मानव की अभिलासाये

बैठा था एक शाम
धूप के किनारे
तभी आंखे जा पहुंची
एक मनोरम दृश्य पर
मानो अटक सी गयी
उसके प्रकाश मानो आंखों को चूम रहे हो
खुशी में झूम रहे हो
आकांक्षाओ से भरी आंखे चमक उठी
आंखे भरी दिल बैठ सा गया
आंखे मिजने पर ज्ञात हुआ
सपना मानो टूट सा गया
सौन्दर्य की किरणें ओझल हो गयी
अचानक एक आवाज़ आयी
चल बहोत देर हो गयी ।
===== रोहित तिवारी


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