क्रांति की भीख

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हे अर्जुन अब तू जाग-जाग
हाथों में ले कर आग-आग

उस कुरुक्षेत्र ने दी पुकार
सुना गांडीव की वही हुंकार

दुर्योधन बहुत इस देश में
दुस्शाशन फिर उसी वेश में

अब की न फिर तो सोच बहुत
कधों पर है ये बोझ बहुत

जो होगा तो मौन फिर
गीता कहेगा कौन फिर

हैं कृष्ण नहीं अब साथ यहाँ
हाथों में उनका हाथ कहाँ

पर अर्जुन, कब तक सोयेगा?
और दुःख के आंसूं रोयेगा?

मां की पुकार सुन – तू सुन बहन की चीख
मांगते हैं आज तुझसे क्रांति की भीख!

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