बस वही गद्दार है

जाति, मजहब,धर्म जिसका, देश से पहले खड़ा है
बस वही ग़ददार है ,ग़ददार है, ग़ददार है

जब अनैतिक मूल्य हो जाएं,लहू में प्रतिस्थापित
पीढ़ियाँ हो जातीं हैं उन खानदानों तक की शापित
बदनीयत की ही कमाई पर टिकी है साँस जिनकी
चंद सिक्कों में ही है ईमान हो जाता प्रवाहित
आखिरी में , आँख नीची , उसको करनी ही पड़ेगी
जो स्वयं की आत्मा से ,कर जिया व्यभिचार है

जब बहारें , कर रहीं हैं, पतझरों की ही गुलामी
और सूरज की किरण, जुगनू को देती हो सलामी
भाइचारा ,दुश्मनी की नींव को जब दे समर्थन
हरि कथा जब बांचते हो ,दुष्ट,क्रोधी और कामी
आसुओं की धार है जब खेत की फसलों को सींचे
और उबले ना लहू फिर भी तो फिर धिक्कार है

बेटियों की अस्मतें , नीलाम होती जा रहीं है
गीता,रजिया,मरियमें बदनाम होती जा रही हैं
कान ,पत्थर के हुए जाते,अदालत के हैं देखों
और सन्नाटे की सुबहें,शाम होती जा रही है
बदचलन जब हो हवायें, स्तनों का वस्त्र खींचें
जिंदगी ऐसी यहां फिर भी जिन्हें स्वीकार है

है परेशानी की जिनको ,गान गाने में वतन के
उठ रही है हूक दिल में, जिनको इस खिलते चमन से
जो तिरंगे के लिए, नीती दुरंगी जी रहे हैं
अब उन्हें ढकना पड़ेगा ,बांधना होगा कफन में
जो शहीदों के लिए , अनुचित वचन का बोल बोले
उनको बतलाना पड़ेगा, ये नहीं स्वीकार है

देश की करते खिलाफत , जो उन्हें मत माफ करिये
पौध ऐसी हैं जहाँ भी , अब उसे तो साफ करिये
मुंदने से आँख तो होती समस्या हल नहीं है
आज को कल टालने से आ सका तो कल नहीं है
राष्ट्र वंदन, राष्ट्र अभिनंदन जरूरी शर्त हो अब
छोड़ दें वो देश ,जिनको शर्त ये अस्वीकार है


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