इक मुदद्त हुई माँ तुझे चैन से सोते नही देखा,
तकिये पर तेरे आँसू थे माँ , तुझे रोते नही देखा.
खुद के लिए जीना तो तूँ जानती ही कहाँ थी,
पर अब अरसे बीत गये माँ तुझे अपने लिए कभी खुश होते नही देखा.
मेरी हर ग़लती पर माँ जो तूँ धीमा सा मुस्कुरकर हस्ती है,
वोही एक हस्सी तेरी माँ मेरी इस रूह में बस्ती है.
खो ना जाए तेरी हस्सी कहीं वो, ये सोच कर डरती हूँ,
इसीलिए माँ जानकर मैं ये ग़लतियाँ करती हूँ.
तेरे बिना मैं हूँ ही क्या,
ये मेंने कभी दिखाया तो नही है.
लाख बातें सीखती है माँ तूँ,
पर खुद बिन जीना तो तूने सीखया ही नही है!
रब की इनायत है माँ तूँ इस जहांन में,
जहाँ हर दिन हर रिश्ता बिकता है.
और एक रोज़ तेरी सूरत माँ आँखो में उतर आई थी,
उसी रोज़ यूँही कोई कह गया,
मेरी आँखों में रब दिखता है. मेरी आँखों में रब दिखता है!
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