चौहात्तर साल आजादी को
पर आजादी भी पक्षपाती है
माताओं महिलाओं बेहन बेटी
पर आज भी गुलामी ही छाइ है
हर पांच साल मे बदलतीं रही सरकार
वादे करती रही बरकार,
और
हर पंद्रह मिनट मैं
होता है एक बलात्कार
जरूरत कानून से ज्यादा
सोच बदलने की है
इंसान में इंसानियत जगाने की है
रोज कोई न कोई द्रोपदी का
चीर हरण होता है
क्योंकी आज भी कहीं ना कहीं
दुशाशान जिंदा है
सीमा पर तैनात है सेना
लेके चौड़ा सीना
पर अंदरूनी आंतकवाद का क्या?
लोगो को अपना बदलना होगा नजरिया
स्त्री है वोह !
ना कि मनोरंजन का कोई जरिया,
आजादी का सपना तब होगा साक्षत्कार
जब छेड़ छाड़, घरेलू हिंसा , बलात्कार
का नहीं आए कोई समाचार…!
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