“जनता की ललकार”
माँ अम्बा और बजरंगबली के सेवक हम,
तांडव से प्रचंड परसुराम के वंशज हम,
गर हुए सवार आक्रोश के ऐरावत पर , तो
अपनी असली औकात बता देंगे हम, औ,
कान खोलकर सुनलो सत्ता के मद में मदहोशों,
गर लौट-आये जोश में इक-बार तो फिर,
इस भ्रष्टतंत्र की शक्ति का सच्चा अनुपात बता देंगे हम,
माना कि गाँधी के कदम-निशानों पर चलने वाले हम,
माना कि सीधे-सादे चुपचाप समंदर से हम,
पर मत भूलो सत्ता के मद में अंधों, बुद्धि के मारो,
यह भारत-भूमि वीर शिवाजी की भी माता है,
और मजबूरी के मारों को उनको अच्छे से अपनाना भी आता है।
बाबा के संविधानी कानूनों के विश्वासी हम,
राणा प्रताप से आजादी आतुर वनवासी हम,
धूर्त लुटेरों !
तुमने हमको अब-तक कानूनों से अनभिज्ञ रखा है,
बल पर इसके ही तुमने अब-तक सत्ता का स्वाद चखा है,
लेकिन अब कान खोल-कर सुनलो संसद में काबिज अनपढ़-अनजानों,
गर अधिकारों का हुआ और हनन तो,
तुमको लाठी-बंदूकों के बल पर असली संविधान पढ़ा देंगे हम,
औ,जनता के कारागारों में सबकी सेज सजा देंगे हम,
चाहे चाल कुटिल कितनी भी चल लो तुम,
चाहे 10-10 मंदिर मस्जिद की बातें कर लो तुम,
लेकिन,
धर्म अलग होकर भी एक बनेंगे हम,
देश बचने हेतु सारे गठजोड़ बुनेंगे हम,
सत्ता के भूखे उन्मादी संदेशों के हरकारों,
हमें बांटने वालों जनता के गद्दारों,
जल्दी स्वयं संभालो खुद को, नही तो
तुम्हे तुम्ही में बाँट बाँट कर ,
बोटी बोटी नोच-नोच कर ,पापों की तुम्हे सजा चखाकर,
असली भगवान दिखायेंगे हम,
सभी बराबर धर्म बराबर,धन बराबर,
ऐसा कर समभारत तुमको दिखलायेंगे हम,
:- रवि मीणा
“जनता की ललकार”
Posted by Ravi
September 28, 2013
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