धरती मां की है मांग मत
कुल्हारी मारो अब,
रहने दो इस प्रकृति को मेरी गोद उजारो मत,
खुशहाली को आने दो,
बुरी नजर अब डालो ना,
मां से खिलवाड़ करें मूर्ख मानव,
जिस डाली पर बैठा है,
उसी डाली को काट रहा तू,
जिसने जीवन दिया वह प्रकृति,
बदले में तूने काट दिया,
उस दौर की खातिर,
बंजर किया उस माता को,
मूर्ख मानव मिला तुझे क्या,
प्रदूषित वातावरण भूख और महंगाई,
अब भी वक्त है संभल जा,
पेड़ लगाकर मां की गोद में,
फिर हरियाली को आने दे,
मां को फिर हरा भरा हो जाने दे.
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