कौन-सी आजादी का जश्न मनाऊँ ?
आखिर किसके लिए जय हिन्द के नारे लगाऊँ ?
देश की बागडोर राजघरानों के हाथों में,
बलात्कारी घूमे खुले बाजारों में,
लड़की भ्रूण पड़ी रहे पत्तों-झाड़ियों में,
और लाखों करोड़ों के घोटालें हो जिस भारत में,
क्या में उस भारत के लिए जश्न मनाऊँ ?
आखिर किसके लिए जय हिन्द के नारे लगाऊँ ?
हज़ारों लोग मारे जाते हैं साम्प्रदायिक दंगों में,
देश की गद्दी पर बैठने वाले पाए जाते हैं अय्याशियों के धंधों में,
शिक्षा को रुपयों में तौला जाता है स्कूल-कॉलेजों में,
और शहादत की कीमत दिखती हो जहाँ सिर्फ स्मारकों में,
क्या उस भारत की आजादी का जश्न मनाऊँ ?
आखिर किसके लिए जय हिन्द के नारे लगाऊँ ?
किसान के चेहरे की शिकन सिर्फ बारिश के जरिए मिटती है,
बेकसूर की पूरी ज़िन्दगी सलाखों के पीछे गुजरती है,
बुढ़ापे में जहाँ सिर्फ वृद्धा आश्रम की उम्मीद रहती है,
और जहाँ ‘पान सिंह तोमर’ फ्लॉप और ‘द डर्टी पिक्चर’ हिट होती है,
क्या उस भारत की आजादी का जश्न मनाऊँ ?
आखिर किसके लिए जय हिन्द के नारे लगाऊँ ?
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