आंसू

आग जो मेरे अंदर हैं,
आंखों से बहती निर्झर है।
आंसू ना होते तो जल गए होते हम,
शायद मर गए होते हम।
कसक होने पर फूट-फूट कर रोते हैं हम,
आंसू ना होते तो घुट-घुट के मर गए होते हम।

आंसू वो है–
जो अंदर की आग बुझाती है।
दिल बेचैन हो तो समझाती है।
सीने की आग पिघलाती है।
जीने का सबब बतलाती है।
अकेले में भी साथ निभाती है।
उलझन को छम-छम बरस सुलझाती है आंसू।

कभी अपनी सी लगती है
आंसू, तो कभी छलनी सी लगती है
आंसू। आग जो मेरे अंदर है,
आंखो से बहती निर्झर है, निर्झर है।


Posted

in

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *