तेरी यह चंचल मुस्कान……
इस धरती पर जब तू आई थी
मेरे आंगन में खुशियां छाई थी
तेरी नन्ही नन्ही आंखों में
न जाने किसकी परछाईं थी
तेरी हंसती बेजुबां किलकारी में
मेरे हर मर्ज की दवाई थी
कांटों से भरी इस जिंदगी में
जब एक नन्ही मुस्कान खिलाई थी
तेरे पग की धानी मिट्टी ने
मेरे घर आंगन की महक बढ़ाई थी
तेरे चंचल ख्वाबों की दुनिया
मेरे आंगन को घेरे हैं
ये मंत्र मुग्ध धारी हवा
अपना हर रंग बिखेरे है
तू परी है मेरे सपनों की
या खिली खिली इक धूप है
तू है हस्ती इस जीवन की
या पंछी है उस अंबर की
तू बता क्या चाहती है जग से
ये जहां तेरे कुर्बान है
तेरे जीवन में आने से
मेरी एक नई पहचान है
गौरव पालीवाल
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