भारत-भूमि
भारत की इस देवभूमि को, जगजननी! बारम्बार नमन।
ये दिव्य शांति की दीपशिखा, कर दे मन-अंधकार शमन।।
धन्य रहा वो जीवन जिसने, इस दिव्यभूमि में जन्म लिया।
ज्ञान जोत से इस नैया का, हो निर्भय पर-संसार गमन।।
संस्कार साथ जो लाए थे, इस धरती पर जब आए थे।
वो जोड़ो जो मन स्थिर कर दे, कर लो सर्व विकार दमन।।
कुदरत के सब अवयय भी तो, तन्मय हो अपना काम करें।
कर्तव्य निर्वहन से हटते जो, उनको है धिक्कार गहन।।
प्राच्य रही या नवल संहिता, बिखरा जीवन का दर्शन है।
क्यों पीर-ताप में जला रहे मन, करो सहज स्वीकार चलन।।
शांति, मधुरता, शीतलता की, अंतस में मूल प्रवृत्ति रहे।
दुख के भवसागर से लड़कर, संहार करो तुम पीर तपन।।
जगत-गुरू भारत की महिमा, मानी है जग ने सदियों से।
इसको स्वर्णिम खग करने को, फिर कर लो अंगीकार लगन।।
विश्व पटल पर छा जाने को, गौरव का दिया जलाने को।
तीक्ष्ण वायु के झोंकों का भी, सब कर लो तुम प्रतिकार सहन।।
सजे नम्रता हृदय में सदा, दमक शौर्य की रहे भाल पर।
बढ़ें अगर पग श्रृंग भला क्या, हो जाता है अभिसार गगन।।
धैर्य, शौर्य, बुद्धि, या मन शुद्धि, नित कौशल रत्न करें अभिवृद्धि।
विश्व-कुटुंब पर करते राज, इस गौरव पर है देश मगन।।
प्रतिक्षण न्यौछावर को तत्पर, हम अखंड भारत के प्रहरी।
गौरव गाथा लिखना नभ पर, मन में है गहरी पली लगन।।
बाह्य शत्रु पर भारी सेना, अंत शत्रु से हमको लड़ना।
न देश कलंकित होने देंगे, रहे दुपहरी या शीत गहन।।
साहस बल जग में है चर्चित, कौन नहीं इससे है परिचित।
चहुँ दिश विजय पताका लहरी, न शीश झुकाना हमें सहन।।
पूरब से पश्चिम तक जाती, उत्तर से दक्षिण तक आती।
मानस-धागे की रेख इकहरी, विविध पुष्पों का एक चमन।।
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