“नयी अलख जगाना है ”
उठो ऐ देश वासियों
नया चमन बसाना है
दिलों में मातृभूमि की
नयी अलख जलाना है
सीमा पर चल रही है
नफरत की ,ऐसी आधियाँ
कतरा कतरा खून से
लिख रही कहानियाँ,
साँस साँस सख्त है
ये आया कैसा वक़्त है
अब जर्रा जर्रा द्वेष की
बँट रही है ,निशानियाँ
आओ साथ मिलकर
अब द्वेष को मिटाना है
दिलों में मातृभूमि की
नयी अलख जलाना है।
उठो ऐ देशवासियों ………… !
आज , ईमान बिक रहा है
स्वार्थ का व्यापार है
चले, जिन भी राहों पर
पतित , अभ्याचार है
कदम कदम पर धोखा है
आतंक को किसने रोका है
चप्पा चप्पा मातृभूमि के
पुनः – पुनः प्रहार है
आओ स्वार्थ के घरों में
नयी सुरंग बनाना है
दिलों में मातृभूमि की
नयी अलख जगाना है।
उठो ऐ देशवासियों ………………।
अब मुल्क की आन का
बड़ा अहम सवाल है
फिजूल की बतियों पे
यहाँ ,मचता बबाल है .
बदला बदला वक़्त है
ये तरुण अनासक्त है
देशभक्ति की तरंगो से
अब करना इकबाल है
नए राष्ट्र के गगन पर
नयी पतंग उड़ाना है
दिलों में मातृभूमी की
नयी अलख जगाना है
उठो ऐ देशवासियों ………!
— शशि पुरवार
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