योगेन्द्र सिंह यादव

योगेन्द्र सिंह यादव

शिवाजी , लक्ष्मीबाई , भगत सिंह
कि बात अब पुरानी है ,
मैं आज सुनाता हूँ तुम्हे
नई अब जो कहानी है |

अब भी हमारे रगों में
जोश का उफान है ,
अब भी हमारे सीने में
देशभक्ति का तूफान है |

नसों में है बिजलिया
आँखों में अंगार है ,
अब भी देश कि खातिर लोग
मर मिटने को तैयार है |

अच्छाई कभी न दिखाती मीडिया
बस बुरे दिखाना काम है ,
तभी तो लोगों का अब
जीना यहाँ हराम है |

इस देश का कुछ नहीं हो सकता
यह तिनको में बिखर जायेगा ,
अरे खुद को सुधारो तुम
यह अपने आप सुधर जायेगा |

खैर अब मैं अपनी
कहानी पर आता हूँ ,
एक सच्ची घटना को
आपको मैं सुनाता हूँ |

वीरता और देशभक्ति जहाँ
कण – कण में समाई है ,
देश के लिए जहाँ वीरो ने
खून क़ी नदियाँ बहाई है |

बुजदिलो के बीच में
मर्द आज भी पलते है ,
भेद बकरियों के बीच में
शेरो क़ी तरह चलते है |

योगेन्द्र सिंह यादव है
नाम ऐसे शेर का ,
यह कहानी है उसी
फौलाद के ढेर का |

यु.पी. में जन्मा है
पर भारत क़ी शान है ,
उन जैसे लोगो से ही
इस देश क़ी आन है |

6 मई को शादी हुई
और 20 मई को बुलावा आया ,
बड़ी खुशी से दुल्हे ने
सेहरा उतार बन्दूक उठाया |

18 ग्रेनेडिएर बटालियन का
रत्ना था , कोहिनूर था ,
शक्ति और शौर्य का
जीता -जगता प्रतिरूप था |

पाकिस्तानी भेडिये बैठे थे
तोलोलिंग पहाड़ी क़ी छोटी पर ,
भारतीय शेरो ने परखा उन्हें
वीरता क़ी कसौटी पर |

22 दिनों के भीतर ही
खदेढ़ उन्हें वहां से भगाया ,
फिर टाइगर हिल पर कब्ज़े का
बीड़ा हाथों में उठाया |

दुर्गम रस्ते अजेय पहाड़ी
पर सीने में जोश था ,
भारत माँ के आगे क्या
किसी और चीज़ का होश था |

7 जाबांजो क़ी घातक टुकड़ी
चली असंभव काम करने ,
सिर्फ रस्सियों के सहारे
सीधी पहाड़ी को चढ़ने |

16500 फुट ऊँची पहाड़ी
गिरे तो हड्डिया भी न बचेंगी ,
पर उन चट्टानों में वो दम कहाँ
जो भारतीय कदमो को रोक सकेंगी |

3 दिन और 2 सर्द रातो बाद
असंभव को संभव कर दिखाया ,
पर रत के अँधेरे में था
दुश्मन बैठा अपने को छिपाया |

सुबह होते ही उनपर
हमला हुआ जोरो का ,
बचने के लिए सहारा लिया
पर्वतो क़ी गोदो का |

अल्लाह हो अकबर के नारे
और बरसते पत्थर और गोली ,
शेरो क़ी गिनती करने
आ रही गीदडो क़ी टोली |

8 को मार गिराया
2 को किया घायल ,
दुश्मन भी हुआ उनकी
वीरता का कायल |

घायल सिपाहियों ने अफसर को
भारतीयों क़ी गिनती बताई ,
आधे घंटे बाद उन्होंने
दुबारा उनपे क़ी चढाई |

5 जुलाई का दिन था
करीब 12 बज रहे थे ,
7 भारतीय जवानों से
70 पाकिस्तानी लड़ रहे थे |

35 को कफ़न पहनकर
6 वीरगति को प्राप्त हुए ,
पार्थिव शारीर को छोड़कर
हमारे दिल में व्याप्त हुए |

उन मृतकों के बीच एक
ज़ख्मी शेर बचा था ,
सही मौके क़ी तलाश में उसने
मरने का ढोंग रच था .

खून से लथपथ शारीर
पर दर्द मौजूद नहीं ,
भारत माँ और तिरंगे के आगे
किसी और का वजूद नहीं .

उन बेरहम पाकिस्तानियों ने
पहले शवो को बूटो से मारा ,
फिर दम तक गलियां दी
और अपने बन्दूको को उतरा |

मरे हुए लोगो पर
गोलियों क़ी बौछार कर दी ,
उन जालिमो ने अब तो
सभी हदों को पर कर दी |

12 गोलिया खाने के बाद भी
उसके शारीर में स्वास बाकी थी ,
सर और दिल में गोली न लगने से
जीने क़ी आस बाकी थी |

तभी एक पाकिस्तानी ने मुड़कर
उसके सीने में गोली दाग दी ,
पर उस वीर क़ी किस्मत
उस समय उसके साथ थी |

जेब में बटुआ था और
उसमे पांच के सिक्के पड़े थे ,
गोली और दिल के बीच में
चट्टान क़ी भांति वे खड़े थे |

उसने सोचा अभी तक नहीं मरा
तो अब नहीं मरूँगा ,
अपने दिए मिशन को
हर हालत में पूरा करूँगा |

बायाँ हाथ बेकार हो गया
दाये से उसने ग्रेनेड उठाई ,
एक बड़ा धमाका हुआ जिसने
पाकिस्तानियों क़ी होश उड़ाई |

तीन तरफ से हमला कर
10 को मौत से भेट कराई ,
बुजदिल पाकिस्तानियों को लगा क़ी
भारतीय फौज दुबारा लौट आई |

दुम दबाकर भाग खड़े हुए
पीछे मुड़कर भी न देखा ,
एक अकेले ने वहां खीच दी
मौत क़ी गाढ़ी रेखा |

दुबारा लौट यादव अपने
भाइयो के पास आया ,
भुज हीन , मुंड हीन सबको
खून से सना पाया |

फूट -फूट कर रोया हो
फिर संभाला उसने होश ,
चल पड़ा वहां से
वो वीरता का कोष |

नीचे MMG पोस्ट पर
हमले क़ी खबर पहुँचानी थी ,
दुश्मन के ठिकाने क़ी
सारी बाते उन्हें बतानी थी |

लटकते बाये हाथ को उसने
पीछे बेल्ट से बांध दिया ,
नीचे पोस्ट तक पहुचने का
संकल्प मन में साथ लिया |

लुढ़क गया नाले से
शारीर का परवाह न किया ,
उसके साहस और शौर्य को
जिंदगी ने रुसवा न किया |

खून से नहाया योगेन्द्र
किसी तरह नीचे आ गया ,
उसका साथ देने के लिए तो
खुद खुदा भी पीछे आ गया |

लडखडाती जुबान से उसने
जनरल को पूरी बात बताई ,
उन्होंने दुबारा प्लान बनाया
फिर चोटी पर क़ी चढ़ाई |

उसी रत टाइगर हिल पर
भारतीय तिरंगा फहराया गया ,
उन बेवखूफ़ पाकिस्तानियों को
उनकी असली औकात बताया गया |

27 महीने तक हुई फिर
जिंदगी और मौत क़ी जंग ,
मौत भी दंग रह गयी
देख उसके वीरता का रंग |

उस वीर के लिए दुआ में
आरती का थाल सजाया गया ,
उस परमवीर भारतीय को
परमवीर चक्र पहनाया गया |

पूछने पर बताया उसने ,
बस खून दिया है
बलिदान अभी बाकी है ,
इस मिटटी के गौरव का
अभिमान अभी बाकी है |

हुस्न के जलवो का मज़ा
हम भी उठा सकते थे ,
अपनी इस जवानी को
उन पर लुटा सकते थे |

मगर , वो फूल ही क्या
जो अपनी खुशबु ना महकाये ,
और वो जवानी ही क्या
जो वतन के काम ना आये |

मात्र 21 साल में उसने
यह अद्भूत कारनामा किया ,
वीरता क़ी कोई उम्र ना होती
पूरी दुनिया को बता दिया |

हमेशा बोलते हो कि
इस देश ने मुझे क्या दिया है ,
कभी ये भी तो सोचो कि
तुमने इसके लिए क्या किया है |

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