कुछ करने के लक्ष्य से…।
जाने से पहेले कुछ दिल अजीब सा एहसास था,
13 लोगो की टीम थी और आपका प्यार था ।
कुछ पाने की तमन्ना तो दिल में थी नहीं,
फिर भी कुछ पाने के लिए एक संकल्प साथ था ।
धीरे-धीरे बड़ते कदम.…. चले रहे थे राह पे,
कही पे सड़क टूटी तो कही सड़क का नामो निशान ना था ।
सोचा मेने यही दिल में तब, बस हमे आगे बढना है,
चाहे जो भी मुश्किल रास्ते में आये, उसका निवारण हमे करना है ।
100 से अधिक सड़को का विस्तार गंगा नदी पास था,
बहना जिनकी किस्मत में था, और वही उनका बिनाश था ।
प्रकति की रौद्र रूप से लड़ना, ना हमारा विश्वास था,
ना बची वो मिट्टी भी अब, जिससे हमे इतना प्यार था ।
सब कुछ बिखरा देवभूमि का, जितना हमारे पास था,
ना केदार की सुन्दरता रही, जो पुरातात्विक इतिहास था ।
त्रासदी आयी देवभूमि में, शायद प्रकर्ति का अभिशाप था,
गंगा नदी के चारो ओर पड़े , लाशो का अम्बार था ।
काली गंगा काली हुई, जो देवभूमि का द्वार था,
बिखरे हुए थे सब लोग, जैसे कुम्भ का प्रकार था ।
विकास की गति से अधिक, ये हुआ हाहाकार था,
नुकशान उनसे ज्यादा हुआ, जो विकास का द्वार था ।
सोचा ना होगा कभी किसी ने, देवभूमि का जो हाल था,
विकास की नजर में अब, पुरा राज्य बेहाल था ।
सेना और संस्थाओ के जज्बे को, नमन हमारा सत्कार था,
जिन्होंने अपनी जान पे लड़कर, बचाया एक परिवार था ।
सत नमन, सत श्रंदांजलि, उन अमर शहीद जवानों को, हे ईष्ठ देवता, उत्तराखंड आपदा में जान गवाने वाले सभी की आत्मा को शांति से रखना, और उनके परिवार को इस भयानक दर्द के उभरने की शक्ति देना ।
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