फौजी

स्मार्टफोन के जमने में भी मै चिट्ठियां लिखता हु,
घर वालो से मिल नहीं सकता ना,
इसी लिए अपना प्यार हाथो से लिख कर भेजता हु।
मेरी भी माँ मेरा इंतज़ार कर रही होगी ना,
वो भी तो आस लगाए बैठी होगी ना,
मेरे बच्चे भी तो ये खाब रखते होंगे ,
अपने जन्म दिन पर मेरे हाथो से प्यार और तौफों की ।
हाथो में थाली लिए रक्षाबंधन पर,
मेरी बहन भी तो मेरा इंतज़ार करती होगी,
लेकिन क्या मै चला जाऊ ?
तो उन माँओं का क्या होगा जो, अपने बच्चों को सुबह तैयार कर भेज देती है,
उनके बच्चे सही सलामत वापस आ जायेगें ये भरोसा रखती है। क्या मैं उनका भरोसा टूट जाने दू?
क्या मै अपने बच्चे के पास चला जाऊ?
तो उन् बच्चों का क्या होगा जो,
ये उम्मीद रखते ह की पापा आते वक़्त जरूर कुछ ले कर आएंगे।
नहीं, मैं नहीं जाऊंगा उस उम्मीद के दिए को नहीं बुझाऊगा। पहचाना मुझे?
हाँ मै फौजी
वही जो सरहद पर पहरा देता है वही जिसके लिए ईद होली दिवाली सब एक है जो होली और दिवाली रंग,अबीर और पटाखों से नहीं खून और बन्दुक की गोली से मानते है ।
जो क्रिसमस पर तोफे नहीं,
अपने मुल्क की खुशियां मांगते है।
मै वही जो ईद सवाईआं खा कर और नमाज़ अदा कर नहीं,
बस गले लग कर मना लेते है।
जो हाथ फैला रब से बस,
शांति और अमन मांगते है।
मै वही जो हफ्तों कुछ भी खा कर बीता लेता हू ,
अौर जब घर पर बात होती है ,
तो यही कहता हु की खाना आच्छे से खा रहा हु ।
हाँ मै वही जो ये जनता है,
की अब वो शायद घर नहीं लौट पायेगा,
फिर भी खत में ये लिखता है,
की माँ इंतज़ार करना तेरा बेटा एक दिन वापस ज़रूर आएगा।


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