ऐ मेरी लेखनी

ऐ मेरी लेखनी
आज फिर तू गान कर
उनका तू सम्मान कर
अपनी खुशियाँ छोड़ कर
सारे मोह तोड़कर
चल पड़े थे जो कभी
वंदना में माँ के जो
आज उनका गान कर

जिनकी रक्त धार भी
बन गयी तलवार सी
काट डाली बेड़ियाँ
पड़ी जो माँ के के हाथ थी
आज उनका गान कर

स्वयं का कोई भान ना
अपना कोई सम्मान ना
दिल में केवल एक ही
बस राष्ट्र का ही भान था
उनका तू सम्मान कर
आज फिर तू गान कर

निद्रा ये टूटेगी कब
सो गए है आज सब
गिद्ध नयन शत्रु के
दिखने लगे है आज फिर
ऐ मेरी लेखनी
उनका तू आह्वान कर
आज फिर तू गान कर
उनका तू सम्मान कर


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