कर रही थी वो सदियों से उसका इंतज़ार ,
आएगा एक दिन चिल्लाता हुआ कि चल माँ, मैं कराता हूं रास्ता पार ।
वर्षों पहले देखा था उसने उसे आखिरी बार,
कह रहा था जब कि माँ तुम चली जाओ दहलीज के पार।
मौसम बीत गए पर आई नहीं उसके कदमों की खबर,
अनंत जलाशय् सा था मगर उस माँ का सबर
एक दिन जब गिरने वो वाली थी तो थामा एक नन्हे हाथ ने,
बोला उस मासूम चेहरे ने कि – मैं चलता हूं मंदिर तक आपके साथ में
कुछ था उस पल भर के साथ में जो उसे उसकी याद दिला गया
सदियों पहले की खोई मुस्कान को ढूंढ उन दोस्तों को मिला गया ।
आता वो रोज़ अब प्रसाद लेकर चिल्लाता हुआ कि यह लो दादी
प्याली की मिश्री बांटकर कहता कि यह मेरी और यह तुम्हारी आधी ।
एक दिन वह मासूम यूं ही बोला कि तुम रहती कहां हो दादी
मंदिर की ओर इशारा कर वो बोली कि – माँ की गोद से बिछड़कर कहां जाएगी अभागी
जाकर अपने घर वह बोला कि – माँ कल मैं दादी को घर ले आऊँ
कहानी सारी जान वह कुसुम लता से बोली कि इसे ही देख लेते हैं और दाई मैं कहां से लाऊं
दाई लेने पहुंचा जब परिवार माँ के द्वार पर ,
आखिरी सांस गिन रही थी तब वह भूमिशयन कर
दादी कह कर जब दो नन्हे हाथ उसे हिलाने लगे ,
तो माँ कहकर मृत शरीर पर कुछ अनजान आंसू छाने लगे
आप क्यों रोते हैं का एक चिंतित स्वर भी सुनाई देने लगा
पर मृत शरीर के पास पिता-पुत्र के विलाप में वो खोने लगा ।
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