तेज़ाब….
चहेरा की हसीनता देखकर उनको मुझपर दिल आया
अस्वीकार किया उनको तो उन्होंने तेजाब से जलाया
कहे दिया उन्होंने के मैंने उनके अहंकार को चोट पहुँचाई
यही वजह हैं उन्होंने मेरे चहेरे की मुस्कान चुराई
सचमुच प्यार होता मन मैं अगर तो ये अहंकार नहीं रेहता
इस तरह मेरी सूरत ख़राब करदेने का विचार ही मन मैं नहीं आता
देखने से डरती हूँ रोज मैं उस आईनेमे खुदको
घुट घुट मरती हूँ जब याद आती हैं वो काली रात मुझको
दुप्पटे से ढकती हूँ चहेरा मेरा लोगों से छुपाकर
जायज हैं अजीब सा लगता होगा उनको मुझे देखकर
पहले जैसे सजना सवरना छोड़ दिया अब मैंने
क्या करें कहिका नहीं छोड़ा मुझको उन लोगोंने
घरके चार दीवारों में अब कैद रखती हूँ मैं खुदको
खून के आंसू रोकर फिर मैं ही सवार लेती हूँ मुझको
क्या गलती हुई मुझसे , मुझे खुदसे निर्णय लेने का अधिकार नहीं था क्या
जो गलत ना होते हुए भी खुदा मुझे आजीवन ये सजा दे गया
अकेली पाती हूँ तबसे लेकर आजतक इस लोगों से भरी दुनियां मैं ख़ुदको
यही उम्मीद लगाई बैठी हूँ कोई आकर सच्चे मन से अपनाले मुझको
— Pranil Gamre
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