विहग सा बन व्योम में उड़ जाऊँ,
छोड़ गुरुत्व अंतरिक्ष तक हो आऊँ,
निकट नव नक्षत्र अपलक निहारूँ,
अंतरिक्ष में एक आशियाँ बना लूँ।
माँ पृथ्वी के चरण स्पर्श किए,
हृदय में भव्य भारत छवि लिए,
मैं सुरक्षित स्पेस्सूट आवरण में,
मानो अभेद्य कवच कुंडल कर्ण के।
क्रू कक्ष बना मानव अनुकूल,
ऊर्जा प्रवाह, संचार, हर एक आवश्यकता,
कर रहा पूर्ण सर्विस मॉड्यूल।
समाकलित क्रू एवं सर्विस मॉडयूल,
समाहित जीएसएलवी विशाल के हृदय में,
मानो राम सिया विराजित आंजनेय के हृदय में।
उड़ चले आंजनेय बृहत् विराट,
सिया राम स्थापित अंतरिक्ष कक्षा में,
सौर अपरूपणों का हुआ प्रस्तरण,
किए व्यतीत सात दिवस, किए
नाना प्रकार प्रयोग औ’ परीक्षण।
लहराया तिरंगा आज अंतरिक्ष में,
मानो नक्षत्रों को साथी मिला
तिरंगे की स्वर्णिम आभा से।
अवतरण चरण आरम्भ हुआ,
कुछ ही समय में सर्विस
मॉडयूल भी अलग हुआ।
मन में उल्लास उत्साह है,
नीचे वारिधि वेग प्रवाह है।
किया क्रू मॉडयूल का वेग अवरोधन,
हुआ अवतरण छत्र का प्रसारण,
क्रू मॉडयूल का कोमल जल सम्पर्क,
देखो तैर मुस्कुराया ऐसे, जैसे,
माँ की गोदी में है लालन।
सार्थक हो यह दिव्य स्वपन,
गगनयात्री और सफल गगनयान!!l
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