गाड़ी आई गाड़ी आई
रेल नहीं पर ट्रक आई
सौ सौ बोरी धान लाई
गाड़ी आई गाड़ी आई
उसमें से उतरे तीन भाई
दो मजूर और एक माइक
पहले पी गरम चाई
फिर काम की बारी आई
एक मजदूर दे बोरी
दूजा उसको लादे
लाद कंधे पर बोरी
को, दुकान के अंदर
पटके, पर
बूंद- बूंद कर पसीना
टपके
पर रुके ना क्षण भर
एक
आई ना मुझको एक
बात समझ कि
मजदूर है वों,या
मजबूर हैं वो?
चिलचिलाती धूप में
दो रोटी की भूख में
दिन -रात
करें मेहनत
मेहनत की जो कीमत पाई तो
चेहरे पर छाई मुस्कान
हाय! वोह सोने की खान
फिर बात समझ में आई कि
मजदूर है वो पर
मजबूर भी है!
मजदूर है वो या मजबूर है वो?
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