म की नर्मी, राजस्थान के रेत में उडाता रहा,
जिन हाथों से सहलाता मैं सजनी का चेहरा,
उन हाथों में बन्दूक मैं थमाता रहा ।
जब भी आता खत सजनी का,
पहरा है मेरा सरहद पर, मैं ये बताता रहा ।
जवानी की रंगिनियाँ, मैं सफेद बर्फ में मिलाता रहा,
जो पिघली बर्फ तो स्याह पत्थरों से मन बहलाता रहा
एक पहाड़, से दूसरे पहाड़, बनकर रखवाला मैं जाता रहा।
ख़ुशी हो या गम, बेखबर ! मैं झूमता रहा।
इस कदर खोया मैं, सरहद के पहरे में,
दिल की बातें कभी न झलकी मेरे चेहरे में।
बिते सत्तरह साल –
‘‘राम राम साहब’’, ‘‘जय हिन्द’’, मॉं, चला घर तेरा लाल ।
टूटा भ्रम, सपनों के महल से निकला जो बाहर,
बैठकर सोचा तो हिसाब किताब नहीं है बराबर ।
सरहद पर जवानी की कुर्बानी, ये है महज दीवानगी ।
सरहद का पहरेदार ! कहते हैं लोग ‘‘ परे हट, चौकीदार ! ’’
उत्तर में, सबसे ऊँची चोटी पर पहरा मेरा –
सोचता था मैं, मेरी ऑंखों के नीचे अमन से है हिन्दूस्तान ।
करता था मैं अपने भाग्य पर अभिमान
है ये बिते दिनों का फसाना, मुझसे है रूबरू अब जमाना ।
दुनिया सौदे की बात करती है
दुनिया हर हिसाब को किताब में लिखती है ।
बस और जिरह मैं नहीं करूँगा लोगों से,
वो मेरी जिन्दगी थी, ऐ माँ तेरे लिए ।
मेरी वो बन्दगी थी,
बन्दूक से मैने निभाई वो बन्दगी थी,
‘ ऐ माँ ’ तेरे लिए
Poem ID: 161
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 87 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: October 5, 2012
Poem Submission Date: October 5, 2012 at 9:44 pm
Poem Title: भ्रूण की आजादी
माँ के साए में।
पल रहा था एक भ्रूण
रहता था पेट की चहारदीवारी में।
गुलाटी खाता, लातें मारता,
नाल के झूले में
माँ के फेफड़ों से ऊँची पेंगे भरता।
माँ के दिल में कूद जाता।
और कभी-कभी
बाहर आने को भी मचलता।
एक दिन उसने सुना
माँ के कानों से होते हुए,
बात उसके कानों तक पहुँची।
अब उसका लिंग परीक्षण होगा।
पहले ही उसकी सात बहनें थीं।
बाहर की दुनिया में
उसका इंतजार कर रही थीं।
अगर वह भी कन्या निकला, तो ?
तो उसकी जरूरत किसी को नहीं थी।
फिर ? फिर क्या !
फिर उसे मार डाला जाएगा।
अब माँ का नन्हा उदर
बन गया था कारागार।
हर पल लगता था डर।
नाल से बँधा, उल्टा लटका,
साँसें उखड़ने का करता इंतजार।
भूल गया था खेलना-कूदना ।
रहने लगा था सहमा-सहमा ।
मुरझाने लगी थी अधबनी काया ।
साथ नहीं था कोई जुड़वाँ।
कंधे पर ही उसके वरना,
रख लेता वह अपना सिर।
बाहर की बढ़ती हलचल
बढ़ाती थी उसकी धक-धक
हिला जाती थी उसे अंदर तक।
नहीं थी बचने की कोई उम्मीद।
पकड़ लिया था डॉक्टरी जाँच ने।
उसका अनचीन्हा कन्या-स्वरूप
अविकसित ही कोख से उसे अब
हो रही थी तैयारी बाहर लाने की।
गिन रही थी वह भी उल्टी गिनती।
माँ-बाप ही हों जहाँ पराए,
कन्या-भ्रूण को कौन दुलारे।
आरक्षित थी माँ की कोख
मन में बाल गोपाल की आस।
क्या करे वह ऐसी जगह
जहाँ न मिले नेह की छाँव।
बाहर निकाला गया सुबह-सुबह उसे।
निकला था माँस का लोथड़ा बस।
थामा था नर्स ने ले कर डॉक्टर से
लेकिन पंद्रह अगस्त तो उसकी
हो गई थी आधी रात को ही।
अपना भाग्य दूजे हाथों
रचाने के बदले जब उसने,
फाँसी लगा ली थी अपने हाथों
खुद ही अपने नाल से।
आजाद थी, वह आजाद रही।
छू न सके उसे मारने वाले।
नए-नए परीक्षण भी हार गए
उसकी आजादी को मान गए।
लोग हुए खुश, चलो, मरी पैदा हुई।
एक बार रो कर बात खत्म हुई।
लेकिन है यह कदम आत्मघाती
समझ न सके हलकी सोच के धनी।
स्त्री-पुरुष का अनुपात गड़बड़ाया
देश को अंदर से कमजोर बनाया।
विदेशी ताकतों का खतरा बढ़ाया।
एक के बिना है दूसरा अधूरा।
कैसे दिखें दुनिया के सामने पूरा।
विकलांग देश को गुलाम बनाना
बिलकुल भी मुश्किल काम नहीं।
गवाह हैं इतिहास के पन्ने
जो नहीं सीखे सबक इससे
इतिहास रचेगा यही फिर से
बीज जब वटवृक्ष बनता
छाया देता, बसेरा मिलता
कन्या-भ्रूण जब बने नारी
सारी दुनिया उसने सँवारी।
दे दो उसे उसकी आजादी।
उसका हक, उसकी जिंदगी।
समाज बनाओ स्वस्थ इतना
समाए उसमें नारी का सपना।

Poem ID: 162
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 24 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 5:49 pm
Poem Title: आह्वान
आह्वान
अरे सोये हुए माँ भारती के नौजवानों |
आह्वान है तुमसे कि अपने शस्त्र तानो ||
नहीं अब सोचने का ये समय है |
करो कुछ कर गुजरने का समय है ||
प्रभु श्री राम से लो प्रेरणा तुम |
मिटाओ आज जन कि वेदना तुम ||
अकेले राम ने मारा कई को |
उठो क्या सोचना तुम तो कई हो ||
उठो वीरों न अब कुछ खौफ खाओ |
कहाँ बिखरे हो ख़ुद में एका लाओ ||
जो खतरा था परायों से टला है |
मगर अपनों से ही खतरा बड़ा है ||
इन्ही अपनों को अब रास्ता दिखाओ |
बचाओ माँ की इज्ज़त को बचाओ ||
तुम्हीं पर धरती माँ का क़र्ज़ है ये |
करो पूरा इसे अब फ़र्ज़ है ये ||
तुम्हीं हो इसके नव निर्माणकर्ता |
तुम्हीं से आस इसको दिख रही है ||
न सह पाती है अपनों का छलावा |
बड़ी बेबस सी होकर बिक रही है ||
बचा लो आज अपनी धर्मभूमि |
बचा लो आज अपनी कर्मभूमि ||
ये ‘तन्हा’ सी खड़ी ख़ुद पर है रोये |
बचा लो आज अपनी जन्मभूमि ||
Poem ID: 163
Occupation: Student
Education: High School
Age: 6-10
Length: 30 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date:
Poem Submission Date: October 5, 2012 at 10:08 pm
Poem Title: चिंगारी
चिंगारी
अटवी के प्रस्तर ,
खंड -खंड घर्षण,
चकमक चकाचौध ,
जठरानल को शान्ति दे ,
अखंड जीवन की,
लौ चिंगारी ।
बन मशाल,
प्रेरणा की मिसाल ,
मंगल की,
चमकी चिंगारी ।
चहुँ ओर ,
तम का डेरा।
जन सैलाब चिंगारी से,
अभिभूत वडवानल घेरा ।
व्याकुल आने को नया सवेरा,
रानी के खडगों की चिंगारी ।
अमर कर गई ,
जन-जन में जोश भर गई ,
सत्य अहिंसा प्रेम दीवानी,
बापू की स्वराज चिंगारी ।।
नूतन अलख जगा गई ,
देशभक्त बलिदानी,
चिंगारी दावानल फैला गई ।
युग – युग के ज़ुल्मों को सुलझा गई ।
नई रात ,
नई प्रात: करा गयी ।
चिंगारी मशाल,
मिसाल बन ,
स्वाभिमान बन,
राष्ट्र गीत सुना गयी ।।
Poem ID: 165
Occupation: House wife
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 24 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 26, 2012
Poem Submission Date: October 6, 2012 at 4:45 am
Poem Title: बोलें जिनके कर्म ही ….
बोलें जिनके कर्म ही ….
बोलें जिनके कर्म ही ,ओज भरी आवाज़,
ऐसे दीपित से रतन ,जनना जननी आज ।
जनना जननी आज, सुता झाँसी की रानी ,
वीर शिवा सम पुत्र ,भगत से कुछ बलिदानी ।
कुछ बिस्मिल आज़ाद ,नाम अमृत रस घोलें,
गाँधी और सुभाष ,भारती माँ जय बोलें । |
बहुरंगी दुनिया भले , भा गए रंग तीन ,
बस केसरिया ,सित ,हरित , रहें वन्दना लीन ।
रहें वन्दना लीन ,सीख लें उनसे सारी ,
ओज,वीरता ,त्याग ,शान्ति हो सबसे प्यारी।
धरा करे श्रृंगार , वीर ही रस हो अंगी ,
नस नस में संचार ,भले दुनिया बहुरंगी।।
एक लडा़ई कल लडी़ ,एक लडा़ई आज ,
विजयी गाथाएँ लिखें ,जियें मातृ भू काज ।
जियें मातृभू काज ,मिटाऎँ सब अँधियारा,
खोलें नयन कपाट , दिखाऎँ ,कर उजियारा ।
भारत रहे महान ,सकल जग करे बडा़ई ,
ठान तमस से रार ,लडे़गें एक लडा़ई ।।
लेंगे अपने हाथ में ,सच की एक मशाल ,
भले अधर पर मौन हो ,कलम कहे सब हाल |
कलम कहे सब हाल ,व्यथा अब सही न जाए ,
जन गन मन की पीर ,भला क्यूँ कही न जाए |
रखनी पैनी धार ,सोच कब बिकने देंगे ,
सच की सदा मशाल ,हाथ में अपने लेंगे

Poem ID: 166
Occupation: Software
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 26 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: February 15, 2002
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 5:53 pm
Poem Title: जय हो हिंदुस्तान !!!
जय हो हिंदुस्तान !!!
मान शान और स्वाभिमान की शब्दतीर हिय लागी|
सह कर अत्याचार खूब है आज आत्मा जागी ।।
बहुत हुआ तुम बहुत रह चुके, बहुत कर चुके अत्याचार।
जाग गए हैं अब हम पल में चुन उखाड़ हर खरपतवार ।।
उठी लहर ऐ कहर ठहर तेरा विनाश हम कर देंगे।
सर को मरोड़ कर गोड़ तोड़ जड़ से उखाड़ तुझको देंगे ।।
जो था फैलाया नीति जाल वह चूर चूर हो गिरा गगन में।
फिर चिराग जल उठा लगन का सब जन चलेंगे एक लगन में ।।
मत भाग दाग सरदार तुझे ये काल मिटाने आया।
तेरा विनाश तुझको टटोलकर आज बुलाने आया ।।
इति को तेरी बहुत नहीं बस, जन समूह और साहस ये दो।
गर बदल सके तो बदल आपको जियो और जीने दो ।।
पग पग में तुम ताव सहित जब दाव लगा दलते थे।
कर में चाबुक बँदूक लिए, तन के ऊपर चलते थे ।।
देख जमीं ऐ देख आसमां, जाग उठा संसार।
गूँज रही है चहू ओर अब एक मधुर झंकार ।।
हर महिला हर प्यारे बच्चे, बूढ़े और जवान।
एक साथ सब मिलकर बोलें जय हो हिंदुस्तान ।।

Poem ID: 167
Occupation: Journalist
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 23-28
Length: 42 Line lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: September 28, 2012
Poem Submission Date: October 6, 2012 at 1:53 pm
Poem Title: Sainik ki Atam Katha
I have no devnagiri font but sir ihave attached my Poem with PDF, Pls accept it
Thanks

Poem ID: 168
Occupation: Student
Education: Pursuing Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 21 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: October 6, 2012
Poem Submission Date: October 6, 2012 at 5:57 pm
Poem Title: वो मेरे सपनो का भारत . . .
जो विश्व शांति की ज्योत जलाये
इस दुनिया को एक देश बनाये
जो राम – रहीम का भेद मिटाए
और सबको प्रेम नीति समझाए
हिंसा और द्वेष के पन्नों पर
लिखे जो शांति की इबारत
वो मेरे सपनों का भारत . . .
जो देश जहां को प्रेम सिखाये
नफरत की दीवार मिटाए
बड़े प्यार से पाले सबको
यूँ ही सबकी माँ कहलाये
और जिस देश के हर कण-कण में
बन जाये एक प्रेम इमारत
वो मेरे सपनों का भारत . . .
जहां युध्द दिलों से जीते जाएँ
हथियार कोई भी काम न आयें
जहां जीवन में कोई न भय हो
और कोई किसी से न घबराएँ
जहां हर दिल में बस प्रेम बसे
और प्रेम हो हर इंसान की चाहत
वो मेरे सपनों का भारत . . .
वो मेरे सपनो का भारत . . .

Poem ID: 169
Occupation: Student
Education: Pursuing Bachelor’s Degree
Age: 17-22
Length: 26 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: October 6, 2012
Poem Submission Date: October 6, 2012 at 7:26 pm
Poem Title: नवरस भारत
नौ रसों का मेलन,
है देश हमारा “ए” वन |
हर रस की है इक गाथा,
अजूबा देश जहाँ भिन्नता का है सांधा |
श्रृंगार रस से ओत प्रोत,
धानी उर्वरा, पूजनीय गंगा और चोटी हिमालय की ..
अद्भुतं रस तो है नितांत,
कान्तता ताज की हो, या धर्मों के अनन्य प्रकार…
हास्य रस का छौंका भी है लगा,
कपडे जितने सफ़ेद धन
उतना ही काला करने का कमाल,
आम आदमी का एक है फलसफा, हर चीज़ का है जुगाड़…
वीर रस को ना हम भूले आज भी ये देश की मांग है,
गाँधी, भगत, सुभाष के रक्तबीज
आज भी भारत में फूंके जान है |
परन्तु आज माहौल का रस है भयंकरम
लहू से लथपथ हैं शरीर, आदमी ही आदमी को भक्षकम |
वीभत्स है हर जगह नज़ारा
हाथो में बारूद और मुख पर मुखौटा
घृणा का, हवास का, लालच का |
घिरी हु मैं रौद्र्य और कारुण्य से,
देश की स्थिति पे तैश खाऊ या भुक्त भोगियो को दया का पात्र बनाऊ,
अंततः एक रस है छुपा हुआ, जिसे करना है उजागर
शान्तं को फैलाना है हर और
भारत को स्वतंत्र बनाना है एक बार और!
Poem ID: 170
Occupation: Writer
Education: Other
Age: 23-28
Length: 30 lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: October 5, 2012
Poem Submission Date: October 7, 2012 at 4:58 am
Poem Title: एक सिपाही की प्रार्थना
ऐ मित्रों, भारत के पुत्रों,
वक़्त आज है फिर वो आया.
धरती माता हमें बुलाती,
चहुँ ओर संकट गहराया.
लूटेंगे सोने की चिड़िया,
अंग्रेजो ने तब थी ठानी.
तोड़ हमारा भाईचारा,
की थी गैरों ने मनमानी.
देश आज फिर से लुटता है,
अपने ही बन बैठे भक्षक.
चुन कर तुमने सत्ता सौंपी,
मान के जिनको अपना रक्षक.
देश नहीं, लालच के नौकर,
देश बेचकर खाते हैं.
जिस मिट्टी में शरण मिली,
उसमे ही सेंध लगाते हैं.
सरहद पर मैं डटा हुआ हूँ,
अन्दर के दुश्मन तुम देखो.
मगर गैर से पहले खुद के,
दुर्व्यसनों को बाहर फेंको.
तब ही इनसे लड़ पाओगे,
देश मुक्त तुम कर पाओगे.
जीवन का बलिदान मैं दूंगा,
गर ईमान बचा पाओगे.
Poem ID: 171
Occupation: Student
Education: High School
Age: 11-16
Length: 25 Lines lines
Genre: Other
Poem Creation Date:
Poem Submission Date: October 7, 2012 at 12:56 pm
Poem Title: तु कैसी माँ है….
तु कैसी माँ है???
जहाँ की चाँदनी रातों में मैं सोया
वहाँ के सुनहरे सपनो में मैं खोया
तेरे आँचल मे रहकर मैं
हँसा और रोया
तु कैसी भारत माता है
तु कैसी सबकी माँ है
जिसने तेरी सेवा की तुने उसको पाला
जिसने तुझे दर्द दिया
उसे भी सींचा और सनजोया
तुझे देखकर मै खुब दुखी हुआ और खुब रोया
जिसे तेरि पर्वाह नहीं
उसे भी तुने अप्ने ममता से भीगोय
तु कैसी माँ है
सब अत्याचार सहे जा रही
और कब तक तेरे कंठ से एक आह! न निकली
यह कैस प्यार है तेर
जो सबको बिगाड़ रही
तु पेट भरती है सक
प्यास भी है बुझाती
हर जरुरत तु हम सबकी पुरी है करती
पर तेरे बच्चे तेरे सन्स्करों को भुल रहे
नकल कर दुसरों की
उन जैसा बनने कि कोशीश कर रहे
पर तु खड़ी देख रही
उनके मुस्कराते चेहरों को देख
तु भी खुश हो रहि
मत कर तु इत्न प्यार हमसे
मत खोल अपनी ममता के बांधे
मत कर तु हम्से इतना दुलार
तु सबको दुध देती है
पर ये तो तेर खुन चुस रहे
वह वक्त कब आयेग जब
तु लगएगी इनके अक्ल ठिकाने
तब समझ में आयेगा
तुने क्या किया है हमारे लिए
और हमने तेरे लिये!

Poem ID: 173
Occupation: Government
Education: Other
Age: 51-60
Length: 28 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: October 7, 2012
Poem Submission Date: October 7, 2012 at 5:48 pm
Poem Title: जब भी बात करता है……….
जब भी बात करता है कोई कहीं आजादी के दीवानों की बात अपने आप चल पड़ती है हिंदुस्ताहन के दीवानों की
जब भी बात करता……………………………………..
दुनिया में अपने आप में एक मिसाल है यह देश मेरा कहां मिलती है एक सी खुशबू अलग-अलग गुलिस्ता.नों की जब भी बात करता……………………………………..
सर कटाने की बात आई तो सैंकड़ों तैयार हो गए एक साथ वतन पर जां लुटाने की बात से भूख मिट गई मस्ता नों की
जब भी बात करता……………………………………..
दुश्म न की नजरें जब भी जमी हमारे देश की जमीं पर
वंदे मातरम जैसे नारों से नींद उड़ गई उन शैतानों की
जब भी बात करता……………………………………..
कोशिश दिलों को तोड़ने की हद से ज्या.दा की रकीबों ने
दिलों में दीवार बनाने की ख्वा्हिश रही अधूरी नादानों की
जब भी बात करता……………………………………..
मशाल थामी नन्हे -मुन्ने. हाथों ने घर से बाहर निकलकर
तिलक विजय का लगाकर मुराद पूरी की गई परवानों की
जब भी बात करता……………………………………..
न जाने कितने सपूत पैदा हुए भारत की पावन धरती पर तिरंगे के लिए जान देने को तैयार थी टोलियां नौजवानों की
जब भी बात करता……………………………………..

Poem ID: 174
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 9 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2012
Poem Submission Date: October 9, 2012 at 11:27 pm
Poem Title: अनंत जीवन
वे देशभक्त
आज़ादी हित
फाँसी के तख्ते पर झूले
हँसते हँसते
कह गए
वचन ये मौन-
‘निज देश हेतु
मरना न मृत्यु
जीवन अनंत है’

Poem ID: 175
Occupation: Student
Education: Bachelor’s Degree
Age: 23-28
Length: 15 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: May 10, 2012
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 6:26 am
Poem Title: आइये मिलकर रोते है
आइये
हम सब मिलकर रोते है
भारत में
फैले भ्रष्टाचार पर
भारत में
किसानो की हत्या पर
आइये रोते हैं
सुरसा के मुंह की भांति फ़ैल रही
महंगाई पर
भारतीय राजनीती पर
यहाँ के रोडपति से करोड़पति बने
भ्रष्ट नेताओं पर
आइये रोते हैं
गरीबी
लोभ
लालच और मोह पर
अन्ना केजरीवाल और रामदेव पर
आइये रोते हैं
हम सब मिल बाँट कर
रोते हैं
हम भारतीय हैं
हम एक हैं
आइये
हम अपनी एकता को दिखाते हैं
आइये
हम सब मिलकर रोते है
Poem ID: 177
Occupation: Other
Education: Other
Age: 41-50
Length: 19 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: March 23, 2000
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 9:53 am
Poem Title: 23 March
क्या तुम्हे पता है हुसैनीवाला कहां है?
है तुम्हें मालूम २३ मार्च का मतलब?
क्या बता सकते हो तुम,
कि एक बच्चा खेतों में बन्दूकें क्यों बोता था?
क्या दिये की लौ पर रखकर,
जलायी है तुमने अपनी हथेली?
कर सकते हो,
एक सिख हो कर मातृभूमि के लिये केश कटाने की हिम्मत?
कभी सोच सकते हो,
’बेबे’ के हाथ कि रोटी खाने की अंतिम इच्छा?
मज़लूमों के दर्द कि तडप
क्या बना सकती है तुम्हें क्रन्तिकरी?
जानते हो कि जब ठंडी सख्त रस्सी,
गर्दन के चारों ओर कसती है,
तो क्या होता है?
एक बार सोचना कभी,
इन सब का क्या अर्थ है,
और तब कहना कि,
तुम्हारे लिये किसी ने क्या किया है,
और यह भी बताना कि,
तुमने औरों के लिये क्या किया है.

Poem ID: 178
Occupation: Writer
Education: Bachelor’s Degree
Age: 29-35
Length: 13 lines
Genre: Karuna (pathos)
Poem Creation Date: October 2, 2011
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 10:42 am
Poem Title: जन्म दूसरा लो
जन्म दूसरा लो रामप्रसाद
तुम भी लौट आओ आजाद
कहीं से तो दिखता होगा जगत
धरती पैर उतर आओ भगत
दफ्टर-दफ्तर होता घोटाला
ये रोक दो तुम आके लाला
भरष्टाचार, गरीबी, मजबूरी
है मेरे देश में स्वतंत्र
डूबता सा दिखे गणतंत्र
कर सकूं सुरक्षा सबकी
बापू दो कोई ऐसा मन्त्र
जो शिक्षा तुम दो राज गुरु
तो सफल जीवन अपना करू
———–तनवीर आलम

Poem ID: 179
Occupation: Writer
Education: Bachelor’s Degree
Age: 41-50
Length: 38 lines lines
Genre: Other
Poem Creation Date:
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 11:50 am
Poem Title: मदरसे इबादत
.कई अनजान सी जुल्फें तेरा चेहरा संवारे हैं
जो बादल हम जगाए थे न जाने अब कहाँ होंगे….
कहाँ होगी मोहब्बत से लरजते होंठ की थिरकन
कहाँ होंगी वो मनभाती मधुर भावों की गहराई…..
क़ि जिनमे डूब कर उतरा किए थे पुरसुकून लम्हे ….
कहाँ होगी इबादत में झुकी वो नाजनी गर्दन
के जिसके ख़म पे जम पाकीजगी देती दुआएं थी |
कहाँ होगी वो शिद्दत से सधाए ध्यान की चोटी…..
कहाँ होगी वो मलखम दंड वो मुगदर क़ी बिजयारी
क़ी जिनमे तैरती थीं मछलियाँ वीरों जवानों क़ी —\
कहाँ गुम है जुबानों से वो बुलबुल सी वो कोयल सी
मधुर सरगम ……
कहाँ गुम है वो अमिया को कुतरती पाक दोपहरी
कहाँ गुम हैं फिराकों से टपकते बेर ओ गुंचे ….
कहाँ गुम मातारामों की जगाती पोपली घुड़की
कहाँ होंगे वो अब्बा के रखाए पाक दिल रोज़े…..
कहाँ होगी वो मन्नत से भरी पुरभाव नवरात्रि
कहाँ जासोन तैरे है खनकते हाथ लोटे में …..
कहाँ कुमकुम गमकता है कपालों के उजाले मैं ………
तन चले कितने किले कुछ ही सवालों से
कहाँ होंगे जवाबों की जमाखोरी के कारिंदे
वो वाशिंदे अमन के चैन के राही कहाँ होंगे…….
क़ि हर धड़कन का रिश्ता है उसी धड़कन के जामे से
समझ कर बूझने वाले परस्तेसिर कहाँ होंगे…….
मदरसे क्या इबादत के कहीं गुम हैं इबादत में
चले असबाब मैं तब्दील होने जिस्म ओ जाना…..
वो फितरत से हंसी चेहरे वो आदत से जवान सांसें
वो तिर्यक तैरती चितवन के हिरणों के छलावे सी …..
गुजरती किन निगाहों से कोई अब जान न पाए ….
कहाँ आँचल कटा होगा कहाँ गुम धान की अंजुर…..
किन्हीं गैरों क़ि खिदमत में जुटी हर गाँव की बेटी
दरकते होंठ कहती जो वो सहने में नहीं आता ….
बड़ी बदजात सी भाषा निगाहोंसे बयां होकर
हवा में तैर पूछे है तुम्हारे घर ओ आस्तांने ……..
किसी बेपर परिंदे की जमीन पर लोट सा होकर
जो मनवा खैर मांगे है वहीँ सोने की चिड़िया था\
वतन पर मर मिटे हैं हम वतन को अब जिला लो तुम
कहा है फिर जनम लेंगे शहीदों ने मुकामों से
कई अनजान सी जुल्फें तेरा चेहरा संवारे हैं ….
Poem ID: 180
Occupation: Professional Service
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 41-50
Length: 17 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: August 15, 2011
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 1:32 pm
Poem Title: “मातृभूमि “
“मातृभूमि”
ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम , ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम ,
चरणों को धोता है सागर , उस महासिंधु को शत प्रणाम,
जिस धरा पे बहती भागीरथी, उस धरा को मेरा है प्रणाम ,
आँचल को छू के बहे पवन , उस पावन पवन को है प्रणाम,
ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम, ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम.
पियूष कुम्भ वक्षस्थल में नेत्रों में ममता की धारा,
वलिष्ठ भुजाएं भीम भीष्म दुश्मन को सदा ही संघारा ,
मस्तक शोभित हिमराज करे , उस हिमालय को लक्ष प्रणाम,
ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम, ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम.
पावन संगम सब धर्मों का , वह स्वर्ग यहीं ऐ मातृभूमि ,
इन्द्रधनुष आँचल तल में, सबको संबल ऐ मातृभूमि,
पाता है अमृत तुझसे, ले ईश्वर या अल्लाह का नाम,
ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम, ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम.
ऋचाएं वेद पुराणों की, कानों में तू अविरल भर दे,
गीता के गुप्त रहस्यों को , सुलझाकर माँ मुझको वर दे,
तेरे आँगन में पले बढे नानक, गौतम, श्रीकृष्ण, राम
ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम, ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम.
चाह नहीं इन्द्रासन की, ना स्वर्ग की मुझको है आशा,
हर जन्म मेरा भारत भू पर , ये मेरी अंतिम अभिलाषा,
जिस लहू से सींचा है मुझको, उस लहू को मेरा कोटि प्रणाम ,
ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम, ऐ मातृभूमि तुझको प्रणाम.

Poem ID: 181
Occupation: Government
Education: Bachelor’s Degree
Age: 23-28
Length: 20 lines
Genre: Other
Poem Creation Date: October 9, 2012
Poem Submission Date: October 10, 2012 at 2:27 pm
Poem Title: आह्वान भ्रष्टाचार विरुद्ध
भ्रष्टाचार दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा
हर भारतीय राष्ट्र भूल आपस में लड़ रहा
न जाने आर्यावर्त में ऐसी क्यों लाचारी है!
वोट हँस के देता अशिक्षित, बेगार ही है|
जो डेढ़ वर्षों से निरंतर संघर्ष जारी है
किंतु विरोधी को सिर्फ सत्ता प्यारी है
डंडे बरसवा दे जो रात में मुंह छिपा के
कैसे मानूं सरकार पे जनता भारी है?!
जनसमूह उमड़ा था कल क्रांति वास्ते
लो अब पृथक हुए अन्ना-केजरी के भी रास्ते
खत्म करनी यह जो भ्रष्टाचार बीमारी है
तंत्र प्रवेश ही मात्र बचा एक मार्ग दुश्वारी है|
आह्वान है ‘हितैषी’ का आज देश की जनता से
चिकित्सक से, कृषक से, श्रमिक से, अभियंता से
आवाज़ बुलंद करो, नये गाँधी-सुभाष आये हैं
नीतिज्ञ नैतिक संतुलन को लोकपाल विधेयक लाये हैं|
कवि कहे- न कांग्रेस, न अन्ना-अरविन्द कक्ष में
न्याय ‘लोकनायक’, हो केवल सत्य पक्ष में
भ्रष्ट स्पष्ट दिख रहा, बदलो सरकार, अन्यथा
आम मिले न केला, बंधु, होनी हार हमारी है||

Poem ID: 182
Occupation: Writer
Education: Graduate of Professional Degree
Age: 29-35
Length: 21 lines
Genre: Veer (heroic)
Poem Creation Date: October 2, 2010
Poem Submission Date: October 12, 2012 at 4:05 am
Poem Title: में चाणक्य बनाता हूँ…..
विपदाओं ने ऐसा घेरा
निकल न पाया कभी सवेरा
किरणें फैलीं नील गगन पर
धरती पर तो रहा अंधेरा
अंधकार में पुंज तलाशा
उससे दीप जलाता हूँ
मैं चाणक्य बनाता हूँ
शौर्य बंधा हो बाजू में
ऑख़ों में अंगार सजी हो
तर्क पूजतें हों शब्दों को
साँसों में हुंकार भरी हो
विद्रोह से विद्रोह करे जो
उनको शीश नवाता हूँ
मैं चाणक्य बनाता हूँ
शत्रु जब शास्त्रों को भूलें
शस्त्रों की भाषा पहचाने
परमपिता को शीश नवाकर
हत्या, वध में अंतर जाने
गंगाजल का आचमन करके
दिव्य प्रत्यंचा खनकाता हूँ
मैं चाणक्य बनाता हूँ